फेस रिकग्निशन टेक्नोलाजी

फेस रिकग्निशन टेक्नोलाजी

 

  • नीति आयोग ने एक स्वतंत्र ‘थिंक टैंक’ को ‘चेहरा पहचानने वाली तकनीकी’ का भारत में परीक्षण करने की अनुमति दे दी है|

पृष्ठभूमि:

  • फेस रिकग्निशन टेक्नोलाजी ‘बायोमेट्रिक टेकनोलाजी’ का ही एक भाग है जो किसी व्यक्ति को उसके चेहरे से उसकी पहचान करने में सहायता करता है|
  • इसे बायोमेट्रिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस एप्लीकेशन के रूप में पहचानते हैं, इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति को उसके आँख के रेटिना, नाक, चेहरे के आकार के हिसाब से पहचाना जाता है|
  • इसके प्रयोग से प्रमाणिकता एवं पहचान में सफलता की दर लगभग 75 % है|

उपयोग:

  • किसी फोटो, वीडियों या रियल टाइम में लोगों की पहचान करने के लिए इस तकनीकी का प्रयोग किया जाता है| सरकारी कर्मचारियों द्वारा समय पर ऑफ़िस पहुंचने की निगरानी की जा सकेगी|
  • भारत में प्रति एक लाख नागरिकों पर 144 पुलिसकर्मी हैं। अत: फेस रिकग्निशन प्रणाली यहाँ बल गुणक के रूप में कार्य कर सकती है|
  • इस तकनीक का इस्तेमाल सभी राज्यों की पुलिस करेगी, सीसीटीवी से अपराधियों की पहचान हो सकेगी|अपराध साबित होने की दर में वृद्धि होगी|
  • आंध्र प्रदेश, पंजाब समेत कई राज्यों ने अपराध से निपटने के लिए 2018 में फेस रिकग्निशन सिस्टम को अपनाया था|
  • हाल ही में तेलांगना चुनाव आयोग ने मतदाताओं की पहचान हेतु प्रारम्भिक स्तर पर फेस रिकग्निशन एप के प्रयोग को शुरू किया है|

चुनौती:

  • रिकग्नाइज्ड डाटा में त्रुटि (ऐरर) हो सकती है, क्योंकि इसके प्रयोग से प्रमाणिकता एवं पहचान में सफलता की दर लगभग 75 % है| ऐसे में पुलिस वेरिफिकेशन के समय बेगुनाह लोगों के फंसने की संभावना उत्पन्न हो सकती है|
  • निगरानी राज की स्थापना हो सकती है, राज्य पुलिस और जांच एजेंसियों के माध्यम से नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन कर सकता है|डाटा सुरक्षा की चुनौती उत्पन्न हो सकती है|
  • भारत को विशाल स्तर पर एकत्रित डाटा को संरक्षित करने और उसे साइबर रूप से सुरक्षित बनाने की चुनौती होगी|
  • नागरिकों के भूलने के अधिकार की अवेहलना हो सकती है|

उपरोक्तचुनौतियोंकेकारणयूरोपीयआयोगयूरोपमें5 वर्षों के लिए फेस रिकग्निशन तकनीकी के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाने की योजना बना रहा है|

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