25 Mar अनुदान की मांग
अनुदान की मांग
संदर्भ- हाल ही में लोकसभा ने बजट 2023-24 की अनुदान मांगों व विनियोग विधेयक को बिना किसी चर्चा के ध्वनि मत से पारित कर दिया।
संसदीय अनुदान- भारत में यह विधि द्वारा स्थापित है कि बिना किसी कानून के देश की संचित निधि से कोई धन नहीं निकाला जा सकता है। संचित निधि से कानून के माध्यम से प्राप्त अनुदान को संसदीय अनुदान कहा जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 113 के अनुसार भारत की समेकित निधि से किए जाने वाले व्यय के वे अनुमान जो इस निधि पर भारित नहीं होते अनुदान की मांग के रूप में लोकसभा में प्रस्तुत किया जाते हैं। लोकसभा को यह अधिकार है कि वह इस विधेयक को पूर्ण अनुमति दे अथवा न दे या धन की मात्रा को कम करके अनुमति दे।
अनुच्छेद 117 व 274 के अनुसार लोकसभा में धन विधेयक को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक होती है।
अनुदान की मांग में व्यय-
- अनुदान की मांग में भारित(चार्ज) और मतदान दोनों व्यय शामिल हैं। भारित किए गए व्यय को भारत सरकार की देनदारियों के रूप में माना जाता है जैसे कि ब्याज का भुगतान और लोकसभा में मतदान के लिए नहीं रखा जाता है।
- व्यय की दूसरी श्रेणी मतदान व्यय है जिसमें अगले वित्तीय वर्ष में एक सरकारी योजना पर किए जाने वाले राजस्व और पूंजीगत व्यय शामिल हैं। आमतौर पर प्रत्येक मंत्रालय के लिए अनुदान की एक मांग होती है, लेकिन वित्त और रक्षा जैसे बड़े मंत्रालयों की अनुदान की एक से अधिक मांगें होती हैं।
अनुदान की मांग तैयार करने की प्रक्रिया- हर मंत्रालय द्वारा अगले वित्तीय वर्ष में होने वाले खर्च के लिए अनुदान की मांग तैयार की जाती है। इन मांगों को सामूहिक रूप से लोकसभा में केंद्रीय बजट के हिस्से के रूप में लागू किया जाता है। इसे दो प्रकार से तैयार किया जा सकता है।
- सबसे पहले, यह प्रभारित व्यय और स्वीकृत व्यय को स्पष्ट रूप से अलग करता है
- यह व्यय को पूंजीगत व्यय और राजस्व व्यय के रूप में भी वर्गीकृत करता है
- जब पूंजीगत व्यय के परिणामस्वरूप सरकार के लिए किसी प्रकार की संपत्ति का निर्माण होता है, राजस्व व्यय प्रकृति में कार्यात्मक हो जाता हैं।
- इन सब के साथ अनुदान की मांग कुल व्यय का सकल अनुमान भी देती है।
विनियोग विधेयक
- सरकार द्वारा संचित धन से सकल निकासी को मंजूरी दिलाने के लिए प्रयुक्त विधेयक विनियोग विधेयक कहलाता है। इसका प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 114 में है।
- संविधान के अनुच्छेद 266 में संसद की संचित निधि गठित करने का प्रावधान है। भारत सरकार की सम्पूर्ण आय संचित निधि में जमा होती है। व्यय के लिए संसद की अनुमति से ही संचित निधि से धन लिया जा सकता है।
- यह विधेयक, सरकार को मांगों के आधार पर देश के संचित धन को उपयोग करने का अधिकार देता है।
- विनियोग विधेयक के तहत राजस्व लेखा के तहत खर्च, राजस्व लेखेतर पूँजी खर्च, ऋण शीर्ष के खर्च का ब्यौरा होता है।
- यह विधेयक भी एक प्रकार का धन विधेयक है जो अन्य विधेयक की भांति संसद में पेश किया जाता है।
- विनियोग विधेयक पारित होने के बाद यह विनियोग अधिनियम कहलाते हैं।
धन विधेयक की प्रक्रिया-
- विधेयक को राष्ट्रपति की अनुशंसा पर किसी मंत्री द्वारा लोकसभा में पेश किया जाता है।
- लोकसभा में पारित होने के बाद इसे राज्यसभा में पेश किया जाता है। विधेयक को राज्यसभा में भेजने के लिए लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति आवश्यक होती है।
- राज्यसभा को इसे अस्वीकृत करने का अधिकार नहीं है बल्कि इसमें संशोधन के लिए कुछ सुझाव दे सकता है।
- राज्यसभा विधेयक को 14 दिन तक रोक सकता है।
- राष्ट्रपति इस विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है किंतु पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता।
विनियोग विधेयक से पूर्व अनुदान की मांग
- विनियोग विधेयक के पारित होने से पहले लोकसभा, सरकार की आवश्यकतानुसार लेखानुदान के माध्यम से सरकार के व्यय के लिए अग्रिम धनराशि की व्यवस्था करती है।
- जब किसी वित्त वर्ष में किसी योजना अथवा सेवा पर प्राप्त अनुदान से अधिक धन व्यय हो गया हो तो राष्ट्रपति योजना के अतिरिक्त व्यय के लिए अनुदान की मांग करता है।
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