भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो दर संबंधी फैसला

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो दर संबंधी फैसला

( यह लेख ‘ इंडियन एक्सप्रेस ’, ‘ द हिन्दू ’  ‘ जनसत्ता ’ और ‘ पीआईबी ’ के सम्मिलित संपादकीय के संक्षिप्त सारांश से संबंधित है। इसमें योजना IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के:अंतर्गत सामान्य अध्धयन प्रश्नपत्र 3 – भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास तथा योजना खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत रेपो दर, मौद्रिक नीति समिति खंड से संबंधित है। यह लेख ‘दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में  रेपो दर संबंधी फैसला ’ से संबंधित है।)

खबरों में क्यों ?

 

 

 

  • भारत में हाल ही में  5 अप्रैल 2024 को भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने भारत में खाद्य पदार्थों की बढती कीमतों के दबाव को देखते हुए अपनी बैठक में रेपो रेट को लगातार सातवीं बार 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित ही रखा है। 
  • भारत में खाद्य पदार्थों की बढती कीमतों का दबाव मुद्रास्फीति की रफ्तार को टिकाऊ आधार पर चार फीसदी के लक्ष्य तक धीमी करने के आरबीआई के प्रयासों में बाधा बन रहा है। 
  • हाल ही में हुए भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में वित्त वर्ष 2024 – 2025 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में खुदरा मुद्रास्फीति के चार फीसदी के महत्वपूर्ण स्तर से नीचे आने की संभावना भी जताई गई है।

 

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति क्या है ? 

 

 

 

  • भारत में भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति होती है।
  • इसका गठन वर्ष 2016 में भारत में ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिए  किया गया था।
  • रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति को भारत में एक वैधानिक और संस्थागत ढांचा प्रदान करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (आरबीआई अधिनियम) को वित्त अधिनियम, 2016 द्वारा  संशोधित किया गया है।
  • भारत में आरबीआई के संशोधित इस अधिनियम की 1934 की धारा 45ZB के तहत, केंद्र सरकार को छह सदस्यीय एमपीसी गठित करने का अधिकार है ।
  • भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन करते हुए भारत में मौद्रिक नीति निर्माण को एक नवगठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) को सौंप दिया गया है।
  • मौद्रिक नीति वह उपाय या उपकरण है है जिसके द्वारा केंद्रीय बैंक ब्याज दरों पर नियंत्रण कर अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को नियंत्रित करता है, मूल्य स्थिरता बनाये रखता है और उच्च विकास दर के लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करता है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य रिज़र्व बैंक से होते हैं, जिनमें गवर्नर, एक डिप्टी गवर्नर तथा एक अन्य अधिकारी शामिल होता है।
  • अन्य तीन सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। जिनका चयन कैबिनेट  सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा किया जाता है। इनका कार्यकाल 4 वर्ष का होता है, तथा वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होते है।
  • मौद्रिक नीति समिति (MPC) की एक वर्ष में 4 बैठकें होना अनिवार्य है जिसमें बैठक के लिए कोरम चार सदस्यों का होता है।
  • इस समिति में निर्णय बहुमत के आधार पर किया जाता हैं और समान मतों की स्थिति में रिज़र्व बैंक का गवर्नर अपना निर्णायक मत देता है। 

 

एमपीसी के वर्तमान सदस्य : 

 

  • मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में छह सदस्य हैं, जिनमें से तीन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से हैं और अन्य तीन प्रख्यात अर्थशास्त्री हैं।
  • RBI के सदस्य शक्तिकांत दास (RBI के गवर्नर), डॉ. माइकल देबब्रत पात्रा (RBI के डिप्टी गवर्नर), और राजीव रंजन (RBI के कार्यकारी निदेशक) हैं।
  • प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. जयंती वर्मा, डॉ. आशिमा गोयल और डॉ. शशांक भिड़े हैं।
  • आरबीआई अधिनियम के अनुसार, एमपीसी को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम चार बार बैठक करना आवश्यक है। एमपीसी का अध्यक्ष आरबीआई गवर्नर होता है।

 

मौद्रिक नीति समिति का मुख्य कार्य : 

 

 

