27 Feb वर्तमान भारत में चुनाव प्रणाली में सुधार की प्रासंगिकता
स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।
सामान्य अध्ययन – भारत की राजनीति एवं शासन व्यवस्था , उच्चतम न्यायालय, चुनाव आयोग , भारत का मुख्य चुनाव आयुक्त , चुनाव सुधार की वर्तमान प्रासंगिकता, वन नेशन वन इलेक्शन, भारत में चुनाव सुधार से संबंधित समितियाँ एवं आयोग।
खबरों में क्यों ?
- हाल ही भारत में एक ओर जहाँ भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा भारत में ‘ एक राष्ट्र – एक चुनाव ’ की आवश्यकता पर बहसों का बाजार गर्म है वहीं दूसरी ओर चंडीगढ़ मेयर के चुनाव मामले में भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा 20 फरवरी, 2024 को भारत के मुख्य न्यायाधीश, डी.वाई.चंद्रचूड़ द्वारा सुनाया फैसला भारत में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव प्रणाली के तहत चुनाव सुधार की अवधारणा को फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है।
- भारत के उच्चतम न्यायालय ने 20 फरवरी 2024 को चंडीगढ़ मेयर चुनाव के नतीजे को पलट दिया और आप -कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को चंडीगढ़ शहर का नया मेयर घोषित कर दिया है। इसके साथ – ही – साथ भारत के उच्चतम न्यायालय ने 30 जनवरी के मेयर के चुनाव के संचालन में गंभीर खामियां पाए जाने के बाद, चुनाव के रिटर्निंग अधिकारी, अनिल मसीह, जो कि एक बीजेपी नेता हैं, पर कदाचार के लिए मुकदमा चलाने का आदेश भी दिया है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों न्यायाधीश जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने 30 जनवरी को विवादास्पद मेयर चुनावों की अध्यक्षता करने वाले रिटर्निंग ऑफिसर अनिल मसीह के खिलाफ कार्रवाई शुरू की, जिनके द्वारा चंडीगढ़ मेयर चुनाव में आठ मतपत्रों का “विरूपण” सुरक्षा कैमरों में पकड़ा गया था।
- रिटर्निंग ऑफिसर अनिल मसीह के “गुप्त” आचरण ने चुनावी नतीजों को भाजपा के मनोज सोनकर के पक्ष में मोड़ दिया था। मतदान के दिन के मतपत्रों और वीडियो रिकॉर्ड को ज़ब्त करने के लिए भारत के उच्चतम न्यायालय ने 5 फरवरी को हस्तक्षेप किया था।
- भारत के उच्चतम न्यायालय ने भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को संपन्न कराना भारतीय संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा माना हैं।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कुलदीप कुमार बनाम केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और अन्य (जिसे चंडीगढ़ मेयर के चुनाव मामले के रूप में भी जाना जाता है) के मामले में कहा कि – “भारत में स्थानीय भागीदारी स्तर पर चुनाव देश में सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संरचना के सूक्ष्म जगत के रूप में कार्य करते हैं। इसलिए, इस पूरी प्रक्रिया में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया सुनिश्चित करना, प्रतिनिधि लोकतंत्र की वैधता और उसमें विश्वास बनाए रखने के लिए अनिवार्य है। ”
वर्तमान समय में भारत में चुनाव प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता का महत्वपूर्ण कारण:
भारत में चुनाव – सुधार की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि वर्तमान चुनाव प्रणाली में कुछ महत्वपूर्ण कमियां हैं जो निम्नलिखित हैं –
- राजनीतिक दबाव : चुनावी प्रक्रिया में राजनीतिक दबाव के कारण निर्वाचन अधिकारियों को अनुचित रूप से प्रभावित होना पड़ता है, जिससे वे अपने कार्यों में पूरी निष्ठा और निष्पक्षता बनाए रखने में सक्षम नहीं रहते।
- सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग : भारत में सत्तारुढ़ दलों द्वारा सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग चुनावों में सामान्य हो गया है, जिससे चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्षता की कमी होती है।
- मतदाता सूची की अपूर्णता : चुनाव से पूर्व तक मतदाता सूची की अपूर्णता के कारण कई नागरिक अपने मताधिकार का पूर्ण रूप से प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं, जिससे चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्षता में कमी होती है।
