10 Jan बिलकिस बानो को सर्वोच्च न्याय : स्वतंत्रता का अधिकार बनाम कानून का शासन
स्त्रोत्र – द हिन्दू एवं पी आई बी
सामान्य अध्ययन : भारतीय संविधान – ऐतिहासिक आधार, संविधान – संशोधन, संविधान के अनुच्छेद 72 और 161, सीआरपीसी की धारा 432, धारा 433 (A), भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना, विशेष केंद्रीय जांच ब्यूरो न्यायालय, आजीवन कारावास, लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत संघ, गुजरात राज्य सरकार की छूट – नीति।
चर्चा में क्यों ?
- हाल ही में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में 11 दोषियों की रिहाई का फैसला निरस्त कर दिया है । मामले की सुनवाई करते हुएसर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बिलकिस बानो को न्याय पाने के लिए अलग-अलग चरणों में चार बार सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। उन्होंने कहा कि गुजरात सरकार ने दोषियों के साथ मिलकर काम किया और उनके पक्ष में माफी के आदेश पारित करने के साथ ही दोषियों के साथ मिलीभगत करते हुए दोषियों को छूट दी, जो उसका अधिकार क्षेत्र नहीं था। यह भारतीय न्यायिक व्यवस्था के लिए बहुत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। सर्वोच्च न्यायालय ने जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करने और मुकदमे को मुंबई में स्थानांतरित करने के सर्वोच्च न्यायालय के पहले के आदेशों को सही ठहराया। शीर्ष अदालत ने अपनी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को भी निष्प्रभावी कर दिया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने बिलकिस बानो मामले में हत्या और बलात्कार के सभी 11 दोषियों को छूट दिए जाने को ‘असाधारण तरह का अन्याय’ बताया था।
भारत में न्यायालय द्वारा किसी दोषी को सजा दिए जाने के बाद माफ़ी दिए जाने का वर्तमान कानूनी प्रावधान :
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत , राष्ट्रपति और राज्यपालों को अदालतों द्वारा पारित सजा को माफ करने, निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति प्राप्त है।
- भारतीय संविधान के अनुसार जेल राज्य सूची का विषय है, इसलिए राज्य सरकारों के पास दंड प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसी ) की धारा 432 के तहत सजा माफ करने का अधिकार है।
- भारत में सीआरपीसी की धारा 433 (A) छूट की इन शक्तियों पर कुछ प्रतिबंध लगाती है: “जहां किसी व्यक्ति को अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने पर आजीवन कारावास की सजा दी जाती है, जिसके लिए मौत कानून द्वारा प्रदान की गई सजा में से एक है, या जहां एक सजा है। किसी व्यक्ति पर लगाई गई मृत्यु को धारा 433 के तहत आजीवन कारावास में बदल दिया गया हो तो , ऐसे व्यक्ति को जेल से रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि उसे कम से कम चौदह वर्ष कारावास की सजा न दी गई हो।”
- कैदियों को अक्सर प्रमुख नेताओं की जयंती और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर रिहा किया जाता है।
अनियंत्रित विवेक :
- भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि वर्तमान मामला अनियंत्रित विवेक का एक उदाहरण है। इसके अतिरिक्त, ईपुरु सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2006) मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि किसी भी दोषी को न्यायालय द्वारा दी गई सजा में छूट के आदेश की न्यायिक समीक्षा केवल तभी की जाती है, जब वह अपनी वैचारिक शक्ति का वहां उपयोग नहीं करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि – , “यदि कानून का उल्लंघन न्यायिक जांच का विषय नहीं है, तब कानून और कानून की बात खोखले शब्दों की तरह होंगे।”
- भारत में जेल राज्य का विषय है, जिसके लिए हर राज्य के जेल नियम कुछ सुधारात्मक और पुनर्वास से जुड़ी बातों की पहचान करते हैं, जिनका उपयोग कैदी छूट पाने करने के लिए कर सकते हैं।
- छूट में अर्जित दिनों की कुल संख्या अदालत के द्वारा दी गई सजा में से घटा दी जाती है। वहीं, माफी इस तर्क में छुपी है कि आखिरकार जेलों का मतलब सिर्फ बदले की सजा देने का एक तरीका न हो बल्कि पुनर्वास उसकी जगह ले।
