अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस 2024 का महत्व एवं चुनौतियाँ

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस 2024 का महत्व एवं चुनौतियाँ

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे , सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस, विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG), जनजातीय अनुसंधान सूचना, शिक्षा, संचार और कार्यक्रम (TRI-ECE), संयुक्त राष्ट्र महासभा  खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक करेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस 2024 का महत्व एवं चुनौतियाँ खंड से संबंधित है। )

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में, 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस (International Day of Indigenous Peoples) मनाया गया, जिसका उद्देश्य स्वदेशी समुदायों के अधिकारों की रक्षा और उनके सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देना है। 
  • इस दिन को मनाने का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर आदिवासी समुदायों की समस्याओं और उनकी विशिष्टताओं के प्रति जागरूकता फैलाना है।
  • भारतीय विज्ञान संस्थान (IIS), बंगलूरु को जनजातीय अनुसंधान सूचना, शिक्षा, संचार और कार्यक्रम (TRI-ECE) के तहत जनजातीय छात्रों को सेमीकंडक्टर निर्माण और लक्षण वर्णन प्रशिक्षण देने का कार्य सौंपा गया है। 
  • भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया यह पहल जनजातीय छात्रों को उच्च तकनीकी शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से की गई है।

 

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस : 

  • सन 1994 के दिसंबर महीने में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस’ को मनाए जाने का संकल्प पारित किया गया। तब से प्रतिवर्ष 9 अगस्त को यह दिवस मनाया जाता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस वर्ष 1982 में जिनेवा में आयोजित आदिवासी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्यसमूह की पहली बैठक को मान्यता देता है।

 

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस 2024 की थीम :

  • अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस 2024 की थीम “स्वैच्छिक अलगाव और प्रारंभिक संपर्क में स्वदेशी लोगों के अधिकारों का संरक्षण” (Protecting the Rights of Indigenous Peoples in Voluntary Isolation and Initial Contact) है। 
  • यह थीम उन आदिवासी समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा पर केंद्रित है जो या तो पूरी तरह से बाहरी दुनिया से कटे हुए हैं या उन लोगों के संपर्क में आ रहे हैं जो बाहरी दुनिया से अभी-अभी जुड़े हैं।

 

वैश्विक स्तर पर आदिवासियों से संबंधित मुख्य तथ्य :

  • स्वैच्छिक अलगाव में आदिवासी समूह : वर्तमान में बोलीविया, ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर और भारत जैसे देशों में लगभग 200 आदिवासी समूह स्वैच्छिक अलगाव में जीवन यापन कर रहे हैं।
  • वैश्विक स्तर पर आदिवासियों की कुल जनसंख्या : विश्व के तक़रीबन 90 देशों में लगभग 476 मिलियन आदिवासी लोग निवास करते हैं। ये लोग विश्व की कुल जनसंख्या का 6% से भी कम हैं, लेकिन सबसे गरीब जनसंख्या में इनका हिस्सा लगभग 15% है।
  • भाषाएँ और संस्कृतियाँ : विश्व की अनुमानित 7,000 भाषाओं में से अधिकांश आदिवासी समूहों द्वारा बोली जाती हैं। ये समूह लगभग 5,000 विशिष्ट संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वैश्विक स्तर पर मानव विविधता के महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करती हैं।

 

भारत में आदिवासियों से संबंधित प्रमुख तथ्य : 

भारत में आदिवासियों से संबंधित प्रमुख तथ्य निम्नलिखित है – 

  • भारत में आदिवासियों की कुल जनसंख्या : भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में आदिवासियों (अनुसूचित जनजाति) की कुल आबादी लगभग 8.6% है, जो कुल मिलाकर लगभग 104 मिलियन लोगों के बराबर है।
  • आदिवासी पहचान : आदिवासियों को भारत में विभिन्न जातीय और सांस्कृतिक समूहों का एक समुच्चय मानते हैं। ये समूह पारंपरिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अपने विशिष्ट जीवनशैली और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाने जाते हैं।

 

आदिवासियों की विशेषताएँ (लोकुर समिति, 1965) :

