उल्फा – संधि: सुरक्षा उपायों पर त्रिपक्षीय व्यापक और प्रभावी समझौता

उल्फा – संधि: सुरक्षा उपायों पर त्रिपक्षीय व्यापक और प्रभावी समझौता

( यह लेख  ‘ द हिन्दू ’, ‘ इंडियन एक्सप्रेस ’ ‘ वर्ल्ड फोकस ’ और ‘ पीआईबी ’ के सम्मिलित संपादकीय के सारांश से संबंधित है। इसमें योजना IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के विशेषकर ‘ भारतीय राजनीति एवं शासन व्यवस्था,उग्रवाद , माओवाद , आतंकवाद आतंरिक सुरक्षा और देश की बाह्य सुरक्षा खंड से संबंधित है। यह लेख ‘ दैनिक करेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गतउल्फा – संधि: सुरक्षा उपायों पर त्रिपक्षीय व्यापक और प्रभावी समझौता से संबंधित है। )

सामान्य अध्ययन : उग्रवाद , माओवाद , आतंकवाद, देश की आतंरिक सुरक्षा और बाह्य सुरक्षा

चर्चा में क्यों ?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तथा यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) का एक वार्ता समर्थक गुट तथा असम सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA), ने असम और उसके आसपास के क्षेत्रों से उग्रवाद को ख़त्म करने के लिए हाल ही में एक आपसी त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। गौरतलब यह है कि पारेष बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा (स्वतंत्र) गुट अभी भी इस त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के विरुद्ध है। 

क्या है उल्फा  ? 

  • यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) की उत्पति या जन्म असम राज्य के बाहर से आए अप्रवासी लोगों के विरोध में एक अप्रवासी विरोधी आन्दोलन के रूप में हुआ था। 
  • इस अप्रवासी आन्दोलन की शुरुआत सन 1979 ई. में असमिया भाषा बोलने वाले असमिया लोगों के लिए एक अलग और संप्रभु असमिया राज्य के गठन की मांग को लेकर हुआ था। जो धीरे -धीरे अपने आन्दोलन के स्वरुप में ही हिंसक , उग्र और सशस्त्र संघर्ष की राह को अपना लिया।

उल्फा का मुख्य ध्येय / उद्देश्य : 

  • उल्फा का मुख्य उद्देश्य ही भाषा के आधार पर असमिया भाषी लोगों के लिए संप्रभु असमिया राष्ट्र का निर्माण सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से करना था। अलग संप्रभु असमिया राष्ट्र के निर्माण के लिए पहले तो उल्फा समर्थकों ने वहां के मजबूर और जरूरतमंद लोगों की मदद की और उसका नैतिक समर्थन प्राप्त किया और फिर धीरे – धीरे इन लोगों ने अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए  लोगों से जबरन वसूली, अपहरण, बम – विस्फोट करना और लोगों को जबरदस्ती फाँसी पर लटका देने जैसा अमानवीय , अलोकतांत्रिक और हिंसक मार्ग अपना लिया।

उल्फा के प्रति केंद्र – सरकार की प्रतिक्रिया: 

  • तत्कालीन केंद्र – सरकार ने असम में इस तरह की बढती हिंसा को देखते हुए पहले तो असम में राष्ट्रपति शासन लगाकर असम राज्य को एक ‘ अशांत क्षेत्र ’ घोषित किया और सन 1990 ई. में  ‘ऑपरेशन बजरंग ’ शुरू कर तक़रीबन 1200 से भी अधिक उल्फा उग्रवादियों को गिरफ्तार कर असम में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम लागू ( अस्फ्फा ) लागू कर दिया था। 

उल्फा का भौगोलिक विस्तार: 

  • उल्फा का भौगोलिक विस्तार पहाड़ों के दुर्गम इलाके , जंगलों और घने और गहरे जंगली पहाड़ियां में स्थित शिविर केरूप में है जो सीमापार उग्रवादी और आतंकवादी शिविरों के रूप में कार्य करते हैं । ये शिविर इन उग्रवादियों के लिए ट्रेनिग – सेंटर, उग्रवादी गतिविधियों के लिए लांच पैड और विरामगाह ( आश्रय – स्थल ) जैसे विभिन्न कार्यों के रूप में उपयोग किए जाते हैं। इनका भौगोलिक विस्तार भूटान , म्यांमार और बांग्लादेश तक फैला हुआ है। इन उग्रवादी संगठनों का संबंध कट्टर इस्लामी संगठन ‘अल – कायदा’  और पाकिस्तान की प्रमुख ख़ुफ़िया एजेंसी (आईएसआई) से भी रहा है। यह भी तथ्य सामने आया है कि पाकिस्तान की प्रमुख ख़ुफ़िया एजेंसी (आईएसआई) ने पूर्व में इन उल्फा उग्रवादियों को भारत में आंतरिक अशांति फ़ैलाने के लिए इन्हें प्रशिक्षित भी किया था। भारत – पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल – युद्ध में उल्फा उग्रवादियों ने अपनी मासिक पत्रिका “ स्वाधीनता ” में भारत के विरुद्ध लिखकर पाकिस्तान द्वारा भारत में किए गए “ कारगिल में अवैध –  घुसपैठ” के लिए पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था। इस उग्रवादी संगठन का अभी भी म्यांमार में ट्रेनिंग सेंटर मौजूद है।  

