27 Dec समावेशी विकास के लिए एक नई अर्थव्यवस्था की वर्तमान प्रासंगिकता
( यह लेख ‘ इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यू – इकॉनमी थिंकिंग ’ , ‘भारत सरकार के विदेश मंत्रालय का आधिकारिक वेबसाइट ’, ‘ यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवेलपमेंट ’, ‘ द हिन्दू ’ , ‘ इंडियन एक्सप्रेस ’, ‘ संसद टीवी के कार्यक्रम सरोकार ’, ‘ ऊर्जा और पर्यावरण एक अंतःविषय पत्रिका, जो ऊर्जा नीति विश्लेषकों, प्राकृतिक वैज्ञानिकों और इंजीनियरों, साथ ही वकीलों और अर्थशास्त्रियों को आपसी समझ और सीखने में योगदान देने के लिए आमंत्रित करती है ’ के और ‘पीआईबी ’ के सम्मिलित संपादकीय के संक्षिप्त सारांश से संबंधित है। इसमें योजना IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के विशेषकर ‘भारतीय अर्थव्यवस्था एवं विकास , विकास एवं रोजगार , सतत एवं समावेशी विकास और पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी ’ खंड से संबंधित है। यह लेख ‘ दैनिक करेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ समावेशी विकास के लिए एक नई अर्थव्यवस्था की प्रासंगिकता ’ से संबंधित है।)
सामान्य अध्ययन : भारतीय अर्थव्यवस्था एवं विकास , विकास एवं रोजगार , सतत एवं समावेशी विकास और पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी।
चर्चा में क्यों ?
“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।” अर्थात “इस संपूर्ण संसार के सभी मनुष्य सुखी रहें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी एक – दूसरे के मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी इस संसार में दुःख का भागी न बनना पड़े।” प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रों में लिखा गया यह सूक्ति संपूर्ण प्राणी जगत के कल्याण और मंगलमय जीवन की कामना करता है। भारतीय संदर्भ में ‘ समावेशी विकास’ की अवधारणा कोई नई बात नहीं है। प्राचीन धर्मग्रंथों का अवलोकन करे तो उनमें भी सब लोगों को साथ लेकर चलने का भाव निहित है और भारत सभ्यता के विकास के काल ( प्राचीन काल ) से ही ‘ वसुधैव कुटुम्बकम ’ की अवधारणा में विश्वास करने वाला और वह संपूर्ण विश्व को ‘ वसुधैव कुटुम्बकम ’ अर्थात ‘ एक ही परिवार ’ मानने वाला देश रहा है। अर्थात भारत सदैव इस संपूर्ण विश्व की मानव सभ्यता को एक परिवार या आपसी संबंधी / सहयोगी मानता रहा है और इस बात की पुष्टि भारतीय धर्मशास्त्रों में भी की गई है।भारत की मेजबानी में हाल में ही संपन्न G20 की बैठक में सतत और समावेशी विकास के लिए एक नई अर्थव्यवस्था के विकास की जरुरत की ओर भारत ने संपूर्ण विश्व के विकसित और विकासशील देशों का ध्यान खीचा है। G20 के मेजबानी और बैठकों के दौरान भारत के प्रधानमंत्री ने G20 के लिए आदर्श वाक्य ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का प्रयोग किया था , जिसका अर्थ ही था – ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य।’ उन्होंने कहा – “यह G20 प्रेसीडेंसी के प्रति हमारे विज़न को उपयुक्त रूप से दर्शाता है. हमारे लिए पूरी पृथ्वी एक परिवार की तरह है. किसी भी परिवार में, प्रत्येक सदस्य का भविष्य हर दूसरे सदस्य के साथ गहराई से जुड़ा होता है. इसलिए, जब हम एक साथ काम करते हैं, तो हम एक साथ आगे बढ़ते हैं, किसी को पीछे नहीं छोड़ते।”
समावेशी विकास के लिए एक नई अर्थव्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य/ प्राथमिकताएं :
G20 की बैठकों की प्राथमिकताएँ भी निम्नलिखित रही थी –
- समावेशी, न्यायसंगत और सतत् विकास।
- जीवन (पर्यावरण के लिये जीवन शैली)।
- महिला सशक्तीकरण।
- स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा से लेकर वाणिज्य तक के क्षेत्रों में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना एवं तकनीक – सक्षम विकास।
- कौशल-मानचित्रण, संस्कृति और पर्यटन, जलवायु वित्तपोषण, चक्रीय अर्थव्यवस्था, वैश्विक खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, ग्रीन हाइड्रोजन, आपदा जोखिम में कमी तथा अनुकूलन।
