भूराजनीतिक परिप्रेक्ष्य में बांग्लादेश चुनाव परिणाम

भूराजनीतिक परिप्रेक्ष्य में बांग्लादेश चुनाव परिणाम

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन :  अंतर्राष्ट्रीय संबंध , अंतर्राष्ट्रीय संगठन, आधिकारिक विकास सहायता (ODA),बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) , एक्ट ईस्ट नीति , रैपिड एक्शन बटालियन, इंडो-पैसिफिक आर्थिक मंच या क्वॉड।

ख़बरों में क्यों ? 

  • जनवरी 2024 बांग्लादेश में आम चुनाव ख़त्म हो गए हैं प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने सरकार के प्रमुख के रूप में अपना पांचवां कार्यकाल हासिल किया है। उनकी पार्टी अवामी लीग ने 223 सीटों पर शानदार जीत हासिल की है यानी जातीय संसद में तीन-चौथाई सीट पर उनकी पार्टी ने जीत हासिल किया है। 
  • वर्ष   2008, 2014 और 2018 में चुनावी जीत के बाद इस बार शेख़ हसीना के लगातार चौथे कार्यकाल की शुरुआत हो रही है। ऐसे में बांग्लादेश की राजनीति और विदेश नीति में निरंतरता की उम्मीद की जा सकती है। 
  • बांग्लादेश अपने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए काफी हद तक विदेशी निवेश और विकास से जुड़े सहयोग पर निर्भर है। दक्षिण एशियाई देशों में बांग्लादेश सबसे ज़्यादा आधिकारिक विकास सहायता (ODA) हासिल करने वाला देश है। हालांकि इस बात की संभावना कम है कि मौजूदा चुनाव को निर्धारित करने वाला समीकरण बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों पर कोई असर नहीं छोड़ेगा. वास्तव में ये विकास से जुड़े परिदृश्य में भी दिखाई देगा।

भू-सामरिक रूप में बांग्लादेश का सामरिक महत्त्व  : 

