यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम)

यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम)

स्त्रोत  – ‘ द हिन्दू’ का  संपादकीय और पीआईबी का संक्षिप्त सारांश 

सामान्य अध्ययन : जलवायु परिवर्तन, सतत विकास ,अंतर्राष्ट्रीय संबध , अर्थव्यवस्था के सतत आयाम , उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETC), ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, कार्बन रिसाव, विश्व व्यापार संगठन कानून।

चर्चा में क्यों ?

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है जिसके वैश्विक स्तर पर शीघ्र समाधान की अत्यंत आवश्यकता है। जीवाश्म ईंधनों, गैर-हरित या पर्यावरणीय रूप से अस्थिर प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके बनाए गए सामानों के आयात पर यूरोपीय संघ (European Union- EU) द्वारा ‘कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM)’ , के तहत अब कार्बन टैक्स लगाया जायेगा, जो अक्तूबर 2023 से चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। यूरोपीय संघ जलवायु परिवर्तन नीति को लेकर स्वयं ही अति महत्वकांक्षी है, और जब तक कई गैर – यूरोपीय संघ देशों में कम कठोर जलवायु नीतियां लागू रहती है, तब तक सदैव  ‘ कार्बन रिसाव ‘ का खतरा बना रहता है। कार्बन रिसाव तब होता है जब यूरोपीय संघ में स्थित कंपनियां कार्बन-सघन उत्पादन को विदेशों में उन देशों में ले जाती हैं जहां यूरोपीय संघ की तुलना में कम कठोर जलवायु – परिवर्तन नीतियां लागू होती हैं, या जब यूरोपीय संघ के उत्पादों को अधिक कार्बन-सघन आयातों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। 

  • यूरोपीय कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) शुरू में कुछ चयनित वस्तुओं जिनके उत्पादन प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा काफी अधिक गहन है और जिसमें कार्बन रिसाव का सबसे महत्वपूर्ण जोखिम है:जैसे कि – सीमेंट, लोहा और इस्पात, एल्यूमीनियम, उर्वरक, बिजली और हाइड्रोजन इत्यादि के आयात पर ही लागू होगा 
  • 1 जनवरी, 2026 से सीबीएएम यूरोपीय संघ से जुड़े देशों में कुछ चुनिंदा वस्तुओं के उत्पादित आयातों पर 20 से लेकर 35% कार्बन कर आरोपित करेगा।

क्या है कार्बन सीमा समायोजन तंत्र ? 

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र का परिचय : 

  • यूरोपीय कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) जलवायु परिवर्तन की दिशा में वर्ष 1990 की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कम – से – कम 55% की कटौती करके यूरोपीय जलवायु परिवर्तन कानून का पालन करने की यूरोपीय संघ की एक रणनीति है। सीबीएएम (CBAM) ” फिट फॉर 55 इन 2030 पैकेज “ का एक घटक भी है।
  • CBAM एक नीति उपकरण है जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यूरोपीय संघ में कार्बन – उत्सर्जन को कम – से – कम करके आयातित सामान यूरोपीय संघ के देशों के भीतर उत्पादित उत्पादों के समान कार्बन लागत के अधीन हों।

क्या है कार्बन टैक्स लगाने का कारण ?

  • यूरोपीय संघ ने वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में कम से कम 55 फीसदी की कटौती करने की घोषणा की है।  अब तक इनमें 24 फीसदी की गिरावट देखी गई है। हालांकि आयात से होने वाले उत्सर्जन का यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में 20 फीसदी का योगदान है, जिसमें और भी वृद्धि देखी जा रही है।

क्या है मुद्दे ?

  • कार्बन टैक्स को लेकर ‘BASIC’ देशों (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन – Brazil, South Africa, India, China) के समूह ने एक संयुक्त बयान (Joint Statement) में यूरोपीय संघ के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि – “ यह ‘भेदभावपूर्ण’ एवं समानता एवं ‘समान परंतु अलग-अलग उत्तरदायित्वों और संबंधित क्षमताओं’ (CBDR-RC) के सिद्धांत के खिलाफ है। ये सिद्धांत स्वीकार करते हैं कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए विकासशील और संवेदनशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी (Financial and Technical) सहायता देने के लिए उत्तरदायी हैं।” 

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र का प्रमुख उद्देश्य  : 

  • यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन सीमा समायोजन तंत्र का प्रमुख उद्देश्य विश्व में स्वच्छ ईंधन उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए  यह सुनिश्चित करना है कि इससे जलवायु परिवर्तन के लिए निश्चित किए गए लक्ष्य कार्बन – उत्सर्जन के गहन आयात के संकट में न पड़ें और विश्व के शेष देशों को भी स्वच्छ ईंधन उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र का महत्त्व :

  • यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र गैर-यूरोपीय संघ के देशों को जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए और वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए अत्यंत कठोर कड़े पर्यावरणीय नियमों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है जिससे वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कमी आने की संभावना है।
  • यह निर्माण कंपनियों को पर्यावरण संबंधी कम सख्त नियमों वाले देशों में स्थानांतरित होने से रोक कर कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकता है या रोक सकता है।
  • यूरोपीय संघ की जलवायु नीतियों का समर्थन करने के लिए CBAM से उत्पन्न राजस्व का उपयोग किया जाएगा, जिससे विश्व के शेष अन्य देश भी हरित ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित कर सकता है।

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र के कार्यान्वयन के तरीके : 

  • CBAM को वार्षिक आधार पर आयातकों को यूरोपीय संघ में आयातित वस्तुओं की मात्रा के साथ-साथ उनके निहित ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन की घोषणा करने पर लागू किया जाएगा।
  • इन उत्सर्जन को ऑफसेट करने हेतु आयातकों को CBAM प्रमाणपत्रों की एक समान संख्या को सरेंडर करने की आवश्यकता होगी, जिसकी कीमत EU एमिशन ट्रेडिंग सिस्टम (ETS) भत्ते के साप्ताहिक औसत नीलामी मूल्य प्रति टन यूरो CO2 उत्सर्जन पर आधारित होगी।

भारत पर इसका प्रभाव ?

  • यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। यूरोपीय संघ, भारत में बनी हुई वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि कर भारतीय वस्तुओं को खरीदारों के लिए कम आकर्षक बना देगा जो मांग को कम कर सकता है। यह कार्बन कर बड़ी ग्रीनहाउस गैस फुटप्रिंट वाली कंपनियों के लिए निकट भविष्य में गंभीर चुनौतियां पैदा कर सकता है ।
  • इसके अलावा ये पर्यावरण के लिए दुनिया भर में एक समान मानक स्थापित करने की यूरोपीय संघ की धारणा ‘ रियो घोषणा ’ के अनुच्छेद-12 में निहित वैश्विक सहमति के भी खिलाफ है। जिसके अनुसार विकसित देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के लागू मानकों को विकासशील देशों पर लागू नहीं किया जा सकता है।
  • गौरतलब यह है कि इन आयातों की ग्रीनहाउस सामग्री को आयात करने वाले देशों की ग्रीनहाउस गैस सूची में भी समायोजित करना होगा, जिसके लिए यह अनिवार्य रूप से जरूरी है कि ग्रीनहाउस गैस सूची को “उत्पादन के आधार पर” नहीं बल्कि “खपत के आधार पर” गिना जाना चाहिए । यह पूरे जलवायु परिवर्तन व्यवस्था को पूरंतः बदल देगी। विश्व के कई विशेषज्ञ इस नीति को ‘संरक्षणवाद का अलग रूप’ भी मान रहे हैं। 
  • यह संरक्षणवाद सरकारी नीतियों को दिखाता है जो घरेलू उद्योगों की सहायता के लिए अंतर्राष्ट्रीय – व्यापार को प्रतिबंधित करता है।  ऐसी नीतियों को आमतौर पर घरेलू अर्थव्यवस्था के भीतर आर्थिक गतिविधियों में सुधार के लक्ष्य के साथ लागू किया जाता है।  इसमें सबसे बड़ा खतरा और जोखिम यह  है कि यह एक संरक्षणवादी उपकरण बन जाता है, जो स्थानीय उद्योगों को ‘हरित संरक्षणवाद का बहाना बनाकर विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाता है।

भारत के निर्यात पर इसका प्रभाव : 

