महापाषाणकाल

महापाषाणकाल

महापाषाणकाल

संदर्भ- इतिहासकारों के अनुसार दक्षिणी कन्नड़ के कल्लेम्बी गांव में मिली गुफा महापाषाणकाल की हो सकती है।

  • प्राचीन इतिहास व पुरातत्व में एसोसिएट प्रोफेसर टी मुदुगला के अनुसार हाल ही में कल्लेम्बी गांव में मिली गुफा में प्राप्त अवशेषों जैसे मिट्टी के बर्तनों से इनके महापाषाणकालीन होने क संकेत मिलते हैं।
  •  प्रोफेसर के अनुसार ये बर्तन, मुदुकोनाजे के कब्र के बर्तन, हेगडेहल्ली व सिद्दलिंगपुरा के बर्तनों से मिलते जुलते हैं। तथा निर्माण व शैली के अनुसार वे केरल के मेगालिथिक कब्र के समान हैं।
  • लाल मिट्टी के बर्तन में रागी की भूसी जैसे अवशेष भी मिले हैं।

महापाषाणकाल-

  • महापाषाणकाल शब्द का प्रयोग विशाल पत्थरों से युक्त समय के लिए किया जा सकता है।
  • इतिहास में महापाषाण काल उस विशिष्ट समय के लिए प्रयुक्त किया जाता है जब भारत में विशाल पत्थर युक्त कब्रों की संस्कृति हुआ करती थी।
  • इस संस्कृति को 3000 ईपू. से 200 ई. तक अर्थात नवपाषाणकाल से ऐतिहासिक काल तक माना जाता है। 
  • महापाषाणकालीन संस्कृति के लोग मृतकों के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए विशाल पत्थरों के अवशेषों को ढक देते थे। भारत के कई राज्यों के साथ विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों में महापाषाण कालीन अवशेष प्राप्त होते हैं।
  • दक्षिण भारत में ब्रह्मगिरि, मास्की, पुदुकोट्टै, चिंगलपुत्त, शानूर आदि से महापाषाणकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।

महापाषाणकालीन स्थलों से प्राप्त अवशेष-

  • लोहे के औजार- महापाषाण संस्कृति मेंं लोहे के कई प्रकार के उपकरण पाए गए हैं जैसे- बर्तन, हथियार जैसे तलवार, भाला, चाकू, बढ़ईगिरी के उपकरण आदि।
  • जानवरों के अवशेष- महापाषाणकालीन जानवरों के अवशेषों से कहा जा सकता है कि उस समय मानव पशुपालन किया करता था। इन पशुओं में घोड़े, बकरी, भेड़, कुत्ता व सुअर था।
  • मिट्टी के बर्तन-लाल काले मृदभांड, शंक्वाकार बर्तन, पेटलस्टर वाले कटोरे, टोंटीदार व्यंजन आदि। 

महापाषाणकालीन शवाधानों के प्रकार- 

  • मेन्हिर अलग अलग खड़े पत्थरों के रूप में पत्थरों की एक श्रृंखला बनाती हैं। यह शावाधान में शव को गाड़कर उसके ऊपर एक बड़ा स्तंभाकार पत्थर लगा दिया जाता था। इस प्रकार की समाधियाँ कर्नाटक के मस्की व गुलबर्ग क्षेत्र में पाई गई हैं।
  • डोलमेन या ताबूत टेबल के रूप में होती है जो दो बड़े पत्थरों के ऊपर एक पत्थर रखकर बनाई जाती है। इसमें शव को दफनाकर छोटे छोटे पत्थरों से घेर दिया जाता था और इनके ऊपर एक पत्थर की सिल्ली रख दी जाती थी। इस प्रकार की समाधि उत्तर प्रदेश के बाँदा व मिर्जापुर में मिलती हैं। 1995 में हेगडेहल्ली में 11 डोलमेन स्थलों की खुदायी की गई।
  • संगौरा वृत में पहले शव को लोहे के औजार, कलश, पालतू जानवरों की हड्डियों के साथ दफनाया जाता था। और समाधि को गोल पत्थरों से जड़ दिया जाता था। इस प्रकार की गोल समाधि बोरगाँव(महाराष्ट्र) व चिंगलपुत्त(तमिलनाडु) में मिलती हैं।

महापाषाणकालीन अवशेषों का महत्व-

  • इस प्रकार की खोजें भारत के इतिहास को समृद्ध करने में सहायक होती है। 
  • भारत की संस्कृति व सभ्यता के विभिन्न पक्षों का ज्ञान होता है।
  • अब तक हुई खोजों से ज्ञात होता है कि लोहे का व्यापक रूप से प्रयोग इसी काल से होना प्रारंभ हुआ था। हल्लूर व पिकलीहल के शवाधानों से लोहे के साक्ष्य मिलते हैं।

स्रोत

http://bit.ly/3hsLgLu(द हिंदू)

http://bit.ly/3G4yTPS 

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