30 Mar असम की धरोहर गमोसा
असम की धरोहर गमोसा
संदर्भ- रविवार को एक समारोह में बांग्ला साहित्य सभा, असम (BSSA) ने अतिथियों का सम्मान असमिया गमोसों और बंगाली गमछाओं से बने “हाइब्रिड गमोसों” से किया, जिन्हें आधा काटकर एक साथ सिल दिया गया था। इसे लेकर राज्य में छिड़े विवाद के बाद संगठन ने मंगलवार को माफीनामा जारी किया। असमिया गमोसा को सफेद कपड़ा व बंगाली गमोसा को लाल व सफेद चेक वाला गमोसा को निर्देशित करता है।
गमोसा- गमोसा या गमछा का शाब्दिक अर्थ है- शरीर को पोंछने के लिए कपड़ा। जिसका सम्पूर्ण भारत में प्रयोग होता है। भगवदगीता व महाभारत जैसे ग्रंथों को भी पवित्र गमोसा या गमछे के कपड़े से कवर किया जाता है।
- असम के अतिरिक्त मणिपुर में गमोसा लेंगयान या गमछा खुदेई के रूप में जाना जाता है।
- त्रिपुरा में इसे रिकुटु के नाम से पुरुषों की पारंपरिक वेशभूषा के रूप में पहना जाता है।
- उत्तर प्रदेश व बिहार में इसे गमछा या अंगौछी कहा जाता है। यहाँ मुख्य रूप से इसे सूत के कपड़े का चार रंगों में बनाया जाता है- लाल, गुलाबी, उजला सफेद और सफेद।
- उड़ीसा में गमछे का प्रयोग अभिवादन करने के लिए किया जाता है।
- दक्षिण भारत में इसे कपास व रेशम के कपड़े से निर्मित किया जाता है और इसे अंगवस्त्रम कहा जाता है। तमिलनाडु में इसे थुंडु व केरल में इसे थोरथ मुंडु कहा जाता है।
- पंजाब में इसको साधारण प्रयोग के साथ पगड़ी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
असम में इसका व्यापक उपयोग किया जाता है-
- घर पर एक तौलिया, जिसे उका गामोसा कहा जाता है
- किसानों के द्वारा कमर व सिर पर बंधनी के रूप में धारण करते हैं जिसे टोंगली या सुरिया कहा जाता है।
- बिहू नर्तक इसे सिर पर संकल्प की गांठ के रूप में धारण करते हैं। जिसे बिहुवान कहा जाता है।
- भगवदगीता को कवर करने के लिए भी गमोसा का प्रयोग किया जाता है।
- सार्वजनिक कार्यों (जिसे फूलम/पुष्प गमोसा कहा जाता है) में गणमान्य व्यक्तियों या मशहूर हस्तियों को सम्मानित करने के लिए किया जा सकता है।
असम गमोसा की विशेषता –
- गमोसा, असम की सांस्कृतिक विरासत है जिसे 13 दिसंबर 2022 को जीआई टैग प्राप्त हुआ है।
- असम व उड़ीसा में लाल किनारी के साथ सफेद सूत का गमोसा प्रचलित है। इसकी किनारी पर कशीदाकारी या सुंदर प्रिंट होता है।
- असम में गमोसा को राष्ट्रवाद का प्रतीक माना जाता है।
गमोसा : एक राष्ट्रवाद प्रतीक
असम के निम्नलिखित संगठनों द्वारा असम की संस्कृति व साहित्य को प्रोत्साहित किया गया और इस प्रोत्साहन में असोम के गमोसा को एक अलग पहचान प्राप्त हुई।
- असम छात्र सम्मेलन- यह असम का पहला छात्र संगठन था। इसका पहली सभा गुवाहाटी मे आयोजित की गई। यह एक गैर राजनीतिक सम्मेलन था जिसकी अध्यक्षता लक्ष्मीनाथ बैजबरुआ ने की थी। इसका गठन 25 दिसंबर 1916 असम के साहित्य व संस्कृति के विषय में जन जागरुकता लाने के लिए गठित किया गया था।
- असोम साहित्य सभा- असोम साहित्य सभा का गठन 1916 में किया गया था। असम तथा अन्य राज्यों में इसकी 1000 से भी अधिक शाखाएँ कार्य रही हैं।
- 1980 का असम आंदोलन असम में जातीयता का प्रतीक माना जाता है, इस आंदोलन को क्षेत्रीय पहचान दिलाने के लिए असम की संस्कृति, साहित्य, कला को पहचान दिलाने के प्रयोस किया गया। इस आंदोलन को देश भर में पहचान दिलाने में गमोसा ने अहम भूमिका निभाई।
- गमोसा राजनीतिक विवाद 2021 में AIUDF के प्रमुख बदरुद्दीन द्वारा गमोसा फेंकने के कारण एक राजनीतिक व साम्प्रदायिक विवाद खड़ा हो गया था। वर्तमान में गमोसा, केवल आवश्यकता की वस्तु न होकर क्षेत्रीय पहचान व सम्मान का प्रतीक बन गई है।
असम की अन्य धरोहर
- जापी-
- जापी बांस से बनी एक शंक्वाकार टोपी है और सूखे टोकू (ऊपरी असम के वर्षावनों में पाया जाने वाला एक ताड़ का पेड़) के पत्तों से ढकी होती है।
- जापी मेंहमानों को सम्मानित करने के लिए भेंट के रूप में प्रयोग की जाती है।
- पारंपरिक रूप से किसान इसका प्रयोग खेत में कार्य करते हुए धूप, बारिश व सर्दी से बचने के लिए किया करते थे, किंतु अब इसने क्षेत्रीय पहचान के रूप में अपनी जगह बनाई है।
- अहोम साम्राज्य की प्राचीन बुरुंजी से इसके प्रयोग के प्रमाण मिलते हैं।
- वर्तमान में असम के नलबाड़ी जिले के लोगों द्वारा इसका निर्माण किया जाता है।
- जोराई –
- जोराई बेल मेटल से निर्मित एक ट्रे स्टैण्ड होता है।
- प्रत्येक असम निवासियों के घर में यह पाया जाता है जिसे मेंहमानों को पान सुपारी परोसने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
- असमिया भाषा के प्रसिद्ध नाटककार व लेखर शंकरदेव के समय में भी यह वस्तु असम की संस्कृति में प्रयुक्त की जाती थी।
स्रोत
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