- आजीवन कारावास की सजा पाने वाले दोषियों के संदर्भ में भी, छूट के लिए आवेदन करने के लिए दोषियों को अनिवार्य रूप से कम से कम 14 साल जेल में गुजारने होते हैं। इसके बावजूद भी किसी भी तरह के छूट के लिए किया गया कोई भी आवेदन यह गारंटी नहीं देता है, और कोर्ट द्वारा तय की गई सजा के खिलाफ छूट की भरपाई नहीं करता है।
बिलकिस बानो गैंग रेप और हत्या मामले से जुड़े महतवपूर्ण तथ्य :
उच्चतम न्यायालय में रिट याचिकाएँ दायर करना :
- गुजरात राज्य के गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को ट्रेन जलाने की घटना के संदर्भ में 28 फरवरी, 2002 एवं उसके कुछ दिनों बाद तक गुजरात में बड़े पैमाने पर हुए दंगों के दौरान हुए जघन्य अपराधों के दोषी पाए गए 11 दोषियों के परिहार और शीघ्र रिहाई प्रदान करने के संबंध में, 10 अगस्त, 2022 के गुजरात राज्य के आदेशों की आलोचना के क्रम में उच्चतम न्यायालय के समक्ष रिट याचिकाएँ दायर की गईं थी ।
उच्चतम न्यायालय की रिट याचिका में उल्लिखित तथ्य :
- उच्चतम न्यायालय में दायर वह याचिका बिलकिस याकूब रसूल जो उस समय गर्भवती थी के साथ क्रूरतापूर्वक सामूहिक बलात्कार करने से संबंधित थी।
- उस याचिका में यह जिक्र था कि याचिकाकर्त्ता की माँ के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई, तथा उसकी चचेरी बहन जिसने अभी-अभी एक बच्चे को जन्म दिया था, के साथ भी सामूहिक बलात्कार किया गया तथा उसकी हत्या कर दी गई थी।
- याचिकाकर्त्ता की चचेरी बहन के दो दिन के शिशु सहित आठ अवयस्कों की भी हत्या कर दी गई थी।
- याचिकाकर्त्ता की तीन वर्ष की बेटी की पत्थर में सिर मारकर हत्या कर दी गई, उसके दो अवयस्क भाई, दो अवयस्क बहनें, उसके फुफा, फुपी (बुआ), मामा और तीन अन्य कज़िन सभी की हत्या कर दी गई थी।
- 21 जनवरी, 2008 को भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत विशेष केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) न्यायालय ने एक गर्भवती महिला के साथ बलात्कार, हत्या और विधि – विरुद्ध सभा की साज़िश रचने के आधार पर 11 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी।
न्यायालय के समक्ष दायर अन्य याचिकाएँ :
- सुभाषिनी अली बनाम गुजरात राज्य (2022), डॉ. मीरान चड्ढा बोरवणकर बनाम गुजरात राज्य (2002), नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (NFIW) बनाम गुजरात राज्य (2022), महुआ मोइत्रा बनाम गुजरात राज्य (2022), अस्मा शफीक शेख बनाम गुजरात राज्य (2022) और 10 अगस्त, 2022 को गुजरात सरकार के आदेश के खिलाफ स्वयं पीड़िता के नाम पर कई याचिकाएँ दायर की गईं।
बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या मामले में क्या – क्या मुद्दे शामिल थे ?
- क्या गुजरात राज्य सरकार परिहार के आक्षेपित आदेश पारित करने में सक्षम थी ?
- क्या परिहार के आदेश विधि के अनुरूप थे ?
याचिकाकर्त्ताओं द्वारा दिया गया तर्क क्या – क्या थे ?
महाराष्ट्र न्यायालय द्वारा की गई दोषसिद्धि :
- याचिकाकर्त्ताओं ने कहा कि एक बार महाराष्ट्र राज्य में एक सक्षम न्यायालय ने अभियुक्तों पर मुकदमा चलाया और उन्हें दोषी ठहराया, तो वह राज्य ‘समुचित सरकार‘ है।
- 11 दोषियों के संबंध में गुजरात राज्य द्वारा पारित परिहार के आदेश गुजरात राज्य के अधिकार क्षेत्र के बाहर और अनाधिकृ हैं तथा इस प्रकार, यह पारित परिहार रद्द किए जाने योग्य हैं।
माफ़ी नीति ( Remission Policy) 1992 :
- मौजूदा मामले में ‘उचित सरकार’ महाराष्ट्र राज्य है, इसलिए याचिकाकर्त्ता ने प्रस्तुत किया कि बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या मामले में महाराष्ट्र राज्य की माफ़ी नीति / रेमिशन पॉलिसी ही लागू होगी।
- बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या मामले में गुजरात राज्य द्वारा की गई दिनांक 09 जुलाई, 1992 की रेमिशन पॉलिसी पूरी तरह से अप्रयोज्य एवं अप्रभावी है ।
- बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या मामले में दोषियों को दी गई परिहारों के लिए गुजरात राज्य की 1992 की माफ़ी नीति / रेमिशन पॉलिसी लागू की गई थी क्योंकि बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या मामले में निर्णय के परिहार के समय गुजरात की 2014 की माफ़ी नीति / रेमिशन पॉलिसी लागू नहीं हुई थी।
- गुजरात सरकार की 1992 की माफ़ी नीति /रेमिशन पॉलिसी ने बलात्कार के दोषियों को परिहार का लाभ पाने से वंचित नहीं किया था।
इस प्रमुख प्रतिवाद के विरूद्ध गुजरात राज्य का तर्क क्या था ?