  • बंगाल की खाड़ी के शिखर पर और हिंद एवं प्रशांत महासागरों के संगम के नज़दीक स्थित बांग्लादेश भू-सामरिक रूप से इंडो-पैसिफिक में एक महत्वपूर्ण देश है। 
  • बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति उसे समुद्री मार्गों के जहाजों के महत्वपूर्ण मार्गों पर निगरानी या नज़र रखने की अतिरिक्त आज़ादी या सुविधा देती है। इन रास्तों से खाड़ी देश से होकर बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के ज़रिए पूर्व एशिया तक तेल से लदे जहाजों का आवागमन होता हैं। इसलिए ऊर्जा असुरक्षा से भरे भविष्य में बांग्लादेश कई बड़ी ताकतों के लिए महत्वपूर्ण साझेदार है जो अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था और ज़्यादा घनत्व वाली आबादी के लिए बिना किसी रुकावट के ईंधन की अबाध आपूर्ति चाहता है। 
  • बंगाल की खाड़ी में बांग्लादेश का हाइड्रोकार्बन भंडार, जिसे इस्तेमाल में नहीं लाया गया है, ऊर्जा सहयोग में एक संभावित साझेदार के रूप में उसके महत्व को बढ़ाता है।
  • हाल के वर्षों में बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता, तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, सस्ती श्रम लागत, पर्यावरण से जुड़े नियंत्रण में सख्त़ी की कमी और विकास से जुड़ी साझेदारों को बढ़ावा देने के लिए उत्सुक सरकार ने निवेश के लिए एक आकर्षक देश के रूप में उसके महत्व को और बढ़ा दिया है। 
  • इंडो-पैसिफिक की बड़ी ताकतों में अमेरिका, चीन, भारत और जापान बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अलग – अलग सबसे ज़्यादा योगदान करते हैं। इनमें व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश समेत उसकी विदेशी कमाई और विकास के लिए विदेशी सहायता में योगदान शामिल हैं।
  • विश्व की महत्वपूर्ण पत्रिका फोर्ब्स के अनुसार सबसे दिलचस्प और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ये चारों ही देश 2024 में अपनी-अपनी GDP के मामले में दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं। 
  • चीन के लिए बांग्लादेश बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में पैर ज़माने का महत्वपूर्ण साधन और उसकी प्रमुख योजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में एक अहम प्रस्थान – बिंदु है।  
  • भारत के साथ संबंधों में आई गिरावट, श्रीलंका के कर्ज़ संकट में फंसे होने और म्यांमार में उत्पन्न मौजूदा राजनीतिक – अस्थिरता के साथ बांग्लादेश चीन के लिए उसके ‘पूर्व एशिया के सांचे’ से अलग होने और हिंद महासागर में अपनी समुद्री मौजूदगी मज़बूत करने का सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।
  • महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि दक्षिण एशिया के ज़्यादातर देशों की तरह बांग्लादेश भी चीन में निर्मित सामानों के लिए एक तैयार बाज़ार के रूप में उपलब्ध है और चीन उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।  
  • अमेरिका की निहित हितों की दृष्टिकोण से देखें तो चीन के उदय से पैदा हुए मौजूदा भू-राजनीतिक उथल – पुथल और अस्थिरता के बीच बांग्लादेश इस क्षेत्र में उसकी स्थिति मज़बूत करने का सबसे महत्वपूर्ण  ज़रिया है। 
  • आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमेरिका की लड़ाई में भी बांग्लादेश उसका एक प्रमुख साझेदार है। 
  • अमेरिका बांग्लादेश के लिए दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और उसके प्रमुख निर्यात उत्पाद रेडीमेड गारमेंट के लिए सबसे बड़ा निर्यात का व्यापारिक – अड्डा भी है। 
  • इसके साथ -ही साथ दक्षिण एशिया में बांग्लादेश को सबसे ज़्यादा USAID (अमेरिकी सहायता) हासिल होता है।
  • जापान के लिए बांग्लादेश संपर्क का एक संभावित बिंदु है जिसके ज़रिए वो दक्षिण और दक्षिण – पूर्व एशिया के पड़ोसी देशों के साथ अपने संपर्क – माध्यमों या कनेक्टिविटी जोड़ सकता है और वहां के बाज़ारों तक अपना माल पहुंचा सकता है।
  • इस सबके विपरीत जापान बांग्लादेश के लिए आधिकारिक विकास सहायता (ODA) का सबसे बड़ा स्रोत है।

भारत – बांग्लादेश संबंध की सामरिक स्थिति : 

