09 Jan जोशीमठ भूधंसाव
जोशीमठ भूधंसाव
संदर्भ- हाल ही में जोशीमठ के गांव में 570 से अधिक घरों में एक साथ दरारें देखने में आई हैं, जोशीमठ निवासी इसका दोष विकास परियोजनाओं को दे रहे हैं। और सरकार से मांग कर रहे हैं कि सरकार, जोशीमठ के निवासियों की नष्ट हो चुकी सम्पत्ति का मुआवजा दे और उन्हें विस्थापित करे।
जोशीमठ निवासी विष्णुगाड़ पीपलकोट जलविद्युत परियोजना का घोर विरोध कर रहे हैं तथा एनटीपीसी को इसका जिम्मेदार मान रहे हैं।
जोशीमठ-
- जोशीमठ, भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित है।
- जोशीमठ(ज्योतिर्मठ) की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी।
- शंकराचार्य ने इसी स्थान पर शंकरभाष्य की रचना की थी इसलिए यह क्षेत्र ज्योतिविद्या का केंद्र माना जाता है।
- जोशीमठ, समुद्र तल से लगभग 6000 मीटर की ऊँचाई पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है।
- यह क्षेत्र त्रिशूल पर्वत(7250 मीटर), बद्रीपर्वत(7100मीटर) और कामेत पर्वतों(7750 मीटर) से घिरा है।
- इसे बद्रीनाथ धाम, फूलों की घाटी,औली व हेमकुंड साहिब का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।
भू धंसाव-
- भूमिगत सामग्री के संचलन के कारण ये परिघटना हो सकती है। जिसमें जमीन की एक सतह धंस जाती है।
- भूमि धंसाव बहुत बड़े क्षेत्रों जैसे राज्यों, जिलों, शहरों में हो सकता है।
- यह प्राकृतिक या मानव निर्मित किसी भी प्रकार की हो सकती है।
जोशीमठ भू धंसाव के संभावित कारण
ढीली चट्टानें- नवीन पर्वत श्रृंखला युक्त क्षेत्र होने के कारण यहां की चट्टानें कमजोर व पतदार होती हैं। जिसमें बहुत तीव्र गति से क्षरित होने की संभावना होती है।
अव्यवस्थित निर्माण- अव्यवस्थित निर्माण, वर्तमान में एख वैश्विक समस्या है, इसके कारण प्राकृतिक घटनाएं विनाश जैसे बाढ़, भूस्खलन का रूप ले लेती हैं। इसी प्रकार जोशीमठ का भूधंसाव भी अव्यवस्थित निर्माण के कारण विनाशकारी हो सकता है।
मृदा परत का क्षरण- इसमें मृदा की उपजाऊ परत प्राकृतिक बल के कारण क्षरित हो जाती है। इसका प्रमुख कारण वनों की कटाई है।
मानव निर्मित गतिविधियाँ- मानव की आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्रकृति का दोहन किया जाता रहा है। जिसके कारण मानव को विनाशकारी आपदाओं का सामना करना पड़ता है जैसे केदारनाथ आपदा। इसी प्रकार जोशीमठ के समीप विष्णुगाड़ पीपलकोट जलविद्युत परियोजना को भूधंसाव के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।
विष्णुगाड़ पीपलकोट जलविद्युत परियोजना–
- यह जल विद्युत परियोजना(4*111मेगावाट) उत्तराखण्ड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी पर स्थित है।
- इसे रन ऑफ द रिवर योजना के रूप में किया जाना परिकल्पित है। जिसमें 65 मीटर ऊँचे बांध का निर्माण किया जाना है।
- इसके जलाशय की सघन जल भण्डारण क्षमता 3.63 मिलियन घन मीटर होगी जिसमें से 2.47 मिलियन घन मीटर लाइव स्टोरेज होगा।
- निर्माण अवधि के दौरान 10.50 व्यास की डाइवर्जन सुरंग 725 क्यूमेक्स पानी की निकासी को डायवर्ट करेगी।
- वाटर कंडक्टर सिस्टम में 3 इंटेक सुरंग, 3 भूमिगत डिसिल्टिंग चैम्बर, एक हेडरेस सुरंग, सर्ज शाफ्ट, 4 पेनस्टाकों में विभाजित एक प्रेशर शाफ्ट शामिल हैं।
भू धंसाव न्यूनीकरण
- जलनिकास व्यवस्था की स्थिति को बेहतर बनाना।
- निचली ढलानों पर आवासों के निर्माण पर रोक लगाई जानी चाहिए,।
- वर्तमान में निचली ढलानों में स्थित आबादी को स्थानांतरित किया जा सकता है।
स्रोत
No Comments