नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा और चीन की आक्रामकता

नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा और चीन की आक्रामकता

संदर्भ क्या है?

  • हाल ही में अमेरिकी संसद के निम्न सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने ताइवान की यात्रा की जिसे चीन ने अमेरिका द्वारा ‘एक चीन नीति’ का उल्लंघन माना । चीन ने इस यात्रा से पहले सैन्य कार्यवाही की धमकी भी दी । इस दौरे से चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ता नजर आ रहा है।
  • अमेरिका ने ताइवान के साथ प्रतिबद्धता दिखाने का प्रयास किया जबकि चीन इसे अपना क्षेत्र बताता है। चीन अमेरिकी हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी के इस दौरे को क्षेत्र की शांति और स्थिरता के लिए खतरा बता रहा है।

ताइवान की भौगोलिक, राजनैतिक और ऐतिहासिक  स्थिति

  • ताइवान, ताइवान जलसंधि द्वारा चीन से अलग एक द्वीप है। यह पूर्वी एशिया का एक द्वीप है, जिसमें आसपास के कई द्वीप शामिल हैं। ताइवान का आधिकारिक नाम चीन गणराज्य (रिपब्लिक ऑफ चाइना) है। इसका मुख्यालय ताइवान द्वीप पर है और इसकी राजधानी ताइपे है।
  • ताइवानी अर्थव्यवस्था दुनियाभर के लिए अत्यधिक महत्व रखती है। वहां फोन, लैपटॉप, गेमिंग से लेकर बड़े-बड़े इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनते हैं। यहाँ गाड़ियों व उपकरणों में लगने वाले सेमीकंडक्टरों का उत्पादन होता है। ताइवान की TSMC कंपनी विश्व की सबसे बड़ी सेमिकंडक्टर निर्माता कंपनी है ।
  • ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) विश्व के आधे से अधिक बाजार को नियंत्रित करती है, और एपल, क्वालकॉम और एनवीडिया प्रमुख खरीदार हैं। ताइवान 786 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करता है। इसमें से अकेले चिप उद्योग द्वारा 100 अरब डॉलर का योगदान दिया जाता है। यही कारण है कि यह छोटा सा देश सबके आकर्षण का केंद्र है। अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक महत्व के कारण, ताइवान की अमेरिका से निकटता चीन को चुभती है।
  • ताइवान आधिकारिक तौर पर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) से 1949 से मुख्य भूमि चीन, से स्वतंत्र रूप से शासित है।

  • चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान स्वयं को एक स्वतंत्र देश मानता है।
  • आज का चीन शुरू में इसी नाम से जाना जाता था। 1644 में चीन पर चिंग राजवंश का शासन था, जिसे क्विंग राजवंश भी कहा जाता है। वर्ष 1911 में, चीन में एक चीनी क्रांति हुई, जिसमें क्विंग राजवंश को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। इसके बाद सत्ता पर नियंत्रण के लिए राष्ट्रवादी क़ियाओमिन्तांग पार्टी या कॉमिंगतांग पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच संघर्ष हुआ। अंततः कॉमिंगतांग पार्टी सरकार बनाने में सक्षम हो गई और चीन को चीन गणराज्य (रिपब्लिक ऑफ चाइना) का आधिकारिक नाम दिया गया। यहीं से दोनों राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष कि शुरुआत  हो गई थी।
  • वर्ष 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी ने एक बार फिर माओत्से तुंग के नेतृत्व में देश की कॉमिंगतांग सरकार के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया था। इस विद्रोह ने गृहयुद्ध का रूप ले लिया। इसमें कॉमिंगतांग पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और उसके बचे लोगों ने ताइवान के हिस्से में शरण ली। इस द्वीप पर कॉमिंगतांग पार्टी के लोगों ने अपनी अलग सरकार बनाई, इसे आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना दिया, जो चीन का नाम हुआ करता था। तब तक चीन की मुख्य भूमि पर कब्जा करने वाली कम्युनिस्ट सरकार ने अपना नाम बदलकर चीन गणराज्य कर लिया था।
  • दोनों पक्षों के लोग चीन और ताइवान को एक मानते हैं और दोनों पक्षों की सरकारें पूरे चीन को राजनीतिक रूप से प्रतिनिधित्व करने का दावा करती हैं।

ताइवान अमेरिका के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ?

