21 Sep राजेंद्र चोल और उनकी पेंडत्ती
राजेंद्र चोल और उनकी पेंडत्ती
संदर्भ- हाल ही में डॉ. कलाईकोवन ने चोल राजा राजेन्द्र चोल के समय निर्मित मंदिर के एक शिलालेख में उत्कीर्ण पेंडत्ती शब्द की व्याख्या की है, जिसमें मंदिर राजेंद्र चोल की पेंडत्ती द्वारा बनाए जाने की बात की है।
राजेंद्र चोल– परांतक प्रथम ने महान चोल साम्राज्य की नींव रखी लेकिन चोल साम्राज्य को उसकी शीर्ष स्थिति में राजराज और राजेंद्र पहुँचाया। राजेंद्र ने अपने पिता राजराज के शासन में 1012 ई. से सहायता करना प्रारंभ कर दिया था। राजेंद्र प्रथम ने 1014 ईं से 1044 ईं तक शासन किया। 1025 ई. में गंगईकोंडचोलपुरम को राजधानी बनाया, लगभग 250 वर्षों तक यह चोल साम्राज्य की राजधानी बनी रही।
उसने अपने शासन में साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई और निम्न क्षेत्रों को जीत लिया-
- रायचूर दोआब
- चालुक्यों के मान्यखेत
- दक्षिणी श्रीलंका
- गंगा के उत्तर में युद्ध कर गंगईकोंड की उपाधि ग्रहण की।
- राजेंद्र चोल ने राज्य की नौसेना को सुदृढ़ कर जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, बर्मा, वियतनाम, थाईलैण्ड, सिंगापुर मलेशिया तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। साम्राज्य विस्तार के साथ चोल वंश के शासकों ने स्थापत्यकला में विशेष ध्यान दिया।
चोलों द्वारा बनाए गए मंदिर- चोलों के इतिहास को जानने के लिए चोल मंदिरों को जानना अधिक आवश्यक हो जाता है क्योंकि चोलकालीन मंदिरों में चोलों के समाज और संस्कृति का बारीकी से वर्णन किया गया है।
- तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर- यह चोल साम्राज्य का प्रसिद्ध मंदिर है, दक्षिण मेरु के अभिलेख में उल्लेख है कि इस मंदिर का निर्माण राजराज प्रथम द्वारा 1003-1004 में और इसका लोकार्पण 1009-1010 ई. में किया गय़ा
- गंगईकोण्डचोलपुरम का वृहदेश्वर मंदिर- इसकी स्थापना राजेंद्र प्रथम द्वारा भगवान शिव के लिए की गई थी। इस मंदिर में अद्भुत मूर्तिकला की मौजूदगी है। किले की दीवारों से मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित किया गया था। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इसे संरक्षित किया गया है।
- गंगईकोंडचोलीश्वरम- राजेंद्र प्रथम द्वारा बनवाया गया यह मंदिर 1035 ईं में पूर्ण हुआ। इसका 53 मीटर का समानकोणीय विमान दर्शनीय है।
- दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर- यह मंदिर एरावतेश्वरम मंदिर के रूप में शिव को समर्पित है। कहा जाता है कि यह मंदिर नित्य विनोद व सतत मनोरंजन को ध्यान में रखकर बनाया गया था। इसके साथ ही मुख्य देवता की पत्नी पेरिया नायकी अम्मन का मंदिर इसके उत्तर में स्थित है। इस मंदिर में चोलों के ऐतिहासिक ज्ञान युक्त अभिलेख प्राप्त होते हैं जैसे- चोल तृतीय द्वारा मंदिर के नवीनीकरण का, बरामदे से शिव संतों के जीवन की घटनाओं के चित्र और चोलों व चालुक्यों के संघर्ष का ज्ञान यहां के अभिलेखों से होता है।यह मंदिर चोल राजा राजराज द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। इसके अग्रभाग वाला मंडप जिसे अभिलेखों में राजगंभीरन तिरूमंडपम कहा गया है। इसे पहियों वाले एक रथ के रूप में बनाया गया है। यह मंदिर मूर्तिकला व चित्रों से सुसज्जित है, जो नायनारों के साथ कई ऐतिहासिक घटनाओं की साक्ष्य हैं।
- गुगनाथेश्वर मंदिर- मंदिर से प्राप्त शिलालेख के अनुसार मंदिर को राजेंद्र प्रथम की पेंडत्ती जिसका नाम चोलकुलावल्ली था, द्वारा अनुदान प्राप्त हुआ था। डॉ कलाईकोवन के अनुसार आज पेंडती का अर्थ पत्नी हो सकता है लेकिन उन दिनों इसका अर्थ शिलालेखों में दासी या सहायक के रूप में किया गया था।
गुगनाथेश्वर मंदिर।
चोल समाज में महिलाओं की स्थिति-
- विदेशी यात्री सूलेमान के अनुसार चोल साम्राज्य में सती प्रथा का प्रचलन था।
- मंदिरों में विशुद्ध देवदासी प्रथा का प्रचलन था।
- उच्च वर्ग में बहु विवाह प्रचलित थे।
- डॉ. कलाईकोवन के शोध कार्य के अनुसार पेंडत्ती या दासी द्वारा मंदिर को अनुदान दिया गया। अतः दास प्रथा का प्रचलन था किंतु उनकी स्थिति अच्छी थी।
संऱक्षण एवं प्रबंधन-
- चोल कालीन तीन मंदिरों तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर, गंगईकोंडचोलपुरम का वृहदेश्वर मंदिर और दारासुरम के ऐरावतेश्वर मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है,
- 1959 से इन्हें तमिलनाडु हिंदू और धर्मस्व वृत्ति अधिनियमन के अधीन लाया गया है।
- तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर और दारासुरम के एरावतेश्वर मंदिर के मामले में, ये संस्थाएं किसी भी विरोधाभाषी मुद्दे को अंतिम रूप देने से पहले राजभवन देवस्थानम के वंशानुगत ट्रस्टी से परामर्श करती हैं, जिसमें ट्रस्टी के विचार लेना आवश्यक हो।
स्रोत-
https://www.indianculture.gov.in/hi/unesco/heritage-sites/mahaana-caola-mandaira
Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 21th September
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