30 Sep मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में अजंता कालीन गुफाएँ।
मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में अजंता कालीन गुफाएँ।
संदर्भ- हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में 26 बौद्ध गुफाएं प्राप्त हुई हैं। ASI के अधिकारियों के अनुसार-
- यह गुफाएं दूसरी से पाँचवी शताब्दी ईसापूर्व की हैं।
- महायान सम्प्रदाय के अवशेष जैसे चैत्य के आकार का दरवाजा, पत्थर की मेज प्राप्त हुए हैं।
- बौद्ध स्तंभ का एक टुकड़ा जिसमें लघु स्तूप नक्काशी थी, जो दूसरी व तीसरी शताब्दी ईसापूर्व से संबंधित है।
अजंता की गुफाएँ-
महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर से 106 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अजंता गाँव में वाघोरा नदी के किनारे की पहाड़ियों पर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी की गुफाएँ व स्मारक हैं।
सर्वप्रथम ब्रिटिश अधिकारी जेम्स स्मिथ द्वारा अजंता गुफाओं की खोज 1819 में की। इसके पश्चात, जेम्स अलैक्जेंडर कनिंघम ने 1824 में रॉयल एशियाटिक सोसायटी की पत्रिका में अजंता की महत्ता को प्रकाशित कर विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। वर्तमान में 1983 से यह गुफाएँ विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल हैं।
अजंता की गुफाएं कठोर चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। गुफाओं की वास्तुकला व इनमें निर्मित चित्रकला इसके निर्माणावधि की जानकारी देती है।
अजंता की चित्रकला-
- अजंता के भित्ति चित्र टेम्परा तकनीक द्वारा बनाए गए हैं।
- अजंता के चित्रों में बुद्ध की जातक कथाओं का वर्णन अधिकतम है।
- चित्रों को फ्रेस्को व टेम्परा तकनीक द्वारा बनाया जाता है, फ्रेस्को तकनीक में सूखे प्लास्टर के ऊपर चित्रण होता है।
- अजंता की गुफा संख्या 9 व 10 में सातवाहनकालीन समाज के अंश चित्रित हैं।
- गुफा 16 बुद्ध की जातक कथाओं और गुफा 17 मानवीय गुणों युक्त कथाओं का वर्णन करते चित्र हैं।
- गुफा 1 व 2 के चित्र सबसे नवीनतम हैं। जिसमें बुद्ध के पूर्व जन्म की जातक कताओं का वर्णन है।
अजंता की वास्तुकला-
घोड़े के नाल की आकृति में निर्मित अजंता की चट्टान में 29 गुफाएँ निर्मित हैं। इन गुफाओं में गुफा संख्या 9,10,19,26 व 29 चैत्य(स्तूप युक्त प्रार्थना स्ठल) है और शेष 24 गुफाएं विहार(बौद्ध मठ या निवास स्थल) हैं।
चैत्य –चैत्य, संस्कृत शब्द चिता से लिया गया है, यह मृत्यु के उपरांत मृत व्यक्ति के अवशेषों के ऊपर निर्मित विशिष्ट निर्माण से संबंधित है। रामायण व महाभारत में इसका उल्लेख वेदी, देवस्थान व देववृक्ष के लिए हुआ है, जबकि जैन व बौद्ध ग्रंथों में समाधिस्थल पर निर्मित भवन के लिए किया जाता है।
चैत्यों का प्रारंभिक रूप काष्ठ निर्मित होता था। क्योंकि काष्ठनिर्मित भवन एक समय के बाद नष्ट हो जाते हैं अतः चैत्य को चट्टानों को काटकर बनाया जाने लगा। जिसमें मंडप, स्तंभ व स्तूपों का विशाल निर्माण किया जाने लगा। जिससे इन्हें स्तूप भी कहा जाने लगा।
अजंता के चैत्यों में सबसे प्राचीन गुफा नम्बर 9 व 10 हैं। गुफा 9 में एक मेहराबदार द्वार सहित हॉल व 23 स्तंब युक्त गलियारा जो इसकी विशेषता है। स्तूप एक बेलनाकार आधार पर स्थापित है। इसमें पद्मपाणि व वज्रपाणि के साथ बुद्ध की आकृति चित्रित की गई है।
गुफा 10, पहली शताब्दी ईसा पूर्व का एक विशाल चैत्य है अष्टकोणीय आकृति के साथ यह एक मेहराबदार हॉल है। पूजा के लिए स्तूप व गलियारे को अलग करने वाला एक प्रदक्षिणा पथ निर्मित किया गया है। गुफा 10 में संस्कृत में एक शिलालेख है जो ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। गुफा में हीनयान व महायान के चित्र मिलते हैं, जिसमें श्यामा जातक व सद्दात जातक की कथा मिलती है।
गुफा 19 के पूजा स्थल का सबसे महत्वपूर्ण भाग उसका मंडलाकृत आंगन था। गुफा 19 के समान गुफा 26 मूर्ति प्रधान तत्वों के साथ निर्मित थी। जिसमें बुद्ध की महापरिनिर्वाण मुद्रा की मूर्ति शामिल है। गुफा 29 एक मठ युक्त चैत्य है।
विहार – संस्कृत में आमोद प्रमोद के लिए प्रयुक्त स्थल को विहार कहा जाता है, जबकि बौद्ध व जैन परंपरा में भिक्षुओं के निवास स्थान या मठों को विहार कहा जाता था। विहार में भिक्षुओं के लिए छोटे कक्ष का निर्माण किया जाता था, इन कक्षों के बाहर एक बड़ा सभास्थल होता था। जिसमें मंदिर या स्तूप या बुद्ध की मूर्ति रेखांकित होती है। प्राचीनकाल में उच्च शिक्षा के केंद्र भी विहार ही होते थे। शिक्षा केंद्रों में नालंदा व विक्रमशिला इसके उदाहरण हैं।
स्रोत-
https://whc.unesco.org/en/list/242/
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