- निर्दलीय उम्मीदवारों की समस्या : चुनावी प्रक्रिया में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या में बहुलता होने से वोट कास्ट करने में कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- चुनाव के दौरान जाली और फर्जी मतदान का होना : जाली और फर्जी मतदान की बढ़ती प्रवृत्ति चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है, जिससे निष्पक्षता में कमी हो रही है।
- भारत में चुनावी अवसंरचना की कमी होना : चुनाव से पूर्व तक अवसंरचना में पर्याप्त व्यवस्था की कमी है, जो निर्वाचन आयोग को अपने कार्यों को सही ढंग से संचालित करने में बाधित कर रही है।
- चुनाव के दौरान विपक्षी दल की सुरक्षा सुनिश्चित करना : सत्तारुढ़ दलों के प्रति विपक्षी दलों के उम्मीदवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चुनाव सुधार की आवश्यकता है ताकि भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में निहित चुनावी प्रक्रिया में संतुलन बना रह सके।
- डिजिटलीकरण और तकनीकी सुधार : चुनाव प्रक्रिया में डिजिटलीकरण और तकनीकी सुधार के माध्यम से चुनाव प्रक्रिया को और भी निष्पक्ष , स्वतंत्र , सुरक्षित और सहज बनाया जा सकता है।
इन सुधारों के माध्यम से, भारत में चुनाव प्रक्रिया को सुरक्षित, सुव्यवस्थित, निष्पक्ष, और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाए रखने का प्रयास किया जा सकता है।
भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करने वाले कारक :
- उम्मीदवारों का अपना आपराधिक रिकॉर्ड : भारत में बहुसंख्यक उम्मीदवार अपने पारदर्शीता और आपराधिक रिकॉर्ड को लेकर जानकारी नहीं प्रदान करते हैं, जिससे वाग्दानिक चयन करना मुश्किल होता है।
- भारत में चुनाव के दौरान धन की बढती भूमिका : भारत में अक्सर चुनावों के दौरान चुनावी व्यय में दिन – ब- दिन होने वाली बढ़ोतरी होने के कारण सामान्य नागरिकों को वोटिंग प्रक्रिया से दूर रखा जा रहा है, क्योंकि चुनावों के दौरान बहुत अमीर उम्मीदवारों को चुनौती देना ही मुमकिन नहीं होता है।
- बाहुबल का बढ़ता प्रयोग : भारत में चुनावों के दौरान चुनाव में जीत प्राप्त करने के लिए अधिकतर उम्मीदवार और उनसे संबंधित राजनीतिक दल बाहुबल का सहारा लेते हैं, जिसमें हिंसा, धमकी, और बूथ कैप्चरिंग जैसी प्रक्रिया भी शामिल हो सकती है।
- आपराधिक राजनीति का बढ़ता प्रचलन : अपराधी व्यक्तियों को राजनीति में प्रवेश करने का अवसर मिलता है, जहां वे अपने मामलों को समाप्त करने या कार्यवाही से बचने के लिए प्रयास करते हैं।
- जातिवाद और साम्प्रदायिक राजनीति : जातिवाद और साम्प्रदायिक धाराओं के आधार पर चयन होने से समाज में भिन्नता और असमानता बढ़ती है, जिससे निष्पक्षता की भावना कमजोर हो सकती है।
- निर्दलीय उम्मीदवारों का उतारा जाना : मजबूत उम्मीदवारों के खिलाफ प्रतिद्वंद्वी दल निर्दलीय उम्मीदवारों को बड़े पैम्बर पर उतारते हैं, जिससे वे अपने वोट काट सकते हैं।
- सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरवाद : भारत में स्वतंत्रता के बाद होने वाली राजनीति में , सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरवाद ने राजनीतिक आंदोलनों को बढ़ावा दिया और भारत के बहुलवादी सामाजिक विचारधारा को खतरे में डाला है।जिससे भारत की राजनीति में चुनावों के दौरान सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरवाद के आधार पर मतदान करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जिससे भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया प्रभावित हुई है।
- इन सभी कारकों को एकसाथ मिलाकर भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया को सुधारने की आवश्यकता है ताकि भारतीय नागरिकों को चुनाव प्रक्रिया के दौरान सच्चे और प्रभावी चयन का मौका मिले।
भारत में चुनाव सुधार से संबंधित समितियाँ एवं आयोग :
