बिहार को विशेष श्रेणी का राज्य की मान्यता देने की मांग करना

बिहार को विशेष श्रेणी का राज्य की मान्यता देने की मांग करना

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय संविधान, भारत में केंद्र – राज्य संबंध, संघवाद, विशेष राज्य का दर्ज़ा, विशेष श्रेणी की राज्य की चुनौतियाँ ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ विशेष श्रेणी का राज्य की मान्यता मिलना , बिहार जाति आधारित सर्वेक्षण 2022, योजना आयोग, अनुच्छेद 370,  केंद्र प्रायोजित योजना ’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक कर्रेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ बिहार को विशेष श्रेणी का राज्य की मान्यता देने की मांग करना ’  से संबंधित है।)

 

ख़बरों में क्यों ?

 

  • बिहार के मुख्यमंत्री ने हाल ही में केंद्र सरकार से राज्य के लिए विशेष श्रेणी की स्थिति प्रदान करने की पुरानी मांग को पुनः उठाया  है , जिसका उद्देश्य राज्य को प्राप्त होने वाले कर राजस्व प्राप्ति में वृद्धि करना है।

 

भारत में किसी भी राज्य को विशेष श्रेणी का राज्य होने अर्थ क्या होता है ?

 

  • भारत में किसी भी राज्य को ‘विशेष श्रेणी का राज्य’ होने का मान्यता एक प्रकार की वह पहचान है जो केंद्र सरकार उन राज्यों को देती है जो भौगोलिक या सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। 
  • इससे उन राज्यों को अपने राज्य में विकास के लिए केंद्र सरकार द्वारा अतिरिक्त वित्तीय सहायता मिलती है।
  • भारत के मूल संविधान में इसका कोई प्रावधान नहीं है। 
  • यह 1969 में पाँचवें वित्त आयोग की सलाह पर शुरू किया गया। 
  • भारत में सबसे पहले वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को यह मान्यता प्रदान किया गया था। 
  • हाल ही में तेलंगाना भारत का वह नवीनतम राज्य है जिसे यह मान्यता प्राप्त हुआ है।
  • इस संदर्भ में यह बात गौर करने लायक यह होती है कि ‘विशेष स्थिति’ और  ‘विशेष श्रेणी का राज्य’ होने का मान्यता मिलना दोनों अलग – अलग है।
  • ‘विशेष स्थिति’ में कुछ ख़ास कानूनी और सरकारी प्राधिकरण मिलते हैं, पर ‘विशेष श्रेणी’ सिर्फ वित्तीय और आर्थिक सहायता और संसाधनों से संबंधित होता है।
  • SCS, विशेष स्थिति से भिन्न है जो कि उन्नत विधायी तथा राजनीतिक अधिकार प्रदान करता है, जबकि SCS केवल आर्थिक एवं वित्तीय पहलुओं से संबंधित है।
  • उदाहरण के लिए अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले तक भारत में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्ज़ा प्राप्त था।

 

भारत में किसी भी राज्य को विशेष राज्य का मान्यता प्राप्त करने के लिए आवश्यक अहर्ताएं अथवा मापदंड : 

 

भारत में गाडगिल समिति की सिफारिश पर आधारित विशेष राज्य का मान्यता प्राप्त करने के मापदंड निम्नलिखित है – 

  1. वह राज्य पहाड़ी इलाका से संबंधित हो। 
  2. उस राज्य की जनसंख्या घनत्व कम हो और/या उस राज्य में जनजातियों की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा निवास करती हो। 
  3. उस राज्य की सीमाएं पड़ोसी देशों के साथ जुड़ी हुई हो और उन सीमाओं का सामरिक दृष्टिकोण से अवस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण हो। 
  4. वह राज्य आर्थिक तथा आधारभूत संरचना में पिछड़ापन की स्थिति में हो। 
  5. राज्य के वित्त अथवा राजस्व प्राप्ति की अव्यवहार्य प्रकृति की हो। 

