01 Jun धर्म के आधार पर आरक्षण बनाम कोलकाता उच्च न्यायालय का आरक्षण को रद्द करने का फैसला
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 – के ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था, धर्म के आधार पर आरक्षण, सार्वजनिक रोज़गार और संबंधित निर्णयों में आरक्षण ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ आरक्षण, इंद्रा साहनी निर्णय, अनुच्छेद 16(4), अनुच्छेद 16(4A), अनुच्छेद 16(4B), अनुच्छेद 15(4) ’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ धर्म के आधार पर आरक्षण बनाम कोलकाता उच्च न्यायालय का आरक्षण को रद्द करने का फैसला ’ से संबंधित है।)
ख़बरों में क्यों ?
- हाल ही में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत मुसलमानों सहित कई समुदायों को प्रदान किए गए आरक्षण को रद्द कर दिया है।
- यह निर्णय 2012 के अधिनियम के तहत दिए गए आरक्षण को अवैध ठहराता है, जिसमें 77 समुदायों को ओबीसी की सूची में शामिल किया गया था1।
- न्यायालय ने पाया कि आरक्षण प्रदान करने के लिए धर्म को “एकमात्र” आधार बनाया गया था, जो कि संविधान के अनुच्छेद 16 और पूर्व में न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों के तहत निषिद्ध है।
- इसके अलावा, न्यायालय ने इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह स्थापित किया गया था कि आरक्षण के लिए ओबीसी श्रेणियों की पहचान धार्मिक संबद्धता के आधार पर नहीं हो सकती है।
- इस निर्णय का परिणाम यह है कि 2010 के बाद जिन व्यक्तियों को ओबीसी के तहत सूचीबद्ध किया गया था, उनके प्रमाणपत्र अब मान्य नहीं होंगे।
- 2010 से पहले ओबीसी के तौर पर वर्गीकृत व्यक्तियों के प्रमाणपत्र मान्य रहेंगे। इस निर्णय से राज्य में लगभग पांच लाख व्यक्तियों पर प्रभाव पड़ने का अनुमान है।
भारत के अन्य राज्यों में धर्म-आधारित आरक्षण की वर्तमान स्थिति :
भारत में विभिन्न राज्यों द्वारा धर्म-आधारित आरक्षण की वर्तमान स्थिति निम्नलिखित है –
- केरल : यह राज्य अपने 30% ओबीसी कोटे में से 8% मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षित करता है।
- तमिलनाडु और बिहार : इन राज्यों में ओबीसी कोटे के अंतर्गत मुस्लिम जाति समूहों को भी स्थान दिया जाता है।
- कर्नाटक : यहाँ 32% ओबीसी कोटे में से मुसलमानों के लिए 4% उप-कोटा निर्धारित है।
- आंध्र प्रदेश : इस राज्य में पिछड़े मुस्लिम समुदाय के लिए 5% आरक्षण कोटा प्रदान किया जाता है।
भारत में आरक्षण से संबंधित विभिन्न कानूनी प्रावधान :
संविधान के अनुसार आरक्षण के प्रावधान :
- अनुच्छेद 16(4) : यह अनुच्छेद राज्यों को यह अधिकार देता है कि वे “पिछड़े वर्ग के नागरिकों” के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकें। इसके तहत, राज्य यह तय कर सकते हैं कि कौन से समुदाय पिछड़े वर्ग में आते हैं।
- अनुच्छेद 15 : शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण के लिए, किसी समूह को अपने सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा। सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के लिए अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत, समूह के पिछड़ेपन और उनके सार्वजनिक रोजगार में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का भी आकलन किया जाना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय :
- चंपकम दोरायराजन बनाम मद्रास राज्य (1951) : इस मामले में शैक्षिक संस्थानों में जाति के आधार पर आरक्षण को अस्वीकार किया गया, जिससे संविधान के प्रथम संशोधन की दिशा निर्धारित हुई।
- इंद्रा साहनी एवं अन्य बनाम भारत संघ (1992) : इस निर्णय में आरक्षण की सीमाओं को परिभाषित किया गया, जिसमें क्रीमी लेयर का बहिष्कार, 50% कोटा सीमा, और पदोन्नति में आरक्षण नहीं (एससी/एसटी को छोड़कर) शामिल हैं।
- एम. नागराज बनाम भारत संघ (2006) : इस मामले में अनुच्छेद 16(4A) को बरकरार रखा गया, जो एससी/एसटी के लिए पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देता है, और इसके लिए तीन शर्तें स्थापित की गईं: सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व, और दक्षता को बनाए रखना।
- जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता (2018) : इस निर्णय में SC और ST के लिए पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति दी गई, और राज्य को इसके लिए मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है।
- जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022) : इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखा, जो EWS के लिए सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में 10% आरक्षण प्रदान करता है।
भारत में धर्म – आधारित आरक्षण के पक्ष में तर्क :
भारत में धर्म-आधारित आरक्षण के समर्थन में प्रस्तुत किए जाने वाले तर्क इस प्रकार हैं –
- सामाजिक-आर्थिक विषमता : सच्चर समिति की रिपोर्ट बताती है कि भारत में मुस्लिम समुदाय शिक्षा, रोजगार, और आर्थिक स्थिति के मामले में अन्य समुदायों की तुलना में पिछड़ा हुआ है। आरक्षण इन क्षेत्रों में असमानताओं को कम करने का एक माध्यम हो सकता है।
