19 Jan धार्मिक अल्पसंख्यक
धार्मिक अल्पसंख्यक
संदर्भ- हाल ही में धार्मिक अल्पसंख्यकों की पहचान को लेकर बीजेपी शासित राज्यों ने अपने विचार रखे, जिसमें सभी राज्यों के मतों में काफी अंतर है।
- इनमें गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश ने राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने और उन्हें अधिसूचित करने की वर्तमान प्रणाली का समर्थन किया है।
- असम और उत्तराखण्ड ने अल्पसंख्यकों की पहचान को लेकर राज्य स्तर पर मत प्रस्तुत किया है। जो टीएमए पाई केस 2002 के निर्णय पर आधारित है।
धार्मिक अल्पसंख्यक- किसी देश या प्रांत में यदि किसी धर्म को मानने वालों की संख्या कम होती है और उनके साथ राजनीतिक भेदभाव होने की संभावना होती है। तब क्षेत्र में उस वर्ग को धार्मिक अल्पसंख्यक कहा जाता है।
भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की अवधारणा स्वतंत्रता के बाद ही विकसित हुई। स्वतंत्रता से पूर्व शासक वर्ग जैसे मुगल, अंग्रेज संख्या में कम थे किंतु वह शासक वर्ग से थे अतः उनके हितों के शोषण की कोई संभावना ही नहीं थी। स्वतंत्रता के बाद, भारत में वर्षों से बस रहे विदेशी मूल के नागरिक जो भिन्न भिन्न धर्मों से संबंधित थे के हितों के हनन होने की संभावना थी अतः संविधान में उनके हितों के लिए विशेष प्रावधान किए गए।
भारत में मुसलमान, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध और पारसी को 1993 में और जैन समुदाय को 2014 में केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक घोषित किया था। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक, मुसलमान (16.01%), ईसाई (2.15%), सिक्ख (2.03%), बौद्ध(0.81%), जैन(0.39%), पारसी सहित अन्य (0.41%) निवास करते हैं।
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक- भारत के संविधान में अल्पसंख्यक की कोई परिभाषा नहीं दी है किंतु अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण के लिए कुछ प्रावधान निर्धारित किए गए हैं।
अनुच्छेद 29 में अल्पसंख्यक वर्ग के हितों का संरक्षण दिया गया है।
- इसकेअनुसार किसी क्षेत्र को उसकी भाषा, संस्कृति व लिपि को बनाए रखने का अधिकार होगा।
- किसी भी नागरिक को उसके धर्म, जाति मूलवंश के आधार पर राज्यपोषित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 30 में “अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के अधिकार” दिया गया है। इसके अनुसार शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य धर्म,जाति या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
टीएमए पाई केस 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छैद 30 के प्रयोजनों के लिए भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति निर्धारित करने की इकाई राज्य होगी।
अनुच्छेद 350(क) के अनुसार विशिष्ट भाषी समुदाय के बच्चों के लिए उनकी मातृ भाषा में शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
भाषायी अल्पसंख्यक – देश के आधार पर भाषायी अल्पसंख्यक, वे समुदाय होंगे जो हिंदी के अतिरिक्त अन्य बाषा बोलते हैं, जबकि प्रादेशिक स्तर पर प्रदेश में बहुसंख्यकों द्वरा बोली जाने वाली भाषा के अतिरिक्त अन्य भाषी लोगों को भाषायी अल्पसंख्यक कहा जा सकता है। क्योंकि टीएमए पाई केस 2002 के परिणाम के अनुसार राज्य को ही इकाई के रूप में माना जाता है।
अनुच्छेद 350(ख) में भाषायी अल्पसंख्यक वर्ग के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति का उपबंध है। यह अधिकारी भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए उपबंधित सभी रक्षोपाय से संबंधित मुद्दों की जाँच करेगा व आवश्यक मुद्दों को राष्ट्रपति को प्रतिवेदित करेगा, और राष्ट्रपति सभी ऐसे प्रतिवेदित मुद्दों को संसद के प्रत्येक सदन में रखवाएगा।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992
- भारत में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने के लिए अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया।
- यह आयोग एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष व 5 सदस्यों से मिलकर बना है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा योग्य, विख्यात व सत्यनिष्ठ व्यक्तियों की सिफारिश की जाएगी। अध्यक्ष सहित 5 सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय से होंगे।
आयोग के कार्य-
- संघ व राज्यों के अधीन अल्पसंख्यक समुदाय की प्रगति का मूल्यांकन करना।
- केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए रक्षोपाय के प्रबावी कार्यान्वय के लिए सिफारिश करना।
- अल्पसंख्यकों व उनके रक्षोपाय व अधिकारों से वंचित करने की शिकयतों की जाँच पड़ाताल करना।
- अल्पसंख्यकों के विरुद्ध किसी विभेद के कारण उत्पन्न समस्या की जाँच करना व उसे दूर करने के लिए उपाय करना।
- अल्पसंख्यकों की उन्नति के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को सुझाव देना।
स्रोत
https://indiankanoon.org/doc/512761/
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