भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की मुख्य समस्या और उसका समाधान

भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की मुख्य समस्या और उसका समाधान

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र –  2 के ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप ‘ और सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के ‘ पर्यावरण और जैव विविधता , पर्यावरण प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित मुद्दे ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, लैंडफिल, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 ’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक करेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की मुख्य समस्या और उसका समाधान ’ से संबंधित है।)

ख़बरों में क्यों ?

 

  • हाल ही में,भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नई दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या के समाधान के लिए अपनाए जा रहे अपर्याप्त उपायों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। 
  • उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर ध्यान दिलाया कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले 11,000 टन ठोस कचरे में से लगभग 3,800 टन का उचित निपटान नहीं किया जाता है। इस अनुपचारित अपशिष्ट का बड़ा हिस्सा लैंडफिल में जमा हो रहा है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या उत्पन्न हो रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने इसे राजनीतिक संघर्षों से दूर रखते हुए तत्काल समाधान की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नई दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या के समाधान के लिए दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी), और दिल्ली छावनी बोर्ड को नोटिस जारी किया है और इसके लिए स्पष्टीकरण मांगा है। 
  • वर्त्तमान समय में इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इसे व्यापक रूप से संबोधित करने का निर्णय लिया है और जल्द ही इस मुद्दे पर फिर से सुनवाई होने वाली है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त की गई इस प्रकार की चिंताएँ और आलोचनाएँ यह बताता हैं कि भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन एक जटिल और अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसका समाधान न केवल तकनीकी बल्कि प्रशासनिक और नीतिगत स्तर पर भी होना आवश्यक है।

 

भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की मुख्य समस्याएं : 

भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं – 

 

 

  1. नियमों का अप्रभावी क्रियान्वयन : अधिकांश महानगरों में कूड़ेदानों की स्थिति खराब है, जो या तो पुराने हैं, क्षतिग्रस्त हैं या फिर ठोस अपशिष्ट के लिए अपर्याप्त हैं।
  2. स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण की कमी :  इसके कारण असंसाधित मिश्रित अपशिष्ट लैंडफिल में जा रहा है, जो कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का उल्लंघन है।
  3. अपशिष्ट संग्रहण सेवाओं का अभाव : कुछ क्षेत्रों में नियमित अपशिष्ट संग्रहण सेवाएं नहीं हैं, जिससे कूड़ा-कचरा फैल जाता है।
  4. डंपिंग साइट्स की समस्या : भूमि की कमी के कारण महानगरों में अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों को समस्या होती है, जिससे अपशिष्ट अनुपचारित रह जाता है।
  5. डेटा संग्रहण तंत्र का अभाव : भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी ऐतिहासिक डेटा की कमी के कारण, निजी कंपनियां अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं की संभावित लागत और लाभों का सही ढंग से आकलन नहीं कर पातीं है।
  6. औपचारिक और अनौपचारिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली :  निम्न आय वाले समुदायों में अपशिष्ट संग्रहण सेवाओं की कमी होती है, जिससे अनौपचारिक क्षेत्र की भागीदारी बढ़ती है।
  7. जन – जागरूकता का अभाव : सामान्यतः जन जागरूकता की कमी और उचित अपशिष्ट प्रबंधन तकनीकों का अभाव अनुचित निपटान प्रथाओं में वृद्धि करता है।
  8. इन समस्याओं के समाधान के लिए नीतियों का सख्ती से पालन, जनजागरूकता बढ़ाने, और अपशिष्ट प्रबंधन तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है। 
  9. इसके अलावा, अपशिष्ट प्रबंधन में निजी क्षेत्र की भागीदारी और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करना भी जरूरी है।

 

भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की वर्तमान स्थिति : 

