18 Oct बाल विवाह : एक कुप्रथा
बाल विवाह : एक कुप्रथा
संदर्भ- हाल ही में नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलास सत्यार्थी ने बाल विवाह की कुप्रथा को खत्म करने के लिए राजस्थान से बाल विवाह के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया है। जिसमें उन्होंने सभी से सामूहिक कार्यवाही करने की अपील की।
बाल विवाह-
- बाल विवाह में दो अपरिपक्व व अपरिचित लोगों को जबरन जिंदगीभर साथ रहने के लिए विवाह बंधन में बांध दिया जाता है। जिसके नतीजे भयावह होते हैं।
- बाल विवाह एक वैश्विक कुप्रथा है और बालविवाह प्रचलित देशों में भारत दूसरे स्थान पर है।
- विश्व में होने वाले बाल विवाहों में 20% बालविवाह भारत में ही होते हैं।
- यूनिसेफ के अनुसार भारत में प्रत्येक वर्ष, 18 साल से कम उम्र की 15 लाख बेटियों की शादी हो जाती है।
- भारत में 15-19 साल की कुल लड़कियों में 16% शादीशुदा हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व भर में कोविड 19 से परिवर्तित परिस्थितियों के कारण 1 करोड़ से अधिक महिलाएं बाल विवाह के संकट में पहुँच गई हैं।
- केंद्रीय गृह मंत्रालय की जनसांख्यिकी नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर 21 साल से कम उम्र की 29.5% लड़कियों की शादी कर दी जाती है।
- उपरोक्त रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल में 54.9% लड़कियों की शादी 21 साल से कम उम्र में कर दी जाती है। इसी प्रकार झारखण्ड में यह आँकड़ा 54.6% का है।
बाल विवाह के दुष्प्रभाव
- अशिक्षा- बाल विवाह होने पर शिक्षा का स्तर गिर जाता है, बाल विवाह के बाद शिक्षा पूरी होने की संभावना शून्य हो जाती है, जिससे समाज में अशिक्षा का ग्राफ बढ़ जाता है
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं- कम उम्र में विवाह होने पर लड़की को कम उम्र में गर्भावस्था व प्रसव के दौर से गुजरना पड़ता है, इन स्थितियों में उसकी मृत्यु भी हो सकती है
- कुपोषण- कम उम्र में गर्भधारण से उत्पन्न संतान के कुपोषित होने की संभावना होती है। जो बाल मृत्यु दर को बढ़ावा देता है।
भारत में विवाह की आयु-
- 1860 में इण्डियन पीनल कोड के तहत 10 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ विवाह प्रतिबंधित कर दिया गया।
- 1927 में ब्रिटिश सरकार ने एक कानून के माध्यम से लड़की की शादी की न्युनतम आयु 12 वर्ष तय की गई।
- 1929 में शारदा अधिनियम के तहत विवाह के लिए वर व वधू की न्युनतम आयु निश्चित की गई जिसमें लड़के की आयु 18 व लड़की की आयु 14 वर्ष निश्चित की गई।
- शारदा अधिनियम में संशोधन करते हुए 1949 में लड़की की आयु 15 वर्ष की गई, 1978 में पुनः एक सुधार के माध्यम से लड़की की आयु 18 व लड़के की आयु 21 वर्ष निश्चित की गई।
- विशेष विवाह अधिनियम 1954 में भी लड़की व लड़के की आयु क्रमशः 18 व 21 निश्चित की गई है।
- 16 दिसम्बर 2021 को विवाह की आयु 21 वर्ष कर दी गई है।
बाल विवाह पर दण्ड – बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के अनुसार-
- यदि विवाह करने वाला पुरूष वयस्क है अर्थात 18 वर्ष की आयु पूरा कर चुका है तो उसे दो वर्ष का कठोर कारावास या 1 लाख रुपये का जुर्माना या दोनों का दण्ड दिया जा सकता है।
- विवाह संचालक को दो वर्ष का कारावास या 1 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है जब तक वह यह साबित न कर दे कि उसकी जानकारी के अनुसार यह दोनों बालिग थे।
- विवाह करने वाले अवयस्क के भारसाधक और सभी विवाह समर्थकों जो विवाह में शामिल हों के लिए भी दण्ड के प्रावधान हैं। लेकिन अवयस्क वर वधू को दण्ड नहीं दिया जा सकता।
विवाह संबंधी अधिकार-विवाह के बाद महिलाओं को व्यक्तिगत अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है, इसके लिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 पारित किया गया। इसमें पति व पत्नी को सामाजिक अधिकार दिया जाता है।
आगे की राह-
- नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा राजस्थान में जनजागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। सत्यार्थी ने ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के तीन प्रमुख उद्देश्यनिर्धारित किए हैं – कानून का कड़ाई से क्रियान्वयन सुनिश्चित करना; बच्चों और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना और उन्हें 18 साल की उम्र तक मुफ्त शिक्षा देकर उनका सशक्तिकरण सुनिश्चित करना।
- हिंदू रीति रिवाजों में अक्षय तृतीया के विवाह के लिए शुभ माना जाता है। राजस्थान में इस दिन विशाल मात्रा में बाल विवाह किए जाते हैं। इन्हें रोकने के लिए प्रशासन को प्रतिबद्ध रहना होगा। जिसमें प्रशासन सोशल मीडिया के माध्यम से जागरुकता अभियान जारी कर सकता है।
स्रोत
https://www.amarujala.com/madhya-pradesh/akshaya-tritiya-on-may-3-fear-of-child-marriage-in-mass-marriages-sehore-collector-formed-a-team-to-monitor
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