- गुजरात राज्य ने अपने शपथ-पत्र में कहा कि यदि समयपूर्व रिहाई के आवेदन पर विचार के समय दोषी के लिए लाभकारी नीति मौजूद है, तो दोषी को ऐसी लाभकारी नीति से वंचित नहीं किया जा सकता है और परिहार के आदेश की न्यायिक समीक्षा कानून में स्वीकार्य नहीं है।
भारत के उच्चतम न्यायालय का बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या पर दिए गए निर्णय का निष्कर्ष क्या है ?
समुचित और उपयुक्त सरकार को तय करने की जिम्मेवारी :
- बिलकिस बानो मामले में गुजरात राज्य ने यह कहते हुए उक्त आदेश की समीक्षा के लिए यदि एक आवेदन दायर किया होता कि वह “समुचित सरकार” नहीं थी, बल्कि महाराष्ट्र राज्य “समुचित सरकार” थी, तो आगामी मुकदमेबाज़ी उत्पन्न ही नहीं होती।
- 13 मई, 2022 को उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश में सुधार की मांग करने वाली कोई भी समीक्षा याचिका दायर करने के अभाव में, गुजरात राज्य ने महाराष्ट्र राज्य की शक्ति छीन ली है और परिहार के आक्षेपित आदेश पारित कर दिये हैं, जो न्यायालय के विचार से कानून में अमान्य हैं।
उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 13 मई, 2022 को दिया गया निर्णय अमान्य घोषित :
- भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 13 मई, 2022 को दिए गए अपने ही निर्णय को अमान्य घोषित करना पड़ा है क्योंकि उक्त आदेश तात्त्विक तथ्यों को छिपाकर और साथ ही तथ्यों की गलत प्रस्तुति करके मांगा गया था और इसे, धोखाधड़ी से उच्चतम न्यायालय द्वारा प्राप्त किया गया था।
उच्चतम न्यायालय द्वारा परिहार के लाभार्थियों को दो सप्ताह के भीतर जेल में आत्मसमर्पण करवाने का निर्णय :
- गुजरात सरकार द्वारा बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या के मामले के दोषियों को उच्चतम न्यायालय ने अपने वर्तमान निर्णय के आलोक में परिहार के लाभार्थियों को दो सप्ताह के भीतर संबंधित जेल अधिकारियों को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया है।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q. 1. भारत में न्यायालयों द्वारा पारित सजा को माफ करने, निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएI
- भारत में राष्ट्रपति और राज्यपालों को अदालतों द्वारा पारित सजा को माफ करने, निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति प्राप्त है।
- जेल राज्य सूची का विषय है, इसलिए राज्य सरकारों के पास दंड प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसी ) की धारा 432 के तहत सजा माफ करने का अधिकार है।
- भारत में कैदियों को अक्सर प्रमुख नेताओं की जयंती और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर रिहा किया जाता है।
- भारत में किसी व्यक्ति पर लगाई गई मृत्यु को धारा 433 के तहत आजीवन कारावास में बदल दिया गया हो तो , ऐसे व्यक्ति को जेल से रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि उसे कम से कम चौदह वर्ष कारावास की सजा न दी गई हो।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
(A) केवल 1, 2 और 3
(B) केवल 2, 3 और 4
(C) इनमें से कोई नहीं I
(D) इनमें से सभीI
उत्तर – (D)
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q .1 . भारत में सजायाफ्ता मुजरिमों या कैदियों की समयपूर्व रिहाई विवेकपूर्ण और कानूनसम्मत आधारों पर होनी चाहिए, कथन की समीक्षा बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या मामले में दोषियों की सजा में छूट देने के आलोक में कीजिए।

Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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