  • भारत में विश्व की लगभग 18% जनसंख्या है और यह वैश्विक नगरपालिका अपशिष्ट का 12% हिस्सा उत्पन्न करता है। इसमें सड़कों की सफाई, सतही नालियों से निकाली गई गाद, बागवानी का कचरा, कृषि और डेयरी का अपशिष्ट, उपचारित बायोमेडिकल अपशिष्ट (औद्योगिक, जैव-चिकित्सा और ई-कचरे को छोड़कर), बैटरी और रेडियोधर्मी कचरा शामिल है।
  • द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत प्रति वर्ष 62 मिलियन टन कचरा उत्पन्न करता है। इसमें से लगभग 43 मिलियन टन (70%) एकत्रित किया जाता है, जिसमें से केवल 12 मिलियन टन का ही सही तरीके से निपटान होता है और बाकी 31 मिलियन टन को लैंडफिल साइट्स पर डाल दिया जाता है।
  • उपभोग के बदलते पैटर्न और तेजी से आर्थिक विकास के साथ, अनुमान है कि 2030 तक शहरी नगरपालिका ठोस अपशिष्ट की मात्रा बढ़कर 165 मिलियन टन हो जाएगी।

 

भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 की मुख्य विशेषताएं : 

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016, जिन्होंने नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम 2000 का स्थान लिया है। वह कचरे के प्रबंधन के लिए नए ढांचे और दिशा-निर्देश प्रस्तुत करता है। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य कचरे के मुख्य स्रोत के स्तर पर ही उसके पृथक्करण, स्वच्छता और पैकेजिंग के साथ-साथ निपटान के लिए निर्माता और थोक उत्पादकों की जिम्मेदारियों को स्पष्ट करना है, ताकि उपयोगकर्ता शुल्क के माध्यम से संग्रह, निपटान और प्रसंस्करण को प्रोत्साहित किया जा सके।

 

  1. अपशिष्ट विभाजन : अपशिष्ट उत्पादकों को अपशिष्ट को तीन श्रेणियों – गीला (जैव निम्नीकरण), सूखा (प्लास्टिक, कागज, धातु, लकड़ी आदि), और घरेलू खतरनाक अपशिष्ट (डायपर, नैपकिन, सफाई एजेंटों के खाली कंटेनर, मच्छर प्रतिरोधी आदि) में विभाजित करने की जिम्मेदारी है।
  2. अपशिष्ट संग्रह : पृथक किए गए अपशिष्ट को अधिकृत अपशिष्ट एकत्रित करने वालों, अपशिष्ट संग्रहकर्ताओं या स्थानीय निकायों को सौंपना चाहिए।
  3. शुल्क और जुर्माना : अपशिष्ट उत्पादकों को अपशिष्ट संग्रहकर्ताओं के लिए ‘उपयोगकर्ता शुल्क’ और अपशिष्ट फैलाने या पृथक न करने पर ‘स्पॉट फाइन’ का भुगतान करना होगा।
  4. जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट प्रबंधन : जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट को जहाँ संभव हो, परिसर के भीतर कंपोस्टिंग या बायो-मिथेनेशन के माध्यम से संसाधित, उपचारित और निपटाया जाना चाहिए।
  5. निर्माता और ब्रांड मालिकों की जिम्मेदारियां : टिन, काँच और प्लास्टिक पैकेजिंग जैसे डिस्पोज़ेबल उत्पादों के निर्माताओं और ब्रांड मालिकों को अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने में स्थानीय अधिकारियों को वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए। ये नियम भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एक जिम्मेदार और सतत ढांचा प्रदान करते हैं, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता और स्वच्छता को बढ़ावा मिलता है।

 

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित प्रमुख पहल : 

 

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी प्रमुख पहल निम्नलिखित है – 

