केशवानंद भारती केस 

केशवानंद भारती केस 

केशवानंद भारती केस 

संदर्भ- हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती केस की 50 वी वर्षगांठ मनाई। केशवानंद भारती केस में 13 सदस्यों की पीठ ने संविधान के मौलिक अधिकारों सहित संविधान के मूल ढांचे को सुरक्षित रखने के लिए एक ऐसिहासिक फैसला सुनाया था।

केशवानंद भारती- केरल राज्य के प्रमुख भिक्षु व कासरगोड जिले क एडनीर मठ के प्रमुख पुजारी थे। केशवानंद भारती के पास मठ की कुछ जमीन थी जिस पर उनका अधिकार था। केरल भू कानून 1969 के अनुसार केरल राज्य सरकार, मठ की जमीन पर अधिग्रहण कर सकती थी। अतः केशवानंद भारती ने इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।  

केशवानंद भारती केस

केरल में राज्य सरकार द्वारा पारित भूसुधार कानून को चुनौती देने के साथ यह केस प्रारंभ हुआ। केशवानंद भारती ने एनए पालखीवाला के नेतृत्व में याचिका दर्ज की। केरल राज्य का नेतृत्व एचएम सीरवई के द्वारा किया गया। केशवानंद भारती ने सुप्रीम कोर्ट में निम्न अधिकारों के लिए याचिका दर्ज की, इस याचिका में केरल भू कानून समेत संविधान के कई मुद्दे इस केस के साथ संबंद्ध हो गए। 

  • अनुच्छेद 25 मे उल्लेखित धर्म का पालन करने व इसके प्रचार करने की स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद 26 मे उल्लेखित धार्मिक कार्यो के प्रबंधन की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद 14 मे उल्लेखित समानता का अधिकार 
  • अनुच्छेद 19(f)  मे उल्लेखित सम्पत्ति रखने व अर्जित करने का अधिकार
  • केरल के भूमिहीन काश्तकारों को भूमि रखने का अधिकार। 
  • केरल भूमि सुधार कानून को संविधान की 9वी अनुसूची में शामिल किए जाने संबंधी 29वे संविधान संशोधन को चुनौती देना। 

याचिकाकर्ता की दलीलें-

  • संसद द्वारा संविधान के असीमित संशोधन के अधिकार पर कोई रोक नहीं है, अर्थात वे संविधान में किसी भी तरह का संशोधन कर सकते हैं, जिससे संविधान की मूल प्रकृति समाप्त हो सकती है।  
  • प्रस्तुत राज्य सरकार के कानून में नागरिकों के भाषण संबंधी या धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी मौलिक अधिकार के उल्लंघन पर रोक लगाने के लिए किसी भी कानून की अनुप्लब्धता।

 29वे संविधान संशोधन – संविधान के 29  वे संशोधन में केरल के भू सुधार कानूनों को स्थान दिया गया इसके तहत –

  • संविधान की नौवी अनुसूची में संशोधन करते हुए इसमें केरल के भूमि सुधार संबंधी दो अधिनियम (केरल भूमि सुधार अधिनियम 1919 और केरल भूमि सुधार अधिनियम 1971) शामिल किए गए।
  • नौवी अनुसूची में शामिल किए गए अधिनियमों को मौलिक अधिकारों के अतिक्रमण के आधार पर चुनौती दी जा सकती थी। 

केशवानंद भारती केस का निर्णय- केस के निर्णय के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 13 न्यायाधीशों की एक खण्डपीठ का गठन किया। इस केस की कार्यवाही 6 माह में पूर्ण की गईत तथा निर्णय को 7 : 6 का बहुमत प्राप्त हुआ। 

  • इस केस के निर्णय दिया गया कि संसद संविधान में उसी सीमा तक संशोधन कर सकती है जहाँ तक वे संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन न कर सके। 
  • इस केस के तहत विधायिका व कार्यपालिका के मध्य संघर्ष को समाप्त कर दिया गया।

संविधान के मूल संरचना का सिद्धांत –

  • मूल संरचना के सिद्धांत की अवधारणा जर्मनी के संविधान से ली गई है। इसके तहत संविधान के मूल तत्वों में संशोधन हेतु पर्याप्त सीमाएं लागू की जाती हैं। 
  •  44वें संविधान संशोधन में संसद ने भी बुनियादी ढांचे के सिद्धांत को मंजूरी दी थी। 
  • भारतीय संविधान में संसद को संविधान में संशोधन के अधिकार है किंतु वे संसद, संविधान की मूल प्रकृति में परिवर्तन नहीं कर सकती है।
  •  निर्णय में संविधान की मूल प्रकृति की व्याख्या नहीं की गई है वरन यह दायित्व अदालतों पर छोड़ दिया गया है। 
  • अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन का अर्थ मूल संरचना में संशोधन नहीं है। संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन करने से पूर्व मूल संरचना परीक्षण किया जाना अनिवार्य है।
  • संविधान के अनुच्छेद 359 में संशोधन में कहा गया है कि आपातकाल की घोषणा होने पर भी, जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को निलंबित नहीं किया जा सकता है।

भारतीय संविधान में संशोधन-

भारत में लोकतंत्र के कई विवादित मामलों को संविधान में संशोधन द्वारा निपटाया जाता है, अतः भारत में अब तक सर्वाधिक 105 संशोधन हो चुके हैं। भारतीय संविधान में तीन प्रकार के संशोधन हुए हैं-

  • संसद के प्रत्येक सदन में साधारण बहुमत द्वारा
  • संसद के प्रत्येक सदन  में विशेष बहुमत द्वारा
  • संसद के प्रत्येक सदन  में विशेष बहुमत के साथ साथ आधे राज्य विधान सभा द्वारा अनुसमर्थित द्वारा।

स्रोत

Indian Express

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