- तारकुंडे समिति (वर्ष 1974-75) : इस समिति ने चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और विभिन्न पहलुओं पर जाँच की।
- चुनाव सुधार पर दिनेश गोस्वामी समिति (वर्ष 1990) : इस समिति ने चुनाव सुधार की दिशा में सुझाव दिए और चुनाव प्रक्रिया में विशेष बदलाव की जरूरत को बताया।
- राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा समिति (वर्ष 1993) : इस समिति ने राजनीतिक अपराधों और कारणों की जाँच करके चुनावी प्रक्रिया में सुधार के सुझाव दिए।
- चुनावों में राज्य वित्तपोषण पर इंद्रजीत गुप्ता समिति (वर्ष 1998) : इस समिति ने चुनावों में वित्तपोषण से संबंधित मुद्दों पर जाँच की और सुधार के सुझाव दिए।
- चुनाव सुधारों पर विधि आयोग की रिपोर्ट (वर्ष 1999) : इस आयोग ने चुनाव सुधारों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और नए चुनावी नियमों की सिफारिशें की।
- चुनाव सुधारों पर चुनाव आयोग की रिपोर्ट (वर्ष 2004) : चुनाव आयोग ने इस रिपोर्ट के माध्यम से चुनाव सुधारों की जरूरत पर चर्चा की और नए तकनीकी उपायों की सिफारिशें की।
- शासन में नैतिकता पर वीरप्पा मोइली समिति (वर्ष 2007) : इस समिति ने शासन में नैतिकता पर जाँच की और राजनीतिक नेताओं की ईमानदारी और नैतिकता पर सुझाव दिए।
- चुनाव कानूनों और चुनाव सुधार पर तनखा समिति (वर्ष 2010) : इस समिति ने चुनाव सुधार के क्षेत्र में तनखा और निर्वाचन क्षेत्र के कर्मचारियों को सम्मानित करने के लिए सुझाव दिए।
- भारत में उपरोक्त समितियों और आयोगों के सुझावों के आधार पर, विभिन्न समयों में विभिन्न चुनाव सुधार कार्यक्रमों को शुरू किया गया है जिसने भारत में चुनाव प्रणाली और उससे संबंधित मशीनरी को सुरक्षित, निष्पक्ष, और पारदर्शी बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत में वर्ष 2000 से पूर्व हुए चुनाव सुधार :
- भारतीय संविधान के 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1989 के तहत मतदान की आयु को 18 वर्ष कर दिया गया था।
- चुनावी अधिकारियों को चुनाव की अवधि के दौरान चुनाव आयोग में प्रतिनियुक्ति पर माना जाना शुरू हुआ।
- नामांकन पत्रों की संख्या में 10 फीसदी का इजाफा किया गया।
- राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम, 1971 के अपमान करने पर 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ने का प्रतिबंध लगाया गया।
- दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव नहीं लड़ने का प्रतिबंध लगाया गया
भारत में वर्ष 2000 के बाद हुए चुनाव सुधार :
- भारत में वर्ष 2000 के बाद के कालखंड में भारत में होने वाले चुनावों में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का उपयोग प्रचलन में आया, जिसका उद्देश्य भारतीय चुनावी प्रक्रिया को सुरक्षित और सटीक बनाए रखना था ।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बंगलुरू) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (हैदराबाद) के सहयोग से EVM को तैयार किया गया।
- दिसंबर 1988 में संसद द्वारा कानून में संशोधन करके EVM के उपयोग का अधिकार दिया गया।
- पहली बार EVM का प्रयोग 1998 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली के चुनावों में किया गया था।
- भारत में वर्ष 1999 में गोवा विधानसभा चुनाव में पूरे राज्य में EVM का प्रयोग हुआ।
भारत में वर्ष 2000 के बाद चुनाव सुधारों से संबंधित विभिन्न पहलुओं को समाहित करके भारतीय चुनाव प्रणाली को महत्वपूर्ण सुधार किए थे । जो निम्नलिखित है –
एक्जिट पोल पर प्रतिबंध :
- भारत में केन्द्रीय चुनाव आयोग ने चुनाव प्रक्रिया के दौरान विभिन्न मीडिया समूहों या अख़बार समूहों द्वारा कराए जाने वाले एक्जिट पोल को मतदान की शुरुआत से लेकर मतदान समाप्त होने के आधे घंटे बाद तक प्रतिबंधित कर दिया है।
- भारत में चुनाव प्रक्रिया के दौरान एक्जिट पोल पर प्रतिबंध लगाने से चुनाव प्रक्रिया को न्यायसंगत और निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
उम्मीदवारों के चुनावी खर्च पर सीलिंग लगाना :
