27 Sep संगम युग।
संगम युग।
संदर्भ- हाल ही में चेन्नई के पास ओरगडम में पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की खुदाय़ी में पाषाण कालीन उपकरण बनाए जाने के प्रमाण मिले हैं। यहां से प्राप्त सामग्री-
- हाथ की कुल्हाड़ी, स्क्रेपर, क्लीवर।
- रोम के साथ व्यापार के प्रमाण-कांच के मोती।
- खुदायी में सोने के गहने, टेराकोटा के खिलौने, मोती, चुड़ियों व बर्तन के टुकड़े और सिक्के।
- संगम युग की कलाकृतियाँ संगम युग के इतिहास को पाटने का कार्य करेंगी।
संगम युग- दक्षिण भारत के इतिहास में संगम युग, साहित्य की प्रगति का स्वर्णिम युग था। इस युग में साहित्य को दक्षिण भारत के पाण्ड्य राजाओं ने संरक्षण दिया। साहित्य के प्रकाशन के लिए तमिल राजाओं द्वारा साहित्यिक सभा का आयोजन किया जाता था। जिसमें सभी कवियों का सम्मेलन या संगम होता था इसलिए इस काल को संगम काल भी कहा जाता था। सामान्यतः ईसा की प्रथम शताब्दी से 300 ईसवी तक का समय था।
प्रथम संगम का आयोजन पाण्ड्य राज्य की राजधानी मदुरा में हुआ था इस संगम के अध्यक्ष ऋषि अगस्त्य थे। इस संगम को 89 राजाओं के संरक्षण में 549 विद्वानों ने भाग लिया इसमें 4499 कवियों की रचनाओं का प्रकाशन किया गया।
द्वितीय संगम का आयोजन कपाटपुरम /अलवै में हुआ, इस संगम के अध्यक्ष भी ऋषि अगस्त्य थे। इसमें 59 राजाओं के संरक्षण में 49 विद्वानों ने भाग लिया तथा 3700 कवियों की कृतियों का प्रकाशन संभव हो पाया।
तृतीय संगम का आयोजन उत्तरी मदुरा में हुआ, नक्कीरर की अध्यक्षता और 49 राजाओं के संरक्षण में 49 विद्वानों ने संगम में भाग लिया और 449 कवियों कृतियाँ प्रकाशित हुई।
संगम काल में उत्कीर्ण उपर्युक्त जानकारी अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत होती है। क्योंकि संगमों के क्रमशः 4400, 3700 और 1850 वर्षों तक लगातार चलने की बात कही गई है। वर्तमान में उपलब्ध संगम रचनाएं 2289 हैं जो 479 कवियों द्वारा लिखी गई हैं।
संगम साहित्य को मुख्यतः तमिल भाषा में लिखा गया है, जो दक्षिण भारत के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत हैं। संगम काल की प्रमुख महाकाव्य में शिलप्पादिकारम, मणिमेखलै, जीवक चिंतामणि हैं, और प्रमुख ग्रंथों में तोलककापियम, एतुत्तोके, पत्तुप्पातु, पदिनेकिल्लकणक्कु आदि हैं।
- शिलप्पादिकारम-शिलप्पादिकारम का शाब्दिक अर्थ नुपुर की कथा है। इस महाकाव्य की रचना प्रसिद्ध चेर शासक सेन गुट्टवन के भाई इलिंगोआदिगल द्वारा की गई थी। यह महाकाव्य पुहारक्काडम, मदुरैक्काडम, वज्जिक्काडम में विभाजित है, जिनसे चोल, चेर व पाण्ड्य राज्योंकी राजनीति व समाज की जानकारी प्राप्त होती है।
- मणिमेखलै को संगम काल का ओडिसी भी कहा जाता है। इसकी रचना मदुरा के बौद्ध व्यापारी सीतलैसत्तनार ने की थी। इसे शिलप्पादिकारम की कथा के अगले भाग के रूप में लिखा गया है। यह ग्रंथ उस काल की धार्मिक इतिहास को जानने में सहायता करता है।
- जीवक चिंतामणि, जैन मुनि तिरुतक्कदेवर द्वारा रचित एक जैन ग्रंथ है। इस ग्रंथ में विवाह प्रथा व सामाज का वर्णन किया गया है।
- एत्तुतोक्के एक अष्ट संग्रह है। जिसमें 8 ग्रंथ समाहित किए गए हैंं। इसी प्रकार पत्तुपातु 10 कविताओं का संग्रह है।
- पदिनेकेणकुणक्कु 18 कविताओं वाला एक आचारमूलक ग्रंथ है। इसे तमिल साहित्य का पंचम वेद भी कहा जाता है।
