28 Dec हिजाब के लिए अभी कोई जगह नहीं : कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध मामला और धर्म की स्वतंत्रता
(यह लेख ‘ सर्वोच्च न्यायालय के आधिकारिक वेबसाइट ’, ‘केरल उच्च न्यायालय के आधिकारिक वेबसाइट’, ‘ फातिमा तसनीम बनाम केरल राज्य (2018) मामला का आधिकारिक निर्णय ’ , ‘इंडियन एक्सप्रेस ’, ‘ द हिन्दू’ , ‘ कर्नाटक सरकार के गृह मंत्रालय के आधिकारिक वेबसाइट ’ , ‘जनसत्ता ’ , ‘ संसद टीवी के कार्यक्रम सरोकार ’ मासिक पत्रिका ‘वर्ल्ड फोकस’ और ‘पीआईबी ’ के सम्मिलित संपादकीय के संक्षिप्त सारांश से संबंधित है। इसमें योजना IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के विशेषकर ‘भारतीय राजव्यवस्था और शासन , सामाजिक – न्याय, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, मौलिक अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले, न्यायपालिका, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप , सर्वोच्च न्यायालय, हिजाब ’ खंड से संबंधित है। यह लेख ‘ दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ हिजाब के लिए अभी कोई जगह नहीं : कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध मामला और धर्म की स्वतंत्रता ’ से संबंधित है।)
सामान्य अध्ययन – भारतीय राजव्यवस्था और शासन , सामाजिक – न्याय, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, मौलिक – अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले, न्यायपालिका, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप , सर्वोच्च न्यायालय, हिजाब।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में एक विभाजित निर्णय दिया।
- भारत के संविधान में वर्णित विभाजित निर्णय की स्थिति में मामले की सुनवाई एक बड़ी बेंच द्वारा की जाती है।
- विभाजित निर्णय का मामला जिस बेंच को हस्तांतरित किया जाता है, वह उच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ हो सकती है, अथवा इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भी अपील की जा सकती है।
- कर्नाटक में मुस्लिम छात्रों के एक वर्ग द्वारा कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति मांगने वाली याचिकाओं को मार्च 2022 में उच्च न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह इस्लामी आस्था में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और इसे बेवजह धार्मिक स्वतंत्रता के आधार पर सुनवाई के लिए अपील किया गया है।
कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनकर आने पर अब कोई रोक-टोक नहीं है। कांग्रेस सरकार ने 23 दिसंबर 2023 को यह ऐलान किया। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मैसुरु जिले के नंजनगुड में तीन पुलिस स्टेशनों के उद्घाटन के मौके पर 22 दिसंबर 2023 को ये घोषणा की थी। इसके पीछे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तर्क दिया कि भारत में किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह का पोशाक पहनने और भोजन करने का चुनाव करना उसका व्यक्तिगत अधिकार / मामला होता है। भारत में ऐसे विवादित मामलों के पीछे वोट बैंक की राजनीति और तुष्टिकरण का मामला होता है।
हाल ही में कर्नाटक के उडुपी ज़िले के एक कॉलेज में हिजाब (कुछ मुस्लिम महिलाओं द्वारा सार्वजनिक रूप से पहना जाने वाला वस्त्र) पहनकर आने वाली छह छात्रों को कॉलेज में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह मुद्दा धर्म की स्वतंत्रता पर कानूनी सवाल उठाता है कि क्या हिजाब पहनने का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित है ? अथवा इसके कुछ अलग निहितार्थ भी हैं। यह मामला कर्नाटक हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुँचा था। आखिरकार फैसला हुआ कि शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनकर कक्षा में बैठने पर रोक रहेगी। सिर्फ यूनिफॉर्म पहनकर ही कक्षा में आने की अनुमति होगी। छात्राएँ हिजाब में स्कूल आ सकती थीं, लेकिन कक्षा में प्रवेश करने से पहले उन्हें अपने हिजाब को उतारना होगा।
क्या हैं इसके निहितार्थ ?
