06 Nov आदि शंकराचार्य
- उत्तराखंड (केदारनाथ) में शंकराचार्य की प्रतिमा का प्रधानमंत्री जी ने अनावरण किया है| यह प्रतिना 12 फुट की है|
आदि शंकराचार्य
- इनका जन्म 788 ई. में केरल (कोच्चि) के पास कलाडी नमक स्थान पर हुआ था| ये शिव के परम भक्त थे| 33 वर्ष की उम्र में इन्होने केदारनाथ में समाधि ली|
- ये बौद्ध दार्शनिकों के विरोधी थे| इन्होने अद्वैतवाद के सिद्धांत को प्रतिपादित किया|
- इन्होने ब्रम्ह सूत्र और भगवतगीता पर कई टिप्पणियां लिखी है और संस्कृत में उपनिषद भी लिखा|
- जब बौद्ध धर्म लोकप्रियता को प्राप्त कर रहा था तब इन्होने हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित करने की कोशिश की थी |
- शंकराचार्य ने भारत में चारों मठों की स्थापना की, सनातन धर्म के प्रचार के लिए|
अद्वैतवाद का सिद्धांत :
- अद्वैतवाद, वेदान्त की एक शाखा है।
- अहं ब्रह्मास्मि अद्वैत वेदांत यह भारत में उपजी हुयी विचारधारा है। जिसके आदि शंकराचार्य पुरस्कर्ता थे|
- भारत में परब्रह्म के स्वरुप की कई विचारधाराएं हैं जैसे- द्वैत, अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, केवलाद्वैत, द्वैताद्वैत आदि। आचार्य ने जिस रूप में (ब्रह्म) को देखा उसका वर्णन किया।
- इतनी विचारधाराएँ होने पर भी सभी यह मानते है कि भगवान ही इस सृष्टि का निर्माणकर्ता है।
- अद्वैत विचारधारा के संस्थापक शंकराचार्य है उसे शांकराद्वैत भी कहा जाता है। इनका मानना है कि संसार में ब्रह्म ही सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव और ब्रह्म अलग नही हैं।
- जीव केवल अज्ञानता के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता जबकि ब्रह्म तो उसके स्वयं के ही अंदर विराजमान है।
- उन्होंने अपने ब्रह्मसूत्र में “अहं ब्रह्मास्मि” कहकर अद्वैत सिद्धांत बताया है। अद्वैत सिद्धांत चराचर सृष्टि में भी व्याप्त है।
- जब पैर में काँटा चुभता है तब आखों से पानी आता है और हाथ काँटा निकालने के लिए जाता है ये अद्वैत का एक उत्तम उदाहरण है।
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