25 Jan नरसंहार का मुद्दा और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।
सामान्य अध्ययन – अंतर्राष्ट्रीय संबंध , अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, नरसंहार, मानवाधिकार, भारत का नरसंहार के मुद्दे पर रूख ।
खबरों में क्यों ?
- 11 जनवरी 2024 को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों ने दक्षिण अफ्रीका द्वारा गाजा युद्ध में इज़राइल पर नरसंहार का आरोप लगाते हुए दायर एक मामले में दो दिनों की कानूनी बहस शुरू की है। इज़राइल ने नरसंहार के इस आरोप को नकार दिया है और इसे बेबुनियाद आरोप बताया है।
- दक्षिण अफ़्रीका के वकीलों ने 11 जनवरी 2024 की सुनवाई में न्यायाधीशों से इज़राइल पर बाध्यकारी प्रारंभिक आदेश देने के लिए कहा, जिसमें गाजा में इज़राइल के सैन्य अभियान को तत्काल रोकना भी शामिल था। कार्यवाही से पहले, सैकड़ों इजरायल समर्थक प्रदर्शनकारियों ने हमास द्वारा अभी भी बंधक बनाए गए लोगों का जिक्र करते हुए “उन्हें घर लाओ” के बैनर के साथ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों के हाथों में इजरायली और डच झंडे थे। अदालत के बाहर, कुछ अन्य लोग भी विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और दक्षिण अफ्रीका के समर्थन में फिलिस्तीनी झंडा लहरा रहे थे।
- यह विवाद नरसंहार के बाद बनी एक यहूदी राज्य के रूप में इज़राइल की राष्ट्रीय पहचान पर आघात करता है। इसमें दक्षिण अफ्रीका की पहचान भी शामिल है। इसकी शासक पार्टी, अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस, ने लंबे समय से गाजा और वेस्ट बैंक में इजरायल की नीतियों की तुलना श्वेत अल्पसंख्यक शासन के रंगभेदी शासन के तहत अपने इतिहास से की है, जिसने समाप्त होने से पहले अधिकांश अश्वेतों को “होमलैंड” तक सीमित कर दिया था।
- इज़राइल ने 7 अक्टूबर, 2023 को हमास द्वारा किए गए हमलों के बाद शुरू किए गए अपने सैन्य अभियान का बचाव करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में एक कानूनी टीम भेजी है। दक्षिण अफ़्रीका ने तुरंत इस मामले को वर्तमान में जारी इज़राइल – हमास युद्ध के सीमित दायरे से परे इसे और विस्तारित करने की मांग की है। दक्षिण अफ्रीका के न्याय मंत्री रोनाल्ड लामोला ने कहा- “फिलिस्तीन और इज़राइल में हिंसा और विनाश 7 अक्टूबर को शुरू नहीं हुआ। फिलिस्तीनियों ने पिछले 76 वर्षों से व्यवस्थित उत्पीड़न और हिंसा का अनुभव किया है।”
- दक्षिण अफ़्रीका के प्रतिनिधिमंडल के सह-नेता वुसिमुज़ी मैडोनसेला ने कहा कि – “शुरुआत में दक्षिण अफ़्रीका स्वीकार करता है कि इज़राइल राज्य द्वारा नरसंहार कार्य और चूक अनिवार्य रूप से 1948 के बाद से फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ किए गए अवैध कृत्यों की निरंतरता का हिस्सा हैं।” जबसे इजराइल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की थी।
- इज़रायली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने 10 जनवरी 2024 की रात को अपने देश के कार्यों का बचाव करते हुए एक वीडियो बयान जारी किया। उन्होंने कहा, “इजरायल का गाजा पर स्थायी रूप से कब्जा करने या उसकी नागरिक आबादी को विस्थापित करने का कोई इरादा नहीं है। इज़राइल फ़िलिस्तीनी आबादी से नहीं, बल्कि हमास आतंकवादियों से लड़ रहा है और हम अंतरराष्ट्रीय कानून के पूर्ण अनुपालन में ऐसा कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि- “ इज़रायली सेना नागरिक हताहतों की संख्या को कम करने की पूरी कोशिश कर रही है, जबकि हमास फ़िलिस्तीनी नागरिकों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल करके उन्हें अधिकतम करने की पूरी कोशिश कर रहा है।”
- गाजा में रहने वाले फ़िलिस्तीनियों के लिए भोजन, पानी, दवा और काम करने योग्य बाथरूम ढूँढना एक दैनिक संघर्ष बन गया है। 5 जनवरी को, संयुक्त राष्ट्र के मानवतावादी प्रमुख ने गाजा को “निर्जन” कहा और कहा, “लोग अब तक दर्ज किए गए उच्चतम स्तर की खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं (और) अकाल निकट है।” इज़राइल ने हमेशा अपना ध्यान 7 अक्टूबर के हमलों पर केंद्रित किया है, जब हमास के लड़ाकों ने इज़राइल में कई समुदायों पर हमला किया था और लगभग 1,200 लोगों को मार डाला था, जिनमें मुख्य रूप से नागरिक थे। उन्होंने लगभग 250 अन्य लोगों का अपहरण कर लिया, जिनमें से लगभग आधे को रिहा कर दिया गया है।
- अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने 9 जनवरी को तेल अवीव की यात्रा के दौरान इस मामले को “निराधार” कहकर खारिज कर दिया।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, जो विभिन्न राष्ट्रों के बीच विवादों पर निर्णय देता है, ने कभी भी किसी देश को नरसंहार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया है। इसने सन 2007 में फैसला सुनाया कि – “जुलाई 1995 में बोस्नियाई सर्ब बलों द्वारा सेरेब्रेनिका के बोस्नियाई एन्क्लेव में 8,000 से अधिक मुस्लिम पुरुषों और लड़कों के नरसंहार में सर्बिया ने नरसंहार को रोकने के दायित्व का उल्लंघन किया।”
- हेग में स्थित अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय, युद्ध अपराधों, मानवता के खिलाफ अपराधों और नरसंहार के लिए व्यक्तियों पर मुकदमा चलाता है।
- यह मामला नरसंहार सम्मेलन के इर्द-गिर्द घूमता है जो 1948 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तैयार किया गया था और जिस नरसंहार में छह मिलियन यहूदियों की हत्या हुई थी। इज़राइल और दक्षिण अफ्रीका दोनों इस नरसंहार सम्मेलन के हस्ताक्षरकर्ता देश हैं। दक्षिण अफ्रीका का कहना है कि – “वह चाहता है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय नरसंहार कन्वेंशन के उल्लंघन के लिए इज़राइल को ज़िम्मेदार ठहराए और उन उल्लंघनों के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत इसे पूरी तरह से जवाबदेह बनाए।”
- अंतरराष्ट्रीय न्याय निदेशक समूह के एसोसिएट बाल्कीस जर्राह ने कहा – “दक्षिण अफ्रीका का नरसंहार मामला आगे की पीड़ा को कम करने की उम्मीद में गाजा में इज़राइल के आचरण की विश्वसनीय जांच करने के लिए दुनिया की सर्वोच्च अदालत में एक कानूनी प्रक्रिया को खोलता है।”
- फरवरी में जब वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम में इजरायली नीतियों की वैधता पर एक गैर-बाध्यकारी सलाहकार राय के लिए संयुक्त राष्ट्र के अनुरोध पर सुनवाई शुरू हुई तो इजरायल फिर से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के कठघरे में आ गया है।
नरसंहार सम्मेलन (कन्वेंशन) की पृष्ठभूमि और भूमिका :
- संपूर्ण विश्व के मानवों/ मनुष्यों के जीवन जीने और उनके मौलिक अधिकारों के लिए पहली बार संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा 9 दिसंबर 1948 ई. को पहली मानवाधिकार संधि के रूप में अपनाई गई संधि को नरसंहार सम्मेलन के नाम से जाना जाता है।
- इस नरसंहार सम्मेलन ने पहली बार नरसंहार के अपराध को संहिताबद्ध कर नरसंहार के अपराध की रोकथाम और सजा पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक कानून बनाया।
- इस नरसंहार सम्मेलन के अनुसार – “वैश्विक स्तर पर किसी भी देश या समाज के किसी भी धार्मिक , जातीय , नस्ल , रंग या भाषाई आधार पर किए जाने वाला मनुष्यों पर किए जाने वाला अत्याचार या नरसंहार एक अपराध है जो युद्ध के समय हो या वैश्विक शांति के समय दोनों में से कभी भी और कहीं भी हो सकता है।”
- इसने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वैश्विक स्तर पर मनुष्यों पर हुए अत्याचारों को ‘ फिर कभी नहीं (Never again) ‘ दोहराने का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की एकजुटता और प्रतिबद्धता को बताता है।
- इस नरसंहार सम्मेलन में नरसंहार के अपराध के संदर्भ में तय की गई परिभाषा के अनुसार इसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर व्यापक रूप से अपनाया गया है, जिसमें 1998 के अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) के रोम क़ानून भी शामिल हैं।
- भारत इस सम्मेलन का प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता देश है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक कानूनों को विकसित करने के लिए और उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देश के लिए बाध्यकारी बनाने के लिए यह राज्यों / राष्ट्रों को नरसंहार के अपराध को रोकने और उसे दंडित करने के लिए उपाय करने का दायित्व स्थापित करने का प्रावधान भी सुनिश्चित करता है।
- इसके संविधान के अनुच्छेद IV के अनुसार – यह राज्यों / राष्ट्रों को नरसंहार के विरुद्ध प्रासंगिक कानून बनाना और अपराधियों को दंडित करना शामिल है “चाहे वे संवैधानिक रूप से जिम्मेदार शासक हों या सार्वजनिक अधिकारी हों अथवा कोई निजी व्यक्ति ही क्यों न हों। “
- यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी राज्यों / राष्ट्रों के लिए अनिवार्य और बाध्यकारी है, भले ही उस राज्य या राष्ट्र ने नरसंहार सम्मेलन की पुष्टि की हो या नहीं की हो।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का परिचय :
