भारत में राजनीतिक दल प्रणाली में सुधार बनाम दल – बदल विरोधी कानून

भारत में राजनीतिक दल प्रणाली में सुधार बनाम दल – बदल विरोधी कानून

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन :  भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था , भारत में राजनीतिक दल , दल – बदल कानून,  भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ, भारत में 52वाँ , संविधान संशोधन,  भारत में 91वाँ संविधान संशोधन,  2003

खबरों में क्यों ? 

  • हाल ही में महाराष्ट्र विधान सभा अध्यक्ष द्वारा 15 फरवरी, 2024 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के भीतर 2023 में पार्टी में हुए आंतरिक विभाजन के संबंध में अपना फैसला सुनाया है। 
  • महाराष्ट्र विधान सभा अध्यक्ष द्वारा राकांपा के किसी भी गुट के किसी भी विधायक को अयोग्य नहीं ठहराया गया, और अजीत पवार गुट को “असली” राकांपा के रूप में मान्यता दी गई है ।
  • 2024 में देश भर में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले बिहार में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के विधायक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में चले गए हैं।
  • हिमाचल प्रदेश में हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग हुई। संबंधित विधायकों को अब दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया है। 
  • कुछ समय पूर्व ही आंध्र प्रदेश विधानसभा में भी दल – विरोधी कानून के तहत विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया था।
  • हाल ही में शिव सेना पार्टी के संदर्भ में भी शिव सेना पार्टी के वास्तविक उत्तराधिकारी के रूप में एकनाथ शिंदे गुट को ही मान्यता प्रदान किया गया था।

भारतीय राजनीति में सुधार के लिए या भारत में राजनीतिक दल प्रणाली में सुधार के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की अत्यंत जरूरत है, क्योंकि यह भारत के संसदीय लोकतंत्र की आधारशिला है। भारत में होने वाली चुनावी प्रक्रिया, राजनीतिक दलों की आंतरिक और बाह्य दशा एवं दिशा, और निर्वाचित जन प्रतिनिधियों का जनता के प्रति जवाबदेही में सुधार करने से एक सुदृढ़ और न्यायपूर्ण राजनीतिक प्रणाली की स्थापना की जा सकती है। अतः भारत में दल – बदल कानून के तहत भारत में राजनीतिक दल प्रणाली में सुधार के कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित है – 

भारत में राजनीतिक दल प्रणाली में वर्तमान में सुधार की जरूरत  : 

 

  • भारत में राजनीतिक दलों को लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध करना चाहिए।
  • चुनाव आयोग को अधिक सक्रिय रूप से चुनौतियों का सामना करने की अनुमति देनी चाहिए और उसे और भी अधिक अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करनी चाहिए।
  • नेतृत्व में परिवर्तन की जरूरत : राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र और जवाबदेही की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। दलों को सदस्यों के चयन में बदलाव करना और युवा, महिला, और आर्थिक रूप से कमजोर समूहों को शामिल करना चाहिए।
  • राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना : भारत में राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ताकि वे देश की समृद्धि, सुरक्षा, और विकास की दिशा में काम कर सकें।
  • मूलभूत नैतिकता का उत्थान : भारत में राजनीतिक दलों को आपस में विरोधाभासी रूप से नहीं, बल्कि उन्हें भारत में आपस में मूलभूत नैतिकता और सद्भावना के आधार पर कार्य करने की जरूरत है। उन्हें भारत में राजनीतिक नीतियों को जनता भलाइयों के लिए करना चाहिए।

भारत में वर्तमान चुनाव प्रक्रिया में सुधार करने की जरूरत : 

  • भारत में निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना : भारत में चुनावी निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग को और अधिक अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करनी चाहिए। निर्भीक और स्वतंत्र मीडिया के समर्थन को बढ़ाना चाहिए।
  • चुनावों में होने वाली खर्चों के लिए फंडिंग व्यवस्था को बदलने की जरूरत : भारत में चुनावों में होने वाली खर्चों के लिए चुनावी बांडों के माध्यम से राजनीतिक दलों को फंडिंग करने की जगह सार्वजनिक फंडिंग को बढ़ावा देना चाहिए। भारत में चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को जनता से सीधे रूप में चुनाव में खर्च होने वाली धन को इकट्ठा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

चुनाव में यांत्रिकता या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग को बढ़ावा देने की जरूरत : 

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के उपयोग को बढ़ावा देना : 

