09 Nov चुनावी बांड
चुनावी बांड
संदर्भ- गुजरात व हिमांचल प्रदेश चुनाव से पहले, सरकार ने चुनावी बांड की तीसरी किस्त जारी कर दी गई है। जो 9 नवंबर को बिक्री के लिए खुलेगी।
चुनावी बांड क्या है?
- चुनावी बांड ब्याज मुक्त साधन है, राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से धन दान करने के लिए दिया जाता है।
- इस धन का मालिक, पंजीकृत राजनीतिक दल को माना जाता है।
- बांड भारतीय स्टेट बैंक द्वारा बेचे जाते हैं।
- बांड 1000, 10000, 1लाख या 10 लाख के गुणकों में भेजे जाते हैं।
- दानकर्ता बांड खरीद सकता है, और बाद में एक राजनीतिक दल को दान कर सकता है। जो 75 दिनों के भीतर अपने सत्यापित खाते के माध्यम से इसे भुना सकता है।
- यदि किसी पार्टी ने 15 दिन के भीतर इस राशि का कोई भी भुगतान नहीं किया तो SBI इसे प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर देता है।
- बांड किसी भी भारतीय नागरिक को जनवरी, अप्रैल, जुलाई, अक्टूबर के महीने में 10 दिन की अवधि की खरीद हेतु उपलब्ध हो सकते हैं।
- बांड को एक या अधिक व्यक्ति द्वारा संयुक्त रूप से खरीदा जा सकता है। किंतु बांड में व्यक्ति का नाम नहीं होता।
- इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट मिलता है।
केंद्र सरकार के अनुसार बांड प्रारंभ करने के कारण-
- 2017 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बांड की घोषणा की गई।
- बांड कम्पनियों के लिए चंदे के तरीके के रूप में इसकी शुरुआत की गई थी। अतः नकद चंदे के विकल्प के रूप में यह व्यवस्था लागू की गई थी।
- बांड उसी पार्टी को दिया जाता है जो बीते चुनाव में कम से कम 1% मत प्राप्त करने में सफल रहा हो। तथा जन प्रतिनिधि अधिनियम 1951 के तहत पंजीकृत हो।
- काले धन को रोकने के लिए बांड का लेनदेन चेक या ई भुगतान के तहत किया जाएगा। जिसमें KYC मानकों का अनुसरण किया जाएगा।
चुनावी बांड का विरोध क्यों हो रहा है?
- चुनावी पार्टियों को सभी दानदाताओं का विवरण अनिवार्य रूप से चुनाव आयोग को देना आवश्यक नहीं है। जबकि इससे पूर्व 20000 रुपये से अधिक राशि होने पर दानदाताओं का विवरण देना आवश्यक था। पारदर्शिता के समर्थकों के अनुसार यह परिवर्तन नागरिकों के जानने के अधिकार का उल्लंघन करता है।
- इसके साथ ही केंद्र सरकार कभी भी दानदाताओं का विवरण SBI से ले सकती है।
- करदाताओं के कर से ही इन बांड की छपाई, बिक्री व खरीद की सुविधा प्रदान की जाती है और केवल करदाता को ही सम्पूर्ण विवरण से अज्ञात रखा गया है।
चुनावी बांड की लोकप्रियता-
- बांड मे दानदानाओं का नाम न छपने के कारण यह दान का एकमात्र लोकप्रिय स्रोत बन गए हैं।
- 2018-19 में एडीआर विश्लेषण के अनुसार राष्ट्रीय दलों व क्षेत्रीय दलों की आय का अधिकतम भाग चुनावी बांड से आया था।
चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
- चुनावी पारदर्शिता के लिए कार्य करने वाली गैर लाभकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग व सरकार से जवाब मांगा था।
चुनाव आयोग का रुख
- मई 2017 में चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले फंड के स्रोत का खुलासा करने पर आपत्ति जता गई गई थी।
- मई 2017 में चुनाव आयोग द्वारा कानून मंत्रालय को लिखे पत्र के अनुसार सरकार से संशोधन पर विचार करने के लिए कहा गया था। चुनाव आयोग के अनुसार चुनावी बांड की रिपोर्ट न होने पर राजनीतिक दलों की योगदान रिपोर्ट के अनुसार यह पता नहीं लगाया जा सकता कि राजनीतिक दल ने कुछ लिया है कि नहीं।
रिजर्व बैंक का रुख-
- 2017 में भारतीय रिजर्व बैंक ने इन बांडों के लिए एक विशिष्ट पहचान व अतिरिक्त सुरक्षा फीचर का प्रस्ताव दिया था।
- रिजर्व बैंक ने चुनावी बांडों की वर्तमान अवस्था के लिए आपत्ति जताई थी।
स्रोत
http://bit.ly/3EiOGt2
http://bit.ly/3TkqD1h
http://bit.ly/3A07Phb
No Comments