स्थापना : संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के द्वारा सन 1945 के जून महीने में इसकी स्थापना हुई थी, लेकिन इसने अप्रैल 1946 से अपना कार्य करना प्रारंभ किया था।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) संयुक्त राष्ट्र (यूएन) का एक प्रमुख न्यायिक अंग है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ही संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र ऐसा अंग है, जो न्यूयॉर्क शहर में स्थित नहीं है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय(आईसीजे) अपने पूर्ववर्ती संस्था अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थायी न्यायालय (पीसीआईजे) का उत्तराधिकारी है, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा अपने वर्तमान अस्तित्व में आया है।
- नीदरलैंड में स्थित हेग नामक जगह के पीस पैलेस में पीसीआईजे ने अपनी पहली और उदघाटन बैठक सन 1922 ई. के फरवरी महीने में आयोजित की थी।
- पीसीआईजे और राष्ट्र संघ की जगह अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय(आईसीजे) और संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ।
- सन 1946 ई. के अप्रैल महीने में पीसीआईजे को औपचारिक रूप से भंग कर आईसीजे की स्थापना की गई और इसके अंतिम अध्यक्ष, अल साल्वाडोर के न्यायाधीश जोस गुस्तावो ग्युरेरो, को ही आईसीजे का पहला अध्यक्ष बनाया गया ।
- आधिकारिक भाषाएँ: अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय(आईसीजे) की आधिकारिक भाषाएँ केवल अंग्रेजी और फ्रेंच है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय(आईसीजे) के न्यायाधीशों की चयन – प्रक्रिया :
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में कुल न्यायाधीशों की संख्या 15 होती है , जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा चुने जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय(आईसीजे) के न्यायाधीशों का कार्यकाल 9 सालों के लिए होता है। ये न्यायाधीश अलग-अलग, लेकिन एक साथ मतदान करते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय(आईसीजे) में न्यायाधीश बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को दोनों निकायों में बहुमत प्राप्त करना अनिवार्य होता है। जब तक न्यायाधीश का अंतिम रूप से चयन नहीं हो जाता , तब तक कई बार मतदान की प्रक्रिया चलती रहती है। न्यायाधीश के अंतिम रूप से चयन पर आम सहमति बनने के उपरांत ही मतदान प्रक्रिया को समाप्त किया जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव तीन साल के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया द्वारा होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के एक तिहाई न्यायाधीशों का चुनाव प्रत्येक तीन वर्ष में UNGA के वार्षिक बैठक के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय न्यूयॉर्क में होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के न्यायाधीश पुनः चुनाव लड़ने और चुनाव की मतदान प्रक्रिया द्वारा पुनः चयनित होने के योग्य / पात्र होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) का क्षेत्राधिकार :
- संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य स्वचालित रूप से आईसीजे क़ानून के पक्षकार हैं, लेकिन यह स्वचालित रूप से उनसे जुड़े विवादों पर आईसीजे को अधिकार क्षेत्र नहीं देता है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) को क्षेत्राधिकार तभी मिलता है जब दोनों देश या दोनों ही पक्ष इस पर सहमति देते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) का निर्णय अंतिम और तकनीकी रूप से बाध्यकारी होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के पास अपने आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने का कोई तरीका नहीं है, और इसका अधिकार देशों द्वारा उनका पालन करने की इच्छा से प्राप्त होता है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) की भूमिका :
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) की भूमिका अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, राज्यों / राष्ट्रों द्वारा प्रस्तुत किए गए किसी भी कानूनी विवादों का निपटारा करना और संयुक्त राष्ट्र द्वारा अधिकृत अंगों और विशेष एजेंसियों द्वारा इससे संबंधित कानूनी प्रश्नों पर सलाहकारी राय देना शामिल है।