- विकासात्मक सहयोग, आर्थिक अपराध के विरुद्ध लड़ाई, और बहुपक्षीय सुधार।
नब्बे के दशक में उदारीकरण से उत्पन्न ‘भूमंडलीकरण ’ के बाद से विकास की यह अवधारणा नए रूप में उभरी क्योंकि उदारीकरण के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ जुड़ने का मौका मिला तथा यह धारणा देश एवं राज्यों की परिधि से बाहर निकलकर वैश्विक संदर्भ में अपनी महत्ता बनाए रखने में सफल रही। भारत में भी नब्बे के दशक में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्विकीकरण के तहत भारत ने भी समावेशी विकास के तहत एक नई अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया और वैश्विक संदर्भ में अपनी महत्ता बनाए रखा । वर्तमान में भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो आने वाले कुछ वर्षों में ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बनने की ओर अग्रसर है।
समावेशी विकास से आशय:
समावेशी विकास के अर्थ को निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर समझा जा सकता है –
- समावेशी विकास का अर्थ ऐसे विकास से लिया जाता है जिसमें रोज़गार के अवसर पैदा हों तथा जो गरीबी को कम करने में मददगार साबित हो।
- इसमें अवसर की समानता प्रदान करना तथा शिक्षा व कौशल के लिए लोगों को सशक्त करना शामिल है, अर्थात् इसमें अवसरों की समानता के साथ विकास को बढ़ावा देना शामिल है।
- विकास का एक ऐसा स्वरुप जो न केवल नए आर्थिक अवसरों को पैदा करे, बल्कि समाज के सभी वर्गो के लिए सृजित ऐसे अवसरों तक समान पहुँच को भी सुनिश्चित करे।
- वस्तुनिष्ट दृष्टि से समावेशी विकास उस स्थिति को दर्शाता है जहाँ सकल घरेलू उत्पाद उच्च संवृद्धि दर के साथ प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद की उच्च संवृद्धि दर परिलक्षित होती है जिसमें आय एवं धन के वितरण के बीच असमानता में कमी आती है।
- समावेशी विकास का बल जनसंख्या के सभी वर्गों के लिये बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर होता है, अर्थात् आवास, भोजन, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ के साथ-साथ एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये आजीविका के साधनों को उत्पन्न करना। इन सब के साथ समावेशी विकास के लिये पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखा जाना आवश्यक है क्योंकि पर्यावरण की कीमत पर किये गए विकास को न तो टिकाऊ कहा जा सकता है तथा न ही समावेशीI
नई अर्थव्यवस्था एवं समावेशी विकास हेतु सरकार द्वारा किया गया पहल :
- समावेशी विकास की अवधारणा को सर्वप्रथम 11वीं पंचवर्षीय योजना में प्रस्तुत की गईI 11वीं पंचवर्षीय योजना वर्ष 2007 से 2012 तक जारी रही और यह भारत की दूसरी अंतिम पंचवर्षीय योजना थीI जिसका विषय था – “ तीव्र एवं अधिक समावेशी विकास I” इस योजना में समाज के सभी वर्गों के लोगों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने और उन्हें अवसरों की समानता उपलब्ध कराने की बात कही गई थी I
- 12वीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2012-17) पूरी तरह से समावेशी विकास पर केंद्रित थी तथा इसकी थीम – “तीव्र, समावेशी एवं सतत् विकास” थी I इस योजना में गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा आजीविका के अवसर प्रदान करने पर विशेष ज़ोर दिया गया ताकि योजना में निर्धारित 8 प्रतिशत की विकास दर को हासिल किया जा सकेI
- सरकार द्वारा समावेशी विकास की स्थिति प्राप्त करने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की गई है I इनमें शामिल है- ‘दीनदयाल अंत्योदय योजना’, ‘समेकित बाल विकास कार्यक्रम’, ‘मिड-डे मील योजना ’, ‘मनरेगा’, ‘सर्व – शिक्षा अभियान’ इत्यादिI
- महिलाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा ‘स्टार्ट-अप इंडिया’, ‘सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वीमेन ’ जैसी योजनाओं की शुरुआत की गई है I इसके अलावा सरकार द्वारा ‘ महिला उद्यमिता मंच ’ तथा ‘ प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना ’ जैसे प्रयास भी महिलाओं के लिए किए गए वित्तीय समावेशन के प्रयासों में शामिल हैं I