  • आदिम लक्षणों का संकेत : ये जनजातियाँ प्रायः प्राचीन और परंपरागत जीवनशैली अपनाए हुए हैं।
  • विशिष्ट संस्कृति : इनकी संस्कृति, परंपराएँ और जीवनशैली सामान्य समाज से भिन्न होती हैं।
  • मुख्य धारा के सामान्य आबादी से बड़े पैमाने पर संपर्क में संकोच करना : ये समूह बाहरी संपर्क से अक्सर परहेज करते हैं और अपने परंपरागत समुदायों में ही सीमित रहते हैं।
  • भौगोलिक रूप से अलगाव : कई आदिवासी समूह भौगोलिक रूप से अलग-थलग या सुदूर इलाकों में निवास करते हैं।
  • पिछड़ापन की पहचान : सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक दृष्टिकोण से ये समूह अक्सर पिछड़े माने जाते हैं।
  • अनुसूचित जनजातियाँ (ST) : भारत सरकार द्वारा विशेष सुरक्षा और सहायता प्राप्त आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजातियाँ (ST) कहा जाता है। इन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत विशेष अधिकार और सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, ताकि इनके सामाजिक और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया जा सके। इन विशेषताओं और संरक्षण नीतियों के माध्यम से, भारत सरकार आदिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने की दिशा में काम कर रही है।

 

भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिए प्रदत्त बुनियादी सुरक्षा उपाय :  

भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिए प्रदत्त बुनियादी सुरक्षा उपाय निम्नलिखित है – 

शैक्षिक एवं सांस्कृतिक सुरक्षा : 

  • अनुच्छेद 15(4) : इस अनुच्छेद के तहत अनुसूचित जनजातियों (STs) सहित अन्य पिछड़े वर्गों के विकास के लिए विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं, ताकि उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।
  • अनुच्छेद 29 : यह अनुच्छेद अल्पसंख्यक समुदायों, जिसमें अनुसूचित जनजातियाँ भी शामिल हैं, के सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक अधिकारों की रक्षा करता है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान और विरासत सुरक्षित रहती है।
  • अनुच्छेद 46 : यह अनुच्छेद विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए राज्य को निर्देशित करता है। इसके तहत, सामाजिक अन्याय और विभिन्न प्रकार के शोषण से उन्हें बचाने के उपाय किए जाते हैं।
  • अनुच्छेद 350 : यह अनुच्छेद किसी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति की रक्षा के अधिकार को मान्यता देता है, जिससे अनुसूचित जनजातियाँ अपनी भाषाओं और सांस्कृतिक विशेषताओं को संरक्षित कर सकती हैं।

 

राजनीतिक सुरक्षा : 

  • अनुच्छेद 330 : लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करता है, जिससे उनकी राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
  • अनुच्छेद 332 : राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की व्यवस्था करता है, जिससे राज्य स्तर पर उनकी उपस्थिति और प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सके।
  • अनुच्छेद 243 : पंचायतों में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान करता है, जिससे स्थानीय स्वशासन में उनकी भागीदारी और प्रभाव सुनिश्चित होता है।

 

प्रशासनिक सुरक्षा : 

  • अनुच्छेद 275 : यह अनुच्छेद अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए केंद्र सरकार को विशेष निधि प्रदान करने की अनुमति देता है। इस निधि का उपयोग राज्य सरकारें अनुसूचित जनजातियों की विकास योजनाओं और बेहतर प्रशासन हेतु कर सकती हैं।

 

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) : 

विशेष वर्गीकरण : 

  • जनजातीय समूहों में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) ऐसे समूह होते हैं, जो अन्य जनजातीय समूहों की तुलना में अधिक असुरक्षित होते हैं। 

 

इतिहास और पहचान : 

  • सन 1973 में ढेबर आयोग ने आदिम जनजातीय समूहों (PTG) को अलग श्रेणी में रखा, जो जनजातीय समूहों में कम विकसित माने गए। 
  • 2006 में PTG का नाम बदलकर PVTG कर दिया गया। 1975 में 52 समूहों को इस श्रेणी में शामिल किया गया, और 1993 में 23 अतिरिक्त समूहों को जोड़कर कुल 75 PVTG समूहों की पहचान की गई।

 

विशेषताएँ : 

