ब्रिक्स का 15वाँ शिखर सम्मेलन और इसका विस्तार

ब्रिक्स का 15वाँ शिखर सम्मेलन और इसका विस्तार

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय संबंध, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, ब्रिक्स में भारत की भूमिका, ब्रिक्स के विस्तार का प्रभाव, क्षेत्रीय समूह, बहुपक्षीय संस्थानों का महत्त्व ’  खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ब्रिक्स, ब्रिक्स में नए सदस्य, भारत – चीन, भारत – रूस, भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौता ’  खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख दैनिक कर्रेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ ब्रिक्स का 15वाँ शिखर सम्मेलन और इसका विस्तार   से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स समूह ने एक महत्वपूर्ण विस्तार किया, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका ने छह नए देशों को ब्रिक्स में शामिल करने का निमंत्रण दिया। 
  • इन नए आमंत्रित देशों में पश्चिम एशिया से ईरान, सऊदी अरब, और संयुक्त अरब अमीरात (UAE), अफ्रीका से मिस्र और इथियोपिया और लैटिन अमेरिका से अर्जेंटीना शामिल हैं। 
  • ये देश आधिकारिक रूप से 1 जनवरी 2024 से ब्रिक्स में शामिल हो गए हैं। 
  • इस विस्तार के साथ, ब्रिक्स समूह ने अपनी वैश्विक पहुंच और प्रभाव को और व्यापक बनाया है। इस विस्तार को ‘ब्रिक्स प्लस’ के नाम से जाना जाता है और इसका उद्देश्य ब्रिक्स को एक खुले सहयोग मंच के रूप में मजबूत करना है।

 

ब्रिक्स  ( BRICS ) : 

 

  • BRICS विश्व की पाँच प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं – ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का एक क्षेत्रीय समूह है। 
  • इसकी स्थापना वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओ’नील द्वारा BRIC के रूप में की गई थी, जिसमें दक्षिण अफ्रीका को बाद में वर्ष 2010 में जोड़ा गया और इसे BRICS का नाम दिया गया।
  • इस समूह का उद्देश्य विकासशील देशों के हितों को बढ़ावा देना और वैश्विक आर्थिक मंच पर उनकी आवाज़ को मजबूत करना है। 
  • यह समूह वैश्विक आबादी का लगभग 41%, वैश्विक GDP का 24%, और वैश्विक व्यापार का 16% प्रतिनिधित्व करता है। 
  • वर्ष 2023 में जोहान्सबर्ग घोषणा के अनुसार, अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब, और UAE को 1 जनवरी, 2024 से BRICS में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया गया। 
  • इस समूह की वार्षिक शिखर बैठकें विभिन्न सदस्य देशों द्वारा आयोजित की जाती हैं, जिसमें वर्ष 2023 की अध्यक्षता दक्षिण अफ्रीका ने की थी और अक्तूबर 2024 में होने वाली 16वीं शिखर बैठक की अध्यक्षता रूस करेगा।

 

BRICS का गठन और महत्त्व :

 

  • BRICS समूह का गठन वर्ष 2006 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में G8 (अब G7) आउटरीच शिखर सम्मेलन के दौरान ब्राज़ील, रूस, भारत, और चीन के प्रमुखों की अनौपचारिक बैठक से हुआ था। 
  • इसे बाद में वर्ष 2006 में न्यूयॉर्क में BRIC देशों के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक में औपचारिकता प्रदान की गई। 
  • वर्ष 2009 में, रूस के येकातेरिनबर्ग में BRIC का पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था।
  • वर्ष 2010 में, दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद, समूह का नाम BRICS पड़ा।
  • BRICS समूह के सदस्य देशों की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 45% (3.5 बिलियन लोग) है। 
  • इन देशों की सामूहिक अर्थव्यवस्था का मूल्य लगभग 28.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 28% है।
  • BRICS समूह के सदस्य देशों (ईरान, सऊदी अरब, और UAE) की वैश्विक कच्चे तेल उत्पादन में लगभग 44% की भागीदारी है।
  • यह समूह विश्व के प्रमुख विकासशील देशों को एक साथ लाने के लिए बनाया गया था, ताकि उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के धनी देशों की राजनीतिक और आर्थिक शक्ति को चुनौती दी जा सके। 
  • BRICS देशों ने एक औपचारिक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में अपने आप को विकसित किया है, जो आर्थिक और भू-राजनीतिक एकीकरण और समन्वय को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। 