- भारत में लोकसभा सीट के लिए चुनावी खर्च की सीमा निर्धारित की गई है ताकि उम्मीदवारों के बीच न्यायसंगत प्रतिस्पर्धा हो।
- भारत में चुनावी खर्च की यह सीमा बड़े और छोटे राज्यों के लिए अलग-अलग है ताकि सभी उम्मीदवारों को समान अवसर प्राप्त हों और विभिन्न राज्यों में चुनावी प्रक्रिया को न्यायसंगत , स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से संपन्न काव्य जा सके।
पोस्टल बैलेट के माध्यम से मतदान करना :
- भारत में सरकारी कर्मचारियों और सभी भारत की सेना में कार्यरत सैनिकों और सभी प्रकार अर्धसैनिक बलों या अन्य बालों को पोस्टल बैलेट के माध्यम से मतदान करने की अनुमति प्रदान की गई है।
- विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों को भी पोस्टल बैलेट के माध्यम से मतदान करने की इस प्रक्रिया का अधिकार प्राप्त है।
चुनाव आयोग द्वारा जनता में मतदान के प्रति जागरूकता का प्रसार करना :
- भारत में चुनाव आयोग राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में हर वर्ष 25 जनवरी को मनाया जाता है ताकि युवा मतदाता चुनावी प्रक्रिया में भाग ले सके।
- भारत में सभी राजनीतिक दलों को चुनाव के दौरान प्राप्त होने वाली चुनावी चंदे की जानकारी को चुनाव आयोग को प्रदान करना अनिवार्य है।
चुनाव में नोटा का उपयोग :
- भारत में चुनावों में नोटा विकल्प के उपयोग की व्यवस्था को वर्ष 2013 से लागू किया गया है, जिससे भारत के मतदाता को किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में वोट नहीं देने का विकल्प मिलता है।
मतदाता निरीक्षण पेपर का ऑडिट ट्रायल :
- भारत में मतदाता निरीक्षण पेपर का ऑडिट ट्रायल नामक इस प्रणाली के माध्यम से मतदाता अपने मत की सत्यापन कर सकते हैं और उम्मीदवार के पक्ष में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
- भारत में इस प्रक्रिया के तहत मतदान प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाती है।
चुनाव में विभिन्न आधुनिक तकनीकी का प्रयोग :
- भारत में निर्वाचकों के लिए कंप्यूटरीकृत डेटाबेस का निर्माण और तकनीकी सुधारों के माध्यम से फर्जी और डुप्लीकेट इंट्री या मतदान करने को रोकने के लिए कारगर कदम उठाए गए हैं।
- चुनाव के दौरान ऑनलाइन संचार प्रणाली कोमेट का उपयोग कर चुनाव के दिन प्रत्येक मतदान केंद्र की निगरानी और सुरक्षा करने का कार्य किया जाता है।
- भारत में आम चुनावों के दौरान GPS तकनीकी का उपयोग करके मतदान केंद्रों की वास्तविक समय (रियल-टाइम) निगरानी की जा रही है।
इन प्रक्रियागत सुधारों के माध्यम से भारत में चुनाव सुधार की दिशा में प्रक्रियागत रूप से चुनावों में स्वतंत्रता, न्यायसंगतता, और निष्पक्षता को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है।
भारतीय निर्वाचन पद्धति की आलोचना :
भारत में प्रथम पास द पोस्ट विधि से जनप्रतिनिधि के चुनावों की पद्धति को लेकर कई आलोचनाएं उठाई जा रही हैं। चुनाव प्रक्रिया की इस पद्धति में कुछ महत्वपूर्ण दोष निम्नलिखित है –
वोट की संभावनाएं और प्रतिनिधित्व पद्धति की आलोचना :
- भारत में वर्तमान चुनाव प्रक्रिया की इस पद्धति में, किसी सीट पर सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने वाला उम्मीदवार ही चुनाव जीतता है, जिसके कारण यह हो सकता है कि एक राजनीतिक दल विभिन्न समूहों के बीच बांट दे, लेकिन उनका प्रतिनिधित्व स्थान पर नहीं हो। इससे सामूहिक न्याय की स्थिति में असमानता बढ़ सकती है।
व्यक्तिगत विजय और राजनीतिक पार्टी के सदस्यों के बीच का संबंध :
- भारत में चुनावों के दौरान कई बार यह देखा गया है कि एक पार्टी को प्राप्त कुल मतों में सबसे ज्यादा वोट मिलने के बावजूद उसके एक भी सदस्य को सीट नहीं मिलती है। इससे व्यक्तिगत विजय का सिद्धांत खतरे में हो सकता है और राजनीतिक पार्टियों के बीच का आपसी संबंध हो सकता है।
बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक और सामुदायिक वर्गों की अनदेखी :
