29 Sep कश्मीर में सेब की अच्छी पैदावार के बाद भी सेब उद्योग को संकट
कश्मीर में सेब की अच्छी पैदावार के बाद भी सेब उद्योग को संकट
संदर्भ- कश्मीर में सेब की अच्छी फसल के बावजूद किसानों को मंडियों में उसका उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। जिससे कश्मीर का सेब उद्योग संकट में है। सेब से लदे ट्रक कई दिनों से जम्मू श्रीनगर मार्ग में फंसे हुए हैं जिससे मण्डी में एक साथ बड़ी मात्रा में सेब के ट्रकों के पहुँचने के कारण भी बाजार में सेब के दामों में कमी आई है।
विश्व सेब उत्पादक देशों में भारत का नवाँ स्थान है। देश में सबसे अधिक गुणवत्ता का सेब कश्मीर में पाया जाता है। इसलिए इस क्षेत्र को सेब का कटोरा भी कहा जाता है। कश्मीर देश का सबसे बड़ा सब उत्पादक राज्य है। कश्मीर के अतिरिक्त सेब उत्पादक राज्य हिमांचल प्रदेश, उत्तराखण्ड,उत्तर प्रदेश, अरुणांचल प्रदेश, नागालैण्ड, पंजाब व सिक्किम हैं। हिमांचल प्रदेश भारत के सेब उद्योगों में अपनी पकड़ मजबूत बना रहा है।
सेब एक शीतोष्ण फसल है, भारत में सेब की फसल हिमालय की ऊँची पर्वत मालाओं व ऊँचे स्थानों 1500-2700 मीटर की ऊँचाई पर संभव हो पाती है। जहां गर्मियों में तापमान 21-24 सेल्सियस तक हो।
भारत में सेब की किस्में-
विश्वभर में 7500 से अधिक खाने योग्य सेब की किस्में पाई जाती हैं। भारत में सेब की अनेक किस्में पाई जाती हैंं, जिन्हें उनके उत्पादन समय के अनुसार कई भागों में विभाजित किया जा सकता है।
- शीघ्र तैयार होने वाली किस्में – टाइडमेैन अर्ली सरवैस्टर, विंश डेलीशियस, समर क्वीन, अर्ली डेलीशियस आदि।
- मध्यवर्ती तैयार होने वाली किस्में- रेड डेलीशियस, रॉयल डेलीशियस, गोल्डन डेलीशियस, रिच अ रैड, टॉप रैड, लॉर्ड लैम्बोर्न।
- देर से तैयार होने वाली किस्में- रायमर, बकिंघम, गैनीस्मिथ, अम्बरी आदि।
- नई किस्में- हरिमन-99 किस्म 45-48 सेल्सियस तापमान में भी अच्छे परिणाम देती है।
कश्मीर में हजरत अली, तुरसी गलामस्त, रजातवाड़ी, बेलगेम, बलगेलिन व अमरी गोल्डन जैसी स्थानीय किस्में पाई जाती हैं। रॉयल व राइड प्रजाति भी कश्मीर में पाई जाती है।
हिमांचल प्रदेश में सेब के किस्मों के उत्पादन के लिए कई प्रयोग किए गए जिसके तहत विभिन्न क्षेत्रों से सेब की किस्में हिमांचल में उगाई गई, जिससे आज हिमांचल में 200 से अधिक सेब की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें सुपर चीफ, स्कारलेट सुपर टू, रेट, विलोक्स, जेरोमाइन जैसी सुपर चिल्ड किस्में इसके साथ ही रेड गोल्डन व गोल्डन के परागण द्वारा रेड डिलशियस किस्म भी उपलब्ध होती है। इसके अतिरिक्त पिंक लेडी व समर क्वीन प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं।
उत्तराखण्ड में डेलीशियस फैनी स्कार्टा, स्कर्ट लेट स्फर, रेड छीफ ग्रीन स्मिथ, रेड कॉर्न मिजीगाला जैसी विदेशी किस्में का उत्पादन हो रहा है।
सेब प्रबंधन में बाधाएँ-
- सिंचाई की अनुपलब्धता
- जलवायु परिवर्तन से उचित तापमान की अनुपलब्धता
- सेब के पेड़ को विकसित होने के लिए प्रयुक्त होने वाले पोषक तत्व की अनुपलब्धता
- समय पर छंटाई की अनुपलब्धता
- रोग व कीट प्रबंधन की अनुपलब्धता
- ओलावृष्टि से फलों की सुरक्षा की व्यवस्था की अनुपलब्धता।
सेब की फसल का भण्डारण-
- सेब के आकार के आधार पर छंटान और पेटियों में भण्डारण।
- सेब को अधिक समय तक सुरक्षित करने के लिए एथेनॉल का छिड़काव किया जाता है। जो इसे 10-15 दिन तक खराब नहीं होने देता। लेकिन इससे अधिक समय होने पर सेब खराब हो सकता है।
- नाजुक प्रकृति के सेब के लिए अच्ठी पैकिंग की आवश्यकता होती है।
- फलों की ढुलाई के दौरान क्षति होने के कारण मूल्य में गिरावट आ जाती है।
सेब के मण्डी तक पहुँचने में कठिनाइयाँ-
- सेब के बगान से मुख्य सड़क तक सेब का पहुँचना किसी चुनौती से कम नहीं होता, यह श्रमिकों द्वारा स्वयं ढोया जाता है जिस दौरान सेब को क्षति पहुँचने की काफई संभावना रहती है।
- सेब मुख्यतः पहाड़ी इलाकों में होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में यातायात के लिए सड़कों की स्थिति अक्सर खराब रहती है। जिस कारण सेब समय पर नहीं पहुँच पाता।
- सेब को मण्डी तक पहुँचने के लिए किसानों को बिचौलियों का सामना करना पड़ता है जिसमें किसानों को उचित समय में उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
स्रोत-
https://indianexpress.com/
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