गिग इकोनॉमी

गिग इकोनॉमी

गिग इकोनॉमी

संदर्भ- हाल ही में जोमेटो के स्वामित्व वाले ब्लिंकिट ने डिलीवरी एजेंटों के प्रति डिलीवरी 25 रुपये से घटाकर 15 रुपये प्रति डिलीवरी कर दी। जिस कारण डिलीवरी एजेंटों ने हड़ताल शुरु कर दी है। इस हड़ताल से देश में एक बार फिर गिग इकोनॉमी व श्रमिकों के शोषण के मुद्दों में सुधार की मांग की जा रही है। 

गिग इकोनॉमी- 

  • गिग इकोनॉमी एक श्रम बाजार है जो पूर्णकालिक स्थायी कर्मचारियों के बजाय़ ठेकेदारों व फ्रीलांसरों के द्वारा भरे गए अस्थायी या अंशकालिक पदों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। 
  • इंडिया स्टाफिंग फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्तर पर गिग इकोनॉमी में भारत का पांचवां स्थान है।  
  • नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 2029 तक भारत के 23.5 मिलियन कर्मचारी गिग इकोनॉमी में भाग ले चुके होंगे। किंतु अब तक गिग श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं हुई है। 

गिग श्रमिकों की विशेषता-

  • स्वतंत्रता- गिग कर्मचारियों को कार्य के प्रति स्वतंत्रता प्राप्त होती है अर्थात कर्मचारी अथवा श्रमिक किसी भी स्थान से कार्य कर सकता है, 
  • डिजीटल तकनीक को प्रोत्साहन- इस प्रकार के श्रमिक को आधुनिक डिजीटल तकनीक का ज्ञान होना आवश्यक होता है। इसके साथ ही उन्हें नौकरी की बहुत कम या कोई भी सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है।
  • महिलाओं को सशक्त बनाने में सहायक – गिग इकोनॉमी के तहत कई ऐसे नौकरियों के द्वार खुल गए हैं, जिनहें घर पर रहकर भी किया जा सकता है। भारत में महिलाओं पर ही बच्चों की परवरिश का उत्तरदायित्व होता आया है, जिसके कारण अथवा कई बार सुरक्षा की दृष्टि से वह ऑफिस में कार्य नहीं कर पाती इस प्रकार की परिस्थिति में महिलाओं को घर पर रहकर भी आत्मनिर्भर होने में मदद गिग इकॉनॉमी सहायक सिद्ध हुई है।
  • इस प्रकार के कार्य के लिए नियोक्ता, कर्मचारियों को स्वास्थ्य कवरेज व भुगतान युक्त छुट्टी देने से भी बचते हैं।

 गिग वर्कर्स दो प्रकार के हो सकते हैं-

  • प्लेटफॉर्म्स वर्कर – जब गिग वर्कर ग्राहकों से जुड़ने के लिए ऑनलाइन एल्गोरिथम मैचिंग प्लेटफॉर्म या ऐप का इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें प्लेटफॉर्म वर्कर कहा जाता है। 
  • नॉन प्लेटफॉर्म्स वर्कर – जो श्रमिक प्लेटफॉर्म श्रेणी के बाहर काम करते हैं, वे गैर-प्लेटफ़ॉर्म श्रमिक हैं, जिनमें निर्माण श्रमिक और गैर-प्रौद्योगिकी-आधारित अस्थायी श्रमिक शामिल हैं।

भारत में श्रमिकों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान

श्रमिक न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948- इस अधिनियम के तहत भारत के कुशल व अकुशल कर्मचारियों अथवा श्रमिकों के वेतन अथवा मजदूरी का निर्धारण किया जाता है। इसके तहत पहले से निर्धारित मजदूरी की समीक्षा अथवा वर्तमान मजदूरी का निर्धारण किया जाएगा।

श्रमिक भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 (EPFA)- यह भारत के वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण निवेश है। इसके तहत सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाता है। इस योजना के तहत संस्था के कर्मचारियों को भविष्य निधि, पेंशन, बीमा व अन्य लाभ प्रदान किए जाते हैं। 