- भारत में होने वाले आम चुनावों में राजनीतिक दलों को वोट मिलने के बावजूद, यह देखा गया है कि कुछ समूहों की आवाज़ सदन में अनसुनी रह सकती है। इससे बहुसख्यक या कभी – कभी अल्पसंख्यक वर्गों या सामुदायिक वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता और उनके मुद्दों पर सदन का ध्यान नहीं जाता है । इसे एक तरह से बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक और सामुदायिक वर्गों की अनदेखी के रूप में भी देखा जाता है ।
निष्कर्ष / आगे की राह :
चुनावी प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता :
- भारत में वर्तमान समय में अपनाए जा रहे चुनाव प्रक्रिया में सुधार करने की अत्यंत आवश्यकता है ताकि प्रतिनिधित्व में अधिक से अधिक समर्थ और सामूहिक न्याय की स्थिति में सुधार हो सके।
चुनावों में धर्म पर आधारित धार्मिक नारे और धार्मिक स्थलों पर जाने से रोक लगाना :
- भारत में चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के नेताओं को चुनावी प्रचार में धार्मिक स्थलों पर जाने और धार्मिक नारे लगाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए ताकि भारत में चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से संपन्न हो सके।
फेक न्यूज़ या पेड न्यूज के खिलाफ सख्ती :
- भारत में चुनाव सुधारों के तहत चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा अपनाई गई पेड न्यूज़ और फेक न्यूज़ पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए ताकि चुनाव के दौरान जनता के जनमत को सही और विश्वसनीय जानकारी मिल सके और चुनाव पारदर्शी और निष्पक्ष रूप से संपन्न हो सके।
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का विनियमन:
- भारत में चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर जारी खबरों की गुणवत्ता की निगरानी करने और फैलाए जा रहे दुष्प्रचार को रोकने के लिए आचार संहिता को लागू करना चाहिए, ताकि चुनाव पारदर्शी और निष्पक्ष रूप से संपन्न हो सके।
वन नेशन वन इलेक्शन’ मुद्दे पर विचार-विमर्श की ओर ध्यान आकृष्ट करना :
- भारत में चुनाव सुधार की दिशा में विभिन्न समूहों के बीच विचार-विमर्श करने के लिए ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ मुद्दे पर व्यापक विचार-विमर्श आयोजित करना चाहिए ताकि सभी समूहों का समर्थन प्राप्त हो सके।
इन प्रक्रियागत सुधारों के माध्यम से हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि भारत में चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष, सामर्थ्यपूर्ण और सामूहिक न्यायपूर्ण सुनिश्चित हो सके , जिससे भारतीय लोकतंत्र का मुख्य उद्देश्य मजबूत हो सकता है और भारत के चुनाव प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार संभव हो सकता है ।
Download yojna daily current affairs hindi med 27th feb 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में चुनाव सुधार के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- भारत में राजनीतिक दबाव के कारण निर्वाचन अधिकारियों को अनुचित रूप से प्रभावित होना पड़ता है, जिससे वे अपने कार्यों में पूरी निष्ठा और निष्पक्षता बनाए रखने में सक्षम नहीं रहते।
- वर्ष 1993 में गठित वोहरा समिति ने भारत में चुनाव के दौरान राजनीतिक अपराधों और उसके कारणों की जाँच करके चुनावी प्रक्रिया में सुधार का सुझाव दिया था।
- भारत में प्रथम पास द पोस्ट विधि से जनप्रतिनिधि के चुनावों की पद्धति को अपनाया गया है ।
- भारत में दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव नहीं लड़ने का प्रतिबंध लगाया गया है ।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
(A) केवल 1 और 4
(B) केवल 1 और 3
(C) इनमें से कोई नहीं ।
(D) इनमे से सभी ।
उत्तर – (D)
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत की वर्तमान चुनाव – प्रक्रिया में निहित दोषों को रेखांकित करते हुए भारत में चुनाव प्रक्रिया में सुधार की वर्तमान प्रासंगिकता पर विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।

Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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