12 Apr जोजिला सुरंग परियोजना
जोजिला सुरंग परियोजना
संदर्भ – हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने जोजिला सुरंग का निरीक्षण किया। जो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख व जम्मू कश्मीर के बीच परिवहन संपर्क स्थापित करेगी। जोजिला सुरंग परियोजना की शुरुआत केंद्रीय सरकार द्वारा 2018 में की गई थी।
जोजिला सुरंग परियोजना का महत्व
- इस सुरंग के माध्यम से मार्ग की दूरी व समय दोनों कम हो जाएंगे। वर्तमान में, जोजिला दर्रे को पार करने में औसत यात्रा समय तीन घंटे से अधिक लगता है, जो इस सुरंग के पूरा होने के बाद 20 मिनट तक कम होने की उम्मीद है।
- भारी बर्फबारी के कारण जोजिला दर्रा लगभग 6-7 महीने तक बंद रहता था। किंतु सुरंग के माध्यम से बारह मास इस मार्ग में आवागमन सुचारु रूप से चल सकेगा।
- नियंत्रण रेखा के समीप होने के कारण भारतीय सैनिक गतिविधियों के लिए सहायक होगा।
जोजिला दर्रा
- जोजिला दर्रा, हिमालय का एक उच्च पर्वतीय दर्रा है।(दर्रा पर्वतों अथवा पहाड़ों के मध्य आवागमन के लिए प्राकृतिक मार्ग को कहा जाता है) इसकी समुद्र तल से ऊँचाई 3528 मीटर है।
- जो लद्दाख के कारगिल जिले में स्थित है। जो कश्मीर को लेह से जोड़ता है। पूर्व की ओर जाने पर यह सिंधु घाटी से जुड़ जाता है।
- कारगिल जिले में स्थित यह दर्रा, सोनमार्ग, द्रास व सुरु घाटी के मध्य स्थित है।
- जोजिला दर्रा पाकिस्तान व चीन का प्रवेश द्वार भी है।
- इस दर्रे को जीरो प्वाइंट भी कहा जाता है।
जीरो प्वाइंट-
- जोजिला दर्रे का केंद्रीय स्थल जिसे जीरो प्वाइंट भी कहा जाता है।
- जीरो प्वाइंट में कोई भी प्राकृतिक आवास नहीं है, अर्थात यहाँ कोई भी वनस्पति नहीं है।
- यहां का तापमान अत्यंत कम है जो यहाँ किसी भी वनस्पति के लिए अनुकूल नहीं है।
- यह क्षेत्र पर्यटकों के लिए कुछ समय के लिए आबाद रहता है।
जोजिला सुरंग-
- जोजिला सुरंग परियोजना एशिया व भारत की सबसे लंबी द्विदिशीय सुरंग परियोजना है। जो 14.15 किलोमीटर की होगी।
- परियोजना सोनमर्ग व द्रास के बीच NH-1 मार्ग के बीच निर्मित की जा रही है।
- एक 7.57 मीटर ऊंची घोड़े की नाल के आकार की सिंगल-ट्यूब, टू-लेन सुरंग, जो कश्मीर में गांदरबल जिले और लद्दाख के कारगिल जिले के द्रास शहर के बीच जोजिला दर्रे के नीचे से गुजरेगी,
- इस परियोजना में एक स्मार्ट टनल (SCADA) सिस्टम शामिल है, जिसका निर्माण नई ऑस्ट्रियन टनलिंग पद्धति का उपयोग करके किया गया है।
सुरंग के संभावित नकारात्मक प्रभाव-
सीमा सुरक्षा – इस प्रकार की पहाड़ियाँ सीमा के तौर पर देश की रक्षक होती हैं किंतु आवागमन सुलभ होने पर यह देश के सैनिकों के साथ घसपैठियों के लिए भी देश में घुसपैठ करने का आसान मार्ग हो जाएगा। जो सुरक्षा की दृष्टि से एक चुनौती हो सकता है।
आपदा- पर्वतीय क्षेत्रों में सुरंग निर्माण, अवश्य ही स्थानीय निवासियों को सुगम बनाने में मदद कर सकता है। किंतु इसके प्रभाव विनाशकारी भी हो सकते हैं। कश्मीर क्षेत्र बहुत सुंदर होने के साथ, कई आपदाओं के लिए संवेदनशील है। ऐसे क्षेत्रों में आवागमन को सुगम बनाने का अर्थ जनआबादी को वहां रहने के लिए प्रेरित करेगा। जो भारत की बढ़ती जनसंख्या के लिए एक उपलब्धि होगी। किंतु संवेदनशील क्षेत्रों में आबादी की अधिकता बड़ी आपदा को जन्म देती है। जैसे-
- भूस्खलन- इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग ने लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया जारी किया जिसके अनुसार 1998-2022 तक भारत के उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर, मिजोरम, केरल, त्रिपुरा, नागालैंड और अरुणांचल प्रदेश में सर्वाधिक भूकंप की घटनाएं दर्ज की गई हैं।
- भूकंप- कश्मीर में 2005 में आया भूकंप सर्वथा विनाशकारी भूकंप था जिसमें लगभग 80000 लोगों की जान चली गई थी। कश्मीर क्षेत्र, टैक्टोनिक प्लेट व भारतीय प्लेट के समीप है जिनके टकराव से इस क्षेत्र में भूकंप की संभावना बनी रहती है। जो आबादी के बसने पर एक नई समस्या का कारण बन सकता है।
- भूधंसाव- हाल ही में उत्तराखण्ड के जोशीमठ में भूधंसाव का मामला सामने आया, स्थानीय निवासियों ने भूधंसाव का कारण जलपरियोजना हेतु बन रही सुरंगों के निर्माण में हो रहे ब्लास्ट को माना। हालांकि इस पर विवाद बना हुआ है। किंतु ऊंची पहाड़ियों की नींव में निर्माण प्रकृति में हस्तक्षेप ही है।
आगे की राह
- सुरक्षा की दृष्टि से सुरंगों की आधुनिक उपकरणों के साथ कड़ी निगरानी की आवश्यकता होगी।
- प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए पहले से दिशानिर्देश तय किए जा सकते हैं।
- प्राकृतिक रूप से संवेदनशील मास में आवागमन को सीमित किया जाना चाहिए। संवेदनशील मास- जैसे वर्षा ऋतु, शरद ऋतु में केदारनाथ जैसी बड़ी आपदा कारक हो सकती है।
स्रोत
yojna daily current affairs hindi med 12 April 2023
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