उल्फा के उदय का मुख्य ऐतिहासिक कारण:

  • पूर्वोत्तर के राज्यों में  और असम राज्य में 19वीं सदी से ही वहां के मूल निवासी से इतर हर जगह के लोगों का प्रवासन और आगमन होता रहा है, जिससे वहां के मूल निवासियों की संस्कृति और उनके आचार – व्यवहार और खान – पान की संस्कृति में इस प्रवासियों के संपर्क में आने से  परिवर्तन आया है। इन प्रवासियों के आगमन से वहां के मूल निवासियों में असुरक्षा की भावना भी बलवती होती गई।
  • सन 1947 ई. में हुए भारत और पाकिस्तान के विभाजन के फलस्वरूप तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से भागे इन शरणार्थियों के पलायन के कारण इस क्षेत्र की स्थिति दिन – ब – दिन बाद से बदतर होती चली गई ।
  • इस क्षेत्र में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के लिए हुए आपसी प्रतिस्पर्धा ने इस क्षेत्र के मूल निवासियों और प्रवासियों के बीच एक अघोषित जंग छेड़ दी , फलतः सन 1979 से एक लंबा जन – संघर्ष और जन आन्दोलन शुरू हो गया जो तक़रीबन 6 सालों तक लम्बे समय तक चला ।
  • पूर्वी – पाकिस्तान में शुरू हुए ‘ बांग्लादेश मुक्ति – संग्राम ’ के कारण और भारत की केन्द्रीय सरकार की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा ‘ बांग्लादेश मुक्ति – संग्राम ’ को समर्थन दिए जाने के कारण भी इस क्षेत्र के लोगों को भारतीय सीमा पार करनी पड़ी, जिससे प्रवासियों की संख्या में वृद्धि हुई ।
  • उल्फा के उग्रवादियों द्वारा इस क्षेत्र में अशांति फ़ैलाने के लिए थाईलैंड और म्यांमार से हथियार खरीदना, अवैध पासपोर्ट जारी करना और इन उग्रवादियों को आईएसआई द्वारा प्रशिक्षित करवाने के लिए कट्टर धार्मिक संगठनों का उपयोग बाहरी समर्थन के रूप में लेने से भी इस क्षेत्र की स्थिति बदहाल हो गई।

उल्फा के उदय का राजनीतिक कारण : 

  • एजीपी (असम गण परिषद) का राजनितिक रूप से उपयोग करना और उल्फा के आतंकवादियों के सामने एक घुटने टेक देना या इसके प्रति निष्क्रिय बने रहना सरकार की राजनीतिक मजबूरी के रूप में देखा गया और साथ ही वहां की स्थानीय सरकार द्वारा उल्फा आतंकवादियों को अपनी राजनीतिक विरासत की रक्षा हेतु दूसरी पंक्ति के रूप में उपयोग करना भी शामिल था।
  • सन 1985 ई. में हुए एजीपी की चुनावी जीत और असम समझौते पर हुए हस्ताक्षर को एक-दूसरे से जुड़ा हुआ ही बताया जाता है।

उग्रवाद प्रभावित अशांत क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए किए गए विभिन्न प्रयास : 