भारतीय संविधान के द्वारा भारतीय नागरिकों को प्रदत मौलिक अधिकारों के अनुसार भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित मौलिक अधिकार प्राप्त है –
- अंतःकरण की स्वतंत्रता: अंतःकरण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता।
- धर्म को मानने का अधिकार: अपने धार्मिक विश्वास और आस्था की सार्वजनिक और बिना भय के घोषणा करने का अधिकार।
- आचरण का अधिकार: धार्मिक पूजा, अनुष्ठान, समारोह और विश्वासों तथा विचारों का प्रदर्शन करने का अधिकार।
- प्रचार करने का अधिकार: किसी के धार्मिक विश्वासों को दूसरों तक पहुँचाना या प्रसारित करना या किसी के धर्म के सिद्धांतों की व्याख्या करना।
आवश्यक धार्मिक आचरण का परीक्षण:
- कौन सी धार्मिक प्रथाओं को संवैधानिक रूप से संरक्षित किया जा सकता है और क्या या किसको अनदेखा किया जा सकता है वर्षों से सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित करने के किए एक व्यावहारिक परीक्षण प्रक्रिया विकसित की है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1954 में शिरूर मठ मामले में कहा कि ‘धर्म’ शब्द एक धर्म के तहत ‘अभिन्न’ सभी अनुष्ठानों और प्रथाओं को शामिल करेगा। ‘अभिन्न’ क्या है, यह निर्धारित करने हेतु किए जाने वाले परीक्षण को ‘आवश्यक धार्मिक प्रथा’ परीक्षण कहा जाता है।
- प्रायः कानूनी विशेषज्ञों द्वारा धार्मिक प्रथाओं के न्यायिक निर्धारण के संबंध में इस परीक्षण की आलोचना की जाती है, क्योंकि यह न्यायालय को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप हेतु प्रेरित करता है।
- संविधान विशेषज्ञों का मत है कि न्यायालय का कार्य सार्वजनिक – व्यवस्था हेतु धार्मिक प्रथाओं को प्रतिबंधित करने तक सीमित होना चाहिए और न्यायालय को किसी धर्म विशेष के लिए आवश्यक प्रथाओं का निर्धारण नहीं करना चाहिए । कई मामलों में न्यायालय ने कुछ प्रथाओं के लिए इस परीक्षण को लागू किया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2004 में दिए गए अपने एक फैसले में माना कि ‘आनंद मार्ग संप्रदाय’ को सार्वजनिक सड़कों पर ‘तांडव नृत्य’ करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं था, क्योंकि यह संप्रदाय की एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
- ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें न्यायालय ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर भी इस परीक्षण को लागू किया है क्योंकि इन मुद्दों को बड़े पैमाने पर समुदाय-आधारित माना जाता है।
- वर्ष 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय वायु सेना के एक मुस्लिम एयरमैन को दाढ़ी रखने पर सेवामुक्त करने के निर्णय को सही ठहराया था।
- सशस्त्र बल विनियम, 1964 सशस्त्र बलों के कर्मियों के लिए बाल बढ़ाने को प्रतिबंधित करता है, केवल ‘उन कर्मियों को छोड़कर जिनका धर्म बाल काटने या शेव करने पर रोक लगाता है।’
- अपने एक निर्णय में न्यायालय ने अनिवार्य रूप से माना था कि ‘ दाढ़ी रखना इस्लामी प्रथाओं का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं’ है।
न्यायालय के निर्णय की प्रमुख बातें:
हिजाब के मुद्दे पर न्यायालयों के अब तक के निर्णय:
- वर्ष 2015 में केरल उच्च न्यायालय के समक्ष ऐसी दो याचिकाएँ दायर की गई थीं, इनमें अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश के लिये ड्रेस कोड को चुनौती दी गई थी, जिसमें सलवार/पायजामा” के साथ चप्पल पहनने की अनुमति थी एवं आधी आस्तीन वाले हल्के कपड़े, जिनमें बड़े बटन, बैज, फूल आदि न हों”, ही पहनने का प्रावधान था।
- केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) के तर्क को स्वीकार करते हुए कि यह नियम केवल यह सुनिश्चित करने के लिये था कि उम्मीदवार कपड़ों के भीतर वस्तुओं को छुपाकर अनुचित तरीकों का इस्तेमाल नहीं करेंगे, केरल उच्च न्यायालय ने CBSE को उन छात्रों की जाँच हेतु अतिरिक्त उपाय करने का निर्देश दिया जो अपने धार्मिक रिवाज़ के अनुसार पोशाक पहनने का इरादा रखते हैं, लेकिन जो ड्रेस कोड के विपरीत है।
- आमना बिंट बशीर बनाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (2016) मामले में केरल उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे की अधिक बारीकी से जाँच की। इस मामले में न्यायालय ने माना कि हिजाब पहनने की प्रथा एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, लेकिन सीबीएसई नियम को रद्द नहीं किया गया।