  • PVTG की विशेषताएँ में शामिल हैं – ये समूह जनसंख्या के दृष्टिकोण से छोटी हैं, ये भौगोलिक रूप से अलग-थलग रहते हैं, इनकी लिखित भाषा का अभाव होता है, तकनीकी विकास सीमित होता है और सामाजिक परिवर्तन की दर धीमी होती है।

भौगोलिक वितरण :  

  • भारत में सूचीबद्ध 75 PVTG समूहों में से सबसे अधिक संख्या ओडिशा में पाई जाती है।

 

जनजातीय समुदायों के लिए सेमीकंडक्टर निर्माण और विशेषता प्रशिक्षण : 

  • जनजातीय समुदाय परियोजना का उद्देश्य जनजातीय छात्रों को उन्नत तकनीकी कौशल प्रदान करने हेतु विशेष प्रशिक्षण प्रदान करना है। इस परियोजना के माध्यम से, जनजातीय छात्रों को सेमीकंडक्टर निर्माण और विशेषताओं में प्रशिक्षण देकर उनकी पेशेवर क्षमताओं को विकसित किया जाएगा।

उद्देश्य :

  • इस परियोजना का लक्ष्य तीन वर्षों में 2,100 जनजातीय छात्रों को सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में NSQF-प्रमाणित स्तर 6.0 और 6.5 प्रशिक्षण प्रदान करना है। 
  • NSQF स्तर 6.0 आमतौर पर स्नातक की डिग्री या समकक्ष के अनुरूप होता है, जबकि NSQF स्तर 6.5 सामान्यतः स्नातक की डिग्री से परे एक विशेष कौशल सेट या उन्नत डिप्लोमा का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रशिक्षण संरचना:

  • इस परियोजना के तहत 1,500 जनजातीय छात्रों को सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। 
  • इसके बाद, 600 चयनित छात्रों को उन्नत प्रशिक्षण के लिए चुना जाएगा। 
  • उन्नत प्रशिक्षण के लिए पात्र आवेदकों के पास इंजीनियरिंग विषय में डिग्री होना आवश्यक है।

 

अनुसूचित जनजातियों के लिए सरकारी पहल :

 

 

 

  1. प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM JANMAN): जनजातीय समुदायों के सामाजिक और आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ और कार्यक्रम।
  2. प्रधानमंत्री पीवीटीजी मिशन (PM PVTG Mission): विशेष रूप से संवेदनशील आदिवासी समूहों के उत्थान के लिए योजनाएँ।
  3. TRIFED (आदिवासी सहकारी विपणन विकास संघ): आदिवासी उत्पादों के विपणन और मूल्यवर्धन के लिए पहल।
  4. आदिवासी स्कूलों का डिजिटल रूपांतरण: आदिवासी विद्यालयों में डिजिटल शिक्षा की सुविधा प्रदान करना।
  5. प्रधानमंत्री वन धन योजना: वन संसाधनों पर आधारित आजीविका अवसरों को बढ़ावा देने के लिए योजना।
  6. एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय: जनजातीय क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए आवासीय विद्यालयों की स्थापना।

 

स्रोत- पीआईबी एवं द हिन्दू। 

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 के अंतर्गत ग्रामसभा की निम्नलिखित में से कौन-कौन सी भूमिकाएँ और शक्तियाँ हैं?

  1. ग्रामसभा के पास लघु वनोपज का स्वामित्व होता है।
  2. अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी खनिज के लिये खनन का पट्टा अथवा पूर्वेक्षण लाइसेंस प्रदान करने हेतु ग्रामसभा की अनुशंसा आवश्यक है।
  3. ग्रामसभा के पास अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि का हस्तांतरण रोकने की शक्ति होती है।

उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

A. केवल 1 और 3

B. केवल 1 और 2  

C. केवल 2 और 3  

D. 1, 2 और 3

उत्तर –  A

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. हर साल हम अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाते हैं, लेकिन इन समुदायों से जुड़ी समस्याओं का अभी भी समाधान नहीं हुआ हैं। चर्चा कीजिए कि भारत में आदिवासियों और जनजातीय समूहों में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह से संबंधित मुद्दे क्या हैं और भारत सरकार ने इसके समाधान के लिए क्या उपाय किए हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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