  • पीसीजी – पीपुल्स कंसल्टेटिव ग्रुप ने 2005 में उल्फा द्वारा गठित 11 सदस्यीय समूह/ समिति  का गठन किया और इस समिति ने तीन दौर की वार्ता में मध्यस्थता करने का प्रयास किया था।
  • इस समिति में ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखिका और प्रसिद्ध बुद्धिजीवी स्वर्गीय इंदिरा रायसोम गोस्वामी भी शामिल थीं ।
  • उल्फा के चर्चा से बाहर निकलने और आतंक की एक नई लहर शुरू करने से पहले इसने 3 दौर की वार्ता में मध्यस्थता की।
  • सन 2008 ई. में अरबिंद राजखोवा जैसे कुछ उल्फा कमांडरों ने शांति वार्ता के लिए प्रयास किया, जबकि परेश बरुआ द्वारा इसका विरोध किया गया और उन्हें राजखोवा संगठन से निष्कासित कर दिया गया, जिससे उल्फा में विभाजन हो गया और यह दो गुट में विभाजित हो गया।
  • सन 2011 ई.  में, शांति वार्ता समर्थक गुट ने असम सरकार और एमएचए के साथ ऑपरेशन के निलंबन (एसओओ) पर हस्ताक्षर किया था।
  • सन 2012 ई.  में , उन्होंने केंद्र सरकार को अपनी 12-सूत्रीय चार्टर मांगें सौंपी , जिसका अंततः 2023 में जवाब दिया गया।
  • सन 2023 ई. में राजखोवा के गुट और केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के बीच शांति समझौते पर चर्चा हुई, जिससे हाल ही में त्रिपक्षीय शांति समझौता पर हस्ताक्षर हुआ और यह त्रिपक्षीय शांति समझौता के रूप में परिणत हो गया। इससे यह उम्मीद जताई जा रही कि आने वाले समय में असम में आंतरिक शांति बहाल हो पायेगी।

त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर का महत्व:

आंतरिक शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना :  

  • इस त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर से असम में आंतरिक शांति , लोगों की जान – माल की सुरक्षा और अवैध घुसपैठ पर रोक लगाने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके साथ – ही – साथ उग्रवादी गतिविधियों और आतंकवादी गतिविधियों पर भी रोक लगाने की उम्मीद है।

विकास और प्रगति की राह पर अग्रसर करने पर जोर : 

  • इस त्रिपक्षीय शांति समझौते से असम के साथ ही आस पास के पूर्वोत्तर राज्यों को भी अब विकास और प्रगति की नई राह और नए प्रतिमान गढ़ने पर जोर दिया जा रहा है । इसके लिए इस क्षेत्र में ₹1.5 लाख करोड़ के निवेश का वादा किया गया था, ताकि यह क्षेत्र भी भारत के अन्य राज्यों की तरह ही मुख्यधारा में शामिल होकर विकास और प्रगति की नई इबारत लिख सके।

राजनीतिक इच्छाशक्ति और कार्यान्वयन: 

  • उल्फा की 12 सूत्री मांगों को पूरा करने के लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाया जाएगा, ऐसा विश्वास केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करते हुए कहा। 

उग्रवादी संगठन और  हिंसक समूहों का आत्मसमर्पण: 

  • इस त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर से असम में लगभग 9000 से अधिक कट्टर उग्रवादी कैडरों ने आत्मसमर्पण किया है। जिससे उसे मुख्यधारा में शामिल कर और जीवकोपार्जन के रोजगार मुहैया करवाकर मुख्य धारा की राजनीति और समाज में शामिल किया जा सकता है और वहां शांति बहाल की जा सकती है।

भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया और कानून का राज की अवधारणा की विजय

  • उल्फा के उग्रवादियों ने भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया और भारत में कानून के तहत चलने वाली राजव्यवस्था द्वारा स्थापित शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने और भारत की एकता अखंडता बनाए रखने के लिए भी अपनी सहमति व्यक्त करते कानून के राज के तहत कार्य करने का आश्वासन एवं विश्वास दिलाया है।

त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन और सरकार की राह में चुनौतियाँ:

अधूरा एवं अपूर्ण  शांति समझौता : 

  • उल्फा-आई का दूसरा गुट इस समझौते के विरोध में है। परेश बरुआ के नेतृत्व वाला दूसरा गुट उल्फा-आई जिसे लगभग 100 कट्टर कैडरों का समर्थन प्राप्त है, अभी इस शांति प्रक्रिया के समझौता में शामिल नहीं हुआ है।जिससे निकट भविष्य में इस क्षेत्र में अशांति बनी ही रह सकती है की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

उल्फा का भारत के सीमा पार पर अभी भी अस्तित्व बरक़रार : 

  • उल्फा का भारत की सीमा से सटे अन्य पड़ोसी देशों के साथ ही इसका भौगोलिक विस्तार भूटान , म्यांमार और बांग्लादेश तक फैला हुआ है। इन उग्रवादी संगठनों का संबंध कट्टर इस्लामी संगठन ‘अल – कायदा ’  और पाकिस्तान की प्रमुख ख़ुफ़िया एजेंसी (आईएसआई) ’ से भी रहा है। यह भी तथ्य सामने आया है कि पाकिस्तान की प्रमुख ख़ुफ़िया एजेंसी (आईएसआई) ने पूर्व में इन उल्फा उग्रवादियों को भारत में आंतरिक अशांति फ़ैलाने के लिए इन्हें प्रशिक्षित भी किया था। कुछ समय पूर्व तक उल्फा का भूटान  और बांग्लादेश जैसे देशों में भी शिविर था और इसका अभी भी  म्यांमार में शिविर और ट्रेनिंग सेन्टर है। फलत: इस त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने और आम सहमति बन जाने के बाद भी उल्फा का भारत के सीमा पार पर अभी भी अस्तित्व बरक़रार रहना भारत के लिए आंतरिक शांति और सुरक्षा तथा उग्रवाद की दृष्टिकोण से चिंता का विषय है।