- इसके तहत सबसे पहली बार मई 1947 में यूरोपीय मुख्य भूमि पर ग्रीक द्वीप कोर्फू और अल्बानिया के बीच आयोनियन सागर की संकीर्ण जलडमरूमध्य से संबंधित विवाद के खिलाफ यूके द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जिसका समाधान अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत किया ।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय प्रशासन:
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के प्रशासनिक अंग, रजिस्ट्री द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और भारत का परस्पर संबंध :
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और भारत का सह – संबंध बहुत ही पुराना है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के स्थापना / गठन के कुछ वर्ष बाद ही भारत के संविधान सभा के सलाहकार रहे सर बेनेगल राव सन 1952 – 53 तक अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के सदस्य न्यायाधीश थे।
- भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नागेन्द्र सिंह भी वर्ष 1973 – 88 तक अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के सदस्य रहे थे।
- सन 1989 – 91 तक भारत के उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर एस पाठक भी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में सदस्य न्यायाधीश के रूप में अपनी सेवा प्रदान की थी।
- भारत के उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दलवीर भंडारी भी वर्ष 2012 से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में सदस्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के साथ भारत का ऐतिहासिक संबंध :
भारत और पाकिस्तान के बीच रहे चार विवादों को मिलाकर भारत वर्तमान समय तक कुल छह बार अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में एक पक्षकार के रूप में उपस्थित रहा है जिनमें से प्रमुख विवाद निम्नलिखित है : –
- पुर्तगाल और भारत के बीच भारतीय क्षेत्र पर मार्ग तय करने का अधिकार का विवाद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पहुंचा था, जिसका निपटारा सन 1960 ई. में करके इस विवाद को समाप्त कर लिया गया है ।
- भारत और पाकिस्तान के बीच आईसीएओ परिषद के क्षेत्राधिकार से संबंधित अपील अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में किया गया था, जिसका निपटारा सन 1972 ई. में कर लिया गया।
- भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्वी पाकिस्तान में हुए युद्ध के फलस्वरूप पाकिस्तानी युद्धबंदियों का मुकदमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गया था, जिसका निपटारा सन 1973 ई. में हो गया था।
- भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 10 अगस्त 1999 की हवाई घटना भी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गया था, जिसका समापन या निपटारा भी सन 2000 ई. में कर लिया गया।
- भारत और मार्शल आइलैंड्स के बीच परमाणु हथियारों की होड़ को रोकने और परमाणु निरस्त्रीकरण से संबंधित बातचीत का विवाद भी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गया था, जिसका समापन सन 2016 ई. में कर दिया गया।
- भारत और पाकिस्तान के बीच भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव मामला भी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गया था, जिसका समापन सन 2019 ई. में कर दिया गया।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q. 1. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और नरसंहार सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय नीदरलैंड के हेग में स्थित है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय(आईसीजे) की आधिकारिक भाषाएँ केवल अंग्रेजी , स्पेनिश , जर्मन और फ्रेंच है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या 25 होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयके अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव छह साल के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया द्वारा होता है।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
(A). केवल 1 और 4
(B ) केवल 2 और 3
(C ) केवल 3
(D) केवल 1
उत्तर – (D)
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. नरसंहार सम्मेलन की पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि बदलते भू राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उभरती आर्थिक शक्ति के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की वर्तमान प्रासंगिकता क्या है ?
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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