- संविधान की भावना और संवैधानिक आदेश : भारतीय संविधान सभी धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच समानता और सामाजिक न्याय की भावना को बढ़ावा देता है, और इसमें सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए सकारात्मक कदम उठाने का प्रावधान है। भारतीय संविधान धार्मिक और सांस्कृतिक संप्रदाय के बावजूद, सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए सकारात्मक कार्रवाई का प्रावधान करता है।
- प्रतिनिधित्व की गारंटी : आरक्षण से उन धार्मिक समूहों को रोजगार, शिक्षा, और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उचित प्रतिनिधित्व मिल सकता है, जिनका अभी तक पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना : भारत में आरक्षण रोजगार, शिक्षा, और अन्य क्षेत्रों में कम प्रतिनिधित्व वाले धार्मिक समूहों के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकता है।
भारत में धर्म-आधारित आरक्षण के विरुद्ध में दिए जाने वाला तर्क :
भारत में धर्म-आधारित आरक्षण के विरुद्ध में प्रस्तुत किए जाने वाले तर्क इस प्रकार हैं –
- संविधान की मूल भावना के विपरीत : भारतीय संविधान की आत्मा धर्मनिरपेक्षता में बसती है, जो सभी धर्मों के प्रति राज्य की निष्पक्षता की बात करती है। धर्म के आधार पर आरक्षण से इस निष्पक्षता को चुनौती मिलती है। अतः धर्म के आधार पर दिए जाने वाला आरक्षण भारत के संविधान के इस आदर्श के खिलाफ है।
- सामाजिक समरसता में बाधा और राष्ट्रीय सौहार्द्र को खतरा : भारत में धर्म-आधारित आरक्षण से विभिन्न समुदायों के बीच विभाजन और असमानता बढ़ सकती है, जिससे राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव पड़ सकता है और इससे जिससे राष्ट्रीय एकता और सद्भावना प्रभावित हो सकती है।
- आर्थिक न्याय की दिशा में कदम : आरक्षण को आर्थिक स्थिति के आधार पर दिया जाना चाहिए, ताकि वास्तविक आर्थिक जरूरतमंदों को सहायता मिल सके, उनके धर्म की परवाह किए बिना।
- प्रशासनिक दुविधाएँ एवं संघर्ष : भारत में धर्म के आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण के कार्यान्वयन से प्रशासनिक जटिलताएँ और दुरुपयोग की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं, जिससे इस प्रणाली की कार्यक्षमता पर प्रश्न उठ सकते हैं। इन तर्कों का उद्देश्य धर्म-आधारित आरक्षण के विषय पर एक विचारशील चर्चा को प्रोत्साहित करना है। यह एक जटिल मुद्दा है जिसमें विभिन्न विचारधाराएँ और मान्यताएँ शामिल होती हैं।
समाधान / आगे की राह :
भारत में धर्म-आधारित आरक्षण के मुद्दे के संबंध में समाधान या आगे की राह निम्नलिखित है –
- सामाजिक-आर्थिक आधार पर आरक्षण : आरक्षण को धर्म की जगह सामाजिक और आर्थिक स्थिति के अनुसार तय किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो कि सहायता समाज के सबसे कमजोर वर्गों तक पहुंचे, भले ही उनका धर्म कोई भी हो या चाहे उनका धार्मिक पृष्ठभूमि कुछ भी क्यों न हो।
- शिक्षा के जरिए सशक्तिकरण : शैक्षिक संस्थानों को मजबूत करने और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के माध्यम से पिछड़े समुदायों को सशक्त बनाना, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।
- समावेशी नीतियों को अपनाना : धर्म के आधार पर आरक्षण के बिना, शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं में समावेशी नीतियों को अपनाना, जो पिछड़े धार्मिक समुदायों की विशेष जरूरतों को पूरा करें।
- सभी समुदायों के साथ संवाद करना और सर्वसम्मति बनाना : सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के समाधान के लिए सभी समुदायों के साथ संवाद करना और सर्वसम्मति बनाना, साथ ही सुनिश्चित करना कि किसी भी उपाय को संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों के अनुरूप लागू किया जाए।
- इन विचारों के माध्यम से भारत में आरक्षण के मुद्दे पर एक न्यायसंगत और समानता आधारित दृष्टिकोण की ओर अग्रसर होने का प्रयास किया जा सकता है, जो सभी समुदायों के लिए न्याय और समान अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में काम करता है।
स्त्रोत – इंडियन एक्सप्रेस एवं पीआईबी।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में विभिन्न राज्यों द्वारा दिए जाने वाला धर्म – आधारित आरक्षण के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- केरल में 30% ओबीसी कोटे में से 8% मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षित है।
- कर्नाटक में 32% ओबीसी कोटे में मुसलमानों के लिए 4% उप-कोटा निर्धारित है।
- बिहार में मुस्लिम जाति समूहों को अत्यंत पिछड़ा वर्ग के रूप में मान्यता प्रदान किया गया है।
- सच्चर समिति की रिपोर्ट भारत में मुस्लिम समुदाय के शिक्षा, रोजगार और आर्थिक पिछड़ेपन से संबंधित है।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1, 2 और 3
B. केवल 2, 3 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. इनमें से सभी ।
उत्तर – D
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में धर्म के आधार पर प्रदान किए जाने वाले आरक्षण की संवैधानिक वैधता एवं इससे सामाजिक और राजनीतिक रूप से पड़ने वाले प्रभावों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि यह भारत में धर्मनिरपेक्षता, समानता एवं सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को किस तरह प्रभावित करता है? ( UPSC CSE – 2021 शब्द सीमा – 250 अंक – 10 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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