17 Mar भारतीय राजनीति में महिलाओं को आरक्षण
भारतीय राजनीति में महिलाओं को आरक्षण
संदर्भ- हाल ही में 10 मार्च को भारत राष्ट्र समिति प्रमुख के. कविता ने लम्बे समय से लंबित महिला आरक्षण बिल का समर्थन करते हुए दिल्ली के जंतर मंतर में 6 घण्टे की भूख हड़ताल की। इस शांतिपूर्ण हड़ताल का आगाज कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी ने किया।
भारतीय महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण का इतिहास
- मध्यकाल से भारत के इतिहास में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति गर्त में चली गई थी, महिलाओं को गर्त से समान धारा में लाने के लिए राजनीति में आरक्षण की आवश्यकता महसूस हुई।
- आधुनिक भारत में पहली बार 1931 में सरोजनी नायडू व बेगम शाह नवाज ने संयुक्त रूप से ब्रिटिश प्रधानमंत्री को भारतीय महिलाओं के राजनीति में समान अधिकार की आवश्यकता पर पत्र लिखा, जो भारतीय महिलाओं की राजनीति में भाग लेने का प्रथम कदम था।
- इस समय महिला आरक्षण का मुद्दा संसद सभा में भी उठाया गया किंतु उस समय यह माना गया कि लोकतंत्र में सभी के लिए समान अधिकार है। 1947 में स्वतंत्रता सेनानी रेणुका रे ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और संघर्ष किया। उनके अनुसार सत्ता में आए पुरुष प्रधान स्वतंत्र समाज का अर्थ महिलाओं की स्वतंत्रता नहीं है।
- 1971 में महिलाओं हेतु कमिटी बनाई गई जिसकी रिपोर्ट में महिलाओं के लगातार घटते प्रतिनिधित्व की बात कही गई थी।
- राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना(1988-2000) ने महिलाओं के लिए एक शीर्ष निकाय के गठन की आवश्यकता पर जोर दिया।
- 30 अगस्त 1990 को राष्ट्रीय महिला आयोग के लिए प्रस्तावित विधेयक पारित कर दिया गया।
- 1992 में श्रीमति जयंती पटनायक की अध्यक्षता में राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया।
संविधान का 73 वां संशोधन में आरक्षण
- 24 अप्रैल 1993 में राष्ट्रपति द्वारा संविधान का 73 वां संशोधन स्वीकृत कर लिया गया। तब से 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायत दिवास के रूप में मनाया जाता है।
- सभी पंचायती संस्थानों में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं।
- सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई।
संविधान का 74 वां संशोधन में आरक्षण
- यह संशोधन अनुसूचित जाति व जनजाति को उनकी जनसंख्या और कुल नगरपालिका क्षेत्र की जनसंख्या के अनुपात में प्रत्येक नगरपालिका में आरक्षण प्रदान करता है।
- महिलाओं के लिए नगरपालिका में एक तिहाई सीटों पर आरक्षण की व्यवस्था की गई।
- राज्य विधानमण्डल अनुसूचित जाति, जनजाति व महिलाओं के आरक्षण के लिए विधान का निर्माण कर सकता है।
महिला आरक्षण विधेयक 2008
- विधेयक का उद्देश्य महिलाओं के लिए लोकसभा व राज्य विधान सभा में एक तिहाई सीटें आरक्षित करना है।
- अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए कुल आरक्षित सीटों में से एक तिहाई सीट,आरक्षित समुदाय की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
- आरक्षित सीटों को राज्य या केंद्र के विभिन्न केंद्र शासित प्रदेशों में आबंटित किया जा सकता है।
- संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 वर्षों के बाद महिलाओं के लिए आरक्षण को समाप्त कर दिया जाएगा।
लोकसभा व राज्यसभा में महिलाओं के आरक्षण के लिए लाए गए बिल के समर्थन व विरोध में कई तथ्य सामने आए हैं जिससे यह बिल अब तक पास न हो सका है।
विधेयक का पक्ष
- स्वतंत्रता के समय भी महिलाएं संसद के लिए कार्य कर रही थी, जो महिलाओं की योग्यता पर उठे प्रश्नों को खारि करता है।
- पंचायतों में महिला आरक्षण के कारण महिलाओं की राजनीतिक स्थिति में आए सकारात्मक सुधार व सशक्तिकरण से इस विधेयक को बल मिला है।
- पंचायती राज में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में महिलाओं ने कई ऐसे मुद्दों पर कार्य किया है जिन्हें जरुरी नहीं समझा जाता था। जैसे शराबबंदी, जल को स्वच्छ बनाए रखने के लिए निवेश, भ्रष्टचार में कमी, संतुलित आहार को प्राथमिकता, महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु प्रयास आदि।
- महिलाओं की राष्ट्रीय स्तर पर वर्तमान मुद्दे जैसे महिलाओं से संबंधित बढ़ते अपराध, महिलाओं की कार्यस्थलों में न्यूनतम भागीदारी, महिलाओं में न्यूट्रिशियन की कमी आदि मुद्दों में सुधार के लिए महिलाओं के प्रतिनिधित्व को सुधारने की आवश्यकता है।
- इससे भारतीय राजनीति में क्रांतिकारी परिवर्तन आने की संभावना है।
- वर्तमान में केवल 14% महिलाओं की संसद में भागीदारी है।
विधेयक के विपक्षी तर्क
- महिलाओं को योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्धी न मानने की परंपरा को बढ़ावा दे सकता है।
- इस प्रकार की नीतियाँ लोकतंत्र की प्रकृति को धूमिल कर सकती हैं।
- महिलाएं एक जाति समूह के विपरीत हैं, जिसका अर्थ है कि वे एक समरूप समुदाय नहीं हैं। इसलिए, महिलाओं के जाति आधारित आरक्षण के लिए जो तर्क दिए गए हैं, वे नहीं दिए जा सकते।
- महिलाओं के हितों को अन्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तरों से अलग नहीं किया जा सकता है।
- संसद में सीटों का आरक्षण महिला उम्मीदवारों के लिए मतदाताओं की पसंद को सीमित कर देगा। इसने राजनीतिक दलों में महिलाओं के लिए आरक्षण और दोहरी सदस्य निर्वाचन क्षेत्रों (जहां निर्वाचन क्षेत्रों में दो सांसद होंगे, उनमें से एक महिला होगी) सहित वैकल्पिक तरीकों के सुझाव दिए हैं।
- पुरुष प्राथमिक शक्ति के साथ-साथ राजनीति में प्रमुख पदों पर आसीन हैं, कुछ ने यह तर्क भी दिया है कि महिलाओं को राजनीति में लाने से “आदर्श परिवार” नष्ट हो सकता है।
आगे की राह
- विधेयक में महिलाओं को दिए जा रहे आरक्षण को 15 वर्ष तक दिए जाने के प्रावधान को कठोरता से लागू किया जाना चाहिए, वरना इस विधेयक का परिणाम भारतीय भाषा के साथ अंग्रेजी की स्थिति की तरह हो सकता है
- महिलाओं की राजनीति में भागीदारी के लिए महिलाओं को सामाजिक तौर पर मुक्त व सशक्त करने की आवश्यकता है।
स्रोत
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