भारत में कोयला

भारत में कोयला

सिलेबस: जीएस 3 / संरक्षण /पर्यावरण, प्रदूषण और गिरावट

यह एडिटोरियल 26/05/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘A Way Out of the Coal Trap’’ लेख पर आधारित है।

संदर्भ-

  • भारत के कोयले से चलने वाले ताप विद्युत संयंत्र 25 वर्ष से अधिक पुराने हैं, साथ ही पुरानी तकनीक पर परिचालित हैं, जो ग्रिड स्थिरता और विद्युत पूर्ति संबंधी चिंता पैदा करता है।
  • सरकार को संभवतः ऐसा लगता है कि नए कोयला आधारित बिजली स्टेशनों की स्थापना पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है। जो संयंत्र पहले से ही निर्माणाधीन हैं, उन्हें जारी रखने की अनुमति दी जाएगी।

भारत में कोयला 

बारे में:  

  • भारत में कोयला सबसे महत्वपूर्ण और प्रचुर मात्रा में जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा जरूरतों का 55% हिस्सा है। देश की औद्योगिक विरासत स्वदेशी कोयले पर बनाई गई थी।
  • भारतीय कोयला अगली सदी और उसके बाद के घरेलू ऊर्जा बाजार के लिए एक अद्वितीय पर्यावरण के अनुकूल ईंधन स्रोत प्रदान करता है। 27 प्रमुख कोयला क्षेत्रों में फैले कठोर कोयला भंडार मुख्य रूप से देश के पूर्वी और दक्षिण-मध्य भागों तक ही सीमित हैं।
  • दुनिया के चौथे सबसे बड़े भंडार होने के बावजूद भारत दूसरा सबसे बड़ा कोयला आयातक है, और देश की बिजली मांग का लगभग तीन-चौथाई कोयला निर्भरता पर है।

कोयला आधारित बिजली संयंत्र:

25 वर्ष से अधिक पुरानी उत्पादन इकाइयों को बनाए रखना बुरा विचार नहीं है क्योंकि सुसंचालित संयंत्रों की ‘स्टेशन हीट रेट’ दीर्घ कार्यकरण के साथ प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं होती है। पुराने संयंत्रों को चालू रखने का लाभ यह है कि पारेषण लिंक पहले से ही मौजूद हैं और इनका कोयला लिंकेज बना हुआ है।

  • कोयले से चलने वाला पावर स्टेशन या कोयला बिजली संयंत्र एक थर्मल पावर स्टेशन है। कोयले के दहन से उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग पानी को उच्च दबाव वाली भाप में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है, जो टरबाइन चलाती है, जिससे बिजली पैदा होती है।
  • कोयला दहन से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड,सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कणिका पदार्थ (Particulate Matter- PM) का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन, धूम्र-कोहरा (smog), अम्ल वर्षा और श्वसन रोग, हृदय संबंधी समस्याओं तथा यहाँ तक कि समय-पूर्व मृत्यु में योगदान करते हैं।

कोयला आधारित बिजली घरों बनाम बिजली की मांग पर प्रतिबंध

  • भारत विद्युत उत्पादन के लिये कोयले पर अत्यधिक निर्भर है। भारत में उत्पादित कुल विद्युत का लगभग 55% कोयले से उत्पादित होता है और यह देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का मुख्य स्रोत है।

प्रतिबंध के बारे में:

  • सरकार को नए कोयला आधारित बिजली स्टेशनों की स्थापना पर प्रतिबंध पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है। हालांकि, जो प्लांट पहले से ही निर्माणाधीन हैं, उन्हें जारी रखने की अनुमति दी जाएगी।

बिजली की मांग:

  • सरकार ने कहा है कि 2029-30 में बिजली की मांग बढ़ने पर लगभग 16,000 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता कोयला आधारित सयंत्र  की आवश्यकता होगी।
  • इससे कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों के प्लांट लोड फैक्टर (PLF) वर्ष 2026-27 के 55% से बढ़कर 2031-32 में 62% हो जाएगा।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ( CEA ) की रिपोर्ट में 16,900 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता की आवश्यकता का हवाला दिया गया हैं।

मुद्दे

प्रतिबंध और मांग बेमेल:

