28 Apr वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम
वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम
संदर्भ- हाल ही में केंद्रीय मंत्रीमण्डल ने 2022-23 से 2025-26 की अवधि हेतु वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के लिए 4800 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। भारत चीन सीमा पर सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई है।
वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम
- वीवीपी एक केंद्र प्रायोजित योजना है, यह योजना 16 राज्यों व दो केंद्र शासित प्रदेशों में लागू की जानी है, जो हैं- अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर (यूटी) और लद्दाख (यूटी) आदि।
- इसके तहत व्यापक विकास के लिए अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के उत्तरी सीमा से सटे 19 जिलों के 46 ब्लॉकों में 2967 गांवों की पहचान की गई है।
- पहले चरण में, कवरेज पर प्राथमिकता के लिए 662 गांवों की पहचान की गई है, जिसमें अरुणांचल प्रदेश के 455 गांव शामिल हैं।
- जिला पंचायतों द्वारा ग्राम पंचायतों की सहायता से वाइब्रेंट विलेज के लिए एक्शन प्लान तैयार किया जाएगा।
वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम का उद्देश्य-
- वास्तविक नियंत्रण रेखा में एक सुरक्षा ग्रिड का निर्माण करना।
- क्षेत्रीय निवासियों के सामाजिक स्तर में सुधार
- विकास केंद्रों का निर्माण।
- पर्यटन क्षमता का लाभ उठाना।
- सतत पर्यावरण विकास।
उद्देश्यों की प्राप्ति
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- सुरक्षा ग्रिड का निर्माण- ITBP सैनिकों के आराम, तैयारी व प्रशिक्षण में सुधार लाना। जिसके द्वारा सीमाओं को सुरक्षित करने में मदद मिल सकती है।
- आर्थिक सुधार- स्थानीय प्राकृतिक व मानव संसाधनों की पहचान कर क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाई जा सकती है।
- पर्यटन- स्थानीय सांस्कृतिक तत्वों को प्रोत्साहित कर क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देना।
- सामाजिक स्तर में सुधार– लोगों को उनके मूल निवास में रहने के लिए प्रोत्साहित कर पलायन को रोकना। इसके साथ ही गांवों में बुनियादी ढांचों के निर्माण जैसे सड़कों और पुलों, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, खेल, पेयजल और स्वच्छता किया जाना है।
- विकास केंद्रों का निर्माण – इस योजना का उद्देश्य क्षेत्र के युवाओं व महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उद्यमिता विकास पर जोर देना है। इसके लिए हब एंड स्पोक मॉडल की तर्ज पर विकास केंद्रों की स्थापना की जानी है।
- सतत पर्यावरण और कृषि व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए स्वयं सहायता समूह, सहकारी समितियां व गैर सरकारी संगठनों की सहायता सीमाओं तक पहुँचाई जा सकती है। एक गांव एक उत्पाद की अवधारणा विकसित कर भी कृषि व्यवसाय को विकसित किया जा सकता है।
यह योजना सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के साथ सीमाओं की सुरक्षा व देश के संसाधनों में वृद्धि में सहायक सिद्ध होगी। इसके साथ सीमावर्ती गांवों के विकास से क्षेत्र की जनता के जीवन स्तर में सुधार भी होगा।
स्रोत
https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1811258
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