वायकूम सत्याग्रह

वायकूम सत्याग्रह

वायकूम सत्याग्रह

संदर्भ- हाल ही में 30 मार्च को देश भर में सामाजिक समता से संबंधित आंदोलन, वायकूम सत्याग्रह को याद किया गया। यह आंदोलन वायकूम के शिव मंदिर में प्रवेश से संबंधित आंदोलन था। जहाँ निम्न जाति के प्रवेश पर प्रतिबंध था।

वायकूम सत्याग्रह की पृष्ठभूमि-

    • 19 वी सदी में केरल में जातिगत भेदभाव, उत्तर भारत से भी बुरी अवस्था में था। सवर्ण जाति यानि पुरोहित वर्ग द्वारा इन्हें अवर्ण माना जाता था। यहां निम्नजातीय लोग को सवर्णों से लगभग 16-32 फीट की दूरी पर रहना होता था। किंतु ऐतिहासिक तौर पर (आठवी सदी के तमिल शब्दकोश में वर्णित) इन्हें एझावा या इझाम अर्थात सवर्णों के समकक्ष माना गया है। 
    • वायकूम सत्याग्रह एक सामाजिक आंदोलन था जो सामाजिक खाई को पाटने के लिए केरल के वायकूम में निम्नजाति के लोगों द्वारा वहां की ब्राह्मण जाति के विरुद्ध एक आंदोलन था। जो वायकूम के शिवमंदिर में सभी के प्रवेश के लिए प्रारंभ किया गया था। 
  • वायकूम शिव मंदिर- केरल के वायकूम गांव के शिव मंदिर में तत्कालीन ब्राह्मण समाज का प्रभुत्व था। इस मंदिर के पास की सड़कों पर निम्न जाति अर्थात अनुसूचित जाति व जनजाति के प्रवेश पर प्रतिबंध था। अतः दक्षिण भारत में निम्नजातीय लोगों द्वारा किए गए प्रतिरोध को वायकूम सत्याग्रह का नाम दिया गया। इस आंदोलन का नेतृत्व रामास्वामी नायकर ने किया। 

वायकूम सत्याग्रह

  • वायकूम आंदोलन से पूर्व टी. के. माधवन ने कांग्रेस की काकीनाडा बैठक में दलितों के साथ होने वाले भेदभाव की समीक्षा की। जिसके बाद दलितों के उद्धार के लिए समितियाँ बनाई गई।
  • आंदोलन का नेतृत्व टी. के माधवन, रामास्वामी नायकर, के केलप्पन, वेलायुध मेनन जैसे नेताओं ने किया। जो के. केलप्पन की अध्यक्षता वाली समिति से संबंधित थे। 
  • एझावों व कांग्रेस के नेताओं के समर्थन से वायकूम की जनता ने इस आंदोलन में प्रतिभाग किया। 
  • आंदोलन में सभी हिंदुओं द्वारा सभी मंदिरों में प्रवेश व सभी राजमार्गों का प्रयोग करने पर जोर दिया गया।
  • 30 मार्च 1924 को सभी सत्याग्रहियों ने मंदिर में प्रवेश को रोकने के लिए लगी बाड़ को पार कर मंदिर में प्रवेश किया। सत्याग्रहियों में केरल कांग्रेस कमिटी के सदस्य भी मौजूद थे।
  • लम्बे समय तक आंदोलन चलता रहा जिससे कई गिरफ्तारियाँ भी हुई। 9 अप्रैल को गिरफ्तारियाँ रोक कर केवल नेताओं को बंदी बनाने पर ध्यान दिया गया ताकि आंदोलन नेतृत्व विहीन हो जाए। नीलकंदन नामपुथिरी और जॉर्ज जोसेफ जैसे नेताओं ने पेरियार से विरोध का नेतृत्व करने का अनुरोध किया। इसके लिए तमिल पत्रिका नवशक्ति के संपादक और विद्वान, थिरु, वि. कल्याणसुंदरम, थिरु.वि.का. पेरियार को वायकोम वीरार (वैकोम का नायक) की उपाधि प्रदान की।
  • वायकूम के अतिरिक्त कई क्षेत्रों के संस्थानों ने सत्याग्रह का समर्थन किया। जैसे पंजाब का अकाली जत्था, राष्ट्रीय नेता महात्मा गाँधी के द्वारा आंदोलन के समर्थन के बाद आंदोलन को बल मिला लेकिन कुछ विवाद भी आंदोलन के बाद उत्पन्न हुए। 
  • 23 नवंबर 1925 में मंदिर के तीन ओर की सड़क एझावों के लिए खोल दी गई।
  • 29 नवंबर 1925 को पेरियार की अध्यक्षता में विजय उत्सव मनाया गया। 

सत्याग्रह के समर्थक संस्थान –

  • केरल कांग्रेस कमिटी
  • नायर सेवा संस्थान
  • नायर समाजम
  • केरल हिंदू सभा आदि। 

सत्याग्रह के विरोधी- 

  • केरल के नम्बूदरी ब्राह्मण
  • त्रावणकोर सरकार

सत्याग्रह का विरोध केरल के नम्बूदरी ब्राहमण व केरल की त्रावणकोर सरकार ने किया त्रावणकोर सरकार ने प्रवेश को रोकने के लिए मंदिर के समीप बाड़े बना दिए थे और सिपाहियों की नियुक्ति कर दी थी। किंतु व्यापक आंदोलन के बाद त्रावणकोर सरकार ने मार्च 1925 में मंदिर के पास के राजमार्ग में आवागमन की अनुमति देना स्वीकार किया। औऱ 1936 में केरल में मंदिरों में प्रवेश के प्रतिबंध को पूर्णतः हटा दिया गया। 

वायकूम सत्याग्रह और गाँधीजी

सत्याग्रह में गांधीजी की एक विशिष्ट भूमिका मानी जाती है। व्यापक आंदोलन के दौरान गांधीजी ने मार्च 1925 को वायकूम की यात्रा की। वहाँ के प्रतिष्ठित नम्बूदरी इंदानथुरिथुल से लम्बी चर्चा की। चर्चा का उद्देश्य मंदिर के सड़कों में अवर्णों को प्रवेश दिलाना था। नम्बूदरियों वपुरोहितों से चर्चा करने के बाद गांधी जी ने त्रावणकोर रियासत की महारानी व त्रावणकोर के उत्तराधिकारी से चर्चा की और वायकूम सत्याग्रह की परिस्थितियों से अवगत कराया। इसके साथ गांधीजी ने श्री नारायण गुरु के मठ में जाकर भेंट की। इसके कुछ समय बाद ही त्रावणकोर के महाराज का आदेश जारी हुआ जिसके तहत वायकूम के तीन दिशाओं के मंदिर को सभी के लिए खोल दिया जाए। वायकूम सत्याग्रह में गांधी की भूमिका को अम्बेडकर मुक्तिकारी कदम के रूप में देखा।

वायकोम सिर्फ एक शहर का नाम नहीं है। यह सामाजिक न्याय का प्रतीक है और जातिगत बाधाओं के उन्मूलन का प्रतीक है। यह वह है जो अभी भी इतिहास और सामाजिक न्याय आंदोलन में उज्ज्वल है।

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