24 Apr ट्रोएका के द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों का विकास
ट्रोएका के द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों का विकास
संदर्भ- हाल ही में भारत जापान बौद्धिक संवाद, एशियन कंफ्लूएंस द्वारा त्रिपुरा के अगरतला में आयोजित किया गया। इसका लक्ष्य दक्षिण पूर्व एशिया को दक्षिण एशिया से जोड़ना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ट्रोएका एक साथ कई योजनाओं को लागू कर रहे हैं जिसके द्वारा भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का विकास भी शामिल है।
ट्रोएका में जापान, भारत और बांग्लादेश शामिल हैं।
ट्रोएका परियोजनाएं
मातरबाड़ी डीप सी पोर्ट- यह बांग्लादेश के कॉक्स बाजार जिले में गहरे समुद्र का निर्माणाधीन बंदरगाह है। इसके निर्माण के लिए जापान, बांग्लादेश की मदद कर रहा है। इसका संचालन 2027 से किया जाना है। बंदरगाह किसी भी देश में व्यापार को गति देने के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, यह व्यापार राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय हो सकता है। जो भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में व्यापार को ति देकर वहां की आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकता है।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी – एक्ट ईस्ट पॉलिसी ने इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग, ट्रेड, स्किल्स, अर्बन रिन्यूअल, स्मार्ट सिटीज, मेक इन इंडिया और अन्य पहलों पर हमारे घरेलू एजेंडे में भारत-आसियान सहयोग पर जोर दिया है।
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की स्थिति- भारत देश विविधता से पूर्ण क्षेत्र है जो भौगोलिक दृष्टि से भिन्न होने के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक दृष्टि से भी विविधता से परिपूर्ण है।
भौगोलिक स्थिति-
- भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से तात्पर्य भारत के सबसे पूर्वी राज्यों से है, जिसमें भारत के 8 राज्य, अरुणांचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैण्ड, त्रिपुरा, सिक्किम शामिल हैं।
- इस क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 262179 वर्ग किलोमीटर है।
- यह क्षेत्र भारत के विशाल भूभाग से बंगाल के सिलीगुड़ी क्षेत्र के निकट एक गलियारे जुड़ा हुआ है। जिसे चिकन नैक भी कहा जाता है।
- यह भूभाग भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, नेपाल व चीन के साथ सीमा सांझा करता है।
- यहां का लगभग 70% क्षेत्र पहाड़ी है, और 30% क्षेत्र समतल है।
- पहाड़ी क्षेत्र में यहां की केवल 30% आबादी और समतल क्षेत्र में 70 % आबादी निवास करती है।
- ब्रह्मपुत्र व बराक सहित क्षेत्र में 70 से अधिक नदियां बहती हैं, इनके कारण लाए निक्षेप व बाढ़, भूस्खलन जैसी घटनाओं के कारण कृषि योग्य भूमि में लगातार कमी आ रही है जिसका प्रबाव यहां की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ रहा है।
आर्थिक स्थिति-
पूर्वोत्तर भारत की आर्थिक स्थिति, स्वतंत्रता के समय देश के अन्य राज्यों के समान थी। किंतु स्वतंत्रता के बाद देश में आई परिवर्तनकारी घटनाओं जैसे- देश का विभाजन, चीनी अतिक्रमण, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम आदि ने पूर्वोत्तर राज्य की अर्थव्यवस्था को समान धारा में आने का अवसर नहीं दिया। हासिए में रह चुके इस वर्ग की आजीविका निम्नलिखित पर निर्भर करती है।
- कृषि, बागवानी, फूलों की खेती।
- पशुपालन ( गाय, बकरी, भैंस, सुअर, कुक्कुट, बत्तख, मत्स्य), यह दुग्ध उद्योग के साथ खाद्य व मांस प्रसंस्करण से संबंधित है।
- रेशम उत्पादन व हथकरघा उद्योग।
- चाय, मशरूम व शहद जैसे जैविक उत्पादन।
- पॉलिमर लिमिटेड से प्लास्टिक के सामान का उत्पादन।
- पर्यटन।
पूर्वोत्तर राज्यों का बुनियादी सुविधाओं के अभाव में भारत के अन्य क्षेत्रों के साथ आवागमन अत्यंत कम होता है जिस कारण इसकी आर्थिक स्थिति को गति नहीं मिल पाती है। अतः बुनियादी क्षेत्र में सुधार हेतु ट्रोएका देश साथ आए हैं जिनमें जापान भारत व बांग्लादेश की मदद कर रहा है।
भारत सरकार की बुनियादी योजनाएं
- ट्रांस अरुणांचल मार्ग परियोजना
- पूर्वोत्तर में एयरपोर्ट परियोजना(12 एयरपोर्ट का निर्माण)
- पूर्वोत्तर रेलवे जोन
- सौभाग्य योजना
- एशिया का सबसे बड़ा पुल, जो अरुणांचल प्रदेश व असम को जोड़ता है।
आर्थिक प्रोत्साहन- सभी औद्योगिक इकाइयों को निम्नलिखित सहायता देकर प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
- केंद्रीय़ पूँजी निवेश प्रोत्साहन
- केंद्रीय व्यापक निवेश प्रोत्साहन
- वस्तु व सेवा कर अदायगी
- आयकर अदायगी
- परिवहन प्रोत्साहन
- रोजगार प्रोत्साहन
- कौशल विकास को प्रोत्साहन
चुनौतियां
- सामाजिक सांस्कृतिक अलगाव
- बाढ़ व भूस्खलन जैसी प्राकृतिक समस्याएं
- बुनियादी ढांचे की कमी आदि।
- भारतीय कंपनियों द्वारा पूर्वोत्तर में निवेश न किया जाना।
निष्कर्ष
पूर्वोत्तर विशाल प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। नेपाल, भूटान, चीन, बांग्लादेश और म्यांमार के साथ सीमा साझा करने वाला इसका रणनीतिक स्थान है। मूल्य श्रृंखला और विनिर्माण उत्पादों के निर्माण में कृषि-प्रसंस्करण, मानव निर्मित फाइबर, हस्तशिल्प, दोपहिया वाहनों की असेंबली और शायद मोबाइल फोन और फार्मास्यूटिकल्स जैसे विविध क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए।
दक्षिण एशिया के एक बड़े हिस्से को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने के लक्ष्य के लिए कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है। यह नेतृत्व बांग्लादेश, भारत और जापान (BIJ) के ट्रोएका से आ सकता है। एक BIJ फोरम को पहले विदेश मंत्रियों के स्तर पर लॉन्च किया जाना चाहिए, एक ऐसा कदम जिसका पूर्वोत्तर में स्वागत किया जाएगा।
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