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016 : भारत में अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी इन नियमों के अनुसार, प्लास्टिक अपशिष्ट के उत्पादकों को प्लास्टिक के कचरे के उत्पादन को सीमित करने, इसके प्रसार को नियंत्रित करने और स्रोत पर ही अपशिष्ट को अलग करके भंडारण करने के लिए उपाय करने की आवश्यकता होती है। फरवरी 2022 में, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के नियमों में संशोधन किया गया।
  • जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 : भारत में इन नियमों का मुख्य उद्देश्य देशभर के स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं से निकलने वाले जैव-चिकित्सा अपशिष्ट का प्रबंधन करना है।
  • अपशिष्ट से धन पोर्टल :  भारत में इस पोर्टल का लक्ष्य अपशिष्ट के उपचार के लिए नई प्रौद्योगिकियों की पहचान करना और उन्हें विकसित करना है, जिससे ऊर्जा उत्पादन, सामग्री का पुनर्चक्रण, और मूल्यवान संसाधनों का निष्कर्षण संभव हो सके।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा ऊर्जा संयंत्रों का उपयोग : भारत में अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी यह पहल नगरपालिका और औद्योगिक ठोस अपशिष्ट को विद्युत या ताप में परिवर्तित करने के लिए अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्रों का उपयोग करती है।
  • प्रोजेक्ट रीप्लान : भारत में इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य प्रसंस्कृत प्लास्टिक अपशिष्ट को कपास फाइबर के कपड़ों के साथ 20:80 के अनुपात में मिलाकर कैरी बैग बनाना है।

 

समाधान / आगे की राह : 

 

 

  1. अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना करना : भारत में नगरपालिकाएं भविष्य में देश में होने वाली  जनसंख्या वृद्धि के अनुसार शहरी योजना बनाते समय बायोडिग्रेडेबल कचरे से खाद और बायोगैस उत्पादन को प्राथमिकता दें। इसके लिए, हितधारकों के साथ परामर्श करते हुए, उन्हें उपयुक्त स्थानों की पहचान करनी चाहिए और वहां पर अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना करनी चाहिए।
  2. अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं को विकसित करना : भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए रिफ्यूज़-व्युत्पन्न ईंधन (RDF) जैसे गैर-पुनर्चक्रण योग्य सूखे कचरे का उच्च ऊष्मीय मूल्य होता है, जिसका उपयोग बिजली उत्पादन के लिए अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं में किया जा सकता है।
  3. विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण को बढ़ावा देना : दिल्ली जैसे महानगरीय क्षेत्रों में खाद सुविधाएँ स्थापित करने के लिए पड़ोसी राज्यों के साथ सहयोग आवश्यक है। इससे जैविक खाद के बाजार को भी बढ़ावा मिलेगा।
  4. माइक्रो-कम्पोस्टिंग केंद्र (MCC) और सूखा कचरा संग्रह केंद्र (DWCC) की स्थापना करना  : भारत के अन्य राज्यों में भी, तमिलनाडु और केरल की तर्ज पर, प्रत्येक वार्ड में 5 TPD क्षमता वाले MCC और बंगलूरू से प्रेरित 2 TPD क्षमता वाले DWCC स्थापित किए जा सकते हैं।
  5. एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना : भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बड़े पैमाने पर प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ – साथ विकेंद्रीकृत विकल्पों का संयोजन करके सभी प्रकार के कचरे का उपचार सुनिश्चित करना चाहिए।

स्रोत –  द हिंदू एवं पीआईबी।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। ( UPSC – 2019)

  1. भारत वैश्विक नगरपालिका अपशिष्ट का 12% हिस्सा उत्पन्न करता है।
  2. प्रोजेक्ट रीप्लान के तहत प्लास्टिक अपशिष्ट को कपास फाइबर के कपड़ों के साथ 20 : 80 के अनुपात में मिलाकर कैरी बैग बनाना है।
  3. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 कचरे के प्रबंधन के लिए नया ढ़ांचा और गाइडलाइन जारी करता है।
  4. द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) के अनुसार भारत में प्रति वर्ष 62 मिलियन टन कचरा उत्पन्न होता है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?

A. केवल 1, 2 और 3 

B. केवल 2 , 3 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं।

D. इनमें से सभी।

उत्तर – D

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की मुख्य समस्या क्या है और उसका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है ? तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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