उल्फा का विदेशी आतंकवादी संगठनों के साथ सहायक संबंध: 

  • उल्फा का असम के साथ – ही – साथ  पूर्वोत्तर और म्यांमार के कई आतंकवादी और विद्रोही संगठनों के साथ – साथ कट्टरपंथी धार्मिक और इस्लामिक संगठन ‘ हरकत- उल – जिहाद – ए- इस्लामी ’ और ‘अल – कायदा ’ जैसे इस्लामी आतंकवादी संगठनों से संबंध रहे हैं, जो भारत की आतंरिक उग्रवाद और बाह्य आतंकवाद दोनों ही सुरक्षा के लिए चिंता का कारण / विषय  है।

समस्या समाधान की राह:

केंद्र और राज्य दोनों ही सरकार अपना वादा पूरा करें: 

  • केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों को उल्फा और उसके अत्याचार से प्रभावित समुदायों की निहित चिंताओं और आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए शांति समझौते के दौरान किए गए सभी वादों को पूर्ण रूप से पूरा करने की जरूरत है।

शांति – प्रक्रिया की बहाली सुनिश्चित होनी चाहिए : 

  • केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों को उल्फा से पीड़ित आम जनमानस को  एक व्यापक और संपूर्ण शांति प्रक्रिया की बहाली सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि उस क्षेत्र की आम जनता और जनमानस में भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति विश्वास पैदा हो और वे भारत की एकता और अखंडता की रक्षा कर सकें।

सांस्कृतिक ,आर्थिक और सामाजिक एकीकरण को पूर्ण रूप से आत्मसात करके  :  

  • व्यावसायिक प्रशिक्षण, पुनर्वास कार्यक्रमों  और उस क्षेत्र के लोगों के लिए  सांस्कृतिक ,आर्थिक और सामाजिक एकीकरण को पूर्ण रूप से आत्मसात करने के  समर्थन को हासिल करके उस क्षेत्र के संपूर्ण जनता को मुख्यधारा में शामिल करना भी सरकार सुनिश्चित करें। 

अनवरत निगरानी की व्यवस्था सुनिश्चित करना : 

  • केंद्र और राज्य दोनों ही सरकार यह अनवरत सुनिश्चित करते रहें कि इस समझौते में शामिल सभी पक्ष अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन अनवरत करते रहें और इसमें केन्द्र और राज्य दोनों ही सरकारों द्वारा नीस त्रिपक्षीय समझौता के नियमों की अनवरत निगरानी की व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए।

पारेष बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा-1 (स्वतंत्र) गुट को समाप्त करना : 

चीन द्वारा म्यांमार सरकार के सहयोग से पारेष बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा-1 (स्वतंत्र) गुट को  दिए जाने वाले किसी भी समर्थन का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार को राजनयिक एवं रणनीतिक स्तर पर अपनी विदेश नीति  का लाभ उठाया जाना चाहिए और पारेष बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा-1 (स्वतंत्र) गुट को सदा के लिए समाप्त या उन्मूलन कर देना चाहिए ताकि असम और भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों में अमन चैन की बहाली सुनिश्चित हो सके और असम और भारत के पूर्वोत्तर के राज्य विकास और प्रगति के मार्ग पर चलते हुए विकास की एक नई महागाथा लिख सके। 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1 यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम ( उल्फा ) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए । 

  1. इस आन्दोलन की शुरुआत सन 1979 ई. में असमिया भाषा बोलने वाले असमिया लोगों के लिए एक अलग और संप्रभु असमिया राज्य के गठन की मांग को लेकर हुआ था।
  2. पीपुल्स कंसल्टेटिव ग्रुप समिति में ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखिका और प्रसिद्ध बुद्धिजीवी स्वर्गीय इंदिरा रायसोम गोस्वामी भी शामिल थीं ।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A). केवल 1 

(B). केवल 2

(C ). न तो 1 और न ही 2 

(D ). 1 और 2 दोनों। 

उत्तर – (D).

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. उल्फा त्रिपक्षीय समझौता संधि क्या है? भारत की आतंरिक और बाह्य शांति एवं सुरक्षा की दृष्टिकोण से आतंकवाद और उग्रवाद की रोकथाम के लिए भारत द्वारा उठाये गए कदमों की विस्तृत चर्चा कीजिए।  

 

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