11 Nov ग्रेटर निकोबार क्षेत्र की बहु विकास परियोजना
ग्रेटर निकोबार क्षेत्र की बहु विकास परियोजना
संदर्भ- भारत सरकार के पर्यावरण, जल, जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत के दक्षिणी क्षेत्र ग्रेटर निकोबार के विकास के लिए 72000 करोड़ रुपये की बहुविकासशीय योजना को मंजूरी दे दी है। जिसमें-
- अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल
- दोहरे उपयोग (सैन्य व नागरिक) वाले हवाई अड्डे।
- ऊर्जा संयंत्र
- एक एकीकृत टाउनशिप का विकास करना शामिल है।
निकोबार में स्थित अपार प्राकृतिक संपदा पर आए खतरे के कारण इस परियोजना पर विवाद हो रहा है क्योंकि परियोजना के कारण वहां के प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर नष्ट होना तय है।
निकोबार के संसाधन-
- शोम्पेन व निकोबारी जनजाति का क्षेत्र
- लेदरबैक समुद्री कछुओं समेत द्वीप में विभिन्न जीवों की 330 प्रजातियाँ जैसे-निकोबार मैकाक,निकोबार मैकापोड, खारे पानी के मगरमच्छ, पौधों जैसे ट्रीफन व ऑर्किड पायी जाती हैं।
परियोजना का महत्व-
- राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से यह परियोजना अत्यधिक महत्वपूर्ण है, चीन के चीन सागर में आक्रामक रुख व श्रीलंका में चीनी जहाज की डॉकिंग के कारण यह परियोजना का महत्व और बढ़ गया है। इससे भारत के सुरक्षा संसाधनों को मजबूत करने में सहायता मिलेगी।
- निकोबार क्षेत्र का सतत विकास होगा जिससे निकोबार आर्थिक रूप से मजबूत होगा। लेकिन इसके प्राकृतिक संसाधनों को भारी क्षति पहुँचेगी।
विकास और पर्यावरण
- परियोजना के लिए एमओईएफ ने 130 वर्गकिमी. व 8.5 लाख करोड़ पेड़ों की कटाई की अनुमति दी है।
- इस परियोजना से क्षेत्र में मैंग्रो कवर व प्रवाल भित्तियाँ प्रभावित होने की संभावना है।
- ग्रेटर निकोबार द्वीप पर शोम्पेन व निकोबार द्वीप का कब्जा है और परियोजना क्षेत्र दो राष्ट्रीय उद्यानों गैलाथिया बे नेशनल पार्क व कैंपबेल बे नेशनल पार्क के समीप आता है। जिससे इन जनजातियों को खतरा है। क्योंकि यह आदिवासी जनजातियाँ अन्य जनजातियों की तरह आत्मघाती न होकर संकोची प्रकृति की हैं।
- विकसित किए गए बंदरगाह क्षेत्र में जलीय़ व स्थलीय जीवों पर खतरे के बाद भी बंदरगाह के रणनीतिक महत्व को देखते हुए बंदरगाह को मंजूरी मिल गई।
सतत विकास लक्ष्य पाने के लिए विकास व पर्यावरण के बीच स्वस्थ संतुलन बनाना आवश्यक होता है। इसके लिए पर्यावरण प्रभाव आंकलन EIA से समर्थन प्राप्त करना आवश्यक समझा जाता है। पर्यावरण प्रभाव आंकलन से प्राप्त त्रुटिपूर्ण रिपोर्ट (जो केंद्र सरकार को दी जाती है) के बाद पर्यावरण संरक्षकों द्वारा इन विकास परियोजनाओं का बार बार विरोध किया जा रहा है।
पर्यावरण प्रभाव आंकलन-
भारत में बढ़ती जनसंख्या और संसाधनों की कमी के कारण लगातार विकास परियोजनाएं लागू की जाती रहीं हैं जिनका भार सीधे तौर पर प्रकृति पर आता है। प्राकृतिक संसाधनों में आई कमी व पर्यावरणीय दुष्प्रभाव के कारण पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन द्वारा विकास परियोजनाओं से पर्यावरण में पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- यह अधिसूचना 1994 में तत्कालीन वन एवं प्रयावरण मंत्रालय द्वारा प्रख्यापित की गई थी।
- यह परियोजना के पर्यावरणीय मूल्यांकन में सहायक होता है।