  • सामरिक दृष्टि से ताइवान द्वीप अमेरिका के लिए बहुत उपयोगी है। ये सभी द्वीप अमेरिकी विदेश नीति की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
  • यदि चीन ताइवान पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेता है, तो वह पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफल हो सकता है। उसके बाद, गुआम और हवाई द्वीप पर अमेरिकी सैन्य ठिकानों को भी खतरा हो सकता है, इसलिए अमेरिका ताइवान को लेकर पूरी तरह चिंता में है। यही कारण है कि अमेरिका ने ताइवान के साथ अपनी सुरक्षा के लिए समझौता किया है।

अमेरिका का ताइवान के प्रति दृष्टिकोण

अमेरिका में अलग-अलग राष्ट्रपतियों के तहत ताइवान की नीति अलग-अलग रही है।

  • 1979 में, तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध तोड़ दिए। उस समय अमेरिकी कांग्रेस ने ताइवान संबंध अधिनियम पारित किया था। इस कानून ने अनुमति दी कि अमेरिका ताइवान को रक्षा के लिए हथियार बेच सकता है। ताइवान को लेकर अमेरिकी नीति में एक तरह की रणनीतिक अस्पष्टता रही है।
  • वर्ष 1996 में ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच सबसे ज्यादा तनाव देखा गया। दरअसल, ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए चीन ने अपने तरीके से मिसाइल परीक्षण किए। जवाब में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने एक विशाल अमेरिकी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, जिसे वियतनाम युद्ध के बाद एशिया में सबसे बड़ा अमेरिकी सैन्य प्रदर्शन कहा जाता है।
  • अमेरिका ने ताइवान की ओर एक बड़ा युद्धक विमान भेजकर चीन को यह संदेश देने की कोशिश की थी कि अमेरिका ताइवान की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा।
  • 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डव्ल्यू. बुश ने कहा था कि ताइवान को चीन के हमले से बचाने के लिए जो भी जरूरी होगा वह करेंगे।
  • ताइवान और चीन के मामले में अमेरिका सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहता कि हमले की स्थिति में वह क्या करेगा। इससे चीन की परेशानी और बढ़ गई है। चीन इस दुविधा में बना हुआ है कि अगर उसने ताइवान पर हमला किया तो वह कितनी कठोर प्रतिक्रिया दे सकता है।
  • डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ताइवान और अमेरिका के संबंध घनिष्ठ बने । ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान ताइवान की तत्कालीन राष्ट्रपति त्साई इंग वेन के साथ फोन पर बातचीत की। इसे ताइवान को लेकर अमेरिका की नीति में बड़े बदलाव के संकेत के रूप में देखा गया। वर्तमान राष्ट्रपति बाइडेन भी अपने पूर्ववर्ती ट्रंप की तरह ताइवान को संरक्षण दे रहे हैं।

