15 Oct गेहूँ के स्टॉक में कमी
गेहूँ के स्टॉक में कमी
संदर्भ- पिछले 5 सालों में भारतीय खाद्य निगम में गेहूँ के खाद्य भण्डार में लगातार कमी आई है। इसके साथ ही गेहूँ की कीमतों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। भारतीय खाद्य निगम में गेहूँ व चावल के भण्डार का गिरना चिंता का विषय है-
- देश का अनाज भण्डार 15 साल के नीचले स्तर पर पहुँच गया है।
- भण्डार की न्यूनतम बफर स्टॉक के करीब पहुँचने की संभावना।
गेहूँ के भण्डार में कमी के कारण
- कम उत्पादन- केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा फरवरी 2022 में गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि का अनुमान लगाया गया था। इस अनुमान के चलते भारत में गेहूँ के निर्यात की संभावना बढ़ गई थी। किंतु मार्च में हीट वेव के कारण भारत में गेहूँ के उत्पादन में 15-20% की कमी आई और वैश्विक निर्यात के मसौदे पर रोक लगानी पड़ी।
- निर्यात मांग- रूस यूक्रेन युद्ध के कारण विश्व के बाजारों में इसका असर देखा जा रहा है। विश्व में अधिकतम गेहूँ निर्यातक देश रूस रहा है, इसी प्रकार यूक्रेन भी गेहूँ के निर्यातक देशों में पाँचवा स्थान रखता है। रूस व यूक्रेन से व्यापार बाधित होने के कारण भारत में गेहूँ की निर्यात मांग में वृद्धि हुई है। किंतु कम उत्पादन के कारण वैश्विक निर्यात में रोक लगाई गई। रोक से पूर्व शिपमैण्ट के साथ साइन किए गए लैटर ऑफ क्रैडिट के कारण निर्यात गतिविधि को पूर्णतः रोकना संभव नहीं हो पाया। जिससे कम उत्पादन के बावजूद निर्यात पर रोक नहीं लगाई जा सकी और गेहूँ के भण्डार में इसका सीधा असर पड़ रहा है।
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना- इस योजना के माध्यम से सार्वजनिक प्रणाली के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अनाज का अनुदान किया गया। वर्ष 2020-21 में योजना के निष्पादन हेतु 10.3 मिलियन टन गेहूँ का प्रयोग किया गया। इसके साथ ही 2021-2022 में 19.9 मिलियन टन की आवश्यकता रही। योजनाओं के अनुसार अनुदान के लिए अब गेहूँ के भण्डारों में कमी देखने में आई है।
- जमाखोरी- भारत के खुले बाजारों में गेहूँ की कीमत MSP से भी अधिक हो गई है। गेहूँ की कीमतों के बढ़ने की उम्मीद में किसान, मिल मालिक, व्यापारी व निर्यातक अनाज को अपने पास रोक रहे हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP- किसी फसल के लिए एमएसपी वह मूल्य होता है जिस पर सरकार उस फसल को किसानों से खरीदती है। यह बाजार मूल्य से अधिक होने की स्थिति में कारगर होता है। एमएसपी बाजार कीमतों के लिए एक मंच प्रदान करते हैं, और यह सुनिश्चित करती है कि किसानों को एक निश्चित “न्यूनतम” पारिश्रमिक प्राप्त हो ताकि उनकी खेती की लागत (और कुछ लाभ) की वसूली की जा सके। MSP निम्न कारकों पर निर्भर करता है-
- मांग व आपूर्ति
- उत्पादन लागत
- बाजार मूल्य रुझान
- अंतर फसल मूल्य समता
- कृषि व गैर कृषि के बीच व्यापार की शर्तें
- उत्पाद के उपभोक्ताओं पर MSP के संभावित प्रभाव।
रिजर्व भण्डार में कमी के प्रभाव-
19 मिलियन टन के शुरुआती स्टॉक व 18.5 मिलियन टन की अपेक्षित खरीद के साथ सरकारी एजेंसियों के पास 2022-23 के लिए मात्र 37.5 मिलियन टन गेहूँ उपलब्ध होगा। न्यूनतम परिचालन स्टॉक सह रणनीतिक रिजर्व को बनाए रखने के लिए इसे बेचा नहीं जा सकता। 31 मार्च तक बफर स्टॉक की आवश्यकता 7.5 टन है जिसे उपलब्ध कराने के बाद 30 मिलियन टन उपलब्ध हो जाएगा।
- खाद्य कीमतों में वृद्धि- गेहूँ की मांग में वृद्धि व स्टॉक में कमी के कारण गेहूँ की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। खाद्य कीमतों के बढ़ने के कारण मुद्रा स्फीति में (7% से बढ़कर 7.5%) उछाल आया है।
- भारतीय गरीब व मध्यम वर्ग की आय का अधिकतम भाग खाद्य पदार्थों के खरीद में चला जाता है। खाद्य पदार्थों के मूल्य में वृद्धि से उल्लेखित वर्ग के जीवन स्तर में गिरावट देखी जा सकती है।
- यदि 2006-07 जैसी स्थिति होती है तो सरकार को गेहूँ पीडीएस के लिए गेहूँ आयात करना पड़ सकता है। या फिर बाजार से खरीदना पड़ सकता है।
2006-2007 की स्थिति- इस वर्ष सरकार ने गेहूँ की खरीद के लिए प्राइवेट सेक्टर को छूट दी थी। जिससे व्यापारियों ने किसानों से अधिक मूल्य पर गेहूँ की खरीद की और किसानो ने सरकारी मंडियों में गेहूँ नहीं बेचा, परिणामस्वरूप सरकार को गेहूँ का आयात कर वितरित करना पड़ा।
रिजर्व भण्डार की कमी को पूरा करने के लिए उपाय- गेहूँ के भण्डार में दर्ज कमी व निर्यात में वृद्धि के चलते चावल के निर्यात को रोक दिया गया है। और चावल के रिजर्व भण्डार से गेहूँ की कमी को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है।
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