  • भारत के लिए बांग्लादेश एक ‘स्वाभाविक साझेदार है जिसे उसके पूर्वी क्षेत्र से अलग करके बनाया गया है, जो बांग्लादेश को एक सामरिक सहयोगी की तरह मानते हैं।
  • भौगोलिक तौर पर बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति भारत के लैंडलॉक्ड (समुद्र से दूर) पूर्वोत्तर को एक समुद्री रास्ता प्रदान करने और भारत कीएक्ट ईस्ट नीति ’ एवं पड़ोस सर्वप्रथम ’ नीतियों का समर्थन और प्रचार करने के हिसाब से सबसे मजबूत और अच्छी स्थिति में है।
  • बांग्लादेश के लिए भारत तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और नेपाल एवं भूटान के साथ संपर्क के लिए एक महत्वपूर्ण रास्ता है।
  • ऑस्ट्रेलिया भी विकास सहायता के ज़रिए धीरे-धीरे बांग्लादेश के साथ अपनी साझेदारी को मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है क्योंकि वो पूर्वोत्तर हिंद महासागर में शांति और स्थिरता को बनाए रखना राष्ट्रीय हित में मानता है।
  • दुनिया की महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं वाली बड़ी ताकतों और बांग्लादेश के बीच इस निर्भरता को देखते हुए फलते – फूलते द्विपक्षीय संबंधों की आवश्यकता है, ख़ास तौर पर बांग्लादेश के लिए क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था में अनेक चुनौतियां बाधा उत्पन्न कर रही है जिसकी वजह से उसकी अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा गिरावट का ख़तरा है।
  • आर्थिक हितों और ज़रूरतों ने पहले ही भारत को पनबिजली परियोजनाएं विकसित करने और इस क्षेत्र में बिजली के आपसी कारोबार को बढ़ावा देने को मजबूर किया है। 
  • हाल के वर्षों में भारत की आर्थिक आवश्यकताओं और चीन के ख़तरे ने उसके लिए दक्षिण एशियाई देशों की महत्ता, द्विपक्षीय ही नहीं  पूरे क्षेत्र के लिहाज़ से और बढ़ा दी है। इसीलिए, भारत ने दूसरे देशों के साथ ख़ुद भी और अन्य देशों के बीच भी बिजली की कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने में काफ़ी दिलचस्पी दिखाई है। भारत से दक्षिण एशिया के बाक़ी देशों को बिजली आपूर्ति के नेटवर्क और पेट्रोलियम की पाइपलाइन में काफ़ी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। 2019 में भारत ने नेपाल तक पेट्रोलियम आपूर्ति की पाइपलाइन बिछाई थी जो दक्षिण एशिया में दो देशों के बीच पहली पाइपलाइन है, जिससे 28 लाख टन डीज़ल की आपूर्ति की जा रही है।
  •  मार्च 2023 में भारत और बांग्लादेश ने हर साल दस लाख टन डीज़ल की आपूर्ति के लिए पाइप लाइन  बिछाने का काम शुरू किया था. इसी तरह जुलाई 2023 में श्रीलंका के साथ भी ऐसी ही पाइपलाइन कनेक्टिविटी स्थापित करने को लेकर चर्चा हुई थी।
  • भारत ने अपने पड़ोसियों के साथ बिजली आपूर्ति के तहत कई समझौते पर हस्ताक्षर भी किए हैं। दक्षिण एशिया में बिजली आपूर्ति के क्षेत्र में मांग और आपूर्ति के उभरते समीकरणों में अब भारत एक ऐसे ताकत के रूप में उभर रहा है, जो इस क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण, व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा दे रहा है।
  • 2018 में भारत ने सीमा के आर पार बिजली के कारोबार से जुड़े अपने दिशा-निर्देशों (CBTI) में रियायतें दी थीं इससे भारत के बिजली बाज़ार को दक्षिण एशिया के बिजली बाज़ार के तौर पर विकसित करने की राह खुल चुकी है। बिजली ग्रिड की कनेक्टिविटी से बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और श्रीलंका जैसे देशों को भारतीय ग्रिड के ज़रिए बिजली ख़रीदने, बेचने और भारत के बिजली बाज़ार में हिस्सा लेने का मौक़ा मिला है। इसके साथ – ही –  साथ, CBTI के दिशा-निर्देशों में संशोधन ने भारत के रास्ते दो देशों के बीच बिजली की आपूर्ति का रास्ता भी खोला है।

संतुलन की कूटनीति बनाम नए राजनीतिक आयाम :  