- तोलक्कापियम संगम युग का एकमात्र उपलब्ध ग्रंथ है।इसकी रचना तोलकाप्पियर ने की ती। भाषा संबंधी ज्ञान को आधार मानकर इसका रचनाकाल 300 ई. पू. से लेकर 10वी ई. तक रखा गया है। इस प्रकार यह संगम युग के प्राचीनकाल से मध्यकाल तक के समाजिक व आर्थिक जानकारी का स्रोत है।
संगमयुग का राजनीतिक इतिहास- संगम साहित्य में कवियों ने तीन राज्यों चोल, चेर व पाण्ड्य का प्रमुखता से उल्लेख किया है, और इन राज्यों का महाभारत के युद्ध में भाग लेने की प्राचीनता का वर्णन किया है।
चेर-
- संगमयुग में चेर राज्य के सर्वाधिक राजाओं का वर्णन है, इसके प्रथम राजा उदियनजिरल(लगभग 103 ई.) था जिसने महाभारत में भाग लेने वाले सैनिकों को पेटभरकर भोजन करवाया।
- उदियनजेरियल का पुत्र नेडुंगजेरल ने साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई। मालाबार युद्ध में उसकी नौसेना का उल्लेख है जिसमें उसने यवन को बंदी बनाया। इसके साथ ही सात राजाओं को परास्त किया।
- चेर राजा कुट्टवन ने कोंगू युद्ध में भाग लिया और चेर राज्य का विस्तार पश्चिम से पूर्व तक कर लिया था।
- पदिरुपत्तु ग्रंथ में 5 चेर शासकों का उल्लेख है।
- चोल व पाण्ड्य के गठबंधन का उल्लेख है जिसमें एक अन्य राजा इरंपोई के साथ संयुक्त रूप से चेर राज्य पर आक्रमण करते हैं किंतु पराजित होते हैं।
चोल-
- चोल राजवंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा करिकाल था, करिकाल का अर्थ होता है जले पैर वाला।
- करिकाल 190 ई. में शासक बना उसने गृह युद्ध में विजयी होकर पुनः सत्ता प्राप्त की।
- इसने तंजौर के वेण्णि युद्ध में चेर व पाण्ड्य सहित 11 राजाओं को परास्त किया और वाहैपरंदलई के युद्ध में 9 राजा परास्त किए।
- करिकाल ने साम्राज्य विस्तार के साथ राज्य में कृषि, व्यापात और उद्योंगों की ओर विशेष ध्यान दिया।
- करिकाल के बाद राज्य में पुनः गृहयुद्ध प्रारंभ हुए। चोल राज्य की शक्ति कमजोर हो गई।
- एक अन्य राजा शेनगणान भी चोल राज्य का महत्वपूर्ण राजा था जिसने चेरों को पराजित कर 70 शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
पाण्ड्य-
- संगम साहित्य में वर्णित प्रथम राजा नेडियन है जबकि प्रथम ऐतिहासिक पाण्ड्य राजा पल्लशालई मुदुकुडुमी को माना जाता है।
- पाण्ड्य शासकों में सबसे प्रमुख राजा नेडुंगजेरल को माना जाता है, जिसने तलैयालंगानम का युद्ध(210) में जीता। इसे चेर राजा शेय सहित पड़ोसी राज्यों व 5 सामंतों के विरोध का सामना करना पड़ा था।
- नेडुंगजेरल ने राज्य के कृषि व व्यापार के क्षेत्र में विशेष ध्यान दिया।
संगमकाल में प्रशासन
- संगमकाल के राज्यों का प्रशासन राजतंत्रात्मक, निरंकुश था। राजा का पद वंशानुगत था।
- चोल व चेर राज्य में राज्य के लिए गृहयुद्ध का उल्लेख है।
- निरंकुश तंत्र होते हुए भी राजा अपने मंत्री, ब्राह्मण, विद्वान, मित्र की सलाह के अनुसार करता था।
- चक्रवर्ती राजा बनने के लिए दिग्विजयी राजा होना आवश्यक था, पुरुनाररू में 7 राजाओं को पराजित कर उनके मुकुटों की माला पहनकर दिग्विजयी बना जा सकता था।
- न्याय प्रशासन में सभा की व्यवस्था का भी वर्णन है जो न्यायालय के समान थी और राजा को निर्णय लेने में सहायता करती थी.
- ग्राम प्रशासन में मनरम नामक संस्था होती थी जो गाँव से संबद्ध समस्याओं में सहायता करती थी।
- आर्थिक व्यवस्था राज्य की आय कृषि पर आधारित थी, तथा राज्य की अर्थव्यवस्था भूमिकर व व्यापार जिसमें सीमा शुल्क व चुंगी भी शामिल हैं के द्वारा चलती थी।
स्रोत-
http://www.dspmuranchi.ac.in/pdf/Blog/Sangam%20age.pdf
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