- वित्तीय समावेशन के लिए भी सरकार द्वारा कई पहलों / योजनाओं की शुरुआत की गई है I इनमें ‘ मोबाइल बैंकिंग ’, ‘ प्रधानमंत्री जन धन योजना ’ , ‘प्रधानमंत्री मुद्रा – योजना’ , ‘ ‘वरिष्ठ पेंशन बीमा – योजना ’ इत्यादि महत्त्वपूर्ण योजनाओं को शामिल किया गया है I
- दिव्यागजनों को समावेशी विकास में शामिल करने के लिए सरकार द्वारा निःशक्तता अधिनियम 1995, कल्याणार्थ राष्ट्रीय न्यास अधिनियम 1999, सिपडा, सुगम्य भारत अभियान, स्वावलंबन योजना तथा इसके अलावा दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017 जैसे कदम उठाए गए हैं।
- सरकार द्वारा किसानों एवं कृषि कार्य हेतु और कृषि क्षेत्र में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए ‘ मृदा – स्वास्थ्य – कार्ड ’, ‘ नीम – कोटेड – यूरिया ’, ‘ प्रधानमंत्री कृषि – सिंचाई योजना ’ , ‘ प्रधानमंत्री फसल – बीमा – योजना ’ और ‘ राष्ट्रीय खाद्य – सुरक्षा मिशन ’ जैसी महत्त्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
समावेशी विकास के मापन के तरीके :
राष्ट्र की प्रगति को उसके सबसे गरीब हिस्से की प्रगति के आधार पर मापा जाए अर्थात् जनसंख्या के सबसे निचले 20 प्रतिशत हिस्से की प्रगति के आधार पर प्रति व्यक्ति आय को मापना, समावेशी विकास को मापने का सबसे बेहतर तरीका है।
- स्वस्थ समावेशी विकास का सूचक यह है कि यदि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर्ज होती है तो यह स्वस्थ समावेशी विकास का सूचक है।
- यदि किसी देश या राज्य को उच्च विकास दर को हासिल करना है तो समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग को भी विकास की मुख्य धारा की गति में शामिल करना होगा। समावेशी विकास की अवधारणा इसी बात पर निर्भर करती है।
समावेशी विकास की आवश्यकता : वर्तमान समय में प्रासंगिक।
समावेशी विकास के अभाव में कोई भी देश अपना विकास नहीं कर सकता है। समावेशी विकास न केवल आर्थिक विकास है बल्कि यह आर्थिक विकास की एक सामाजिक एवं नैतिक अनिवार्यता भी है। नई अर्थव्यवस्था के विकास के संदर्भ में समावेशी विकास की महत्ता को निम्नलिखित संदर्भों के आधार पर समझा जा सकता है –
- समावेशी विकास, धारणीय विकास के लिए आवश्यक है। अतः यदि विकास धारणीय नहीं होगा तो अर्थव्यवस्था में गिरावट की स्थिति उत्पन्न होगी।
- आय – वितरण में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होने से धन का संकेंद्रण कुछ ही लोगों के पास होगा, परिणामस्वरूप वस्तु के मांग में कमी आएगी तथा GDP वृद्धि – दर में भी कमी होगी। समावेशी विकास न होने पर आय वितरण में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होगी।
- एकसमान समावेशी विकास न हो पाने के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में विषमता में वृद्धि होती है जिससे वंचित वर्ग विकास की मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाते है।
- किसी भी देश की भौगोलिक सीमा में सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, नस्लीय , जातीय हिंसा जैसी विघटनकारी प्रवृत्तियों का जन्म समावेशी विकास के अभाव के चलते ही होता है, जिससे कभी-कभी देश में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, परिणामस्वरूप देश की भौगोलिक सीमा में सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद जैसी विघटनकारी प्रवृत्तियों का जन्म होता है।
समावेशी विकास के समक्ष चुनौतियाँ:
- शहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन से कृषि अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है जिससे कृषि उत्पादकता में कमी दर्ज की जा रही है।