  • भारत में चुनाव के दौरान चुनावी बूथों में लोगों की भौतिक कतारों को कम करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। भारत में चुनावी प्रक्रिया के दौरान सुरक्षित और आपातकालीन परिस्थितियों में कार्य करने के लिए एक विशेष इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम की आवश्यकता है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का और भी सुरक्षित और विश्वसनीय बनाने के लिए तकनीकी सुधार करने की जरूरत है।
  • भारत में चुनाव बूथों की सुरक्षा में और भी सख्ती बढ़ानी चाहिए ताकि चुनाव – प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ न हो।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर चुनाव प्रणाली में सुधार : 

 

विभिन्न सामाजिक समूहों की जनसंख्या के आधार पर चयन : 

  • विभिन्न सामाजिक समूहों की जनसंख्या के आधार पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व को बनाए रखने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि समाज में सभी वर्गों के साथ न्याय सुनिश्चित हो सके।

महिलाओं और युवा के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना  : 

  • समृद्धि के आधार पर महिलाओं और युवा को सजग करने के लिए प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना चाहिए।
  • निर्वाचित प्रतिनिधियों में महिलाओं के लिए अनिवार्य रूप से 50 प्रतिशत सीटें होनी चाहिए।

जनता को राजनीतिक शिक्षा और राजनीतिक से जागरूकता बढ़ाने की जरूरत  : 

  • भारत में जनता को राजनीतिक प्रक्रियाओं, उम्मीदवारों की चुनावी योजनाओं,और राजनीतिक दलों के कार्यों के बारे में जागरूक करने के लिए शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिए।

राजनीतिक शिक्षा को समर्थन देने की जरूरत :

  • भारत में विद्यालय और महाविद्यालयों स्तर पर लोगों में राजनीतिक शिक्षा को महत्वपूर्ण बनाना चाहिए ताकि भारत में होने वाले चुनावों में भारतीय युवा सकारात्मक रूप से राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग ले सकें।

निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाना : 

  • भारत में चुनावों में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को जनता के साथ अधिक संपर्क बनाए रखने के लिए तर्कसंगत माध्यमों का उपयोग करना चाहिए। इसके साथ ही निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाना चाहिए।
  • निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की सार्वजनिक सेवा देने के परिणामस्वरूप, उन्हें समय-समय पर जनता के सामने जनसभाओं और स्कूलों में प्रस्तुत करना चाहिए।

भारत में राजनीतिक दल प्रणाली में सुधार केवल राजनीतिक दलों के सहयोग से नहीं हो सकते, बल्कि समाज के सभी वर्गों की सहभागिता के साथ ही संभव हैं। अतः चुनाव में और चुनावी प्रक्रिया में  जनता को जागरूक करना और उन्हें सकारात्मक रूप से चुनावी प्रक्रिया में शामिल करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

भारत में दल-बदल विरोधी कानून : 

  • भारत में दल – बदल विरोधी कानून के तहत, सदन के सदस्यों (संसद सदस्य और राज्य विधानमंडल सदस्य) द्वारा बार – बार दल – बदल पर अंकुश लगाने के लिए निर्मित किया गया है। इसका उद्देश्य दल – बदल की घटनाओं को रोकना और देश या राज्य में राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखना है।
  • दल-बदल विरोधी कानून का मुख्य उद्देश्य यह है कि चुने गए सदस्यों को विशेष रूप से अपने दल बदलने या विरोध में मतदान करने से रोका जाए और राजनीतिक स्थिति को स्थिर रखा जाए। 
  • दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) ने संसदीय सदस्यों को दल बदलने पर नियंत्रण लगाने का प्रयास किया है।  भारत में दल – बदल विरोधी कानून के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित हैं – 

भारत में दल – बदल विरोधी कानून एवं इसकी शुरुआत : 

  • भारत में दल-बदल विरोधी कानून, भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची में शामिल है और इसे सन 1985 में भारत के संविधान के 52वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से लागू किया गया था ।

सदन के सदस्यों को निरर्हित करने का प्रावधान : 

  • भारत में सदन का कोई सदस्य यदि अपने मूल राजनीतिक दल की सदस्यता को छोड़ता है, तो उसे सदन की सदस्यता से निरर्हित किया जा सकता है, और उसे उस सदन (संसद की सदस्यता से और राज्य विधानमंडल की सदस्यता ) से बाहर किया जा सकता है।

सदन में मतदान में शामिल नहीं होने पर या स्वेच्छा से अपनी सदस्यता को छोड़ने पर : 