  • आर्थिक विश्लेषण और पूर्वानुमान करना : एमपीसी मुद्रास्फीति, जीडीपी वृद्धि, रोजगार, राजकोषीय स्थितियों और वैश्विक आर्थिक विकास सहित विभिन्न आर्थिक संकेतकों का गहन विश्लेषण और पूर्वानुमान करता है।
  • मुद्रास्फीति लक्ष्य तथा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के बीच तालमेल स्थापित करना : सरकार द्वारा निर्धारित वर्तमान मुद्रास्फीति लक्ष्य +/- 2% के सहनशीलता बैंड के साथ 4% का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति लक्ष्य है।
  • भारत में नीतिगत ब्याज दरें और रेपो दर निर्धारित करना : एमपीसी का प्राथमिक कार्य नीतिगत ब्याज दरें, विशेष रूप से रेपो दर निर्धारित करना है।
  • समीक्षात्मक निर्णय लेना : भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति भारत में मौद्रिक नीति रुख की समीक्षा के लिए एमपीसी साल में कम से कम चार बार बैठक निर्धारित करती है ।

 

रेपो दर : 

 

 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक अपने ग्राहकों को लघु अवधि के लिए दिए जाने ऋण पर जो ब्याज दर लागू करती है, उसे रेपो दर कहते हैं। अतः रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक भारतीय रिजर्व बैंक से पैसा लेते हैं या उधार लेते हैं।
  • भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक को बैंकों का बैंक कहा जाता है।
  • भारत में रेपो दर का निर्धारण भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति द्वारा किया जाता है।
  • अतः भारत में रिज़र्व बैंक के सभी ग्राहक – बैंक, केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार रेपो दर के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण प्राप्त कर सकते हैं।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक से ऋण लेने के लिए ग्राहकों को अपनी सरकारी प्रतिभूतियों को भारतीय रिज़र्व बैंक के पास गिरवी रखना पड़ता है।
  • बैंक वैधानिक तरलता अनुपात(SLR) के तहत रिज़र्व बैंक के पास रखी प्रतिभूतियों का प्रयोग रेपो दर के तहत ऋण लेने के लिए नहीं कर सकते है।

 

भारत में रेपो दर में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले प्रभाव : 

 

  • भारत में रेपो दर में वृद्धि का अर्थ होता है, कि कर्ज महंगा होगा और मौजूदा ऋण की मासिक किस्त बढ़ेगी।
  • भारत में भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति द्वारा रेपो रेट बढ़ाने से बैंक रिजर्व बैंक से कम नकदी उधार लेते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति कम हो जाती है और इस प्रक्रिया से यह उम्मीद की जाती है कि इससे महंगाई में कमी आयेगी।
  • रेपो दर बढ़ने के बाद बैंक होम लोन, ऑटो लोन, पर्सनल लोन आदि कर्जों की दरें बढ़ा देते हैं, जिससे लोन लेने वालों का खर्चा बढ़ जाता है।
  • किसी भी अर्थव्यवस्था में रेपो रेट में वृद्धि होने से नागरिकों के उपभोग और मांग पर असर पड़ सकता है।

 

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति द्वारा वर्तमान में लिया गया निर्णय : 

 

 

  • इस बैठक में रेपो रेट के संबंध में किसी भी तरह के परिवर्तन को नकारते हुए रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया गया है।
  • हाल के सप्ताहों में तरलता में कमी के बावजूद आरबीआई ने आवास वापसी के नीतिगत रुख को बरकरार रखा है। आवास को वापस लेने का अर्थ मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम करना है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को 7 प्रतिशत और खुदरा मुद्रास्फीति को 4.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। फरवरी 2024 में, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति  जनवरी 2024 में 5.1 प्रतिशत की तुलना में 5.09 प्रतिशत थी।
  • भारत में खाद्य मुद्रास्फीति लगातार काफी अस्थिरता पैदा कर रही है जिससे अवस्फीति की प्रक्रिया बाधित हो रही है।
  • निरंतर और मजबूत सरकारी पूंजीगत व्यय; बैंकों और कॉरपोरेट्स की स्वस्थ बैलेंस शीट; बढ़ती क्षमता उपयोग के कारण निवेश गतिविधि की संभावनाएं उज्ज्वल बनी हुई हैं, जो यह निजी पूंजीगत व्यय चक्र के लगातार व्यापक होते जाने के कारण है। हालाँकि, लंबे समय से चले आ रहे भू-राजनीतिक तनाव और व्यापार मार्गों में बढ़ते व्यवधान से परिदृश्य पर जोखिम पैदा हो गया है।
  • वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारतीय रूपया उभरते बाजारों और कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की अन्य मुद्राओं की तुलना में भारतीय रूपया की स्थिति एक निश्चित दायरे में रहा। इस स्थिरता से यह पता चलता कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है, वित्तीय रूप से स्थिर है और विश्व बाजार में इसकी स्थिति में सुधार हुआ है।