यात्रा के दौरान नैंसी पेलोसी का ताइवान के प्रति दृष्टिकोण

  • पेलोसी ने हाल ही में ताइवान की यात्रा के संदर्भ में कहा कि उनकी यह यात्रा ताइवान के जीवंत लोकतंत्र का समर्थन हेतु अमेरिका की अटूट प्रतिबद्धता का सम्मान करती है और यह अमेरिकी नीति का खंडन नहीं करती है।
  • पेलोसी ने कहा कि अमेरिका को ताइवान के साथ अपनी मित्रता पर गर्व है। संयुक्त राज्य अमेरिका प्रत्येक स्तर पर ताइवान का साथ देगा। वह ताइवान के लोकतंत्र का समर्थन जारी रखेगा। ताइवान के ढाई करोड़ नागरिकों के साथ अमेरिका की एकजुटता आज पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है, क्योंकि दुनिया निरंकुशता और लोकतंत्र के बीच एक विकल्प का सामना कर रही है।
  • पेलोसी का कथन कितना सही है यह तो समय पर अमेरिका के ताइवान की सुरक्षा के कदमों से ही पता चलेगा। यह देखा जाना बाकी है कि क्या अमेरिका अपनी नौसेना को ताइवान जलडमरूमध्य के पार ले जाएगा, यदि संघर्ष बढ़ता है। यूक्रेन के विपरीत, ताइवान के आसपास का समुद्र अमेरिकी नौसेना और वायु सेना के लिए उतना दुर्गम नहीं है।

चीन का ताइवान के प्रति दृष्टिकोण

  • पीआरसी ताइवान द्वीप को स्वतंत्र देश नहीं मानता है और अंततः मुख्य भूमि के साथ ताइवान को “एकीकृत” करने की प्रतिज्ञा करता है। चीन अपनी ‘एक चीन नीति’के प्रति अत्यधिक सवेदनशील है और ताइवान को अपना अभिन्न भाग मानता है।
  • 2016 में ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के चुनाव के बाद से चीन-ताइवान सबंधों में तनाव बढ़ गया है। त्साई ने उस सूत्र को स्वीकार करने से इनकार कर दिया जो उनके पूर्ववर्ती मा यिंग-जेउ ने क्रॉस-स्ट्रेट संबंधों अर्थात चीन-ताइवान संबंधों को बढ़ाने का समर्थन किया था।
  • इस बीच, चीन ने तेजी से आक्रामक कार्रवाई की है, जिसमें द्वीप के पास लड़ाकू विमानों को उड़ाना भी शामिल है। कुछ विश्लेषकों को डर है कि ताइवान पर चीनी हमले की स्थति में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ चीन के युद्ध में फंसने की संभावना है।
  • अमेरिकी हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे से भड़के चीन ने दक्षिण चीन सागर में ‘लाइव फायरिंग’ के नाम से सैन्य अभ्यास शुरू किया है। इस क्षेत्र में ये अब तक का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास है। इसमें कई वॉरशिप, फाइटर जेट, लंबी दूरी की मिसाइलें और लड़ाकू हेलिकॉप्टर प्रयोग किए जा रहे हैं।
  • चीन ने ताइवान से फलों और मछलियों के आयात को कम करके और नेचुरल सैंड के निर्यात को निलंबित करके प्रतिक्रिया दी है।

ताइवान का दृष्टिकोण

  • आधिपत्यवाद और लोकतंत्र के बीच संघर्ष को प्रदर्शित करते हुए, ताइवान द्वीप का का संकल्प अपने उत्कृष्ट रूप में देखा जा सकता है।
  • हम अपने देश की संप्रभुता को मजबूती से बनाए रखेंगे और सुरक्षा रेखा को बनाए रखेंगे। साथ ही, हम लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए दुनिया भर के सभी लोकतंत्रों के साथ सहयोग और एकता के साथ काम करना चाहते हैं।