 

भारत में किसी भी राज्य को विशेष श्रेणी का राज्य का मान्यता मिलने से प्राप्त होने वाला लाभ :

 

  • उस राज्य को अन्य राज्यों के मामले में 60% या 75% की तुलना में केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक निधि का 90% विशेष श्रेणी के राज्यों को भुगतान किया जाता है, जबकि शेष निधि राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की जाती है।
  • वित्तीय वर्ष में अव्ययित निधि व्यपगत नहीं होती है और इसे आगे बढ़ाया जाता है।
  • इन राज्यों को उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क, आयकर एवं निगम कर में महत्त्वपूर्ण छूट प्रदान की जाती हैं।
  • केंद्र के सकल बजट का 30% विशेष श्रेणी के राज्यों को प्रदान किया जाता है।

 

बिहार को विशेष श्रेणी का राज्य की मान्यता ( SCS ) मिलने की मांग करने के लिए दिए जाने वाला तर्क : 

 

बिहार को विशेष श्रेणी का राज्य (SCS) का दर्जा देने की मांग के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं – 

 

ऐतिहासिक एवं संरचनात्मक चुनौतियाँ : 

 

  • आर्थिक कठिनाइयाँ : बिहार को आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि औद्योगिक विकास की कमी और सीमित निवेश के अवसर।
  • बिहार राज्य के विभाजन के परिणाम : बिहार राज्य विभाजन के बाद, अधिकांश उद्योग झारखंड राज्य में चले गए, जिससे बिहार में रोजगार और आर्थिक विकास की समस्याएँ बढ़ गईं।

 

प्राकृतिक आपदाएँ : 

 

  • बाढ़ और सूखा : बिहार को उत्तर में बाढ़ और दक्षिण में सूखे जैसी गंभीर प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। इन आपदाओं से कृषि गतिविधियाँ बाधित होती हैं और सिंचाई सुविधाएँ अपर्याप्त होती हैं, जिससे आजीविका और आर्थिक स्थिरता पर असर पड़ता है।

 

बुनियादी ढाँचे का अभाव : 

 

  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा : बिहार का अविकसित बुनियादी ढाँचा राज्य के समग्र विकास में बाधा डालता है, जिसमें खराब सड़कों का नेटवर्क, सीमित स्वास्थ्य सेवाएँ और शैक्षिक सुविधाओं की कमी शामिल है।
  • रघुराम राजन समिति : वर्ष 2013 में केंद्र द्वारा गठित रघुराम राजन समिति ने बिहार को “अल्प विकसित श्रेणी” में रखा।

 

निर्धनता तथा सामाजिक विकास : 

 

  • उच्च निर्धनता दर : बिहार राज्य में निर्धनता दर उच्च है और वहां की बहुसंख्यक परिवार गरीबी रेखा से नीचे में जीवन यापन कर रहे हैं।
  • नीति आयोग का सर्वेक्षण : नीति आयोग के एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार निर्धन राज्यों की श्रेणी में शीर्ष स्थान पर है, जहाँ वर्ष 2022-23 में बहुआयामी निर्धनता 26.59% थी, जो राष्ट्रीय औसत 11.28% की तुलना में अत्यधिक है।
  • प्रति व्यक्ति GDP का निम्न होना : बिहार की प्रति व्यक्ति GDP वर्ष 2022-23 के लिए राष्ट्रीय औसत 1,69,496 रुपए की तुलना में मात्र 60,000 रुपए है।
  • मानव विकास सूचकांक : भारत के विभिन्न राज्यों की तुलना में बिहार विभिन्न मानव विकास सूचकांकों में भी काफी पीछे है।

 

विकास के लिए वित्तपोषण : 

 

  • अपर्याप्त वित्तीय सहायता : SCS की मांग करना केंद्र सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त करने का एक साधन है, जिससे दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से निपटा जा सके।
  • राज्य सरकार का अनुमान : बिहार सरकार के अनुसार, विशेष श्रेणी का दर्जा मिलने से राज्य को पाँच वर्षों में गरीब परिवारों के कल्याण पर खर्च के लिए 94 लाख करोड़ रुपए के अलावा अतिरिक्त 2.5 लाख करोड़ रुपए प्राप्त होंगे।

 

बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) नहीं देने के पीछे क्या तर्क हैं?

