03 Nov शक पंजा साहिब और गुरु का बाग मोर्चा
शक पंजा साहिब और गुरु का बाग मोर्चा
संदर्भ- सीमा के दोनों ओर के गुरुद्वारा प्रबंधन निकाय अमृतसर स्थित शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) और पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (PSGPC) द्वारा संयुक्त रूप से हसन अब्दाल शहर में शहीदी शक पांजा साहिब (शहादत नरसंहार) की शताब्दी मनाया गया। जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के अटक जिले में स्थित है।
शक पंजा साहिब क्या है-
30 अक्टूबर 1922 को अमृतसर से अटक जाने वाली ट्रेन में गुरू के बाग मोर्चा आंदोलन के प्रदर्शनकारियों को पंजा साहिब के सिख लंगर परोसना चाहते थे। किंतु हसन अब्दाल रेलवे स्टेशन पर सिखों को ज्ञात हुआ कि ट्रेन, स्टेशन पर नहीं रुकेगी। इसके विरोध में सिख स्त्री व पुरूष लंगर परोसने के अपने अधिकार की मांग करते हुए पटरी पर बैठ गए, ट्रेन कुछ समय के बाद रुकी लेकिन तब तक कई सिक्ख घायल हो चुके थे और 2 सिक्खों (करम सिंह व प्रताप सिंह) की मृत्यु हो गई थी। तब से शक पंजा साहिब के शहीदों के रूप में सम्मानित किया जाता है। इनके प्रयत्नों से ही गुरुद्वारों को दुष्ट महंतो व अंग्रेजों के अधिकार से स्वतंत्र कराया गया।
गुरु का बाग मोर्चा –
गुरु का बाग अमृतसर के घुक्केवाल गांव में स्थित है जिसमें दो गुरुद्वारे गुरु अर्जुन देव व गुरु तेग बहादुर की यात्रा की स्मृति में निर्मित हैं। इन गुरुद्वारों का प्रशासन उदासी सिखों के मठावासी आदेश पर महंतसर मठाधीशों को हाथों चला गया था।
- गुरु का बाग मोर्चा सिख आंदोलनों में 1920 के दशक का एक प्रमुख आंदोलन था।
- गुरुद्वारा व गुरु का बाग का प्रशासन उस समय महंत सुंदर दास के अधीन था। वे गुरुद्वारा व बाग को अपनी निजी भूमि मानते थे जिसका समर्थन अंग्रेज सरकार करती थी।
- अगस्त 1922 में गुरु के बाग से लंगर पकाने के लिए पेड़ों से लकड़ी काटने के लिए पांच सिक्खों को गिरफ्तार कर दिया गया।
- इसके खिलाफ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी(SGPC) ने निरंतर सिक्खों को आंदोलन के लिए भेजना शुरु किया।आंदोलन करने पर सैकड़ो सिक्खों को गिरफ्तार कर लिया गया।
- अंग्रेजों के अत्याचार से पीड़ित सिख कैदियों के लिए SGPC ने गुरु का बाग में अस्पताल का निर्माण किया।
- अस्पताल सेवा के साथ साथ SGPC ने सिक्खों के लिए रेलवे स्टोशनों पर लंगर की व्यवस्था की और कैदियों का लंगर का लाभ न लेने देने के विरोध में हसन अब्दल स्टेशन पर शक पंजा साहिब की घटना हुई।
पंजा साहिब के ऐतिहासिक तथ्य-
- इस गुरुद्वारे की ऐतिहासिकता इस तथ्य के साथ बढ़ जाती है कि इस गुरुद्वारे में गुरु गोविंद साहब की हस्तलिपि के गुरुद्वारे मे अलंकृत किया गया है।
- किवदंती के अनुसार गुरुनानक साहिब 1521 में पंजा साहिब आए, तब से उनके हाथ की छाप वहां के शिलाखण्ड में अंकित है।
- सिक्ख धर्म के अनुयायी हरि सिंह नलवा द्वारा गुरुद्वारे का नाम पंजा साहिब रखा गया। जिन्हे यहां का पहला गुरुद्वारा बनाने का श्रेय भी दिया जाता है।
विवाद-
- भारत व पाकिस्तान के गुरुद्वारों के सम्मिलित प्रयासों में भी विवाद रहा है। जिसमें भारत के नागरिकों जिनमें SGPC के कुछ सदस्य भी शामिल थे का वीजा पकिस्तान द्वारा निरस्त करने की घटनाएं सामने आई। जिसका SGPC ने कड़ा विरोध किया।
- पाकिस्तान के प्रवक्ता आमिर हाशमी ने भारत के 355 और यूके, य़ूएस व कनाडा के कुल 3000 सिख यात्रियों के पाकिस्तान आने की उम्मीद जताई है।
पंजा साहिब व भारत पाक संबंध-
- शक पंजा साहिब की शताब्दी में स्मरणोत्सव मनाने के लिए भारत के शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी व पाक के सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी का सामूहिक प्रयास है। जो भारत व पाकिस्तान के रिश्तों के लिए एक सकारात्मक पहल है।
- इस प्रकार की पहल से दोनों देशों के तीर्थयात्री आपस में एक अच्छे हेतु के लिए मिलेंगे,और आध्यात्मिक विरासत को संजोए रखने के लिए प्रेरणा मिलेगी।
- पाकिस्तान में सिक्ख समुदाय के पर्यटन बढ़ने से पाकिस्तान में आर्थिक सुधार व भारत व पाकिस्तान के रिश्तों में कुछ सकारात्मकता आ सकती है।
स्रोत
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