तटीयविनिमय क्षेत्र

तटीयविनिमय क्षेत्र

संदर्भ- चेन्नई में डीएमके संरक्षक एम करुणानिधि के अपतटीय स्मारक बनाने की योजना का विपक्षीय दलों व मछवारों ने पर्यावरणीय सुरक्षा व आजीविका के नुकसान के आधार पर विरोध किया है।

मुथमिद अरिगनार डॉ. कलाइगनर पेन स्मारक तटीय विनिमय क्षेत्र IA, IV, IVA के अंतर्गत आता है। और इसके लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तटीय विनिमय अधिसूचना की धारा 4(2)(J) के तहत मंजूरी की आवश्यकता है।

कलम स्मारक- चेन्नई के डीएमके के संरक्षक एम करुणानिधि की स्मडति में बनाए गए स्मारक को एक कलम स्मारक के रूप में निर्मित किया जा रहा है जिसे उनकी कलम के प्रति रुचि के विषयों व उपलब्धियों का विशेष ध्यान रखा गया है। करुणानिधि का इयाल (कविता साहित्य), इसाई (संगीत), नादागम( रंगमंच) में विशेष योगदान रहा है।   

स्मारक का डिजाइन वीणा पर आधारित है जो पारंपरिक कर्नाटक संगीत का प्रतिनिधित्व करता है। पानी पर स्मारक का निर्माण का विचार कटमरैन से लिया गया है क्योंकि करुणा निधि ने इससे स्वयं की तुलना की थी। स्मारक 42 मीटर लंबा 2.60 व्यास का होगा। तथा एक 650 मीटर जालीदार पुल द्वारा इसमें पहुँचा जा सकेगा। 

तटीय क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए आवश्यक अनुमति

  • तमिलनाडु प्रदूषण और नियंत्रण बोर्ड द्वारा किए गए एक पर्यावरण प्रभाव आँकलन में कहा गया है कि प्रस्तावित स्मारक के आसपास कोई संवेदनशील समुद्री वनस्पतियाँ और जीव प्रजातियाँ जैसे प्रवाल भित्तियाँ समुद्री घास या ओलिव रिडले कछुए नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय समुद्री जल, प्रदूषण रहित है। 
  • तटीय विनिमय अधिसूचना।

विवाद-  प्रस्तावित क्षेत्र तटीय विनिमय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। और तटीय विनिमय क्षेत्र अधिसूचना 1991, तटीय क्षेत्र में गतिविधियों को नियंत्रित करता है।

तटीय विनिमय क्षेत्र- भारत के तटीय क्षेत्र आपदा के रूप में अति संवेदन शील हैं इसलिए समुद्र तट से 500 मीटर के क्षेत्र को तटीय विनिमय क्षेत्र माना गया है। भारत में तटों का विनिमयीकरण पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण व वन मंत्रालय द्वारा 1991 में अधिसूचित किया गया था। इसके द्वारा तटों में होने वाली पर्यावरण की दृष्टि से असुरक्षित गतिविधि को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। तटीय विनिमय क्षेत्रों को विशेष जोन में केंद्र द्वारा निर्दिष्ट किया गया जोन का प्रबंधन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।

तटीय क्षेत्रों को चार भागों में बांटा गया है-

जोन – 1 यह उच्च या निम्न ज्वार लाइन(टाइड लाइन) का पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है। जो तट के पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखता है। 

जोन -2  इसमें तटों के समीप तक शहरीकरण हो चुका है।

जोन – 3 इसमें शहरी व ग्रामीण क्षेत्र आ सकते हैं जिन्हें तटों में कृषि से संबंधित कुछ खास गतिविधियों को करने की अनुमति दी गई है।

जोन – 4  इस क्षेत्र में मछली पालन की अनुमति दी गई है। इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के ठोस कचरा डालना प्रतिबंधित है।

शैलेश नायक कमिटी की रिपोर्ट 2011

  • रिपोर्ट के अनुसार 2011 के तटीय विनिमयीकरण के कारण विकास कार्यों जैसे झुग्गी पुनर्निर्माण, जीर्ण संरचनाएं आदि को प्रभावित होना पड़ा।
  • ग्रामीण क्षेत्र के बफर जोन को 50 मीटर तक सीमित किया जाए। और 50 मीटर की दूरी पर CRZ जोन में निर्माण व अन्य गतिविधिय़ाँ शुरु की जा सकती हैं।
  • व्यापक सार्वजनिक हित पर आधारित बुनियादी ढांचे के निर्माण की अनुमति।
  • जोन 2 के तटों में 500 मीटर के अंदर उच्च इमारतों के निर्माण किया जा सकता है।
  • नो डेवलपमेंट जोन यानि टाइड लाइन के 200 मीटर के अंतर्गत अस्थायी पर्यटन सुविधाओं के लिए खोला जा सके।
  • NDZ के क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग होने पर यह स्ठायी पर्यटन की सिफारिश करता है।

CRZ 2018 की रिपोर्ट

  • शहरी तटीय क्षेत्रों में फ्लोर स्पेस इंडैक्स को अनुमति।
  • ग्रमीण तटीय क्षेत्रों में विकास के अधिक अवसर।
  • NDZ जोन को 20 मीटर में सीमित किया गया है।
  • पारिस्थितिकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्रों को विशेष महत्व दिया जाए।
  • CRZ क्षेत्रों को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए विशेष दिशा निर्देश जाी किए जाएं।
  • रक्षा व रणनीतिक परियोजनाओं के लिए सरकार के विशेष अधिकार व छूट। 

तटीय क्षेत्रों के विनिमयन का महत्व

तटीय क्षेत्रों में आने वाली आपदाओं से 2050 तक 15 से 38 सेमी. तक की वृद्धि के साथ तटीय क्षेत्रों के जलमग्न होने की संभावना है। 

  • भारत के 70 तटीय व 66 मुख्य भूमि के जिलों के साथ 4 द्विपीय जलवायु में रहने वाले समुदाय के जीवन व आजीविका के लिए तटीय विनियमन महत्वपूर्ण है। यहां भारत की आबादी का लगभग 14% जनसंख्या निवास करती है।
  • तटीय क्षेत्र समुद्री व स्थलीय क्षेत्र का संक्रमण क्षेत्र है जिसमें विभिन्न प्रकार की प्रवाल भित्तियाँ व मैंग्रोव पारिस्थितिकी पाई जाती है। तट और प्रवाल भित्तियाँ सुरक्षा की दृष्टि से परस्पर संबंधित हैं।
  • तटीय क्षेत्रों की अधिकतर आबादी यहाँ की पारिस्थितिकी पर निर्भर होती है जैसे मछवारे।
  • 2018 में CRZ के नियमों में सतत विकास को प्रमुखता दी गई है, जिससे रोजगार सृजन अवश्य होगा किंतु विकास कार्यों से तटीय भूमि पर संकट उत्पन्न हो सकता है।

स्रोत

इण्डियन एक्सप्रैस

Yojna IAS daily current affairs hindi med 4th feb

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