- यह उन्हीं परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की अनुमति देता है जिसमें पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को कम करने की संभावना या युक्तियाँ हो।
- निर्णायक भूमिका के साथ वह यह भी जांच करता है कि निर्माणाधीन कार्यक्रम पर्यावरण की दृष्टि से मजबूत है कि नहीं। अतः वह उस स्थल की पारिस्थितिकीय जाँच भी करता है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना को वैधानिक बना दिया गया था।
पर्यावरण प्रभाव आंकलन संशोधन 2006
- संशोधन के अनुसार अब इस प्रक्रिया को केंद्रीय व राज्य दो स्तरों में बांट दिया गया,
- पर्यावरणीय जांच, स्क्रीनिंग, स्कोपिंग, जनसुनवाई व मूल्यांकन चरणों द्वारा की जाती है। राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं को स्क्रीनिंग की प्रक्रिया से होकर नहीं गुजरना पड़ता।
- कुछ परियोजनाओं में अनिवार्य रूप से जाँच आवश्यक होती है- जैसे- खनन, थरमृल पावर प्लाण्ट, नदी घाटी, बुनियादी अवसंरचना जैसे सड़क, राजमार्ग, बंदरगाह, हवाई अड्डे आदि में पर्यावरण प्रभाव आंकलन की मंजूरी आवश्यक है।
पर्यावरण प्रभाव आंकलन संशोधन 2020
पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन के चरण जनसुनवाई की अवधि 30 से घटाकर 20 दिन कर दी गई।
इण्टरनेट व दूरसंचार के माध्यमों के विकास के लिए समय के अनुरूप जाँच की जाएगी।
कुछ परियोजनाओं में छूट देते हुए अधिसूचना में परिवर्तन किया गया, जैसे-
- अपतटीय व तटवर्ती तेल गैस व शैल अनवेषण।
- 25 मेगावाट तक की जल विध्युत परिोजनाएँ
- 2000 से 10000 हेक्टैयर तक की सिंचाई परियोजनाएँ।
- छोटे व मध्यम सीमेण्ट संयंत्र।
- सभी अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजनाएँ।
- पारिस्थितिकीय रीप से संवेदनशील क्षेत्र में हवाई रोपवे आदि।
पर्यावरण प्रभाव आंकलन के लाभ
- प्राधिकरण द्वारा एक बार मंजूरी मिलने के बाद दिए गए निर्देशों का पालन आवश्यक है इससे पर्यावरण व विकास के मध्य सामंजस्य बना रहता है और सतत विकास संभव हो जाता है।
- एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल बनाम रोहित प्रजापति के केस में न्यायपालिका ने माना कि पर्यावरण कानून कार्योत्तर मंजूरी को स्वीकार नहीं करता, अतः परियोजना के लागू होने से पूर्व मंजूरी लेने पर पर्यावरण को होने वाले संभावित नुकसान को कम किया जा सकता है।
चुनौतियाँ-
- संशोधन 2020 के अनुसार सम्पूर्ण रिपोर्ट, प्रस्तावक द्वारा तैयार की जाती है, यह गलत जानकारी व अधिसूचना के दुरुपयोग का कारण बन सकता है।
- अधिसूचना संसोधन 2020 में मिली कार्योत्तर मंजूरी से पर्यावरण पर इसके दुष्प्रभाव को रोकना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। जिस पर विवाद बना हुआ है।
- रणनीतिक परियोजनाओं के लिए आसानी से मंजूरी मिल जाने के कारण उस क्षेत्र में पर्यावरणीय ह्रास को रोकना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है जैसे वर्तमान में निकोबार की बहुविकासशील योजना प्रक्रम में वहां के संसाधन व पारिस्थितिकीय तंत्र पर खतरा मंडरा रहा है।
- जनसुनवाई कार्यक्रम को 30 दिन से घटाकर 20 दिन कर देने से पर्यावरण के प्रति जनजागरुकता में कमी आएगी।
स्रोत
http://bit.ly/3g4a2RE (इण्डियन एक्सप्रैस)
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