17 May मातृ मृत्यु दर
मातृ मृत्यु दर
संदर्भ- हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने मातृमृत्यु दर के आंकड़े पेश किए हैं। इसके अनुसार भारत उन 10 देशों में से एक है जो वैश्विक मातृ मृत्यु, मृत जन्म और नवजात मृत्यु के कुल आंकड़ों के 60% के लिए जिम्मेदार हैं।
2020 में ऐसी 17% मौतें भारत से ही हुई हैं, इसके बाद नाइजीरिया (12%) और पाकिस्तान (10%) का स्थान है। रिपोर्ट के अनुसार भारत, दुनियां के सर्वाधिक मातृ मृत्यु वाले देशों में दूसरे स्थान(24000) पर है।
मातृ मृत्यु दर के भारतीय आंकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मातृ मृत्यु दर, महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान या गर्भावस्था की समाप्ति के 42 दिन बाद मृत्यु दर को मातृ मृत्यु दर कहा जाता है।
- संयुक्त राष्ट के 2020 के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक मातृ मृत्यु, मृत जन्म और नवजात मृत्यु की घटनाओं में 17%मौतों के लिए भारत की भूमि जिम्मेदार है।
- वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक मातृ मृत्यु युक्त देशों में नाइजीरिया के बाद भारत दूसरे स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार केवल भारत में 24000 मातृ मृत्यु की घटनाएं सामने आई थी।
- भारत में 2000 से 2020 तक मातृ मृत्यु दर में लगभग 74% की कमी आई है।
मातृ मृत्यु के कारण
गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं
- उच्च रक्त स्त्राव
- उच्च रक्तचाप
- गर्भावस्था संबंधी संक्रमण
- अन्य रोग जैसे HIV/AIDS भी गर्भावस्था में जटिलता का कारण बन सकते हैं।
देखभाल सुविधाओं की कमी
- WHO के अनुसार गर्भावस्था के दौरान कम से कम 8 बार स्वास्थ्य जांच करानी होती है, किंतु सुविधाओं या फिर अन्य किसी कारण से माताएं स्वास्थ्य जांच नहीं कराती हैं जो उनकी स्वास्थ्य जटिलता की परिस्थिति को बढ़ाता है जिससे माता स्वास्थ्य, शिशु स्वास्थ्य आदि खतरे में पड़ सकता है।
आर्थिक व सामाजिक समस्याएं
- अत्यंत गरीब या सुविधाओं की कमी युक्त महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल संबंधी कार्यों के लिए आर्थिक रूप से जूझना पड़ता है।
- कई महिलाएं सामाजिक अंतर जैसे शिक्षा, नस्ल, जातीयता के कारण भी सामाजिक सहायता भी प्राप्त नहीं कर पाती है।
मातृ मृत्यु दर को नियंत्रित करने वाले कारक
- गर्भावस्था के दौरान प्रसवपूर्व देखभाल(ANC), जो शरीर में आवश्यक तत्वों की पूर्ति के लिए आयरन, फोलिक एसिड जैसे आवश्यक सप्लीमेट प्रदान करता है।
- गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा गर्भावस्था की जटिलताओं के बारे में शिक्षित करना।
- जन्म के समय कुशल परिचारक होना
- जन्म के बाद के दो दिन, विशेष प्रसवोत्तर देखभाल
चुनौतियाँ
स्वास्थ्य देखभाल ANC की अनदेखी-
- भारत में 6.1%महिलाओं ने स्वास्थ्य देखभाल संबंधी एक भी ANC का दौरा नही किया।
- 34.1% महिलाओं ने एक, दो या तीन बार ही ANC का दौरा किया। अर्थात सम्पूर्ण देखभाल(4 चरणों) ANC केंद्रों का दौरा नहीं किया।
- शेष महिलाओं ने देखभाल केंद्रों में जाना आवश्यक नहीं समझा।
शिक्षा व आर्थिक स्थिति – स्वास्थ्य देखभाल के प्रति जागरुकता को माताओं की आर्थिक स्थिति ने प्रभावित कर सकती है-
- स्वास्थ्य देखभाल के लिए ANC केंद्रों में आने वाली महिलाओ में 39.9% माताएं सबसे कम शिक्षित या अशिक्षित थी। इसकी तुलना में वे महिलाएं जो शैक्षिक दृष्टि से 12 वर्ष स्कूली शिक्षा प्राप्त कर चुकी थी देखभाल केंद्रों में अत्यंत कम उपस्थिति दर्ज करा पाई। इसके साथ ही वे महिलाएं जो आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न हैं, वे चारों चरणों में देखभाल केंद्रों में शामिल होती हैं।
- अतः वे महिलाएं जो अत्यंत निम्न स्तर से आती हैं वे हर प्रकार की बुनियादी सुविधा का लाभ उठाने का प्रयास करती हैं, जो उसके लिए अनुप्लब्ध है। और वे उच्च वर्गीय महिलाएं जिनकी प्राथमिकता स्वास्थ्य देखभाल है वे ही चारों चरणों का लाभ उठाती हैं।
प्रसवोत्तर देखभाल की अनदेखी
- WHO के अनुसार प्रसव के बाद 48 दिन तक माताओं को स्वास्थ्य का विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि सर्वाधिक मातृमृत्यु लगभग 68% प्रसव के 1 महीने के अंतर्गत होती हैं।
- भारत में 16% महिलाओं ने प्रसव के बाद एक भी स्वास्थ्य जांच नहीं कराई, जबकि उनमें से 22.8% ने प्रसव के दो दिन बाद देर से जांच की।
परिवार की गर्भावस्था जटिलताओं के प्रति अज्ञानता
- महिलाओं के प्रसव के कारण आई जटिलताओं और जटिलताओं के कारण आई आपातकालीन समस्याओं से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में महिलाओं के पति को कोई जानकारी न होना, जटिलताओं को और बढ़ा देता है। द हिंदू के अनुसार स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा केवल 50-60% पतियों को ही जटिलताओं में की जाने वाली कार्यवाही के बारे में अवगत कराया गया।
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कमी-
- भारत में 11% मामलों में प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की कमी देखी गई है। जिन्हें प्रसव के दौरान आई जटिलताओं के दौरान की जाने वाली कार्यवाहियों का ज्ञान नहीं होता और जो मातृ मृत्यु दर को बढ़ाने में सहायक होता है।
आगे की राह
- स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में गर्भावस्था से पूर्व चार दौरों को सुनिश्चित करने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ इनकी आवश्यकताओं व महत्व के लिए प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए।
- माताओं व उनके परिवार को प्रसव के दौरान संभावित जटिलताओं का ज्ञान कराया जाना चाहिए, इसके साथ ही परिवारों को प्रसव के दौरान आई जटिलताओं के समय की जाने वाली कार्यवाहियों के लिए शिक्षित की जानी चाहिए।
- एएनएम व आशा कार्यकर्ताओं को उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए,
स्रोत
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