08 Apr लिगो इंडिया (LIGO- INDIA) परियोजना
लिगों इंडिया परियोजना
संदर्भ- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महाराष्ट्र में गुरुत्वाकर्षण-तरंग पहचान सुविधा स्थापित करने की मंजूरी दी है, यह एक ₹2,600 करोड़ की परियोजना है। यह परियोजना गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने पर आधारित है।
लिगो इंडिया (LIGO- INDIA) परियोजना
- यह परियोजना भौतिकी के एक प्रयोग पर आधारित है,
- Laser Interferometer Gravitational Wave Observatory अर्थात LIGO एक डिटेक्टर है जो इस प्रयोग में प्रमुख है।
- प्रयोग में गुरुत्वाकर्षण तरंग के स्रोतों को इंगित करने के लिए सामूहिक LIGO डिटैक्टर तकनीक का प्रयोग किया जाना है।
- इसका मुख्य उद्देश्य खगोलीय अध्ययन में गुरुत्वाकर्षण तकनीकों का प्रयोग करना है।
- LIGO के प्रयोग 2002 में प्रारंभ हुए थे।
- एलआईजीओ-इंडिया को फरवरी 2016 में भारत सरकार की सैद्धांतिक मंजूरी मिली थी। तब से यह परियोजना एक साइट के चयन और अधिग्रहण और वेधशाला के निर्माण की दिशा में कई मील के पत्थर तक पहुंच गई है।
परियोजना से संबंधित संस्थान
- परियोजना तीन डिटैक्टरों का परिचालन करती है, जो अंतर्राष्ट्रीय तौर पर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के हनफोर्ड औप लिविंग्स्टोन शहर में स्थित है और इसका तीसरा डिटैक्टर भारत द्वारा ऑपरेट किया जाएगा।
- LIGO-India परियोजना के लिए भारत और अमेरिका ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। तीसरे लिगो इंटरफेरेंस का निर्माण भारत में होने पर यह वैज्ञानिकों के गुरुत्वाकर्षण तरंगों के संकेतों को और विकसित करने के लिए कार्य करेगा।
- LIGO-India परियोजना का निर्माण परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन (NSF) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) के साथ किया जाएगा। संयुक्त राज्य अमेरिका, कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और शैक्षणिक संस्थानों के साथ।
- भारत की लिगो इंडिया परियोजना को निर्माण, सेवा, संपदा प्रबंधन निदेशालय, प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान अहमदाबाद, आईयूसीएए पुणे और राजा रमन्ना केंद्र इंदौर द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाना है।
LIGO परियोजना, एक अवसर
- भारत गुरुत्वीय भौतिकी अनुसंधान, सहायता प्रशिक्षण और सटीक प्रौद्योगिकियों और परिष्कृत नियंत्रण प्रणालियों के संचालन का एक वैश्विक स्थल बन सकता है, अंततः, प्रायोगिक बिग साइंस प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक चलाने के लिए प्रतिष्ठा को मजबूत करना। यहां शुरुआती आवश्यकता निर्माण के लिए समय पर धन जारी करना है, इसके बाद आवंटित संसाधनों को बिना देरी के जारी करना है।
- एलआईजीओ-इंडिया बिग साइंस द्वारा प्रदान किए जाने वाले अवसरों का उपयोग करके विज्ञान के साथ भारतीय समाज के संबंधों को समझदारी से समझने की क्षमता प्रदर्शित कर सकता है।
- LIGO-India न केवल अंतर्राष्ट्रीय गुरुत्वाकर्षण तरंग समुदाय को लाभ प्रदान करेगा बल्किभारत के खगोल भौतिकी अनुसंधान, उच्च अंत तकनीकी विकास और सामान्य रूप से मानव संसाधन विकास पर बहु-विषयक लाभ हैं। चूंकि अधिकांश पुर्जे भारत में बनाए जाएंगे, इससे भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की तकनीकी विशेषज्ञता में सुधार होगा।
लिगो इण्डिया परियोजना का महत्व
- इस परियोजना द्वारा किए गए प्रयोगों के माध्यम से भौतिकी व खगोल शास्त्र के अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो सकेंगे।
- पूर्व में स्थापित सिद्धांतों का परीक्षण किया जा सकेगा। जैसे हाल ही में लिगो साइंटिफिक कोलैबोरोशन के शोधकर्ताओं ने आइंस्टीन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों का परीक्षण किया।
- इसके द्वारा अनदेखे ब्रह्माण्ड का पता लगाने में भी मदद लगेगी। जैसे इसके द्वारा इण्टरमीडिएट मास ब्लैक होल का पहला स्पष्ट प्रमाण प्राप्त हुआ।
- इसके द्वारा भारतीय उद्योगों की आधुनिक तकनीक में भी नए अवसर प्राप्त हो सकेंगे।
- भारतीय छात्रों व शोधार्थियों को ज्ञान से संबंधित नई चुनौतियाँ देंगी और भारत में अनुसंधान को बढ़ावा देगी।
गुरुत्वीय तरंगें
- गुरुत्वीय तरंगें अदृश्य व सबसे अधिक शक्तिशाली होती हैं।
- गुरुत्वीय तरंगों प्रकाश की गति से यात्रा करती हैं। इनकी गति लगभग 186000मील प्रति सेकेण्ड होती है।
- गुरुत्वीय तरंगें अपने क्षेत्र में आने वाली सभी बाधाओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकती है।
गुरुत्वीय तरंगें निम्न घटनाओं द्वारा उत्पन्न हो सकती हैं-
- सुपरनोवा- जब कोई तारा विस्फोट द्वारा समाप्त हो जाता है, इस घटनाक्रम में अत्यधिक प्रकाश व ऊर्जा के साथ गुरुत्वीय तरंगें भी उत्पन्न होती हैं।
- जब दो बड़े तारे एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं।
- जब दो ब्लैक होल एक दूसरे की पर्क्रमा करते हुए विलीन हो जाते हैं। 2015 में वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगों की लिगो उपक्रम द्वारा पुष्टि की।
वैज्ञानिक परियोजनाओं की चुनौतियाँ
वैज्ञानिक संस्थानों के भूमि अधिकारों की कमी और प्राकृतिक संसाधनों के वैज्ञानिक क्रियाकलापों के लिए सतत उपयोग से भूमि पर दुष्प्रभाव के कारण भूमि संबंधी चुनौतियां, परियोजना के समक्ष हैं। अतः अब तक भारत में इस परियोजना के लिए भूमि की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती रही है।
आगे की राह
भारत सरकार को सभी योजनाओं को पहचान कर परिभाषित करना चाहिए और यदि वे देश हित में कार्य कर रही हों तो भू स्थानिक प्रौद्योगिकी पर आधारित परियोजनाओं की समस्याओं का निवारण करना चाहिए।
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