20 Jan कोविड-19 का शिक्षा पर असर(ASER) रिपोर्ट 2022
कोविड-19 का शिक्षा पर असर(ASER) रिपोर्ट 2022
संदर्भ– दो साल तक स्कूलों के बंद रहने के बाद 2022 में शैक्षिक संस्थानों के संचालन के बाद असर(ASER) रिपोर्ट 2022 प्रकाशित हुई है, जो महामारी से पूर्व व पश्चात की स्थिति से अवगत कराती है। इसमें लगभग सभी पहलुओं जैसे- सरकारी व निजी विद्यालय, लड़के व लड़कियों की शैक्षिक स्थिति, विद्यालयों में नामांकन व अधिगम को शामिल किया है।
शिक्षा पर वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Educational Report – ASER)
- ASER केंद्र जिसे असर भी कहा जाता है, हिंदी में असर का अर्थ प्रभाव होता है, शैक्षिक विकास कार्यक्रमों के वांछित परिणाम के लिए उसका समय-समय पर मूल्यांकन करना अतिआवश्यक होता है।
- असर बच्चों के पढ़ने व उनके बुनियादी कौशल प्राप्त करने के लिए एक संस्थान है।
- असर केंद्र की स्थापना स्वायत्त इकाई के रूप में 2008 में की गई थी।
- असर संस्थान, सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों के परिणामों के आधार पर साक्ष्य जुटाता है।
असर 2022 के निष्कर्ष
नामांकन
- समग्र नामांकन(6-14वर्ष)-
- पिछले 15 वर्षों में 6-14 वर्ष की उम्र के बच्चों के स्कूलों में नामांकन की दर 95%रही है.।
- 2018 में यह दर 97.2% थी जबकि 2022 में नामांकन दर 98.4% हो गई, अतः भारत में महामारी के कारण नामांकन दर मं वृद्धि हुई है।
- सरकारी विद्यालयों में नामांकन
- 2006-2014 तक सरकारी स्कूलों में नामांकन दर लगातार घटकर 64.9% हो गया। लेकिन महामारी से पहले 2008 में यह दर 65.4% था जबकि महामारी के बाद 2022 में नामांकन दर बढ़कर 72.9% हो गई।
- भारत के सभी राज्यों में सरकारी स्कूलों के नामांकन दर में वृद्धि हुई है।
- लड़कियाँ जिनका नामांकन नहीं हुआ है-
- भारत के विद्यालयों में नामांकित न होने वाली लड़कियों(6-14) का प्रतिशत 2018 में 4.1% था जबकि महामारी के बाद 2022 में यह प्रतिशत 2% हुआ है अपवाद के रूप में उत्तर प्रदेश में यह अब भी 4% है।
- 15-16 वर्ष की लड़कियों का ग्राफ 2018 में 13.5% से 2022 में 7.9% तक गिरा है।
- पूर्व प्राथमिक नामांकन
- 3 वर्ष की उम्र के बच्चों के आंगनवाड़ी जैसे संस्थानों में नामांकन भी प्राप्त रूप से बढ़ा है जो 2018 में 57.1% से बढ़कर 2022 में 66.8% हो गई।
निजी कोचिंग- राष्ट्रीय स्तर पर 2018 में 26.4% छात्र निजी कोचिंग लेते थे जबकि 2022 में यह 4 प्रतिशत बढ़कर 30.5% हो गया है। कुढ राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड में यह 8% तक बढ़ा है।
अधिगम स्तर : पढ़ने व अंकगणितीय कौशल
- राष्ट्रीय स्तर पर, बच्चों की बुनियादी पढ़ने की क्षमता 2012 के पूर्व के स्तर तक गिर गई है,अधिकांश राज्यों के सरकारी और प्राइवेट स्कूल दोनों में और लड़के और लड़कियों दोनों की पढ़ने की क्षमता में गिरावट दिख रही है।
- कक्षा 3 के छात्र जो कम से कम घटाने में सक्षम थे उनका प्रतिशत 28.2% से गिरकर 25.9% हो गया है।इसी प्रकार कक्षा 5 के छात्र जो कम से कम भाग की क्रिया कर सकते हैं उनका प्रतिशत भी 27.9 से 25.6 हो गया है।
- शिक्षा पर वार्षिक स्थिति रिपोर्ट के अनुसार असर ने बच्चों के अंकों व संख्याओं को पहचानने की क्षमता तथा संख्याओं को घटाने की क्षमता का अध्ययन किया और अधिकांश ग्रेड के लिए 2018 के स्तर पर राष्ट्रीय, बच्चों के बुनियादी अंकगणितीय स्तर में गिरावट आई है।
- इस प्रकार बच्चों के अधिगम अधिक्षमता पर महामारी का सबसे अधिक दुष्प्रभाव पड़ा है। जबकि छात्रों को डिजीटल माध्यमों द्वारा शिक्षा देने का लगातार प्रयास किया जा रहा था।
आगे की राह
- पढ़ने व अंकगणितीय अधिगम में कमी, बच्चों को डिस्कैल्कुलिया रोग की ओर ले जा सकती है, जो एक मानसिक बिमारी है। इस समस्या से निपटने हेतु शैक्षणिक संस्थानों में एजुकेशनल साइकोलॉजिस्ट की नियुक्ति की जा सकती है।
- कम से कम 14 वर्ष तक के बच्चों को डिजीटल उपकरणों के सजग व सीमित उपयोग को बढ़ावा देने के प्रयास करने चाहिए।
- कोविड 19 में निजी संस्थानों का खर्च वहन न कर पाने के कारण सरकारी स्कूलों में नामांकन प्रतिशत अवश्य बढ़ा है किंतु सरकारी स्कूलों में नामांकन में अभी भी सुधार की आवश्यकता है, इसलिए सरकारी स्कूलों को वर्तमान आवश्यकता के अनुरूप अपग्रेड किया जाना चाहिए।
- आर्थिक बोझ बढ़ने के साथ उच्च शिक्षा में नामांकन के बाद ड्रॉपआउट की संख्या भी बढ़ी है। उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे आर्थिक रूप से कमजोर प्रत्येक वर्ग की सहायता की जानी चाहिए।
- उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहाँ लड़कियों के नामांकन की दर कम है, लड़कियों की विद्यालयी शिक्षा के लिए प्रयास करने चाहिए।
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