 

ब्रिक्स समूह में शामिल किए गए नए सदस्य देशों का भू – रणनीतिक महत्व : 

ब्रिक्स समूह के नए सदस्यों का भू-रणनीतिक महत्व निम्नलिखित है – 

  • ऊर्जा संसाधनों का महत्व : सऊदी अरब और ईरान का ब्रिक्स में समावेश उनके विपुल ऊर्जा संसाधनों के कारण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। सऊदी अरब, एक प्रमुख तेल उत्पादक देश होने के नाते, अपने तेल का एक बड़ा भाग चीन और भारत जैसे ब्रिक्स देशों को निर्यात करता है। वहीं, प्रतिबंधों के बावजूद ईरान ने अपने तेल उत्पादन और निर्यात को बढ़ाया है, जिसका एक बड़ा हिस्सा चीन को जाता है। यह ब्रिक्स सदस्यों के बीच ऊर्जा सहयोग और व्यापार के महत्व को उजागर करता है।
  • ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं का विविधीकरण : रूस पहले से ही चीन और भारत के लिए तेल का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। नए सदस्यों के जुड़ने से रूस को अपने ऊर्जा निर्यात के लिए नए बाजार मिलेंगे, जिससे ब्रिक्स के भीतर ऊर्जा स्रोतों की विविधता और बढ़ेगी।
  • भू – रणनीतिक स्थिति : मिस्र और इथियोपिया की ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ और लाल सागर में स्थिति उन्हें महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों के निकट लाती है, जिससे इन क्षेत्रों में ब्रिक्स का भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ता है।
  • लैटिन अमेरिकी आर्थिक प्रभाव : अर्जेंटीना का ब्रिक्स में समावेश लैटिन अमेरिका में ब्रिक्स की उपस्थिति को मजबूत करता है, जो वैश्विक शक्तियों के लिए हमेशा से एक रुचिकर क्षेत्र रहा है। इससे ब्रिक्स समूह का आर्थिक प्रभाव भी बढ़ता है।

 

भारत की ब्रिक्स के साथ भागीदारी में मुख्य चुनौतियाँ : 

भारत की ब्रिक्स के साथ भागीदारी में मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं – 

  1. वैश्विक गठबंधनों में परिवर्तन : ब्रिक्स के सदस्य देश अन्य राष्ट्रों के साथ संबंध बढ़ा सकते हैं, जिससे समूह की एकता और प्रभाव पर असर पड़ सकता है।
  2. बहुपक्षीय मंचों पर समन्वय : वैश्विक संस्थाओं में सुधार के प्रति ब्रिक्स सदस्यों की विभिन्न प्राथमिकताएँ हैं।
  3. चीन के उदय की चुनौतियाँ : भारत चीन के प्रभाव के कारण सीमा विवाद, समुद्री सुरक्षा, और व्यापारिक असंतुलन जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
  4. लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा : भारत को पश्चिमी मानकों के अनुरूप बिना अपनी स्वायत्तता खोए नीतियाँ बनानी होंगी।
  5. ब्रिक्स गतिशीलता का संतुलन : भारत को चीन और रूस के साथ संबंधों को संतुलित करना होगा।
  6. द्विपक्षीय मतभेदों का प्रबंधन : भारत को चीन और पाकिस्तान के साथ अपने मतभेदों को सुलझाना होगा।
  7. रूस की विश्वसनीयता : यूक्रेन संघर्ष में रूस की भूमिका ने भारत के लिए चिंताएँ उत्पन्न की हैं।
  8. सुरक्षा चिंताएँ : आतंकवाद और साइबर खतरों जैसी सुरक्षा समस्याओं का समाधान आवश्यक है।
  9. व्यापार असंतुलन : चीन के साथ व्यापार घाटे से भारत के आर्थिक हित प्रभावित हो रहे हैं।
  10. समानता के सिद्धांत : ब्रिक्स के विस्तार से समानता के सिद्धांत पर प्रश्न उठते हैं।
  11. दीर्घस्थायी चुनौतियाँ : विकासशील देशों के साथ सफलताओं को साझा करने में बाधाएँ हैं।

 