  • इससे भारत और यूरोपीय संघ के बीच किए जाने वाले लौह, इस्पात और एल्युमीनियम जैसे उत्पादों के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि इस प्रणाली के तहत इन्हें अतिरिक्त जाँच का सामना करना पड़ेगा।
  • यूरोपीय संघ द्वारा 19.8% से लेकर 52.7% तक कार्बन कर लगाए जाने से भारत द्वारा यूरोपीय संघ को जो लौह अयस्क और इस्पात का निर्यात किया जाता है, उस व्यापार के काफी प्रभावित होने की संभावना है।
  • यूरोपीय संघ इस्पात, एल्युमिनियम, सीमेंट, उर्वरक, हाइड्रोजन और विद्युत की हर खेप पर 1 जनवरी, 2026 से कार्बन कर वसूलना शुरू कर देगा , जिससे भारत के सीमेंट, उर्वरक, एल्युमिनियम, इस्पात, हाइड्रोजन और विद्युत व्यापर के क्षेत्र में प्रत्कूल प्रभाव पड़ेगा।

उच्च शुल्क और भारतीय उत्पादों की कार्बन तीव्रता : 

  • ऊर्जा खपत में कोयले का सबसे अधिक प्रयोग किए जाने के कारण, भारतीय उत्पादों की कार्बन तीव्रता अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और भारत के आपसी व्यापर संबंधों पर व्यापक और प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा ।
  • भारत में कोयले से उत्पन्न होने वाली विद्युत का अनुपात 75% के करीब है जो कि यूरोपीय संघ (15%) और वैश्विक औसत (36%) से काफी अधिक है।
  • भारत के लौह और इस्पात तथा एल्युमीनियम संयंत्रों से उत्पादित प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कार्बन उत्सर्जन भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि भारत के इन उद्योगों में कार्बन के उच्च उत्सर्जन के कारण यूरोपीय संघ को उच्च कार्बन कर का भुगतान करना पड़ेगा, जिससे लागत  मूल्य में वृद्धि होने की प्रबल संभावना है।

भारत के निर्यात पर प्रभाव और संभावित खतरा : 

  • यूरोपीय संघ द्वारा आरोपित कार्बन टैक्स भारत के परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, जैविक रसायन, फार्मा दवाएँ और वस्त्र आदि, जो यूरोपीय संघ द्वारा भारत से आयात किए जाते हैं, इन शीर्ष 20 उत्पादों के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा शामिल हैं।
  • वर्तमान में भारत में कोई स्वदेशी कार्बन मूल्य निर्धारण योजना नहीं है, इससे कंपनियों के बीच आपसी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ने का जोखिम होता रहता है, क्योंकि कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली वाले अन्य देशों को न्यूनतम कार्बन कर का भुगतान करना पड़ सकता है अथवा उन्हें छूट भी मिल सकती है।

यूरोपीय कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) के प्रभाव को कम करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम :

डीकार्बोनाइज़ेशन सिद्धांत : 

  • भारत सरकार के पास पहले से ही मौजूद ‘ राष्ट्रीय इस्पात नीति’  जैसी योजनाएँ हैं। भारत सरकार के इस  उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का उद्देश्य भारत की उत्पादन क्षमता को बढ़ाना है, लेकिन मौजूदा  ‘ राष्ट्रीय इस्पात नीति’  कार्बन दक्षता जैसी योजनाओं के उद्देश्यों से परे है।
  • भारत सरकार इन योजनाओं को डीकार्बोनाइज़ेशन सिद्धांत के साथ शामिल कर सकती है।
  • डीकार्बोनाइज़ेशन का तात्पर्य परिवहन, विद्युत उत्पादन, निर्माण और कृषि जैसी मानवीय गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को कम करने या समाप्त करने की प्रक्रिया से है।

यूरोपीय संघ के साथ कार्बन कर कटौती के लिए  समझौता वार्ता :

  • अपने ऊर्जा करों को कार्बन मूल्य के समतुल्य बनाने के लिए भारत सरकार यूरोपीय संघ के साथ समझौता वार्ता कर सकता है, जो भारत के निर्यात क्षेत्र को CBAM के प्रति कम संवेदनशील बनाएगा।
  • कोयले पर भारत का कर, कार्बन उत्सर्जन की आंतरिक लागत को निर्मित करने का एक उपाय है, जो कार्बन कर के ही समतुल्य है।

नवीन,  उन्नत एवं स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और वित्तपोषण तंत्र का आपसी हस्तांतरण : 