  • भारत में यदि कोई संसद सदस्य या राज्य के विधानमंडल का सदस्य अपने मूल राजनीतिक दल के निर्देश के खिलाफ सदन में मतदान करता है या मतदान करने से बचता है, तो उसे भी उसकी सदस्यता से निरर्हित किया जा सकता है।
  • भारत में यदि कोई सदस्य स्वेच्छा से अपनी सदस्यता को छोड़ने के लिए आधार बना सकता है, और निरर्हिता के लिए किसी सांसद या विधायक को अपने दल से त्याग-पत्र देने की आवश्यकता नहीं है।
  • भारत में किसी भी सदन के सदस्य के रूप में निर्वाचित सदस्य को सदन से निरर्हित या अयोग्य ठहराने का प्रावधान है, जब वह स्वेच्छा से दल बदलता है या अपने दल के निर्देश के खिलाफ मतदान करता है।

 सदन के किसी सदस्य द्वारा अंपने राजनीतिक दल से अन्य दल में शामिल होने पर : 

  • भारत में यदि सदस्य अपने मूल दल के बजाय किसी अन्य दल में शामिल होता है, तो उसकी सदस्यता पर निरर्हता के लिए विशेष प्रावधान है।
  • सदस्यता से निर्वाचित सदस्य को सदन से निरर्हित या अयोग्य ठहराने का प्रावधान है, जब वह स्वेच्छा से दल बदलता है या अपने दल के निर्देश के खिलाफ मतदान करता है।

किसी राजनीतिक दल का अपने दल से दूसरे दल में विलय होने को मान्यता प्रदान करना : 

  • भारत में अगर कोई सदन का सदस्य विलय होने के लिए प्रस्तुति पेश करता है और उसके मूल दल के कम से कम दो – तिहाई सदस्य उसके इस कार्य सहमत होते हैं, तो उसे निरर्हित किया जा सकता है ।

निरर्हता में छूट और अपवाद : 

  • भारत में दल – बदल कानून के तहत उस सदस्य को निरर्हित नहीं ठहराया जाता है अगर उस सदस्य का अपने मूल दल में विलय होता है और मूल दल के कम से कम दो-तिहाई सदस्य इस विलय के लिए सहमत होते हैं।
  • भारत में वर्ष 2003 में हुए संविधान संशोधन ने एक तिहाई सदस्यों के एक अलग समूह बना लेने पर अयोग्यता से छूट को निरस्त किया गया है।
  • भारत में दल – बदल कानून के तहत निरर्हता का अपवाद या छूट तब भी लागू हो सकता है अगर उस सदस्य ने विलय को स्वीकार नहीं किया है और एक अलग समूह के रूप में कार्य करने का विकल्प चुना है, तो उसे सदन की सदस्यता से निरर्हित नहीं किया जा सकता है।
  • भारत में दल – बदल कानूनों के कुछ अपवादों और छूटों के तहत, उस सदस्य को सदस्य निरर्हित नहीं किया जाता है अगर उसके मूल दल का किसी अन्य दल में विलय होता है और उसमें उसकी सहमति होती है।

गठबंधन सरकार के सदस्यों की निरर्हितता : 

  • भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में गठबंधन सरकार के सदस्यों को स्वतंत्र (निर्दलीय) विधायक के रूप में मंत्रिपरिषद में शामिल होने का अधिकार दिया है।
  • इसके अलावा, भारत के उच्चतम न्यायालय ने कुछ मामलों में स्पष्ट निर्देश दिया है कि यदि सदन का कोई सदस्य  अपनी सदस्यता छोड़ने और दल बदलने का प्रमाण अपनी स्वेच्छा से देता है या प्रस्तुत करता है तो उसके द्वारा ऐसा करने पर उसकी सदन की सदस्यता निरर्हितता का आधार बन सकता है।

 

भारत में इन प्रावधानों के माध्यम से, दल-बदल की घटनाओं को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया है, जिससे किसी भी निर्वाचित सरकारों को गिराने या भंग करने से रोका गया है और भारत के राजनीतिक दलों के अंदर स्थिरता बनी रहती है।

निष्कर्ष / समाधान की राह : 

 