भारत के लिए BRICS का महत्व : 

भारत अपने लाभ के लिए BRICS मंच का उपयोग निम्नलिखित प्रकार से कर सकता है – 

  • वैश्विक शासन दर्शन को अपनाना : वैश्विक चुनौतियों के समाधान हेतु समन्वित कार्रवाइयों की आवश्यकता है। भारत को अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की सुरक्षा, सार्वभौमिक भागीदारी, नियमों का निर्माण, और साझा विकास परिणामों को सुनिश्चित करना चाहिए।
  • सार्वभौमिक सुरक्षा का समर्थन करना : भारत को BRICS देशों के साथ सार्वभौमिक सुरक्षा में सक्रिय योगदान देना चाहिए, तनाव और जोखिम को कम करने के लिए प्रत्येक देश की सुरक्षा का सम्मान करना चाहिए।
  • समूह के भीतर सहयोग बढ़ाना : भारत को BRICS के भीतर चीन के प्रभुत्व को कम करने और संतुलित आंतरिक गतिशीलता को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
  • आर्थिक योगदान सुनिश्चित करना : BRICS देशों को साझा विकास में सक्रिय रूप से योगदान देना चाहिए और आपूर्ति शृंखला, ऊर्जा, खाद्यान, और वित्तीय लचीलेपन में पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग बढ़ाना चाहिए।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशासन को बढ़ाना : भारत को BRICS देशों के साथ मिलकर विकासशील देशों के पक्ष में वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन को आगे बढ़ाना चाहिए और ‘वन अर्थ, वन हेल्थ’ दृष्टिकोण का समर्थन करना चाहिए।

 

समाधान / आगे की राह : 

 

  • भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह ब्रिक्स समूहों के लिए द्विपक्षीय मुद्दों पर सहमति बनाई जाए, जिसके लिए उसे ब्रिक्स में शामिल देशों के साथ विशेष वार्ता की जरूरत है।
  • भारत को अपने सभी आपसी मतभेदों को स्वीकार करते हुए, यह समझना जरूरी है कि बहुपक्षीय मंच अलग-अलग नियमों के अनुसार काम करते हैं। 
  • भारत के प्रधानमंत्री की BRICS शिखर सम्मेलन में की गई टिप्पणियों से प्रेरित होकर, BRICS के विस्तार से अन्य बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार की दिशा में काम करना चाहिए।
  • विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, WTO, WHO और अन्य में सुधार की आवश्यकता पर जोर देता है।
  • भारत का मानना है कि BRICS का विस्तार 21वीं सदी के आवश्यक बदलावों के लिए एक मॉडल प्रदान करेगा, लेकिन इन सुधारों में विफलता प्राप्त होने पर इन संस्थानों को अप्रभावी बना सकती है। जिसका भारत के संदर्भ में समाधान की अत्यंत आवश्यकता है।  
  • इन कदमों के माध्यम से, भारत BRICS मंच का उपयोग कर वैश्विक शासन में अपनी स्थिति को मजबूत करने में कर सकता है और विकासशील देशों के हितों का समर्थन कर सकता है।
  • ब्रिक्स के देशों कोआपस में साझा दृष्टिकोण को अपनाकर इन बाधाओं का समाधान सर्वसम्मति से करना  संभव है।

 

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी ।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. ब्रिक्स (BRICS ) के रूप में ज्ञात देशों के समूह के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। ( UPSC – 2019)

  1. BRICS का पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 2009 में रिओ डी जेनेरियो में हुआ था।
  2. न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना APEC द्वारा की गई है।
  3. न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।
  4. दक्षिण अफ्रीका BRICS समूह में शामिल होने वाला अंतिम देश था।

उपर्युक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है?

A. केवल 1, 2 और 3

B. केवल 2, 3 और 4

C. केवल 1 और 4 

D. केवल 2 और 3 

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. भारत के लिए एक क्षेत्रीय समूह के रूप में ब्रिक्स के महत्व को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि वैश्विक स्तर पर बदलते भू – राजनैतिक संबंधों और आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरते दक्षिण एशियाई देशों के समूह के रूप में  ब्रिक्स को लेकर भारत के समक्ष क्या चुनौतियाँ है और उन चुनौतियों से निपटने के लिए क्या समाधान हो सकता है ? तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए । ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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