 

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति द्वारा वर्तमान में घोषित नए उपाय : 

 

  • UPI के जरिए बैंकों में कैश जमा करने का प्रस्ताव : यूपीआई की लोकप्रियता और सुविधा को ध्यान में रखते हुए , आरबीआई ने नकद जमा सुविधा के लिए यूपीआई को सक्षम करने का प्रस्ताव दिया है।
  • प्री-पेड इंस्ट्रूमेंट्स (पीपीआई) के लिए यूपीआई एक्सेस का प्रस्ताव : पीपीआई धारकों को अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिए, आरबीआई ने तीसरे पक्ष के यूपीआई अनुप्रयोगों के माध्यम से पीपीआई को जोड़ने की अनुमति देने का प्रस्ताव दिया है। 
  • पीपीआई एक प्रकार का वित्तीय उपकरण है जो उपयोगकर्ताओं को भविष्य में उपयोग के लिए प्रीपेड खाते या कार्ड पर पैसे लोड करने की अनुमति देता है।  इससे पीपीआई धारक बैंक खाताधारकों की तरह यूपीआई भुगतान करने में सक्षम होंगे।
  • वर्तमान में, बैंक खातों से यूपीआई भुगतान बैंक के यूपीआई ऐप के माध्यम से बैंक खाते को लिंक करके या किसी तीसरे पक्ष के यूपीआई एप्लिकेशन का उपयोग करके किया जा सकता है। हालाँकि, पीपीआई के लिए वही सुविधा उपलब्ध नहीं है। 
  • पीपीआई का उपयोग वर्तमान में केवल पीपीआई जारीकर्ता द्वारा प्रदान किए गए एप्लिकेशन का उपयोग करके यूपीआई लेनदेन करने के लिए किया जा सकता है।
  • सीबीडीसी के लिए  गैर-बैंक ऑपरेटरों के माध्यम से प्रस्ताव : आरबीआई ने गैर-बैंक भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों के माध्यम से सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्राओं (सीबीडीसी) के वितरण का भी निर्णय लिया ।
  • सीबीडीसी एक केंद्रीय बैंक द्वारा डिजिटल रूप में जारी की गई कानूनी निविदा है। डिजिटल रुपया (ई-रुपी) आरबीआई द्वारा शुरू की गई डिजिटल मुद्रा है।
  • आरबीआई ने डिजिटल रुपये को दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया है: – पहला सामान्य प्रयोजन (खुदरा) और दूसरा थोक। अतः यह सीबीडीसी-रिटेल को उपयोगकर्ताओं के व्यापक वर्ग के लिए सुलभ बना देगा।
  • सॉवरेन ग्रीन बांड (एसजीआरबी) में व्यापक अनिवासी भागीदारी की सुविधा का प्रस्ताव : आरबीआई गैर-निवासियों के लिए सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड (एसजीआरबी) में भाग लेना आसान बना रहा है। 
  • वित्त वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में एक घोषणा के आधार पर, सरकार ने जनवरी 2023 में एसजीआरबी जारी किए थे। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आईएफएससी) में पात्र विदेशी निवेशकों को इन बांडों में निवेश करने की अनुमति देने का निर्णय लिया है।
  • वर्तमान में, सेबी के साथ पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को सरकारी प्रतिभूतियों में एफपीआई द्वारा निवेश के लिए उपलब्ध विभिन्न मार्गों के तहत एसजीआरबी में निवेश करने की अनुमति है।
  • आरबीआई रिटेल डायरेक्ट योजना के लिए मोबाइल ऐप का परिचय  :  RBI ने अपनी RBI रिटेल डायरेक्ट योजना के लिए एक मोबाइल ऐप लॉन्च करने का निर्णय लिया है, जिसे सबसे पहले वर्ष 2021 के नवंबर में  पेश किया गया था। 
  • यह ऐप व्यक्तिगत निवेशकों को आरबीआई के साथ गिल्ट खाते बनाए रखने और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने की सुविधा प्रदान करेगा। 
  • गिल्ट खाता सरकारी प्रतिभूतियों, जैसे ट्रेजरी बांड, के लिए एक बचत खाता होता है।
  • यह एक बैंक खाते के समान है लेकिन इसमें नकदी के बजाय सरकारी प्रतिभूतियों का उपयोग किया जाता है।
  • यह योजना निवेशकों को प्राथमिक नीलामी में प्रतिभूतियां खरीदने और एनडीएस-ओएम प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रतिभूतियों का व्यापार करने की अनुमति देती है।
  • तरलता कवरेज अनुपात (एलसीआर) ढांचे की समीक्षा करने का निर्णय लिया गया :  एलसीआर ढांचे में शामिल बैंकों को अगले 30 दिनों में अपेक्षित शुद्ध नकदी बहिर्प्रवाह को सम्मिलित करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति (एचक्यूएलए) का भंडार रखना होगा। 
  • हाल की कुछ घटनाओं से यह पता चलता  है कि तनावपूर्ण समय के दौरान जमाकर्ता खासकर ऑनलाइन बैंकिंग का उपयोग करके अपनी जमा राशि को जल्दी से निकाल लेते हैं या स्थानांतरित कर सकते हैं।
  • ऐसे उभरते जोखिमों के लिए एलसीआर ढांचे के तहत कुछ निर्णयों पर फिर से गौर करने की आवश्यकता हो सकती है। 
  • इसलिए, बैंकों द्वारा तरलता जोखिम के बेहतर प्रबंधन की सुविधा के लिए एलसीआर ढांचे में कुछ संशोधन प्रस्तावित किए जा रहे हैं।

