18 Nov जलवायु परिवर्तन का वैश्विक स्वास्थ्य पर प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का वैश्विक स्वास्थ्य पर प्रभाव
संदर्भ- हाल ही में लैंसेट ने मानव स्वास्थ्य पर अपनी एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य के बीच संबंध पर जांच की गई है। द 2022 लैंसेट काउंटडाउन ऑन हैल्थ एंड क्लाइेट चेंज :हैल्थ एट द मर्सी ऑफ फॉसिल फ्यूल की रिपोर्ट के अनुसार जीवाश्म ईंधन पर दुनियाँ की निर्भरता से खाद्य असुरक्षा, गर्मी से संबंधित बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।
द 2022 लैंसेट काउंटडाउन ऑन हैल्थ एंड क्लाइमेट चेंज :हैल्थ एट द मर्सी ऑफ फॉसिल फ्यूल की रिपोर्ट
रिपोर्ट के अनुसार तेजी से बढ़ते तापमान ने लोगों को विशेष रूप से 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को अधिक प्रभावित किया है। 1986-2005 की तुलना में 2021 में हीटवेव ने 3.7 बिलियन अधिक लोगों को प्रभावित किया है।
संक्रामक रोगों में वृद्धि का कारक-
बढ़ती हुई जलवायु, संक्रामक रोगों के प्रसार को प्रभावित कर रही है। महामारियों के साथ सह महामारियों को जन्म दे रही है। जैसे विब्रियो रोग जनकों के संचरण के लिए तटीय जल अनुकूल होता है। जिसके कारण अमेरिका व अफ्रीका के ऊँचे स्थान वाले क्षेत्रों में मलेरिया संचरण के लिए उपयुक्त महीनों में वृद्धि हुई है।
WHO के अनुसार 2030-2050 के बीच जलवायु परिवर्तन से कुपोषण, डायरिया, मलेरिया व गर्मी के तनाव से प्रति वर्ष 250000 लोगों की जान जाने का खतरा बढ़ गया है।
खाद्य सुरक्षा
जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान से फसलों की वृद्धि दर पर प्रभाव डालते हैं जिससे फसल की उत्पादकता प्रभावित होती है।
इसके साथ ही मौसम की परिवर्तित घटनाएं खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित करती हैं, इसका प्रभाव खाद्य उपलब्धता, पहुँच व स्थिरता पर पड़ता है।
2019 की तुलना में 2020 में 161 मिलियन अधिक लोगों को भूख का व्यापकता से सामना करना पड़ा है जिसका एक मुख्य कारण कोरोना महामारी भी रही है। वर्तमान में यह स्थिति रूस व यूक्रेन में हो रहे युद्ध के कारण वहां के लोगों के लिए अधिक भयावह हो गई है।
जीवाश्म ईंधन
रूस यूक्रेन में चल रहे युद्ध के बाद दुनियाँ भर के देश रूस के तेल व गैस के स्थान पर नए ऊर्जा के स्रोत तलाश रहे हैं। कुछ देश पारंपरिक तापीय ऊर्जा की ओर रुख कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार कोयले की बढ़ती मांग के कारण देश मांग की आपूर्ति के लिए निम्न कार्बन उत्सर्जन संकल्प को भुला सकते हैं। जो वातावरण में कार्बन की मात्रा बढा़ सकता है परिणामस्वरूप त्वरित रूप से वैश्विक तापमान बढ़ सकता है। जो विश्व के लिए संकटपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
चुनौतियाँ
- जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए अपर्याप्त योजना।
- राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक रूप से सम्पूर्ण विश्व का परस्पर सहयोग की आवश्यकता।
संभावनाएं-
- वैश्विक स्तर पर ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों में आए संकट के समटय देश ऐसी आर्थिक नीतियाँ बना सकते हां जो स्वास्थ्य केंद्रित हों।
- जलवायु परिवर्तन के खतरों का पता लगाने के साथ जलवायु के अनुकूल आदतों के निर्माण के लिए समाज को अग्रसर कर सकते हैं। जैसे न्यूनतम दूरी जैसे 5 किमी तय करने के लिए कार्बन युक्त साधनों का प्रयोग न कर पैदल या साइकल का प्रयोग किया जा सकता है जो स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद करेगा।
- जीवाश्म ईंधन से होने वाले पीएम 2.5 के उत्सर्जन के प्रभावों जैसे बिमारियों व मौतों को रोका जा सकता है। जिससे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा।
- रिपोर्ट इंगित करती है कि पौंधों पर आधारित भोजन पर निर्भरता बढ़ा सकते हैं, और रैड मीट व दूध प्रसंस्करण उत्पादों में उत्सर्जित ऊर्जा को कम किया जा सकेगा। और आहार संबंधई रोगों से होने वाले रोगों को कम किया जा सकेगा जैसे जूनोटिक रोग।
भारत के प्रयास- भारत वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की दर में कमी लाने के लिए किए गए प्रयासों जैसे IPCC, UNFCCC, पेरिस समझौता, COP सम्मेलनों में अपनी सम्पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है, वहीं निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयास कर रहा है।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना- इस कार्ययोजना की शुरुआत 2008 में हुई इस मिशन में जनता के प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों, सरकारी तंत्र की विभिन्न शाखाओं के प्रतिनिधियों, उद्योगों से जुड़े उद्यमियों को जलवायु परिवर्तन के खतरे से अवगत कराना है। इस कार्ययोजना में 8 मिशन हैं-
- राष्ट्रीय सौर मिशन
- विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन
- सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
- जल मिशन
- हिमालयी पारिस्थितिकीय तंत्र हेतु जल मिशन
- हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
- सतत कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
- जलवायु परिवर्तन पर रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन- यह सौर ऊर्जा के सहयोग पर आधारित देशों का एक संगठन है, जिसका शुभारंभ भारत व फ्रांस द्वारा 30 नवंबर 2015 को पेरिस में किया गया था। इनका उद्देश्य 1000 गीगा वाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करना।
COP 26 में भारत की पंचामृत योजना– भारत ने ग्लासगो सम्मेलन में पंचामृत योजना के निम्नलिखित लक्ष्य रखे।
- भारत अपनी गैर जीवाश्म ऊर्जा को 2030 तक 500 गीगावाट कर देगा।
- 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकता के 50 % को भारत अक्षय ऊर्जा से पूरा कर देगा।
- 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 1 अरब टन तक की कमी करेगा।
- कार्बन तीव्रता की दर को 45% तक कम करेगा।
- और 2070 तक भारत शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल कर लेगा।
प्रस्तावित LiFE कार्ययोजना– भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 जून 2022 यानि विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर पर्यावरण के लिए जीवनशैली LiFE का उद्घाटन किया। यह योजना एक वैश्विक नैटवर्क (प्रो प्लैनेट पिपुल्स) बनाकर एक स्वस्थ व टिकाऊ जीवन जीने के लिए प्रेरित करेगी। इस आंदोलन के जरिए वर्तमान में प्रचलित उपयोग व निपटान की गैर जिम्मेदार अर्थव्यवस्था को परिपत्र अर्थव्यवस्था में बदलने की कोशिश की जाएगी।
स्रोत
https://news.un.org/hi/story/2022/06/1058112
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