- न्यायालय ने एक बार फिर 2015 में “अतिरिक्त उपायों” और सुरक्षा उपायों की अनुमति दी। हालाँकि स्कूल द्वारा निर्धारित ड्रेस के मुद्दे पर एक और बेंच ने फातिमा तसनीम बनाम केरल राज्य (2018) मामले में अलग तरीके से फैसला सुनाया।
- केरल उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा कि- ‘ किसी संस्था के सामूहिक अधिकारों को याचिकाकर्त्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाएगी। ’
संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा:
- संविधान के भाग-3 (मौलिक अधिकार) का अनुच्छेद 25 से 28 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 25 (1) ‘अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता के अधिकार’ की गारंटी देता है।
- यह एक ऐसा अधिकार है जो नकारात्मक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जिसका अर्थ है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का उपयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा न हो।
- संविधान सभी मौलिक अधिकारों की तरह राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य राज्य हितों के अधिकार को प्रतिबंधित कर सकता है।
- अनुच्छेद 26 सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता की व्याख्या करता है।
- अनुच्छेद 27 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म के प्रचार या व्यवहार के लिए किसी भी कर का भुगतान करने के लिये मजबूर नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद 28 शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता की व्याख्या करता है।
समस्या का समाधान / आगे की राह:
- मौजूदा राजनीतिक माहौल में कर्नाटक सरकार द्वारा “एकता, समानता एवं सार्वजनिक व्यवस्था के हित” में या तो एक निर्धारित वर्दी या किसी भी पोशाक को अनिवार्य करने के निर्णय को शैक्षिक संस्थानों में धर्मनिरपेक्ष मानदंडों, समानता और अनुशासन को लागू करने की आड़ में एक बहुसंख्यकवादी दावे के रूप में भी देखा गया।
- ऐसा एक भी फैसला जो किसी भी समुदाय, धर्म या जाति के लोगों को शिक्षा के लिए इस गैर-समावेशी दृष्टिकोण को वैध बनाता है और ऐसी एक भी नीति जो मुस्लिम महिलाओं को समानता के अवसर से वंचित कर सकती है, देश के हित में नहीं होगी और यह गैर संवैधानिक भी होगा।
- स्कूल , कॉलेजों या अन्य शैक्षणिक – संस्थानों में अलग से हिजाब या कोई भी पहनावा, धार्मिक या अन्य, स्कूल , कॉलेज या अन्य शैक्षणिक – संस्थानों द्वारा निर्धारित यूनिफार्म से अलग नहीं होना चाहिए। अतः यूनिफार्म से अलग कोई अन्य पहनावा पहनने की उचित गुंज़ाइश तब तक होनी चाहिए जब तक कि यह हिजाब या कोई भी अन्य धार्मिक पहनावा, यूनिफार्म से अलग नहीं होता है। अतः स्कूल , कॉलेजों या अन्य शैक्षणिक – संस्थानों द्वारा तय किए गए यूनिफार्म को भी पहनावे की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आधार पर नकारा या ख़ारिज नहीं किया जा सकता है।
Download yojna daily current affairs hindi med 28th DECE 2023
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1 .धर्म की स्वतंत्रता के आधार पर हिजाब पहनने के मुद्दे के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- संविधान के भाग-3 (मौलिक अधिकार) का अनुच्छेद 25 से 28 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
- भारत का संविधान नागरिकों को अंतःकरण और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
- संविधान सभी मौलिक अधिकारों की तरह राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य राज्य हितों के अधिकार को प्रतिबंधित कर सकता है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म के प्रचार या व्यवहार के लिए किसी भी कर का भुगतान करने के लिये मजबूर नहीं किया जाएगा।
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
- केवल 1 और 4
- केवल 1, 3 और 4
- इनमें से सभी।
- इनमें से कोई नहीं।
उत्तर – C
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. “ धर्म की स्वतंत्रता के आधार पर किसी भी धार्मिक पहचान को किसी भी सार्वजानिक जगहों / स्थानों या संस्थानों में किसी भी सार्वजनिक प्रदर्शन से मुक्त होने चाहिए ।’’ इस कथन के आलोक में स्कूल यूनिफाॅर्म के संबंध में कर्नाटक सरकार द्वारा हाल ही में दिये गए आदेशों / निर्णयों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
No Comments