बोनस भुगतान अधिनियम 1965 – 

  • बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 उन निश्चित प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों को बोनस भुगतान मुहैया कराता है जहां 20 या उससे अधिक श्रमिक काम करते हैं, और यह
  • बोनस लाभ के आधार पर अथवा उत्पादन या उत्पादकता तथा संबंधित मामलों के आधार पर होता है।
  • इस अधिनियम की धारा 10 के अंतर्गत प्रत्येक उद्योग एवं संस्थानों द्वारा न्यूनतम 8.33% बोनस देय है। किसी वित्तीय वर्ष में भुगतान किया जाने वाला अधिकतम
  • बोनस जिसमें उत्पादकता से जुड़ा बोनस भी शामिल होता है, वह इस अधिनियम की धारा 31ए के अंतर्गत किसी श्रमिक के वेतन / पारिश्रमिक के 20% से अधिक नहीं होगा।

अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970-

  • इस अधिनियम का उद्देश्य संविदा श्रम के नियोजन को विनियमित करना है। 
  • अनुबंध श्रमिकों का अर्थ है नियोक्ता के लिए किसी अन्य व्यक्ति अथवा ठेकेदार द्वारा नियोजित श्रमिक।
  • इसके द्वारा संविदा कामगारों के स्वास्थ्य, मजदूरी, काम के घण्टे आदि के संदर्भ में रक्षा की जाती है। 

गिग इकोनॉमी वर्कर की संवैधानिक प्रावधान- सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 

  • श्रम और रोजगार मंत्रालय ने सर्वप्रथम 2020 में सामाजिक सुरक्षा संहिता प्रस्तुत की जो पहली बार गिग इकोनॉमी से संबंधित श्रमिकों को श्रम कानूनों के दायरे में लाया गया है। 
  • गिग इकोनॉमी से संबंधित सभी असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को शामिल किया गया है। 
  • राष्ट्रीय डेटाबेस- इसके तहत देश के सभी श्रमिकों का पंजीकरण एक ऑनलाइन पोर्टल द्वारा किया जाएगा जिससे श्रमिकों का राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जा सके। इस डेटाबेस के माध्यम से सभी प्रकार के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़कर सुरक्षित किया जा सकेगा।
  • सामाजिक सुरक्षा कोष-  केंद्र सरकार पर एक सामाजिक सुरक्षा कोष स्थापित करने का भी उत्तरदायित्व है जिसमें सभी गिग वर्कर अपनी वार्षिक आय का 1-2% आय का योगदान करेंगे। जिसका उपयोग सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए किया जा सकेगा। 

गिग इकोनॉमी में चुनौतियाँ

  • गिग इकोनॉमी का उल्लेख केवल सामाजिक सुरक्षा संहिता में ही किया गया है। जिससे श्रमिक स्वास्थ्य, मजदूरी, काम के घण्टे आदि से संबंधित मुद्दों से असुरक्षित हैं।
  • गिग श्रमिक, कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त संघ नहीं बना सकते।
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता में गिग वर्कर के लिए न्यूनतम मजदूरी के प्रावधान नहीं हैं। गिग वर्कर वैधानिक रूप से न्यूनतम मजदूरी की मांग तब तक नहीं कर सके जब तक स्वयं को एक कर्मचारी के रूप में साबित नहीं कर लेते।  
  • गिग इकोनॉमी पूर्णतः डिजीटल माध्यमों पर आधारित है अतः इससे जुड़े व्यवसाय केवल महानगरों में ही फलीभूत हो रहे हैं। जो बाहरी राज्यों के श्रमिकों को रोजगार देने के साथ महानगरों के भार को दिन पर दिन बढ़ा रहा है। 

आगे की राह

  • असंगठित से संबंधित व्यवसायी अपने व्यवसाय को नगरों व महानगरों के व्यापक बाजार तक पहुँचा सकते हैं, इसके द्वारा गिर वर्कर्स के सामाजिक सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को सुलझाने का प्रयास किया जा सकता है। 
  • यदि गिग श्रमिक स्वयं का व्यवसाय प्रारंभ करना चाहते हैं तो ऋण की व्यवस्था कर प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • गिग इकोनॉमी वर्कर को नियोक्ता द्वारा उचित प्रशिक्षण देकर और उचित अनुबंध के साथ एक नियत समय के लिए संलग्न किया जा सकता है। जिससे वह कर्मचारी का दर्जा प्राप्त कर आवश्यक सामाजिक सुरक्षा व सुविधा प्राप्त कर सकता है।  

स्रोत

The Hindu

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