  • सवाल यह है कि अगर हम किसी नए कोयला आधारित संयंत्रों की अनुमति नहीं देते हैं तो हम 2029-30 में अपनी मांग को कैसे पूरा करेंगे? सरकार को शायद लगता है कि लगभग 16,000 मेगावाट कोयला आधारित क्षमता की अतिरिक्त क्षमता की आवश्यकता नहीं हो सकती है, मुख्य रूप से निम्नलिखित कारण हैं।

विभिन्न मांगों के साथ विभिन्न रिपोर्ट:-

  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की रिपोर्ट के दो संस्करण हैं।
  • पहला जनवरी 2020 में और दूसरा अप्रैल 2023 में प्रकाशित हुआ था।
  • दूसरी रिपोर्ट में 2029-30 में बिजली की मांग 20वें इलेक्ट्रिक पावर सर्वे (ईपीएस) पर आधारित है जबकि पहली रिपोर्ट में 19वें ईपीएस के अनुमानों पर गौर किया गया है।
  • 19वें ईपीएस ने 2029-30 में 340 गीगावॉट की चरम मांग का अनुमान लगाया था, जबकि 20वें ईपीएस में संकेतित आंकड़ा 334 गीगावॉट है।

रिपोर्ट की धारणा-

  • ऐतिहासिक रूप से, सीईए के बिजली की मांग के अनुमानों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है और, शायद, सरकार को लगता है कि 2029-30 में वास्तविक मांग 20वें ईपीएस के अनुमानों से भी कम हो सकती है।

लोड वक्र का आकार बदलना:-

  • लोड वक्र का बदलता आकार, शायद, एक कारण है कि सरकार को लगता है कि 16,000 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता की आवश्यकता नहीं हो सकती है।
  • इससे कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों केप्लांट लोड फैक्टर (PLF) वर्ष 2026-27 के 55% से बढ़कर 2031-32 में 62% हो जाएगा।

इकाइयों की सेवानिवृत्ति:

  • सीईए रिपोर्ट के दूसरे संस्करण में, 2029-30 में कोयला आधारित स्टेशनों के लिए आवश्यक क्षमता कम हो गई है।
  • यह कमी ऊपर उल्लिखित कारणों के कारण है और 25 वर्ष पूरे होने के बाद इकाइयों की सेवानिवृत्ति से संबंधित नीति में एक बड़े बदलाव के कारण भी है।
  • इस संस्करण में उल्लेख किया गया है कि लगभग 2,121 मेगावाट कोयला आधारित क्षमता 2030 तक समाप्त हो जाएगी, जबकि इस रिपोर्ट के पहले संस्करण में कहा गया था कि लगभग 25,000 मेगावाट कोयला आधारित क्षमता 2030 तक समाप्त हो जाएगी।

सुझाव और आगे का रास्ता

पुरानी इकाइयों के साथ जारी:

  • 25 वर्ष से अधिक पुरानी उत्पादन इकाइयों को जारी रखना एक बुरा विचार नहीं है क्योंकि अच्छी तरह से बनाए रखने वाले संयंत्रों की स्टेशन ताप दर उम्र के साथ प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं होती है।
  • पुराने संयंत्रों को चालू रखने का लाभ यह है कि पारेषण लिंक पहले से ही हैं और कोयला लिंकेज बनाए रखा जाता है।

नई इकाइयों पर प्रतिबंध लगाना:

  • अतिरिक्त कोयला आधारित क्षमता की आवश्यकता को त्यागना भी एक अच्छा विचार है।
  • पारेषण एवं वितरण नेटवर्क में निवेश करके ग्रिड अवसंरचना एवं भंडारण क्षमता को सुदृढ़ करना, ग्रिड के लचीलेपन एवं प्रत्यास्थता को बढ़ाना और बैटरी भंडारण एवं पम्प्ड हाइड्रो स्टोरेज प्रणालियों (pumped hydro storage systems) को तैनात करना उपयोगी सिद्ध होगा।
    • इसमें ग्रिड कोड, सहायक सेवाएँ, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र (renewable energy zones) और ग्रीन कॉरिडोर जैसे उपाय भी शामिल हो सकते हैं।

इंडियन एक्स्प्रेस

yojna ias daily current affairs hindi med 30th May

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