  • इंडो-पैसिफिक की बड़ी ताकतों मुख्य रूप से अमेरिका एवं चीन  जिनके बीच मुकाबला चल रहा है, ने बांग्लादेश को अपने साथ जोड़ने के लिए और उसे प्रभावित करने की कोशिश की है, लेकिन बांग्लादेश ने इन देशों के साथ अपनी बातचीत में संतुलन की कूटनीति को आगे बढ़ाया है।
  • अप्रैल 2023 में जारी इंडो-पैसिफिक आउटलुक (दृष्टिकोण) बांग्लादेश की आर्थिक प्रतिबद्धता और राजनीतिक गुटनिरपेक्षता का दस्तावेज़ होने के अलावा संतुलन के इस कूटनीतिक रवैये की भी एक घोषणा है। 
  • वैसे तो आउटलुक में अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति की तरह ही महत्वपूर्ण व्यापारिक और सामरिक शब्दावली और प्राथमिकताएं हैं लेकिन इसमें ये ध्यान भी रखा गया है कि चीन को नाराज़ न किया जाए क्योंकि चीन इंडो-पैसिफिक को एक अमेरिकी चाल मानता है जो उसके असर को नियंत्रित करने के लिए है। 
  • हालांकि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति की वजह से आउटलुक के जारी होने को अक्सर अमेरिका को शांत करने की बांग्लादेश की रणनीतिक पैंतरेबाजी के तौर पर समझा गया है क्योंकि चीन के साथ बांग्लादेश की बढ़ती नज़दीकी को लेकर अमेरिका अपनी चिंता समझता है।
  • अमेरिका की चिंता की वजहों में बांग्लादेश के द्वारा अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति को समर्थन देने में हिचकिचाहट और अमेरिका से न्योता हासिल करने के बावजूद इंडो-पैसिफिक आर्थिक मंच या क्वॉड (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की सदस्यता वाले इस संगठन को चीन अपना विरोधी मानता है) जैसी पहल में बांग्लादेश का शामिल नहीं होना भी शामिल है।
  • अमेरिका ने अपनी चिंताओं की वजह से पिछले कुछ वर्षों में वास्तव में बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में दखल देने की कोशिश की है ताकि बांग्लादेश की सरकार पर ज़्यादा – से ज्यादा असर डाला जा सके। 2021 में अमेरिका ने मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों को लेकर बांग्लादेश की  रैपिड एक्शन बटालियन के सात पूर्व एवं मौजूदा उच्च – स्तर के अधिकारियों पर पाबंदी लगा दिया था। बांग्लादेश में अमेरिका के राजदूत पीटर हास ने कथित अपहरण के पीड़ितों के परिवारों के साथ भी मुलाकात भी की थी। इसमें बांग्लादेश के मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेता साजेदुल इस्लाम सुमॉन के परिवार से मुलाकात भी शामिल है।
  • बाइडेन प्रशासन ने अपने लोकतंत्र शिखर सम्मेलनों में भी बांग्लादेश को न्योता नहीं दिया था और 12वें आम चुनाव से पहले अपने ताज़ा कदम के तहत बांग्लादेश के उन लोगों को अमेरिकी वीज़ा जारी करने पर रोक लगा दी जिनके बारे में उसे शक है कि वो लोकतांत्रिक चुनाव को खोखला कर रहे हैं। शुरुआत में अमेरिकी निर्देशों का पालन करने के बाद जल्द ही शेख़  हसीना सरकार ने लोकतंत्र और मानवाधिकार को लेकर अमेरिका को फटकार लगाना शुरू कर दिया। इसकी वजह से मौजूदा अमेरिका-बांग्लादेश संबंधों में साफ तौर पर तनाव है। यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि चीन ने कोविड -19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान बांग्लादेश को वैक्सीन प्रदान करने के तुरंत बाद इस मौके का इस्तेमाल उसे क्वॉड में शामिल होने के ख़िलाफ़ चेतावनी देने के लिए किया। 
  • हालांकि जब बांग्लादेश ने अपनी संप्रभुता का दावा करते हुए दृढ़ प्रतिक्रिया दी तो चीन पीएम शेख़ हसीना को ये भरोसा देने से पीछे हट गया कि वो अमेरिका के दबाव का सामना करने और आर्थिक संबंधों को बढ़ाने के लिए चीन पर भरोसा कर सकती हैं। 

बांग्लादेश चुनाव के बाद विदेश नीति की समीक्षा :

बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता की आवश्यकता को महसूस करते हुए,शेख़ हसीना सरकार पिछले 15 वर्षों के दौरान सफल रही है।