भारत  का ताइवान के प्रति दृष्टिकोण

  • भारत 1949 से एक चीन की नीति का पालन कर रहा है और वह चीन सरकार के अलावा ताइवान को स्वतंत्र देश या मूल चीन के रूप में मान्यता नहीं देता है।
  • भारत ने ताइवान के साथ केवल व्यापार और सांस्कृतिक संबंध बनाए रखा है।
  • इस बीच, भारत ने 2008 से आधिकारिक बयानों और संयुक्त घोषणाओं में वन चाइना नीति का उल्लेख करना बंद कर दिया है। यह नीति में बदलाव नहीं था बल्कि एक चीन नीति को दोबारा प्रयोग नहीं करने का निर्णय था। वर्ष 2014 में सुषमा स्‍वराज भी चीन के खिलाफ इसी रणनीति पर कायम रहीं। भारत ताजा ताइवान संकट पर भी इसी नीति पर कायम रहकर चीन को प्रत्यक्ष सन्देश दिया है। भारत के विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री ने कोई भी आधिकारिक विचार इस मुद्दे पर नहीं दिया है।
  • दरअसल, चीन ने उस समय अरुणाचल प्रदेश को अपना क्षेत्र बताना शुरू कर दिया था और राज्य के कई क्षेत्रों का नाम बदलना शुरू कर दिया था। इसने अरुणाचल और जम्मू-कश्मीर के भारतीय नागरिकों को स्टेपल वीजा जारी करना शुरू किया था।

वन चाइना पॉलिसी या एक चीन नीति क्या है ?

  • जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1979 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) को मान्यता देने और चीन गणराज्य (आरओसी) को अमान्य करने के लिए कदम बढ़ाया, तो संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार “चीन की एकमात्र कानूनी सरकार” है ।” एकमात्र, जिसका अर्थ है कि पीआरसी एकमात्र चीन है और एक अलग संप्रभु इकाई के रूप में आरओसी या ताइवान पर कोई विचार नहीं किया गया था।
  • वन चाइना पॉलिसी या एक चीन नीति ,चीन की एकता और अखंडता का प्रतीक है। चीन अपने विदेश संबंधों के अंतर्गत यह स्पस्ट करता है कि चीन एक ही है और वह है-‘पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना’। ताइवान,तिब्बत आदि क्षेत्रों को चीन अपना भाग मानता है और किसी को यहाँ यात्रा की अनुमति नहीं देता है और न ही इन क्षेत्रों के साथ अलग से किसी अन्य सरकार के साथ संबंधों की अनुमति देता है।
  • चीन और अमेरिका के संबंधों में यह नीति प्रमुखता से दिखाई देती है। इस नीति के अंतर्गत मुख्य भूमि पर अवस्थित चीन के साथ अमेरिका के औपचारिक संबंध हैं न कि ताइवान के साथ ।

नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा का प्रभाव

  • नैन्सी पेलोसी की ताइवान की यात्रा के बाद चीन ने कहा कि वह एक-चीन नीति का उल्लंघन करने को लेकर अमेरिका और ताइवान के खिलाफ कठोर एवं प्रभावी जवाबी कदम उठाएगा।
  • पेलोसी के ताइवान पहुंचते ही चीन ने घोषणा कर दी कि कि वह ताइवान के चारों ओर युद्धाभ्यास करने जा रहा है। वहीं पेलोसी ने कहा कि उनकी यात्रा का लक्ष्य यह स्पष्ट करना था कि अमेरिका ताइवान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नहीं छोड़ेगा।
  • पेलोसी की इस यात्रा से यह तो तय है कि अमेरिका और ताइवान के साथ चीन के संबंध आने वाले समय में अधिक तनावपूर्ण बनने जा रहे हैं। ऐसे में यहाँ 1995-96 की घटना उल्लेखनीय है, जब ऐसी ही एक यात्रा के कारण चीन और ताइवान में बहुत संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। उस समय चीन ने ताइवान के पर परमाणु हमला करने में सक्षम मिसाइल तक दाग दी थी। यह मिसाइल राजधानी ताइपे के ऊपर से उड़ान भरती हुई पूर्वी तट से 19 मील की दूरी पर गिरी थी। यह मिसाइल हमले के समय परमाणु वॉरहेड से लैस नहीं थी, इसलिए अधिक खतरा नहीं हुआ ।
  • वर्तमान में चीन द्वारा ताइवान के समीप लगातार सैन्य अभ्यास के कारण इस क्षेत्र में तनाव बना हुआ है।

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