  • भारत में राजनीतिक प्रणाली एक महत्वपूर्ण और जीवन्त घटक है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दल और संगठन अपने दृष्टिकोण और उद्देश्यों के साथ सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। हालांकि, इस प्रणाली में कई समस्याएं भी हैं , जिससे अक्सर इसमें  विवाद उत्पन्न होते रहते , जिनमें से एक भारत में दल-बदल विरोधी कानून का मुद्दा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • भारत में राजनीतिक प्रणाली में सुधार बनाम दल-बदल विरोधी कानून के मुद्दे पर सभी प्रमुख पक्षों के आधार पर समाधान निकालने की जरूरत  है। इसमें भारत के सभी प्रमुख दलों की भागीदारी के साथ, सुधारों को अमल करने के मार्ग के रूप में देखा जा सकता है, ताकि आम जनता का भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में सशक्तिकरण हो सके।
  • भारत में राजनीतिक दल प्रणाली में सुधार भारतीय राजनीतिक दलों को देश और आम जनता के प्रति समर्पण , नैतिकता और सार्वजनिक हित में आदर्श बनाए रखने के एक साधन के रूप में कार्य कर सकता है और भारत में एक लोकतांत्रिक और न्यायसंगत राजनीतिक प्रणाली की दिशा में कदम बढ़ा सकता है।
  • सुधारवादियों का  कहना ​​है कि यह बदलाव राजनीतिक दलों को अधिक उदार और जन-हित में काम करने के लिए प्रेरित करेगा। इसमें दलों को लोकतंत्र में और विशेषकर नागरिकों के साथ संबंध बनाए रखने की आवश्यकता होगी। इसमें यह भी समाहित किया जाता है कि राजनीतिक दलों को अपने सदस्यों को समर्पित रखने और उनके अधिकारों का समर्थन करने की जिम्मेदारी बढ़ेगी ।
  • इस तरह के सुधार का विरोध करने वालों की  मुख्य आपत्ति यह है कि ऐसा कानून सत्ता में रहने वाली सरकार को और अधिक शक्ति प्रदान कर सकता है और जिससे वह विपक्ष को दबा सकता है, जिससे लोकतंत्र की मूल अवधारणा के विरुद्ध  है। उनका मानना ​​है कि सरकार को अपने ही हितों को बढ़ावा देने का भी खतरा है और यह विपक्ष को निष्क्रिय कर सकता है।
  • विरोधी कानून के पक्षपाती या नकारात्मकता के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि इसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को दुरुस्त करने की बजाय उन्हें अनियमितता में डाल सकता है और सत्ता के खिलाफ किए जा रहे अभिव्यक्तिकरण को दबा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, स्वतंत्रता और विविधता के मामले में संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
  • इस बहस में, सामाजिक समृद्धि, लोकतंत्र और सरकारी नीतियों के माध्यम से जनहित में सुधार करने की जरूरत है। सरकार और विपक्ष को मिलकर एक बेहतर दल- बदल वातावरण बनाए रखने के लिए संयम  और जागरूकता की आवश्यकता है। एक सामाजिक समृद्धि की दृष्टि से, यह महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दल समाज के विभिन्न वर्गों को समाहित करें और सभी के हित में काम करें।
  • इसका समाधान सरकार, विपक्ष, और समाज के सभी तरफ से सही समर्थन और सहयोग के साथ हो सकता है, ताकि यह सुधार सामरिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से स्थिति को मजबूती दे सके और लोगों को विश्वास दिला सके कि उनके हित में काम हो रहा है।
  • भारत में राजनीतिक दल प्रणाली में सुधार के माध्यम से राजनीतिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सामाजिक न्याय के माध्यम से राजनीतिक दलों को अपने कार्यों को और निर्णयों को लेकर आम जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाया जा सकता है, जिससे जनता का लोकतंत्र के प्रति विश्वास बढ़ सकता है। इसके अलावा, इस तरह केर सुधारों से राजनीतिक दलों की साकारात्मकता बढ़ेगी और वे जनता के लिए सशक्त एवं सहायक बन सकते हैं।
  • आखिरकार, इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा एवं सुनवाई करना महत्वपूर्ण है ताकि एक समर्थनपूर्ण और सांविदानिक समाधान निकला जा सके, जिससे राजनीतिक प्रक्रिया में सुधार हो सके और सभी विचारों को समाहित किया जा सके।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. भारत में दल – बदल विरोधी कानून के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए

  1. यह  भारतीय संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में है
  2. इसे भारत के संविधान के 52वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से लागू किया गया था।
  3. भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने गठबंधन सरकार के सदस्यों को स्वतंत्र (निर्दलीय) विधायक के रूप में मंत्रिपरिषद में शामिल होने का अधिकार दिया है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A) केवल 1 और 3 

(B) केवल 2 और 3 

(C) इनमें से कोई नहीं 

(D) इनमें से सभी

उत्तर – (B) 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. भारत में राजनीतिक दल प्रणाली में सुधार की दिशा में आने वाली महत्वपूर्ण चुनौतियों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में दल – बदल कानून एवं राजनीतिक दल प्रणाली में सुधार की क्या प्रासंगिकता है ? तर्कसंगत व्याख्या कीजिए। 

 

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