भ्रष्ट आचरण

भ्रष्ट आचरण

भ्रष्ट आचरण

संदर्भ- हाल ही में ‘अनुग्रह नारायण सिंह बनाम हर्षवर्धन बाजपेयी’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरथना की पीठ ने 2017 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की, जिसमें भाजपा विधायक के चुनाव को घोषित करने के लिए समान शीर्षक वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के बर्खास्तगी के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में कोई भी मतदाता, उम्मीदवार को उनकी शैक्षिक योग्यता के आधार पर मत नहीं देता। इस प्रकार चुनावी उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी देना, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 123(2) और 123(4) के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता है।  

भारत में चुनावी उम्मीदवारों की शैक्षिक योग्यता व प्रावधान

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार चुनावी उम्मीदवार को अपने विषय में कुछ विवरण देना होता है जिसे सार्वजनिक किया जा सके। जैसे-

  • उम्मीदवार के खिलाफ दायर आपराधिक मामले
  • उम्मीदवार व उसके परिवार के सदस्यों की सम्पत्ति व देनदारियाँ
  • उम्मीदवारों की शैक्षिक योग्यता।

सार्वजनिक विवरण को ध्यान में रखकर यदि मतदाता कोई जानकारी चाहता है तो वह सूचना के अधिकार के आधार पर उम्मीदवारों के विवरण को प्राप्त कर सकता है। किंतु शैक्षिक योग्यता का न्यूनतम आधार रखा गया है जैसे-

जिला परिषद व पंचायत समिति के प्रत्याशियों के लिए न्यूनतम 10वी पास और सरपंच के लिए न्यूनतम आठवी पास का प्रावधान रखा गया है ताकि उच्च शिक्षा न पा सकने वाले नागरिक, चुनाव प्रणाली से वंचित न हो पाएं और अशिक्षित उम्मीदवार, आधुनिक तंत्र को समझने में गलती न कर पाएं।

भ्रष्ट आचरण- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत-

अधिनियम की धारा 123 के अनुसार रिश्वतखोरी, अनुचित प्रभाव, झूठी सूचना, और धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय के आधार पर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच “दुश्मनी या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने या चुनाव में अपनी संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए ‘भ्रष्ट आचरण’ को परिभाषित किया गया है। 

अधिनियम 123(2) के अनुसार ‘अनुचित प्रभाव’ से संबंधित है जिसे यह “उम्मीदवार या उसके एजेंट, या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से उम्मीदवार या उसके चुनाव की सहमति से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने के प्रयास के रूप में परिभाषित करता है। इसमें किसी जाति या समुदाय का खतरा भी शामिल हो सकता है।

अधिनियम 123(4) में झूठे बयानों के प्रकाशन के लिए भ्रष्ट प्रथाओं के दायरे का विस्तार करती है और यह उम्मीदवार के चुनावी परिणामों को भी प्रभावित कर सकती है।

भ्रष्ट आचरण केस

2017 में अभिराम सिंह बनाम सीडी कोमाचेन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि उम्मीदवार धर्म, नस्ल व जाति के नाम पर वोट मांगे तो चुनाव रद्द कर दिया जाएगा और धारा 123(3) के तहत इसे प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।

1994 में एस आर बोम्मई बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धर्म के प्रति राज्य का जो भी रवैया हो लेकिन धर्मनिरपेक्षता के लिए इसे राज्य में नहीं मिलाया जा सकता। यह धारा 123(3) के तहत पूर्णतः प्रतिबंधित हैं।

हाल ही के केस सुब्रह्मण्यम बालाजी व तमिलनाडु राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मुफ्त के चुनावी वादे को भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता है।

स्रोत

Yojna IAS Daily current affairs Hindi med 24th Feb

इण्डियन एक्सप्रैस

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