  1. हसीना सरकार ने यह माना कि बांग्लादेश का चुनाव उसका आंतरिक मामला है न कि इसमें अमेरिका को कोई भी हस्तक्षेप करना चाहिए। भारत ने अमेरिका से अनुरोध किया कि वो हसीना सरकार पर बहुत ज़्यादा दबाव न डाले क्योंकि ऐसा करने पर बांग्लादेश के समाज के कट्टर तत्वों को उभरने में मौका या प्रोत्साहन मिलेगा और इस तरह क्षेत्रीय स्थिरता ख़तरे में आएगी। फलतः बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता फ़ैल सकती है। ऑस्ट्रेलिया ने इस मुद्दे पर कोई भरोसा नहीं दिया, इसलिए चुनाव के बाद इन देशों के साथ बांग्लादेश के संबंध मजबूत होंगे। भारत-बांग्लादेश संबंधों में “स्वर्णिम अध्याय” को बढ़ावा मिलेगा और सहयोग के मौजूदा क्षेत्रों में गहन तालमेल बढ़ेगा।इसके साथ – ही – साथ देशों के बीच नए क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार भी होगा।
  2. बांग्लादेश – जापान के साथ संबंधों को भी नया आयाम और विस्तार मिलेगा, इसके साथ ही भारत का पूर्वोत्तर बांग्लादेश, जापान और भारत के बीच सहयोग का एक बड़ा क्षेत्र बनेगा। ऑस्ट्रेलिया के साथ भी संपर्क – संबंध भी मज़बूत होगा। हालांकि यही हालात बांग्लादेश-अमेरिका के बीच रिश्तों को लेकर नहीं माना जा सकता है। चुनाव के नतीजों का ऐलान होने के बाद अमेरिका ने यह  बयान जारी किया था कि बांग्लादेश का चुनाव स्वतंत्र या निष्पक्ष नहीं था और कथित चुनावी धांधलियों को लेकर अमेरिका ने अपनी चिंता भी जताई थी। हसीना सरकार अमेरिका के इस बयान पर क्या जवाब देती है यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन अमेरिका का रुख़ बांग्लादेश को चीन की तरफ और ज़्यादा झुकने के लिए मजबूर कर सकता है। 
  3. पड़ोस के देश में चीन की मौजूदगी में बढ़ोतरी भारत के लिए असहज स्थिति का कारण भी बनेगी क्योंकि आने वाले वर्षों में बांग्लादेश की संतुलन की कूटनीति तेज़ी से चीन और भारत के साथ उसके जुड़ाव में संतुलन बनाए रखने की तरफ बढ़ेगी।
  4. यह भी संभावना है कि अगर अमेरिकी सहायता में कमी आती है तो चीन के साथ बांग्लादेश अपनी भागीदारी में बढ़ोतरी करेगा। लेकिन हसीना सरकार को ये अच्छी तरह मालूम है कि अलग-अलग देशों के चीन के कर्ज़ जाल में बुरी तरह फंसने को लेकर दुनिया की क्या चिंताएं हैं. इस तरह हसीना सरकार चीन के साथ अपने सहयोग को लेकर सावधान रहेगी और इसके साथ-साथ विकास से जुड़ी वैकल्पिक साझेदारी के तौर पर जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग बढ़ाएगी ताकि चीन पर अपनी एकमात्र निर्भरता को रोके और अपनी राजनीतिक गुटनिरपेक्षता को भी बनाए रख सके।
  5. आपसी हितों के लिए बांग्लादेश को अमेरिका के साथ भी अपने संबंध ठीक रखने होंगे लेकिन इसके लिए अमेरिका की तरफ से भी सुलह की कुछ कोशिशों की ज़रूरत अवश्य होगी। यह सभी रणनीतिक फैसले एक क्रमिक प्रक्रिया के तहत ही होगी क्योंकि मौजूदा समय में इस बात की कम उम्मीद है कि अमेरिकी जो राष्ट्रपति बाइडेन या बड़ी जीत हासिल करने के बाद पीएम हसीना अपने-अपने राजनीतिक रुख से पीछे हटने की कोशिश करेंगी। 
  6. वर्तमान समय में पीएम हसीना बांग्लादेश के दूसरे रणनीतिक साझेदारों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं या संगठनों और यहां तक कि अपने देश के लोगों को भी अपनी चुनावी जीत की विश्वसनीयता का भरोसा दिलाना होगा ताकि ख़ास तौर पर अपने विपक्षियों के ज़रिए अमेरिका के नैरेटिव को और ज़्यादा मज़बूत होने से रोका जा सके।
  7. बांग्लादेश बहुत जल्दी नेपाल के साथ बिजली ख़रीदने का 25 साल का सौदा करने वाला है।  इसके तहत नेपाल, बांग्लादेश को 40 मेगावाट बिजली का निर्यात करेगा। भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से नेपाल और बांग्लादेश के बीच बिजली के इस कारोबार को, भारत के इलाक़ों से होकर गुज़रना होगा। इस व्यापारिक सौदे – जिसका मसौदा पहले ही तैयार किया जा चुका है को नेपाल, बांग्लादेश और भारत के बीच होने वाला त्रिपक्षीय समझौता होते ही, औपचारिक रूप दे दिया जाएगा। यह पहला समझौता होगा, जिसके तहत दक्षिणी एशिया के दो देश, भारत की पावर ग्रिड के ज़रिए बिजली का व्यापार करेंगे। समझौते से नेपाल और बांग्लादेश की लंबे समय से चली आ रही बिजली आपूर्ति की मांग पूरी होगी। इसे लागू करने से दक्षिण एशिया के छोटे देशों की बिजली की बढ़ती मांग और उसकी अहमियत का संकेत मिलता है। यह भारत का अपने पडोसी देशों के साथ बदल रहे विदेश नीति के संदर्भ में यह बताता है कि अपने पड़ोसी देशों के क्षेत्रों  में चीन की बढ़ती मौजूदगी से निपटने के लिए भारत ने, कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं।