 

निष्कर्ष / आगे की राह : 

 

 

  • मौद्रिक नीति किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा समग्र धन आपूर्ति को नियंत्रित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने एवं ब्याज दरों को संशोधित करने तथा बैंक आरक्षित आवश्यकताओं को बदलने जैसी रणनीतियों को नियोजित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों का एक सेट होता है। 
  • अतः भारत के अर्थव्यवस्था के संबंध में मूल्य स्थिरता के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता है और ऐसा होना भी नहीं चाहिए।
  • भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति निर्माताओं के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था में नागरिकों के आय में वृद्धि और गैर-जरूरी चीजों पर खर्च करने की इच्छा में वृद्धि निजी उपभोग में मजबूती के लिहाज से अच्छा संकेत है।
  • एमपीसी मार्च 2025 तक 12 महीनों में आर्थिक विकास के अनुमानों को लेकर कहीं ज्यादा आश्वस्त है। अतः इस साल भी सकल घरेलू उत्पाद में औसतन सात फीसदी की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। इसके लिए यह कई कारकों- सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून की उम्मीदों के चलते कृषि गतिविधियों व ग्रामीण मांग को बढ़ावा मिलने से लेकर विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र को निरंतर रफ्तार मिलना जरूरी है। 
  • मौद्रिक नीति समिति आरबीआई के उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण में शामिल सभी पांच प्रमुख मापदंडों पर एक साल की अवधि में सुधार होने की उम्मीद की ओर इशारा करता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के और अधिक मजबूत होने और तीव्र गति से विकास करने को दर्शाता है।
  • अतः यह भारत कीअर्थव्यवस्था और भारत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) दोनों के ही मजबूत होने और उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। 

 

स्रोत –  द हिन्दू एवं पीआईबी।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. इसे भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (आरबीआई अधिनियम) केवित्त अधिनियम, 2016 द्वारा  संशोधित किया गया है।
  2. इस समिति के सदस्यों का  कार्यकाल 4 वर्ष का होता है, तथा वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होते है।
  3. भारत का वित्त मंत्री इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।
  4. इस समिति की किसी भी वित्तीय वर्ष के दौरान एक वर्ष में  6 बैठकें होना अनिवार्य होता है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1 , 2 और 3 

B. केवल 2, 3 और 4 

C. केवल 1 और 4 

D. केवल 1 और 2 .

 

उत्तर – D.

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q. 1. भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के प्रमुख्य कार्यों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि भारत में कम मुद्रास्फीति और स्थिर जीडीपी वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित करता है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए। 

 

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