 

बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) नहीं देने के पीछे कुछ मुख्य तर्क निम्नलिखित है – 

  1. धनराशि का दुरुपयोग : भारत में विभिन्न आलोचकों का मानना है कि अतिरिक्त धन से खराब नीतियों को प्रोत्साहन मिल सकता है।
  2. कानून और व्यवस्था : बिहार में प्रशासनिक स्तर पर व्याप्त विभिन्न समस्याएं बिहार के बहु स्तरीय विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  3. केंद्रीय सरकार द्वारा वित्त का हस्तांतरण : 14वें वित्त आयोग के अनुसार, केंद्र पहले से ही राज्यों को कुल प्राप्त राजस्व का 42% कर हस्तांतरित कर चुका है, और SCS से केंद्रीय कोष पर ही अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, जिससे केंद्र सरकार को अपने स्तर पर क्रियान्वित करने वाले विकास योजनाओं के लिए पर्याप्त राशी की कमी हो सकती है।
  4. बिहार में विकास की गति का स्तर तीव्रतम होना : बिहार पहले से ही तेजी से प्रगति कर रहा है, वित्तीय वर्ष 2022-23 में बिहार के GDP में 10.6% की वृद्धि हुई है।
  5. SCS का मानदंड का पूरा नहीं करना : SCS प्राप्ति के मानकों में पहाड़ी क्षेत्रों की मुश्किलें का प्रमुख होना हैं, जो बिहार में नहीं हैं।
  6. 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें : केंद्र सरकार 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर काम करते हुए भारत के विभिन्न राज्यों के SCS के प्रस्तावों को ख़ारिज करती रहती है, क्योंकि इससे केंद्र सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ जाता है।

 

बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त होने (SCS) से मिलने वाली सहायता से तात्कालिक रूप से तो समस्या का समाधान हो सकता है, परन्तु स्थायी समाधान के लिए प्रशासनिक सुधारों पर ज़ोर देना ज़रूरी है।

 

बिहार के अतिरिक्त भारत के अन्य राज्य जो SCS की मांग कर रहे हैं :

 

  • भारत के कुछ अन्य राज्य भी विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं। 
  • वर्ष 2014 में विभाजन के बाद, आंध्र प्रदेश हैदराबाद को तेलंगाना में स्थानांतरित होने से उत्पन्न राजस्व की हानि के कारण SCS की मांग कर रहा है। 
  • इसी प्रकार, ओडिशा प्राकृतिक आपदा जैसे चक्रवातों और अपनी बड़ी जनजातीय आबादी (लगभग 22%) के कारण SCS की मांग अनुरोध करता रहता है।

विशेष श्रेणी का राज्य (SCS) का दर्जा मिलने की राह में मुख्य चुनौतियाँ :

विशेष श्रेणी का राज्य (SCS) का दर्जा मिलने की राह में मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित है – 

  1. अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता : SCS का दर्जा प्राप्त करने के लिए, राज्यों को अतिरिक्त वित्तीय सहायता की जरूरत होती है, जो केंद्रीय संसाधनों पर अतिरिक्त भार डाल सकती है।
  2. केंद्रीय सहायता पर निर्भरता : SCS के लाभ से राज्य केंद्रीय सहायता पर अधिक निर्भर हो सकते हैं, जो स्व-निर्भरता और स्वतंत्र आर्थिक प्रगति में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  3. कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ : SCS मिलने के पश्चात्, प्रशासनिक दक्षता की कमी, भ्रष्टाचार, और उपयुक्त नियोजन की कमी से, सही ढंग से निधि का प्रबंधन मुश्किल हो सकता है।