घरेलू मजबूरियां : 

बांग्लादेश, भयंकर गर्मी में भीअपने यहां बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने की चुनौती से जूझ रहा है बांग्लादेश के कई इलाक़े तो अक्सर 10 से 12 घंटे की बिजली कटौती का सामना कर रहे हैं। बिजली की इस क़िल्लत से बांग्लादेश में सिर्फ़ आम नागरिक ही नहीं है. बल्कि बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग भी काफ़ी नुक़सान उठा रहा है। इस समस्या की जड़ ये है कि बांग्लादेश पिछले साल से ही कोयले और प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में कमी का सामना कर रहा है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित है –  

  1. प्राकृतिक संसाधनों की खोज के लिए सरकारी कंपनियों का इस्तेमाल न करना।
  2. बिजली उत्पादन को प्राकृतिक गैस पर बहुत अधिक निर्भर बनाना। 
  3. रूस- यूक्रेन युद्ध की वजह से ईंधन की क़ीमतों में इज़ाफ़ा होना।
  4. रूस से कच्चे तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की वजह से यूरोपीय देशों में प्राकृतिक गैस का आयात और इसकी वजह से क़ीमतों में उछाल आना ।
  5. ओपेक प्लस देशों द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करना।
  6. बढ़ता तापमान।
  7.  और 
  8. अभी हाल ही में आया समुद्री चक्रवात, जिसकी वजह से बिजली की आपूर्ति में कटौती हो गई थी । 

