15 Mar उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों के आश्रितों हेतु आरक्षण
उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों के आश्रितों हेतु आरक्षण
उत्तराखण्ड राज्य मंत्रीमण्डल ने सोमवार को राज्य आंदोलनकारियों के आश्रितों के लिए सरकारी नौकरियों में 10 % क्षैतिज आरक्षण की मांग की है। पिछले 11 वर्ष से राज्य गठन आंदोलन में मारे गए लोगों के आश्रितों और जेल गए प्रदर्शनकारियों द्वारा लगातार यह मांग की जा रही है।
आरक्षण- किसी विशेष समूह, जो विकास के स्तर पर पीछे रह गया है, के लिए विशेष स्थान आरक्षित किया जाता है जिससे वर्गों के मध्य आए अंतर को पाटा जा सके। भारत में आरक्षण सामाजिक या आर्थिक रूप से दिया जाता है। आरक्षण को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभाजित किया गया है।
- लम्बवत आरक्षण-
- लम्बवत आरक्षण सामाजिक अंतर को पाटने के लिए दिया गया है, जो जाति पर आधारित है।
- अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग को दिया गया आरक्षण लम्बवत आरक्षण कहलाता है।
- इस आरक्षण का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 16(4) में किया गया है।
- क्षैतिज आरक्षण-
- यह ऊर्ध्वाधर श्रेणियों के अतिरिक्त अन्य लाभार्थियों जैसे महिलाओं, विकलांगों, ट्रांसजेंडर समुदाय आदि को आरक्षण प्रदान करता है। यह आरक्षण, प्रत्येक लम्बवत श्रेणी के लिए अलग से लागू किया जाता है।
- संविधान के अनुच्छेद 15(3) में क्षैतिज आरक्षण प्रदान किया गया है।
अन्य क्षैतिज आरक्षण-
- स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों हेतु आरक्षण
- भूतपूर्व सैनिकों हेतु आरक्षण
- सैन्य गतिविधियों के कारण हुए अपंग सैनिकों के आश्रितों हेतु आरक्षण
- अनाथ बच्चे
- दिव्यांग
क्षैतिज व लम्बवत आरक्षण
क्षैतिज कोटा प्रत्येक लंबवत श्रेणी के लिए अलग से लागू किया जाता है, यदि महिलाओं के पास क्षैतिज कोटा 50% है तो लम्बवत श्रेणी जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग में प्रत्येक वर्ग में से 50-50% महिलाओं का चुनाव किया जाएगा। किंतु दोनों को एक साथ लागू करने पर विवाद हो सकता है।
सौरभ यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार विवाद- 2021
इस प्रकरण में सोनम तोमर नामक महिला ने अन्य पिछड़ा वर्ग से उत्तर प्रदेश कांस्टेबल भर्ती परीक्षा के लिए आवेदन किया था। इस परीक्षा में सोनम तोमर से कम अंक प्राप्त सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी का चयन हो गया। सोनम का चयन नहीं हुआ। विवाद का विषय था कि सोनम को अन्य पिछड़ा वर्ग से आरक्षण दिया जाए या महिला वर्ग से। और यह दोनों आरक्षण क्रमशः लम्बवत व क्षैतिज आरक्षण से संबंधित हैं।
विवाद में न्यायालय का निर्णय था कि यदि लम्बवत वर्ग के अभ्यर्थी द्वारा सामान्य वर्ग की कट ऑफ अंक को प्राप्त कर लेता है तो उसे लमबवत श्रेणी के आरक्षण से बाहर रखा जाएगा। या अभ्यर्थी को आरक्षण से वंचित न कर सामान्य वर्ग में निहित आरक्षण अर्थात क्षैतिज आरक्षण दिया जाएगा।
उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन
भौगोलिक रूप से उत्तराखण्ड एक पर्वतीय राज्य है, प्रारंभ में उत्तराखण्ड उत्तर प्रदेश राज्य का हिस्सा था। जिसकी आवश्यकता एक तराई राज्य से भिन्न थी। उत्तर प्रदेश से पर्वतीय क्षेत्र को पृथक कर एक अलग राज्य बनाने की मांग 1938 से महसूस की जाने लगी जब गढ़वाल के श्रीनगर में कांग्रेस के अधिवेशन के समय पण्डित नेहरु ने पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को स्वयं निर्णय लेने व अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए किए जा रहे आंदोलनों का समर्थन किया। तब से पृथक पर्वतीय राज्य की मांग को लेकर लगातार आंदोलन किए जा रहे थे।
1994 में स्थानीय छात्र, पृथक राज्य आंदोलन का मोर्चा संभाल रहे थे। इस बीच मुलायम सिंह यादव के पृथक राज्य विरोधी बयान से आंदोलन और तेज हो गया। उत्तराखंड क्रांति दल ने अनशन प्रारंभ किया। तीन महीने तक आंदोलन चलते रहे, आंदोलनकारियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज व महिला आंदोलनकारियों से अभद्रता की जिससे आंदोलन और हिंसक हो गया। 2 अक्टूबर 1994 को रात्रि के समय दिल्ली की ओर रैली में जा रहे निहत्थे आंदोलनकारियों पर रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर में गोलियाँ बरसाई गई। इस घटना को रामपुर तिराहा गोलीकांड भी कहा जाता है।
इसी प्रकार की घटनाएं खटीमा मसूरी, देहरादून, नैनीताल, कोटद्वार, श्रीनगर में भी देखी गई। जिसमें कई आंदोलनकारियों की मृत्यु हो गई। वर्तमान राज्य में इन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भांति सम्मान दिया जाता है।
राज्य गठन की प्रक्रिया– लगातार हो रहे हिंसक गतिविधियों को देखते हुए 15 अगस्त 1996 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवगोड़ा ने उत्तराखण्ड राज्य की घोषणा की। घोषणा के बाद उत्तरांचल विधेयक तैयार कर उत्तर प्रदेश विधानसभा में इसे 26 संशोधनों के साथ पारित किया गया। राज्य विधानसभा में पारित होने के बाद केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 को लोकसभा और फिर राज्य सभा में प्रस्तुत किया। लोकसभा व राज्य सभा में विधेयक पारित होने के बाद राष्ट्रपति ने 28 अगस्त 2000 को इसे अपनी स्वीकृति दे दी। 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल राज्य के नाम से एक पर्वतीय राज्य का गठन किया गया। जिसका 1 जनवरी 2007 को नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया।
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