08 Oct ओपैक+
ओपैक+
संदर्भ- पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन व उसके सहयोगियों ने तेल उत्पादन में 2 मिलियन बैरल प्रति दिन की कटौती का फैसला किया है।
ओपैक क्या है?
- यह पेट्रोलियम उत्पादक देशों का एक अंतर सरकारी संगठन है।
- इसकी स्थापना ईरान, इराक, कुवैत, सउदी अरब और वेनेजुएला द्वारा 10-14 सितम्बर 1960 को बगदाद सम्मेलन में की गई थी।
- इसकी स्थापना के समय इसका मुख्यालय जेनेवा , स्वीटजरलैण्ड में था किंतु 5 साल बाद यह परिवर्तित कर वियना ऑस्ट्रेलिया में कर दिया गया।
- वर्तमान में अल्जीरिया, कांगों, अंगोला, भूमध्यवर्ती गिनी, गैबान, इराक, ईरान, कुवैत लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेजुएला आदि इसके सदस्य देश हैं।
- ओपैक की सदस्यता किसी भी ऐसे देश के लिए खुली है, जो तेल का बड़ा निर्यातक देश हो और संगठन के आदर्शों का पालन करता हो।
- रूस सहित 11 तेल उत्पादक देशों का समूह जो संगठन से संबद्ध है, ओपैक+ कहलाता है।
ओपैक का उद्देश्य
- सदस्य देशों की पैट्रोलियम नीतियो का एकीकरण व समन्वय करना।
- उपभोक्ताओं को पेट्रोलियम की एक कुशल, आर्थिक और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए तेल बाजारों के स्थिरीकरण को सुनिश्चित करना है।
- पेट्रोलियम उद्योग में निवेश करने वालों की पूंजी पर वापसी सुनिश्चित करना।
- सेवन सिस्टर के रूप में जाने जानी वाली बहुराष्ट्रीय तेल कम्पनियों द्वार नियंत्रित ओपेक ने वैश्विक पेट्रोलियम बाजार पर तेल उत्पादक देशों को अधिक प्रभाव देने की मांग की। 2018 के अनुमानों के अनुसार, वे दुनिया के कच्चे तेल का लगभग 40 प्रतिशत और विश्व के तेल भंडार का 80 प्रतिशत हिस्सा हैं।
तेल उत्पादन में कमी
- फरवरी में यूक्रेन में रूस के आक्रमण के बाद तेल की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि देखी गई। पिछले कुछ महिनों में लॉकडाउन में किए गए कुछ उपायों के कारण चीन से मांग में कमी और तेल की कीमतों में नरमी आई है। जिससे यूरोप में मंदी की आशंका के कारण कच्चे तेल की कीमतों में 90 डॉलर प्रति बैरल की कमी हो आई है।
- ओपैक के सदस्यों ने कोविड 19 महामारी के दौरान 10 मिलियन बीपीडी की कमी की, इण्डियन एक्सप्रैस के अनुसार आज की कटौती 2020 की कटौती के बाद से सबसे बड़ी कटौती है। यह कटौती कीमतों को बढ़ावा देगी आर मध्यपूर्व राज्यों के लिए फायदेमंद साबित होगी। रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद रूस पर प्रतिबंध लगाने के बाद यूरोपीय देशों ने तेल की ओर रुख किया है।
- विश्व की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के कारण तेल की मांग में कमी आई, और की गई कटौती को मुनाफे की रक्षा के रूप में देखा जाएगा। वॉल स्ट्रीट जनरल के अनुसार, तेल की कीमतों में वृद्धि, जो पहली बार यूक्रेन पर आक्रमण के दौरान हुई, ने ओपेक के संस्थापक सदस्यों में से एक सऊदी अरब को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने में मदद की है ।
- न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार मॉस्को, रूस पर ऊर्जा प्रतिबंधों का विस्तार कर पश्चिम के लिए इसे और अधिक महंगा बना सकता है और ओपेक को प्रभावित कर सका है।
इस निर्णय का विरोध-
- द वॉल स्ट्रीट जनरल के अनुसार वर्तमान में की गई कटोतियाँ संयुक्त अरब अमीरात व कुवैत के तेल उत्पादन क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य में बाधक साबित हो सकती है।
- अमेरिका जो बार बार तेल उत्पादन क्षमता बढ़ाने की मांग कर रहा है उसके भविष्य की योजनाओं के लिए यह निर्णय बाध्यकारी हो सकता है।
भारत के पैट्रोलियम भण्डार- 1973-74 के तेल संकट के बाद वर्तमान में भारत आपातकालीन आवशयकताओं के कारण तेल को भण्डारण करने की रणनीति अपनाता है।
- संकटपूर्ण स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने विशाखापत्तनम(1.33mmt), मंगलौर(1.5mmt) और पादुर(2.5mmt) में कुल 5.33mmt मिलियन मीट्रिक टन के सामरिक भण्डार बनाने का निर्णय लिया है। इन सुविधाओं से भारत में कच्चे तेल की जरुरतों को 9.5 दिन तक पूरी कर सकता है।
- देश, चंडीखोल(4mmt) व पादुर(2.5mmt) मे भण्डारण क्षमता को बढ़ाने की प्रक्रिया में है।
- वर्तमान में भारत 74 दिन की आपूर्ति करने की तेल भण्डारण क्षमता रखने की तैयारी में है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार प्रत्येक देश के पास 90 दिन की भण्डारण क्षमता होनी चाहिए।
- भारत अपनी आवश्यकता का 85% कच्चे तेल का निर्यात करता है। विदेशों से आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति में इन तेल भण्डारों से तेल की आपूर्ति की जाएगी।
- भारत ने ओपैक+ उत्पादकों के कार्टेल के उत्पादन में प्रतिबंध लगाने के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व में चुनौती देने के लिए अपने तेल भण्डारों से 5 मिलियन बैरल तेल छोड़ने का फैसला किया है। जो अंतर्राष्ट्रीय कीमतों को प्रभावित करने का भारत का पहला कदम है।
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