पानी के पर्याप्त स्रोतों की वजह से नेपाल अपने यहां पानी से बनने वाली बिजली के निर्यात को बढ़ावा देना चाहता है। पनबिजली परियोजनाओं से बनी बिजली के निर्यात का ख़्वाब नेपाल, लंबे समय से पालता-पोसता आया है. लेकिन, कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे बाहरी झटकों की वजह से, नेपाल के लिए ये सपना पूरा करने की ज़रूरत और भी बढ़ गई है । इन झटकों के कारण नेपाल के घरेलू उत्पादन, पर्यटन उद्योग और विदेश में बसे नेपालियों द्वारा अपने देश भेजी जाने वाली रक़म में काफ़ी गिरावट आ गई है, जबकि महंगाई बढ़ गई है। पिछले छह दशक में पहली बार नेपाल आर्थिक मंदी का शिकार हो गया है और उसके विदेशी मुद्रा भंडार में भारी गिरावट आ गई है। मौजूदा परिस्थिति ने नेपाल के सामने दो मुख्य बुनियादी चुनौतियों को सामने ला खड़ा किया है-  

आयात पर उसकी निर्भरता और ख़र्च। 

विदेशी मुद्रा अर्जित करने के सीमित स्रोत।

इस मामले में बांग्लादेश की बढ़ती अर्थव्यवस्था और बिजली की मांग, नेपाल को अपनी पनबिजली का निर्यात करने का एक मौक़ा मुहैया करा रही है। नेपाल को उम्मीद है कि इस निर्यात से आयात का बोझ कम होगा और सरकार की डॉलर में आमदनी बढ़ जाएगी। राजनीतिक तौर पर बांग्लादेश के साथ कनेक्टिविटी से नेपाल पनबिजली के निर्यात का पुराना ख़्वाब पूरा करने और नेपाल को चारों तरफ़ ज़मीन से घिरे देश से चारों तरफ़ ज़मीनी संपर्क वाला देश बनाने का दावा कर सकेंगे। इस सौदे से नेपाल के नेताओं को अपने यहां की उस राष्ट्रवादी मांग को भी जवाब देने का मौक़ा मिलेगा, जिसके तहत वो ये दावा कर सकेंगे कि एक छोटा देश होने के बावजूद, नेपाल ने ‘बड़े भाई’ भारत जैसे विशाल देश को रियायतें देने के लिए मजबूर कर दिया। नेपाल के प्रधानमंत्री ने हाल ही में बयान दिया था कि वो कालापानी देने के बदले में भारत के संवेदनशील सिलीगुड़ी गलियारे से होकर बांग्लादेश को अपने उत्पाद निर्यात करने का रास्ता हासिल कर सकेंगे. इससे नेपाल के नेताओं द्वारा राष्ट्रवादी जज़्बात को बढ़ावा देने की बात और सही लगती है।

बांग्लादेश में चीन का बढ़ता निवेश : 

भारत द्वारा अपने पड़ोसियों के साथ सहयोग और संपर्क बढ़ाने की एक वजह इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति भी है।

 2021 में बांग्लादेश बैंक के आंकड़ों से पता चला था कि ‘ चीन ने बांग्लादेश के ऊर्जा क्षेत्र में कुल 45 करोड़ डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया हुआ है और ये सारी रक़म जीवाश्म ईंधन पर आधारित बिजलीघरों में लगी हुई है।’ 

वर्तमान समय में चल रहे बांग्लादेश के दो कोयले वाले बिजलीघरों में भी बांग्लादेश पर बाहरी क़र्ज़ के कार्यकारी समूह चीन का पैसा लगा हुआ है। 

इन दोनों बिजलीघरों में कुल मिलाकर 1845 मेगावाट बिजली बनाई जाती है; 4460 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाले कोयले से चलने वाले पांच और बिजलीघरों में भी चीनी कंपनियों ने निवेश किया हुआ है।

सितंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने घोषणा की थी कि, ‘चीन अन्य विकासशील देशों में हरित और कम कार्बन उत्सर्जन वाली बिजली बनाने को बढ़ावा देगा और अब वो विदेशों में कोयले से चलने वाले नए बिजलीघर बनाने में निवेश नहीं करेगा 

वर्तमान समय में बांग्लादेश अपने कुल बिजली उत्पादन का 42 प्रतिशत हिस्सा भारी ईंधन से ही बनाता है।

