15 Mar पुरावशेषों का संरक्षण
पुरावशेषों का संरक्षण
संदर्भ- हाल ही में भारतीय मूल की दूसरी से पहली शताब्दी ईसापूर्व की मूर्तियाँ व चित्र जो न्यूयॉर्क में मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट (मेट) में संरक्षित थी। उन्हें भारत में 73 वर्षीय एक व्यक्ति के पास से बरामद किया गया है। ये मूर्तियाँ हैं-
- चंद्र भगवान की मूर्ति
- कामदेव की आठवी शताब्दी की मूर्ति
- महिसासुरमर्दिनी की पेंटिंग
- राम लक्ष्मण के चित्र
पुरावशेष- पुरावशेष व कलाकृति अधिनियम 1972 के अनुसार “पुरावशेष” को दो श्रेणियों में बांटा गया है-
(क) कम से कम एक सौ वर्षों से विद्यमान,—
- कोई सिक्का, मूर्ति, रंगचित्र, पुरालेख अथवा कला या शिल्पकारी की कोई अन्य कृति;
- किसी भवन या गुफा से निकाली गई कोई वस्तु, पदार्थ या चीज;
- कोई वस्तु, पदार्थ या चीज जो गत युगों के विज्ञान, कला, शिल्प, साहित्य, धर्म, रूढ़ि, नैतिक आचार या राजनीति की दृष्टांतस्वरूप है;
- ऐतिहासिक महत्व की कोई वस्तु, पदार्थ या चीज;
- कोई ऐसी वस्तु, पदार्थ या चीज जिसे केन्द्रीय सरकार ने, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ पुरावशेष घोषित किया है; और
(ख) ऐसी कोई पांडुलिपि, अभिलेख अथवा अन्य दस्तावेज जो वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक अथवा सौन्दर्य की दृष्टि से महत्व की है और जो कम से कम पचहत्तर वर्षों से विद्यमान है।
विदेशों में स्थित भारतीय पुरावशेषों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है-
- स्वतंत्रता से पूर्व भारत से बाहर ले गए पुरावशेष
- स्वतंत्रता के पश्चात मार्च 1976 तक भारत से बाहर ले गए पुरावशेष
- अप्रैल 1976 के बाद भारत से बाहर ले गए पुरावशेष।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास-
यूनेस्को सम्मेलन 1970 – 1970 में यूनेस्को के एक सम्मेलन के बाद संग्रहालयों के लिए विश्व स्तर पर जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है: “किसी वस्तु को प्राप्त करते समय, चाहे खरीद या दान या किसी अन्य तरीके से, संग्रहालयों को वस्तु के इतिहास और उत्पत्ति को सत्यापित करने में उचित परिश्रम करना चाहिए। यदि कोई संग्रहालय किसी वस्तु का अधिग्रहण कर रहा है, तो संग्रहालय को यह सत्यापित करना होगा कि वस्तु को कानूनी रूप से प्राप्त किया गया था, कानूनी रूप से निर्यात किया गया था / या आयात किया गया था।”
यूनेस्को के सम्मेलन के अनुसार पुरावशेषों का अवैध आयात, निर्यात व हस्तानांतरण, मूल देशों की सांस्कृतिक दरिद्रता का एक कारण हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सन 2000 में और संयुक्त राष्ट्र परिषद ने 2015 में इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की।
पुरावशेषों हेतु भारतीय कानून-
- भारत में संघ सूची की मद 67, राज्य सूची की मद- 12 व समवर्ती सूची की मद 40 देश की सांस्कृतिक विरासत से संबंधित है।
- पुरावशेष निर्यात अधिनियम 1947 बिना लाइसेंस के किसी भी पुरावशेष का निर्यात प्रतिबंधित करता है।
- प्राचीन स्मारक व अवशेष अधिनियम 1958 को पुरातात्वीय स्मारक, स्थल व अवशेषों के संरक्षण के लिए यह अधिनियम लागू किया गया।
- 1971 में चंबा सहित देश के कई हिस्सों से महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मूर्तियों के चोरी होने पर संसद में विचार विमर्श हुआ तथा पुरावशेष व कला निधि अधिनियम को अधिनियमित करने के लिए प्रेरित किया।
पुरातात्विक स्थल या पुरावशेषों पर स्वामित्व
- यूनेस्को के अनुसार अनुरोधकर्ता पक्ष पुरावशेषों पर अपने दावे को साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज या साक्ष्य प्रस्तुत करेगा और इसका खर्च अनुरोधकर्ता को ही वहन करना होगा।
- अनुरोधकर्ता के पास पुलिस के पास दर्ज शिकायत होनी अनिवार्य है जो पुरावशेषों के गुम होने के समय दर्ज की गई हो।
- प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा जारी किए गए शोधपत्रों जिसमें अवशेषों के संबंध में कोई जानकारी दी गई हो, को भी साक्ष्य के रूप में वरीयता दी जाती है।
पुरावशेषों की सत्यता की जांच
एएटीए की धारा 14(3) के तहत, “प्रत्येक व्यक्ति जो किसी पुरावशेष का स्वामी है” पंजीकरण अधिकारी के समक्ष पुरावशेषों को पंजीकृत करना अनिवार्य है “और इस तरह के पंजीकरण के टोकन में एक प्रमाण पत्र प्राप्त करेगा।” मार्च 2007 से अब तक 3.52 लाख पुरावशेषों को पंजीकृत किया जा चुका है। जो कुल भारतीय पुरावशेषों का सूक्ष्म अंश मात्र है। पंजीकरण के माध्यम से पुरावशेषों की पहचान करना व उनका संरक्षण करना आसान हो जाएगा।
भारत में पुरावशेष संरक्षण में चुनौतियाँ
- पुरावशेषों के गुम होने पर पुलिस के पास प्राथमिकी दर्ज न कराना।
- पुरावशेषों के स्वामी द्वारा पुरावशेषों का पंजीकरण न कराना।
स्रोत
Yojna IAS Daily current affairs hindi med 15th March 2023
- इण्डियन एक्सप्रैस
- https://en.unesco.org/fighttrafficking/1970
- https://legislative.gov.in/sites/default/files/H197252.pdf
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