  • नवीन, उन्नत एवं स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और वित्तपोषण तंत्र को आपस में स्थानांतरित करने हेतु भारत को औरअधिक कार्बन कुशल बनाने में सहायता प्रदान करने के लिए एक तरीका यह है कि भारत को  जलवायु प्रतिबद्धताओं का समर्थन करने के लिय्वे यूरोपीय संघ को अपने CBAM राजस्व का एक हिस्सा अलग रखने का प्रस्ताव दिया जाए।
  • चीन और रूस जिस तरह कार्बन ट्रेडिंग सिस्टम स्थापित कर कर रहे हैं, भारत को भी नई व्यवस्था के लिए  उसी तरह तैयारी प्रारंभ कर देनी चाहिए।

स्वच्छ एवं हरित उत्पादन को प्रोत्साहन :

  • भारत को अपने विकासात्मक लक्ष्यों एवं आर्थिक आकांक्षाओं से समझौता किए बिना अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली और इसके शुद्ध शून्य लक्ष्य 2070 को प्राप्त  करने की दिशा में बढ़ाना चाहिए।
  • भारत को इस दिशा में अपनी तैयारी प्रारंभ करने के साथ – ही – साथ स्वच्छ उत्पादन को प्रोत्साहित करके उसे हरा-भरा और सतत् बनाने का अवसर हासिल करने की ओर बढ़ना चाहिए जो भारत भविष्य में कार्बन उत्सर्जन के प्रति और अधिक जागरूक और प्रतिस्पर्द्धी दोनों रूप से भारत को लाभान्वित करेगा। 

यूरोपीय संघ का कार्बन कर (टैक्स) फ्रेमवर्क : 

  • G-20, 2023 के मुख्य नेतृत्वकर्ता देश और मेजबान नेता के रूप मे  भारत अन्य देशों की वकालत करने के लिए अपनी स्थिति का उपयोग करना चाहिए और उनसे यूरोपीय संघ के कार्बन टैक्स ढाँचे का विरोध करने का आग्रह करना चाहिए ।
  • यूरोपीय कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) का प्रभाव उन गरीब देशों पर पड़ेगा जो खनिज संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। अतः भारत को न केवल अपने हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए बल्कि इसके नकारात्मक प्रभाव पर भी विचार करना चाहिए, ताकि भारत भी वैश्विक समुदाय के व्यापारिक और आर्थिक हितों के साथ सामंजस्य बैठा सके।

निष्कर्ष / समाधान की राह :

  • यूरोपीय कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) आयातित वस्तुओं से कार्बन उत्सर्जन को कम करने और एक निष्पक्ष-व्यापार वातावरण बनाने की नीति है। भारत को इस कार्बन टैक्स नीति को अत्यंत लचीला बनाने के लिए यूरोपीय संघ पर अपना दबाव बढ़ाना चाहिए।
  • यह अन्य देशों को सख्त पर्यावरणीय नियमों और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q, 1. यूरोपीय संघ के ‘कार्बन सीमा समायोजन तंत्र के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। 

  1. सीबीएएम (CBAM) ” फिट फॉर 55 इन 2030 पैकेज ” का एक घटक है।
  2. कार्बन टैक्स को लेकर ‘BASIC’ देशों (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन – Brazil, South Africa, India, China) के समूह ने इसका विरोध किया है।
  3. 1 जनवरी, 2026 से सीबीएएम यूरोपीय संघ से जुड़े देशों में कुछ चुनिंदा वस्तुओं के उत्पादित आयातों पर 20 से लेकर 35% कार्बन कर आरोपित करेगा।
  4. पर्यावरण के लिए दुनिया भर में एक समान मानक स्थापित करने की यूरोपीय संघ की धारणा ‘ रियो घोषणा ’ के अनुच्छेद-12 में निहित वैश्विक सहमति के  खिलाफ है। 

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A). केवल 1 , 2 और 3 

(B). केवल 2 , 3 और 4 

(C). इनमें से कोई नहीं।

(D). इनमें से सभी।

उत्तर – ( D) 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q. 1. यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र की संक्षिप्त चर्चा करते हुए यह व्याख्या कीजिए कि  भारत का हित इससे किस प्रकार प्रभावित होता है ? 

 

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