12 Oct रोसेटा स्टोन
रोसेटा स्टोन
संदर्भ- हाल ही में मिस्र के विशेषज्ञ व पुरावशेष संबंधी पूर्व राज्य मंत्री ने रोसेटा पत्थर को मिस्र के संग्रहालयों में वापस करने की मांग की है जो वर्तमान में ब्रिटेन के संग्रहालयों में सबसे अधिक देखे जाने वाली वस्तु है।
रोसेटा पत्थर क्या है?
- रोसेटा पत्थर 44.2इंच*29.8इंच*11.2इंच के आकार का एक ऐतिहासिक पत्थर है।
- इस पत्थर में टॉलमी पंचम एपिफेरस(204- 181) ई.पू. के शासनकाल में मेम्फिस के पादरी द्वारा लिखा गया शिलालेख है।
- इसमें तीन लिपियों में सार्वजनिक संदेश उत्कीर्ण किए गए थे। यह भारत में अशोक के शिलालेखों के समान समकालीन इतिहास के महत्पूर्ण स्रोत हैं।यह लिपियाँ डेमेटिक लिपि, चित्र लिपि व प्राचीन ग्रीक लिपि हैं।
- माना जाता है इस शिलालेख को हेलेनिस्टिक काल के दौरान उकेरा गया होगा।
रोसेटा पत्थर का महत्व-
- मिस्र के इतिहास लगभग 2000 वर्ष पूर्व की महत्वपूर्ण सामग्री, जो मिस्र के इतिहास को समृद्ध करती है।
- यह प्राचीनकाल में मिस्र की अनुवाद करने की क्षमता का अप्रतिम उदाहरण है।
- इस शिलालेख के माध्यम से मिस्र के कई शिलालेखों को पढ़ पाना संभव हो पाया,तीन लिपियों में एक ही संदेश उल्लेखित होने के कारण चित्र लिपि को पढ़ पाना संभव हो पाया।
रोसेटा पत्थर की ब्रिटेन यात्रा-
- इतिहासकारों के अनुसार यह हेलेनिस्टिक काल में निर्मित पत्थर था जिसे सैस के एक मंदिर में दर्शाया गया था।
- मामूलक काल में इसे फोर्ट जुलियन किले के निर्माण सामग्री के रूप में रोसैटा शहर में स्थानांतरित किया गया।
- 1799 में नेपोलियन के मिस्र अभियान के दौरान इस पत्थर की विशेषता को पियरे फ्रांकाइस बूचार्ड ने पहचाना। द्विभाषी पाठ वाला प्राचीन पत्थर जब फ्रांस पहुँचा, यह वैश्विक चर्चा का विषय बन गया।
- फ्रांस के सैनिकों द्वारा अलैक्जेंड्रिया में ब्रिटेन के समक्ष आत्मसमर्पण के बाद यह ऐतिहासिक महत्व का पत्थर लंदन के संग्रहालय 1801 में पहुँचा।
- वस्तुओं के हस्तानांतरण के समझौते पर फ्रांस, ब्रिटेन व तुर्की ने अलैक्जेंड्रिया के कैपिट्यूलेशन में हस्ताक्षरित किया था।कैपिट्यूलेशन के अनुच्छेद 16 के अनुसार अरब पांडुलिपियां, मूर्तियाँ और अन्य संग्रह जो फ्रांस की सार्वजनिक सम्पत्ति मानी जाती थी उसे ब्रिटेन स्थानांतरित कर दिया गया। इसमे कमीशन डेज साइंसेस औऱ डेज आर्ट की सामग्री के साथ रोसेटा पत्थर शामिल थे।
ऐतिहासिक वस्तुओं का विदेशों में गमन के कारण
- विश्व के साम्राज्यवाद के इतिहास में प्राचीनकाल की ऐतिहासिक वस्तुओं का विजित देश द्वारा हस्तानांतरण किया जाता रहा। वर्तमान में ऐसी वस्तुओं की निरंतर मांग की जा रही है।
- बहुमूल्य वस्तुओं की चोरी, तस्करी व अवैध व्यापार द्वारा विदेशों तक पहुँची हैं।
ऐतिहासिक वस्तुओं की स्वदेश वापसी
- वर्तमान में विदेशी संग्रहालयों द्वारा स्वविवेक से उपहार के तौर पर वस्तुओं की स्वदेश वापसी की जा रही है।
- ऐतिहासिक धरोहरों को उनके ऐतिहासिक स्थलों में वापस करना या न करना पूर्णतः वस्तुओं के वर्तमान अधिकृत देश पर निर्भर करता है। जैसे मिस्र द्वारा बार बार अनुरोध करने पर भी रोसेटा पत्थर प्राप्त नहीं हो पाया है। बहुमूल्य वस्तुओं को वापस न करने के पीछे तर्क यह रहता है कि वस्तुओं का निर्माता देश उसकी रक्षा नहीं कर पाएगा।
भारत में ऐतिहासिक वस्तुओं की स्वदेश वापसी
- भारत में कुछ वर्षों से ऐतिहासिक वस्तुओं की स्वदेश वापसी हो रही है।
- हाल ही में स्कॉटलैण्ड के ग्लासगों शहर के संग्रहालय में स्थित 7 भारतीय कलाकृतियों को वापस करने के लिए भारत व स्कॉटलैण्ड ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
- ऑस्ट्रेलिया ने भी भारत की 9-10वी शताब्दी की 29 धार्मिक व ऐतिहासिक वस्तुओं को वापस लौटा दिया था।
- इसी प्रकार 2021 में अमेरिका ने 157 मूर्तियों को वापस की गई, जिनमें 71 सांस्कृतिक, 60 हिंदू, 16 बौद्ध व 9 जैन मूर्तियां शामिल थी।
- 2014 से 2022 तक 228 ऐतिहासिक वस्तुओं को भारत वापस लाया जा चुका है।
स्रोत
https://newindiasamachar.pib.gov.in/WriteReadData/Magazine//2022/Apr/M202204162.pdf
https://indianexpress.com/article/explained/explained-global/why-egypt-wants-uk-to-return-rosetta-stone-8197917-8197917/
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