- गाँव में बुनियादी सविधाएँ न होने के कारण गाँव से लोग शहरों की तरफ पलायन करते हैं। इसके चलते शहरों में जनसंख्या का दवाब बढ़ता है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी स्थायी एवं दीर्घकालीन रोज़गार साधनों की सृजन की ज़रूरत है क्योंकि मनरेगा एवं इस तरह की अन्य कई रोज़गारपरक योजनाओं का क्रियान्वयन ग्रामीण क्षेत्रों में किया तो जा रहा है परंतु इन्हें रोज़गार के स्थायी साधनों में शामिल नहीं किया जा सकता है।
- समावेशी विकास की गति में बाधा उत्पन्न करने में भ्रष्टाचार भी देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
समाधान की राह / आगे की राह:
वर्तमान समय में यदि भारत में तीव्र समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना है तो कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होगी, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2030 तक गरीबी के सभी रूपों (बेरोज़गारी, निम्न आय, गरीबी इत्यादि) को समाप्त करने का लक्ष्य सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल के लक्ष्य-1 में निर्दिष्ट किया गया हैI चूँकि भारत में कृषि क्षेत्र कुल श्रम बल के आधे श्रम बल को रोज़गार उपलब्ध कराता है। इसके अलावा सरकार द्वारा भी वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था , परंतु इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति उत्पादकता काफी कम है जिसके कारण यह गरीबी के सबसे उच्चतम क्षेत्र से जुड़ी है। हालाँकि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि विकास के लाभ को समाज के सभी वर्गों और सभी हिस्सों तक कैसे पहुँचाया जाए तथा यहीं पर तकनीक के उपयुक्त इस्तेमाल की भूमिका सामने आती है। हाल हीं में शुरू किया गया ‘ डिजिटल इंडिया कार्यक्रम ’ इस चुनौती का सामना करने के लिये एक अच्छी पहल है। अतः भारत समावेशी विकास के लिए एक नई अर्थव्यवस्था के विकास के लिए G20 समूह देशों का मुखिया और विश्व में अत्यंत तीव्र गति से विकास करता हुआ विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला देश बनने की ओर अग्रसर है। जो वैश्विक स्तर पर विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों के बीच भारत के मजबूत एवं नई अर्थव्यवस्था के मजबूती के उज्जवल भविष्य का संकेत है ।
Download yojna daily current affairs hindi med 27th DEC 2023
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q. 1 . समावेशी विकास के लिए एक नई अर्थव्यवस्था के विकास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- सतत विकास का वैश्विक एजेंडा तभी संभव है जब सभी देश अपने हिस्से की जवाबदेही का निर्वहन करें।
- भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से हैं जहां विकास प्रक्रिया के बावजूद वन और वृक्ष आच्छादित क्षेत्रों में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में वृक्ष आच्छादित क्षेत्र का दायरा 80.73 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.6 प्रतिशत है।
- ग्रामीण विकास कार्यक्रम का एजेंडा इसके विकास मंत्र- “सबका साथ, सबका विकास’ (समावेशी विकास) के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि विकास का लाभ गरीब और वंचित वर्गों तक पहुंचे।
- दीन दयाल उपाध्याय ज्योति योजना का लक्ष्य सस्ती दरों पर बिजली प्रदान करना और बिजली की आपूर्ति बढ़ाने के लिए हरित ऊर्जा, स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करना है।
- केवल 1. 3 और 4
- केवल 2 और 4
- केवल 1 , 2 और 4
- इनमें से सभी।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा सही कथन है ?
उत्तर – (d)
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. समावेशी विकास के लिए एक नई अर्थव्यवस्था में क्या तकनीकी परिवर्तन से कार्य का समावेशी भविष्य बन सकता है और समावेशी विकास को बढ़ावा मिल सकता है? समावेशी विकास की कल्पना में प्रदूषण की असमानताओं और अन्याय को ध्यान में रखकर उसका समाधान कैसे किया जा सकता है?
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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