 

समाधान / आगे की राह :

 

 

  • भारत में किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने के संदर्भ में निष्पक्षता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए SCS प्रदान करने के मानदंडों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। 
  • वर्ष 2013 में केंद्र सरकार द्वारा गठित रघुराम राजन समिति ने SCS के स्थान पर निधियों के हस्तांतरण के लिए ‘बहु-आयामी सूचकांक’ पर आधारित नई पद्धति का सुझाव दिया था।
  • इस पद्धति से राज्यों के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के उपायों पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
  • आत्मनिर्भरता और आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार पर राज्यों की निर्भरता को कम करने वाली नीतियों को लागू करना चाहिए। साथ ही, राज्यों के राजस्व स्रोतों में विविधता लाने पर जोर देना चाहिए। 
  • विश्लेषकों का सुझाव है कि सतत् आर्थिक विकास के लिए बिहार में विधि के शासन की आवश्यकता है। भारत में राज्यों को व्यापक विकास योजनाएँ बनाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:

 

  1. शिक्षा में सुधार :

 

  • प्रारंभिक बाल्यावस्था विकास (ICDS केंद्र), शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षण पद्धति में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने वाली RTE फोरम की सिफारिशों पर अमल करना चाहिए।
  • अधिक संवादात्मक और प्रौद्योगिकी आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

 

  1. कौशल विकास एवं रोजगार सृजन : 

  • बिहार के युवाओं के कौशल विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • बिहार में व्यवसायों को आकर्षित करने और रोजगार सृजन हेतु SIPB (सिंगल-विंडो इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उद्यमशीलता को बढ़ावा देना चाहिए।
  • बिहार में कौशल विकास एवं संबंधित कौशल पहलों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

 

  1. बुनियादी ढाँचे का विकास :

 

  • बिहार में समग्र विकास के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचे का होना आवश्यक है।
  • बाढ़ और सूखे से निपटने के लिए बेहतर सिंचाई प्रणालियों पर ध्यान देना चाहिए।
  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच संपर्क स्थापित करने, निवेश आकर्षित करने और कृषि व्यापार को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत परिवहन नेटवर्क विकसित करना चाहिए।

 

  1. महिला सशक्तीकरण एवं सामाजिक समावेशन : 

 

  • बिहार में लैंगिक समानता और सामाजिक स्तरीकरण की चुनौतियों का सामना करने वाली विधियों के बेहतर प्रवर्तन और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए।
  • बिहार में महिलाओं की शिक्षा, कौशल विकास और वित्तीय समावेशन पर ध्यान देना चाहिए।
  • इन उपायों से बिहार राज्य की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और बिहार के समग्र विकास की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकेंगे।

स्रोत –  द हिंदू एवं पीआईबी।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्ज़ा (SCS) देने के संदर्भ में निम्नलिखित स्थितियों पर विचार कीजिए।

  1. उस राज्य की सीमाएं पड़ोसी देशों के साथ जुड़ी हुई हो।
  2. उस राज्य का आर्थिक तथा आधारभूत संरचना में पिछड़ापन होना।
  3. राज्य की जनसंख्या का घनत्व का अधिक होना। 
  4. उस राज्य में अनुसूचित जाति की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा निवास करती हो। 

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1, 2 और 3 

B. केवल 2 , 3 और 4 

C. केवल 3 और 4 

D. केवल 1 और 2 

उत्तर – D . 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत के राजकोषीय संघवाद और केंद्र – राज्य संबंध के संदर्भ में यह चर्चा कीजिए कि भारत में राज्यों को विशेष श्रेणी का राज्य का दर्ज़ा (SCS) देने में मुख्य चुनौतियाँ क्या है और उसका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

 

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