ऐसे में बांग्लादेश को ज़रूरत इस बात की है कि वह बिजली के दूसरे स्रोतों पर भी ध्यान केन्द्रित करे। उदहारण के लिए –  विदेश से बिजली आयात करने का विकल्प अपनाया जाए क्योंकि इस समय बांग्लादेश अपनी कुल ज़रूरत की केवल पांच प्रतिशत बिजली बाहर से ख़रीदता है।

इससे भारत द्वारा बांग्लादेश में बिजली सेक्टर में निवेश के अवसर बढ़ जाते हैं।

आख़िरकार भारत ने चीन की जगह ले ली है और इनमें से चार परियोजनाएं बनाने में वो नेपाल की मदद कर रहा है,  चूंकि अब चीन, नेपाल के साथ सीमा के आर-पार पावरग्रिड स्थापित करने के लिए काफ़ी तेज़ी से काम कर रहा है, इसीलिए भारत ने भी इस दिशा में तेज़ी दिखाई है।

वहीं दूसरी ओर, नेपाल के पनबिजली सेक्टर में चीन का निवेश नेपाल की उम्मीदों से बहुत कम रहा है. चीन ने नेपाल को पनबिजली परियोजनाएं लगाने में निवेश और मदद की है- जैसे कि मर्यिसांगडी और तामाकोशी की परियोजनाएं- लेकिन नेपाल को इस मामले में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 

भारत इकलौता देश है, जो नेपाल से बिजली का निर्यात करता है, और उसके CBTI के संशोधित दिशा-निर्देश, चीन की मदद से लगाए गए बिजलीघरों से पैदा बिजली को भारत की ग्रिड के रास्ते दूसरे पड़ोसी देशों को आपूर्ति करने से रोकते हैं. दूसरा, राजनीतिक स्थिरता के कारण चीन की कई कंपनियों ने नेपाल की परियोजनाओं से हाथ खींच लिए हैं. वहीं तकनीकी मुश्किलों और कम रिटर्न की वजह से भी नेपाल में BRI परियोजना के तहत बनाई जा रही पनबिजली परियोजनाओं में कोई प्रगति नहीं हो रही है, क्योंकि नेपाल, चीन से कारोबारी क़र्ज़ लेने का विरोध करता रहा है। 

अब भारत, नेपाल को अपने व्यापारिक साझीदार (यानी बांग्लादेश) तक पहुंचने में मदद कर रहा है; इस क्षेत्र में अधिक आपसी निर्भरता और कनेक्टिविटी को बढ़ावा दे रहा है; अपने पड़ोसियों की मांग के प्रति अधिक संवेदनशीलता दिखा रहा है; और इस तरह, क्षेत्र में चीन की उपस्थिति और प्रभाव को सीमित करने की कोशिश कर रहा है।

Download yojna daily current affairs hindi med 17th January 2024
 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1 . वर्तमान भूराजनीतिक परिप्रेक्ष्य में बांग्लादेश चुनाव परिणाम के बाद दक्षिण एशिया में पड़ने वाले संभावित प्रभावों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए ।

  1. बांग्लादेश – जापान के साथ संबंधों को भी नया आयाम और विस्तार मिलेगा, इसके साथ ही भारत का पूर्वोत्तर बांग्लादेश, जापान और भारत के बीच सहयोग का एक बड़ा क्षेत्र बनेगा। 
  2. दक्षिण एशियाई देशों में बांग्लादेश सबसे ज़्यादा आधिकारिक विकास सहायता (ODA) हासिल करने वाला देश है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?

(A) केवल 1 

(B ) केवल 2 

(C ) इनमें से कोई नहीं ।

(D) इनमें से सभी ।

उत्तर – (D)

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

Q. 1. चर्चा कीजिए कि वर्तमान समय में संपन्न बांग्लादेश चुनाव परिणाम भारत के समक्ष किस तरह की  भू – राजनीतिक अवसर और जटिलताएं पैदा करेगा ? तर्कसंगत व्याख्या कीजिए

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